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लोक उद्योग समिति

लोक उद्योग समिति

लोक उद्योगों पर संसदीय समिति

लोक उद्योगों पर संसदीय समितियों के अतिरिक्त प्रश्नों एवं बहस द्वारा नियंत्रण भी संसदीय नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। लेकिन नियंत्रण की दृष्टि से प्रश्न एवं बहस दोनों ही अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं। अतः संसदीय समितियों द्वारा लोक उद्योगों पर नियंत्रण को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। हालांकि इसकी भी कुछ सीमाएँ हैं। लोक उद्योगों पर संसदीय समितियों द्वारा नियंत्रण के अन्तर्गत लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) तथा अनुमान समिति (Estimates Committee) का विशिष्ट योगदान रहा है। 1964 से अपने अन्य कार्यों के अतिरिक्त ये समितियाँ लोक उद्योगों पर नियन्त्रण का कार्य भी करती थीं। लेकिन समितियों की जिन विशिष्ट प्राथमिक कार्यों के लिए स्थापना की गयी थी वे इतने महत्वपूर्ण थे कि ये समितियाँ लोक उद्योगों पर अपने नियंत्रण एवं दायित्व का निर्वाह भलीभाँति नहीं कर पाती थीं। अतः सन् 1964 में संसदीय लोक उद्योग समिति की स्थापना की गयी। यह समिति केवल सार्वजनिक उपक्रमों पर नियन्त्रण का कार्य ही करती है। संसदीय लोक उद्योग समिति की स्थापना हो जाने के पश्चात् लोक लेखा समिति तथा अनुमान समिति लोक उद्योगों के पर्यवेक्षण का कार्य नहीं करती है। अतः अब सार्वजनिक उपक्रमों के पर्यवेक्षण से सम्बन्धित सम्पूर्ण उत्तरदायित्व संसदीय लोक उद्योगों समिति का है। इस समिति का ही निम्नलिखित विवेचन में विस्तार से वर्णन किया गया है-

लोक उद्योग समिति

(Committee on Public Undertakings)

समिति की स्थापना (Establishment of Committee)- संसद सदस्यों द्वारा लोक उद्योगों पर नियंत्रण के लिए एक पृथक् समिति का गठन 1964 में किया गया।

समिति का संगठन

(Organisation of Committee)

लोक उद्योग समिति के संगठन में 15 सदस्य होते हैं। इनमें से 10 सदस्य लोकसभा से तथा 5 राज्यसभा से लिये जाते थे। सन् 1974-75 में समिति के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 22 कर दी गयी है। अब 15 सदस्य लोकसभा तथा 7 सदस्य राज्यसभा से लिये जाते हैं। सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष होता है।

लोक उद्योग समिति के कार्य

(Functions of the committee)

लोक उद्योग समिति को सुपुर्द किये गये कार्य प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं-

  1. अनुसूची (Schedule) में दिये गये लोक उद्योगों के प्रतिवेदनों तथा लेखों की जाँच करना।
  2. भारत के नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक द्वारा लोक उद्योगों पर प्रस्तुत किये गये प्रतिवेदनों की जाँच करना।
  3. लोक उद्योगों के प्रबन्ध से सुदृढ़ व्यावसायिक सिद्धान्तों एवं विवेकपूर्ण वाणिज्य व्यवहारों पर संचालन का परीक्षण करना।
  4. अनुसूचित लोक उद्योगों के संदर्भ लोक उद्योग समिति लोक लेखा समिति और अनुमान-समिति से सम्बन्धित ऐसे कार्यों को भी करेगी जो उपर्युक्त वर्णित (1), (2) तथा (3) कार्यों में नहीं गिनाये गये हैं। लोकसभा का अध्यक्ष इन कार्यों के अतिरिक्त भी कोई अन्य कार्य समिति की जाँच कार्य के लिए सौंप सकता है।

समिति के वर्जित कार्य

(Prohibited Functions of the Committee)

