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केन्द्रीय सचिवालय की कार्यप्रणाली

केन्द्रीय सचिवालय की कार्यप्रणाली

केन्द्रीय सचिवालय की कार्यप्रणाली

(Working Procedure of Central Secretariat)

मंत्री को उसकी संसदीय जिम्मेदारियों को निभाने में सहायता देना सचिवालय की कार्य करने की एक निश्चित पद्धति है। महत्त्वपूर्ण नीति विषयक प्रश्नों पर मंत्री और सचिव दोनों ही विचार करते हैं और तब सचिव एक टिप्पणी तैयार करता है, जिसमें विचार-विमर्श से उत्पन्न निर्णयों का उल्लेख होता है। मंत्री द्वारा स्वीकार कर लिए जाने पर ये निर्णय अन्तिम हो जाते है। सचिव का कर्तव्य है कि वह मंत्री के विचारों को समझकर और मन्त्रालयों की सम्पूर्ण नीति को ध्यान में रखकर प्रशासन का कार्य संचालित करे।

सचिवालय में कार्य निष्पादित करने की दो पद्धतियां प्रचलित है-

  1. कुछ मंत्रालयों अथवा विभागों में अधिकारी अनुस्थापक व्यवस्था के अनुसार कार्य होता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत अनुभाग अधिकारी प्राप्त पत्रों के परीक्षण आदि का कार्य स्वयं करता है और उसके अधीन कार्मिक वर्ग पर टंकण अभिलेख समन्वय तथा संचालन में सहायता देने का कार्यभार होता है।
  2. अधिकांश मंत्रालयों और विभागों में परम्परागत व्यवस्था के अनुसार कार्य किया जाता है, जिसके अन्तर्गत अधीनस्थ कार्मिक वर्ग प्राप्त पत्रों की परीक्षा करता है, टिप्पणी तैयार करता है और अपने से उच्च स्तर के अधिकारी के समक्ष निर्देशन या निर्देश हेतु प्रस्तुत करता है। मन्त्रालय या विभाग को सम्बोधित किये जाने वाले सभी पक्ष या मामले केन्द्रीय प्राप्ति एवं प्रसार शाखाओं में पहुंचते है। यहां से उन्हें विभिन्न सम्बन्धित अनुभागों में वितरित किया जाता है।

अनुभाग का डायरिस्ट (Diarist)

इन पत्रों को अनुभाग अधिकारी के सम्मुख रखता हैं। अनुभाग अधिकारी इन्हें दो श्रेणियों में वर्गीकृत करता है-प्राथमिक तथा सहायक (Primary and Subsidiary) नये तथा मौलिक कार्यों से सम्बधित पत्र प्राथमिक श्रेणी में रखे जाते हैं और प्राथमिक पत्रों से सम्बन्धित सभी पत्रों को सहायक श्रेणी में लिया जाता हैं। वर्गीकरण करने के उपरान्त अनुभाग अधिकारी पत्र को सम्बन्धित सहायक के पास भेज देता है। जब कोई पत्र समस्यापरक होता है अथवा उसकी बातों पर व्यक्तिगत ध्यान की आवश्यकता होती है तो अनुभाग अधिकारी या तो स्वयं उसका जवाब देता है अथवा सम्बन्धित सहायक को आवश्यक निर्देश भेज देता है तथा यदि आवश्यक समझे तो उससे जरूरी आदेश प्राप्त कर लेता है। डायरिस्ट (Diarist) को पत्र वापस मिलने पर वह उन्हें रोजनामचा में चढ़ाकर सम्बन्धित सहायकों के पास भेज देता है। ये यहायक उस पत्र की जाँच के लिए सम्बन्धित फाइल, पिछले कागजात, सूची-पत्र, नियम, अधिनियम इत्यदि का अध्ययन करते हैं और अन्त में अपनी टिप्पणी लगाकर अनुभाग अधिकारी को वापस लौटा देते हैं।

अनुभाग अधिकारी इस टिप्पणी की ध्यान से परीक्षा करता है और अपनी राय तथा सुझाव के साथ उसे शाखा अधिकारी (अवर सचिव) के पास भेज देता है। शाखा अधिकारी अपने ही दायित्व पर अधिक से अधिक मामलों को निपटा देता है। महत्वपूर्ण मामलों अथवा नीति सम्बन्धी प्रश्नों पर वह उप-सचिव या अन्य उच्च अधिकारी संयुक्त सचिव या सचिव के पास भेज देता है। इन अधिकारियों तक प्रायः वे ही विषय भेजे जाते है, जो अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रकृति के होते हैं तथा जिनका सम्बन्ध किसी नीति विषयक प्रश्न से होता है। संयुक्त सचिव तथा सचिव यदि आवश्यक समझें तो विषय को मन्त्री के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। ऐसा करते समय वे उसके साथ अपनी संक्षिप्त टिप्पणी भी लगा देते हैं। वहाँ मन्त्री को यह स्वविवेक का अधिकार प्राप्त है कि वह या तो स्वयं उस विषय में आदेश प्रसारित करे अथवा निर्णय के लिए मन्मिण्डल के सम्मुख प्रस्तुत कर दे।

आलोचना (Criticism)