लोक उद्योग पर जांच के लिए गठित की गयी समिति के लिए निम्नलिखित वर्जित कार्य हैं-

  1. ऐसे महत्वपूर्ण विषय जो लोक उद्योगों के व्यावसायिक कार्यों से भिन्न हैं तथा सरकारी नीति से सम्बन्धित हैं।
  2. दिन-प्रतिदिन (Day-to-day) के प्रशासन सम्बन्धी कार्यों की जांच-पड़ताल का कार्य ।
  3. ऐसे उद्योग जिनके कार्यों पर किसी विशिष्ट अधिनियम के द्वारा स्थापित की गयी संस्था ही विचार-विमर्श कर सकती है।

लोक उद्योग समिति का अधिकार क्षेत्र

(Area of Jurisdiction of the Committee)

लोक उद्योग समिति के अधिकार क्षेत्र में आने वाले उद्योगों की एक अनुसूची बनायी गयी है। अनुसूची को निम्नलिखित तीन खण्डों में विभाजित किया गया है-

प्रथम खण्ड (First Wing)- इस खण्ड में केन्द्रीय सरकार द्वारा स्थापित सात सार्वजनिक निगमों को सम्मिलित किया गया है। ये निगम हैं-1. दामोदर घाटी निगम, 2. इण्डियन एयर लाइन्स, 3. औद्योगिक वित्त निगम, 4. एयर इण्डिया, 5. जीवन बीमा निगम, 6. केन्द्रीय भण्डार गृह निगम, 7. तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग।

द्वितीय खण्ड (Second Wing)- इस खण्ड के अन्तर्गत उन सभी सरकारी कम्पनियों को सम्मिलित किया गया है जो कम्पनी अधिनियम की धारा 619 (अ) (i) के अन्तर्गत अपना वार्षिक प्रतिवेदन संसद में प्रस्तुत करती है।

तृतीय खण्ड (Third Wing)- इस खण्ड के अन्तर्गत चार लोक उद्योगों को सम्मिलित किया गया है। ये उपक्रम हैं-(1) हिन्दुस्तान एयरक्राप्ट लि० बंगलौर, (2) भारत इलेक्ट्रोनिक्स लि० बंगलौर, (3) मजगाँव डाक्स लि० बम्बई तथा (4) गार्डन रीच वर्कशाप लि० कलकत्ता।

उपर्युक्त वर्णित खण्डों के विवेचन से स्पष्ट है कि लोक उद्योग समिति का नियंत्रण विस्तृत क्षेत्र है लेकिन सार्वजनिक निगमों में केवल 7 निगमों पर समिति सीमित नियंत्रण रख सकती है। अतः रिजर्व बैंक, स्टेट बैंक, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया, औद्योगिक विकास बैंक, इत्यादि लोक उद्योग इस समिति के कार्यक्षेत्र में नहीं आते हैं।

लोक उद्योग समिति के अधिकार

(Powers of Committee)

लोक उद्योग समिति को लोक लेखा समिति तथा अनुमान समिति के समान ही अधिकार प्राप्त हैं। समिति के प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं-

  1. समिति विचारार्थ किसी विषय पर मौखिक या लिखित गवाहियाँ प्राप्त कर सकती है। इस सम्बन्ध में समिति आवश्यक प्रपत्र भी प्राप्त कर सकती है।
  2. किसी भी आवश्यक विषय को समिति लोकसभा सदस्य या सदन के समक्ष सूचनार्थ विशेष रिपोर्ट बनाकर प्रस्तुत कर सकती है।
  3. समिति विभिन्न विषयों पर पृथक् से अध्ययन दल अथवा जाँच समितियाँ भी गठित कर सकती है।

लोक उद्योग समिति की उपलब्धियाँ

(Achievements of Committee)

लोक उद्योग समिति ने अपने कार्यकाल के विगत 25 वर्षों में अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। समिति द्वारा अनेक लोक उद्योगों के कार्यकलापों का अध्ययन करके भविष्य में इन उद्योगों के निर्बाध संचालन एवं तीव्र विकास हेतु महत्वपूर्ण कदम सुझाये गये हैं। समिति द्वारा विगत वर्षों में प्राप्त की गयी उपलब्धियों का वर्णन निम्न प्रकार है-

  1. समस्याओं का व्यापक अध्ययन

    अपनी स्थापना के पश्चात् के वर्षों में समिति ने अधिक लोक उद्योगों को अपने परीक्षण क्षेत्र में लाने का प्रयास किया है। समिति द्वारा विगत वर्षों में किये गये अध्ययनों में टाउनशिप तथा फैक्ट्री बिल्डिंग पर प्रतिवेदन(1964-65), लोक उद्योगों में सामग्री प्रबन्ध पर प्रतिवेदन (1966-67), लोक उद्योगों के वित्तीय प्रबन्ध पर प्रतिवेदन (1967-68) तथा सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यकलापों तथा सफलताओं पर प्रतिवेदन (1972-74) आदि उल्लेखनीय हैं। समिति के अनेक क्षैतिजीय (Horizontal) अध्ययन भी किये हैं।

  2. कार्य निष्पादन मूल्यांकन

    लोक उद्योगों के कार्य-निष्पादन मूल्यांकन को भी समिति के परीक्षण क्षेत्र के अन्तर्गत माना जाता है। समिति ने विगत वर्षों में लोक उद्योगों की विभिन्न अवस्थाओं तथा रूपों का अध्ययन किया है। इन जाँच कार्यों में निर्माणधीन लोक उद्योगों, नवस्थापित उद्योगों तथा प्रारम्भिक रूप के उत्पादन कार्यों में संलग्न तथा कार्यशील उद्योगों का अध्ययन प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है। इन कार्यों के अतिरिक्त लोक उद्योगों के अन्य अनेक महत्वपूर्ण पक्षों, जैसे, उद्योग नया सामान्य अर्थव्यवस्था में योगदान, उत्पादन स्तर, संगठन, विदेशी सहयोग तथा सहायक उद्योगों के कार्यकलापों का भी अध्ययन यह समिति करती है।

  3. सहयोगी एवं मार्ग दर्शक

    लोक उद्योग समिति को लोक उद्योगों का सहयोगी एवं मार्ग दर्शक स्वीकार किया गया है। समिति केवल उद्योग की कमियों को प्रकाश में लाने का ही नहीं वरन् उद्योग की उपलब्धियों की प्रशंसा का भी कार्य करती है। समिति द्वारा सम्बन्धित उद्योग की कमियों को उजागर करने का एकमात्र उद्देश्य उद्योग द्वारा भविष्य में प्रगतिशील एवं निर्बाध कार्य संचालन नीतियों के निर्माण में सहयोग एवं मार्गदर्शन प्रदान करना होता है।

  4. प्रशासनिक निरीक्षण का महत्वपूर्ण उपकरण

    लोक उद्योग समिति ने लोक उद्योग के सामान्य प्रशासन तथा प्रबन्ध के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। उद्योग के प्रबन्ध तथा प्रशासन को सजग बनाये रखने के लिए अनेक बार उद्योगों में आकर निरीक्षण का कार्य किया गया है। इस प्रकार समिति को लोक उद्योगों के प्रशासनिक निरीक्षण का महत्वपूर्ण उपकरण माना गया है।

  5. कुशलता उपाय एवं सुधारक भूमिका

    लोक उद्योग समिति ने सार्वजनिक लोक उद्योगों के कार्य निष्पादन में सुधार के सम्बन्ध में भी सजगतापूर्वक अपनी भूमिका निभायी है। इसके अन्तर्गत समिति ने लोक उद्योगों के संगठन में सुदृढ़ता तथा नीति सम्बन्धी त्रुटियों में सुधार अथवा उनके स्थान पर वैकल्पिक नीतियाँ अपनाने के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण उपाय बताये हैं। अनेक बार समिति ने लोक उद्योगों के वार्षिक प्रतिवेदनों को अधिक सूचनार्थ तथा विश्लेषनात्मक बनाने एवं संशोधित करने हेतु भी महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं।

  6. अपव्यय पर रोक एवं मितव्ययिता सम्बन्धी सुझाव

    समिति ने लोक उद्योगों में धन के अपव्यय को रोकने सम्बन्धी सुझाव देकर उच्च स्तर का वित्तीय प्रशासन स्थापित करने का प्रयास किया है। इसी उद्देश्य से समिति ने अनेक बार लोक उद्योगों में व्याप्त वित्तीय अनियमितताओं, अपव्यय तथा निष्कपट वित्तीय समझौते की तरफ संसद का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है। समिति ने लोक उद्योगों के वित्तीय प्रशासन में मितव्ययता (Economy) अपनाने के सम्बन्ध में भी महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं। अतिरिक्त भर्ती को रोकना तथा योजना बनाकर श्रेष्ठ एवं सस्ती सामग्री का क्रय करना इन सुझावों में विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे हैं।

  7. विस्तृत सूचनाओं का प्रस्तुतीकरण

    लोक उद्योगों के कार्यकलापों का गहन रूप से अध्ययन करके संसद के समक्ष प्रस्तुत करने का समिति महत्वपूर्ण माध्यम है। समिति लोक उद्योगों की प्रगति तथा कमियों का गहन रूप से अध्ययन करने के बाद विस्तृत एवं विश्लेषनात्मक सूचनाएँ संसद के सम्मुख प्रस्तुत करती है। लोक उद्योगों के कार्यकलापों पर समिति के प्रतिवेदन का अध्ययन करके ही संसद सम्बन्धित उद्योग के सम्बन्ध में विकास नीतियाँ निर्धारित करने में सक्षम होती है।

लोक उद्योग समिति की उपर्युक्त वर्णित उपलब्धियों का अध्ययन करने से स्पष्ट है कि अपने कार्यकाल के परीक्षण कार्यों में समिति ने लोक उद्योगों की समस्याओं के अध्ययन तथा समाधान में अत्यन्त व्यावहारिक नीति का अनुसरण किया है। समिति ने अपने प्रतिवेदनों के माध्यम से संसद को लोक उद्योगों पर प्रभावशाली नियन्त्रण बनाये रखने हेतु सक्षम बनाया है। वास्तव में समिति ने लोक उद्योगों तथा संसद दोनों को सजग बनाये रख कर दोहरी भूमिका निभायी है। समिति की सिफारिशों को न केवल संसद ने महत्वपूर्ण समझकर स्वीकार किया है वरन् प्रबन्धक वर्ग ने भी भावी विकास हेतु उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया है।

लोक उद्योग समिति की कार्य सीमाएँ

(Working Limitations of Committee)

लोक उद्योगों के कार्यकलापों का निरीक्षण करने के लिए लोक उद्योग समिति का गठन किया गया। यह समिति लोक उद्योग द्वारा निर्वाध कार्य सम्पादन के मार्ग में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का गहन रूप से अध्ययन करके संसद को अवगत कराती है। लेकिन व्यवहार में इन निरीक्षण कार्य के दौरान स्वयं समिति की अनेक सीमाओं तथा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस समिति की निम्नलिखित कार्य सीमाएँ अथवा समस्याएँ हैं-

  1. संगठन एवं कार्यकाल

    समिति के संगठन में किसी वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग नहीं किया गया है। वास्तव में समिति द्वारा सम्पादित किये जाने वाले कार्य की प्रकृति तथा महत्व को देखते हुए सदस्यों के चुनाव में पर्याप्त सावधानी रखने की आवश्यकता है। आलोचक तो यह कहकर आलोचना करते हैं कि जो सदस्य अन्य कहीं निरर्थक होते हैं उन्हें इस समिति में नियुक्त कर लिया जाता है। सदस्यों की नियुक्ति के समय उनके पिछले वर्षों में सम्बन्धित क्षेत्र अथवा अन्य क्षेत्रों में किये गये योगदान को भी मापदण्ड नहीं माना जाता है। आलोचकों को सत्तारूढ दल का समिति का अध्यक्ष होने के कारण उस पर निष्पक्ष कार्य सम्पादन के प्रति भी सन्देह है। हमारे देश में इस समिति द्वारा बिना किसी विशेषज्ञ के कार्य करना समिति का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।

समिति का अत्यन्त ही सीमित कार्यकाल (एक वर्ष) भी समिति के कार्य सम्पादन की सबसे प्रमुख सीमा है। लोक उद्योगों के बढ़ते हुए आकार तथा समस्याओं की विभिन्नताओं को देखते हुए भी यह समय अत्यन्त ही कम है। समिति का कार्यकाल कम होने के कारण उद्योग के जाँच कार्यों में निरन्तरता का सर्वथा अभाव पाया जाता है। इस अवगुण के कारण समिति के परिणामों में अनेक बार संदिग्धता उत्पन्न हो जाती है।

  1. कार्य क्षेत्र की समस्या

    लोक उद्योग समिति को सम्बन्धित लोक उद्योगों के कार्य संचालन पर विस्तृत विचार-विमर्श करने का अधिकार प्राप्त है। लेकिन इस विचार विमर्श के अन्तर्गत पायी गयी कमियों के आधार पर कोई वैकल्पिक नीति बनाकर संसद के सम्मुख प्रस्तुत करने का अधिकार समिति को नहीं है। इसके अतिरिक्त बैंकिग तथा वित्तीय उद्योगों का निरीक्षण कार्य अभी भी समिति के कार्य क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आता है। समिति को यह भी अधिकार नहीं है कि लोक उद्योगों की जाँच कार्य के दौरान बनाये गये अपने सुझावों को स्वीकार तथा क्रियान्वित करने के लिए सरकार को बाध्य कर सके। इस प्रकार समिति के जाँच का क्षेत्र अत्यन्त ही सीमित रह जाता है।

  2. कार्य सम्पादन सम्बन्धी सीमाएँ

    लोक उद्योग समिति के संगठन को अपने जाँच कार्य में साक्ष्य (Evidence) के लिए मंत्रियों को बुलाने का अधिकार प्राप्त नहीं है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इन उद्योगों के कार्य सम्पादन में सम्बन्धित मंत्री का महत्वपूर्ण हस्तक्षेप होता है। समिति को अपने जाँच कार्य के दौरान केवल सम्बन्धित उद्योग के प्रबन्धकों एवं मन्त्रालय के पदाधिकारियों को ही गवाह के रूप में बुलाने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त समिति द्वारा गवाह आमन्त्रित करने का क्रम (Sequence) भी त्रुटिपूर्ण है। समिति पहले गैर सरकारी पदाधिकारियों को तथा तत्पश्चात् सरकारी पदाधिकारियों को साक्ष्य के लिए, बुलाती है। इससे समिति के निर्णयों पर प्रशासकीय प्रभाव स्पष्टतः पड़ता है।

सिद्धान्ततः समिति अनेक कार्य अपनी उप-समितियों को प्रदान करके सम्पादित करती है। लेकिन इसके बावजूद भी महत्वपूर्ण कार्य जैसे गैर-सरकारी तथा सरकारी अधिकारियों को सुनना, प्रतिवेदन तैयार करना आदि स्वयं मुख्य समिति ही करती है। इससे कार्य में अनावश्यक विलम्ब होता है।

गैर-सरकारी साक्ष्यों द्वारा अपना वक्तव्य समिति को प्रस्तुत करने का तरीका भी अत्यन्त ही कष्टदायक है। कार्य प्रक्रिया के उप-नियमों के अन्तर्गत इन साक्षियों को अपने वक्तव्य की 25 प्रतियाँ समिति को प्रस्तुत करनी पड़ती है। इस कारण ये लोग सदैव गवाही देने से कतराते हैं। इसके अतिरिक्त समिति द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का भी कोई निश्चित समय नहीं होता है। इसकी आड़ में समिति अपना प्रतिवेदन विलम्ब से प्रस्तुत करती है जिस पर कोई बन्धन नहीं है।

  1. सामान्य सीमाएँ

    लोक उद्योग समिति द्वारा विगत वर्षों में अनेक निरीक्षण कार्य के दौरान आलोचकों द्वारा अनुभव की गयी सामान्य सीमाएँ अथवा कठिनाइयाँ निम्न प्रकार हैं-

संसद सदस्य अपने अन्य कार्यों में अत्यन्त ही व्यस्त होते हैं। अतः इस समिति में नियुक्त किये गये सदस्यों में समिति की कार्यवाही के प्रति रुचि का आलोचकों ने अभाव अनुभव किया।

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