स्वतन्त्र भारत की विशेष समस्याओं के संदर्भ में संघीय सचिवालय का रूप पर्याप्त बदल गया है। इनके संगठन का आकार तथा कार्यों की मात्रा बढ़ गयी है। फलस्वरूप इसकी कार्यवाही की गति धीमी होने के साथ-साथ अनेक असम्बद्ध बातों को महत्व दिया जाने लगा है। सेवीवर्ग की कार्यकुशलता अत्यन्त कम हो गई हैं। संक्षेप में सचिवालय के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. सचिवालय में सेवी वर्ग की संख्या अधिक बढ़ गई है तथा यह भीड़-भाड़ युक्त संगठन बन गया हैं।
  2. यह जन-सुविधा को ध्यान में रखकर तत्परता से कार्य नहीं करता है।
  3. यह हमेशा गैर-महत्वपूर्ण कार्यों से दबा रहता है। प्रशासनिक अनौपचारिकता का निर्वाह करते हुए उच्च उच्चाधिकारियों को महत्वपूर्ण कार्य के लिए समय नहीं मिल पाता हैं।
  4. दिन-प्रतिदिन के कार्यों में राजनीतिक हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि अनेक वरिष्ठ कर्मचारियों को निराशा और क्षोभ होता है।
  5. यह विभिन्न योजनाओं पर स्वीकृति प्रदान न करके और प्रक्रियाओं के कठोर पालन पर जोर न देकर उन्हें क्रियान्वित होने नहीं देता ।
  6. सचिवालय की अधिकाशं कार्यवाही अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा सम्पन्न की जाती है और उच्च अधिकारी सहज ही उनके कार्यों को स्वीकार कर लेते हैं।
  7. कार्य के गलत तरीके अपनाये जाते है, कागजों को अनेक स्तरों से होकर निकलना पड़ता है तथा उपयुक्त प्रत्योजन नहीं किया जाता हैं।
  8. नियोजन तथा वित्त विभाग के कार्यों का अतिराव व दोहराव होता हैं।
  9. सचिवालय के अधिकारियों का चयन करते समय पर्याप्त सावधानी नहीं बरती जाती हैं। इन अधिकारियों का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है।
  10. राष्ट्रीय चरित्र पर व्याप्त जातिवाद, वर्गवाद या भाई भतीजावाद के कारण पक्षपात पनपता हैं तथा अधीनस्थ कर्मचारी उच्च अधिकारी की भाँति व्यवहार करने लगते है।

सुधार के लिए सुझाव

सचिवालय की कार्यवाही एवं संगठन में सुधार किया जाना अत्यन्त अनिवार्य हैं। इसके कार्यकर्ताओं के निषेधात्मक दृष्टिकोण को विधेयात्मक बनाना जरूरी है ताकि वे अपने कार्य भली-भाँति सम्पन्न कर सकें तथा अपने आपको समयानुसार बदल सकें। इस कार्य द्वारा सरकार को कार्यकुशल तथा राष्ट्र को शक्तिशाली और सम्पन्न बनाया जा सकता है। केन्द्रीय सचिवालय में सुधार के लिए निम्नालिखित सुझाव प्रस्तुत किये जा सकते हैं-

  1. मध्यवर्तियों की समाप्ति सरकारी यन्त्र पुनर्गठन करना अनिवार्य है क्योंकि इसमें मध्यस्थों की अधिकता के कारण कार्य में देरी होती हैं। सचिवालय द्वारा योजनायें बनायी जाती हैं और नीचे के स्टॉफ द्वारा इन्हें क्रियान्वित किया जाता है। शेष कार्यकर्ता अनावश्वक देरी के अतिरिक्त कुछ नहीं करते। अतः यह उचित है कि इन्हें कम किया जाये तथा निदेशकों के पद समाप्त कर दिये जायें। ऐसा होने पर योजनाओं की क्रियान्वित में कम से कम देरी होगी।
  2. स्थायी नीति शाखाओं की स्थापना एक अन्य सुझााव दिया जाता है कि प्रत्येक विभाग में नीति सम्बन्धी एक स्थायी शाखा रखी जाये ताकि रचनात्मक कार्य में अनुभवी व्यक्ति भाग ले सकें और गैर-अनुभवियों द्वारा उसे थोपा न जायें।
  3. विभागाध्यक्षों को अधिक शक्तियांविभाग के अध्यक्षों को अधिक शक्तियां प्रदान की जानी चाहिए ताकि इन्हें प्रत्येक कार्य पर सरकारी अनुमति प्राप्त न करनी पड़े। साथ ही उन्हें वित्तीय तथा सेवी-वर्ग प्रशासन की दृष्टि से भी अधिक शक्तियां दी जानी चाहिए ताकि अधीनस्थ स्टॉफ पर वांछित नियन्त्रण रख सकें।
  4. स्थायी शोध शाखा एक स्थायी शोध शाखा बनायी जाए जो प्रशासनिक यन्त्र को अधिक कार्यकुशल बनाने की दृष्टि से अध्ययन करती रहे। संगठन एवं प्रक्रिया की भांति इसका गठन किया जाये। प्रत्येक विभाग में इसकी एक सैल रहे जो उस विभाग विशेष में सुधार लाने के लिए प्रयत्नशील रहे।
  5. गलत नियम बदले जाऐं जिन विभागों में आवश्यकता से अधिक या कम कर्मचारी हैं उनको सम्भाला जाये तथा अप्रशिक्षित, अयोग्य, सम्मान की गलत भावनायुक्त तथा नियमों के अन्धभक्त कर्मचारियों को बदला जाये। सेवी वर्ग को नये दायित्वों का महत्त्व बताया जाय। कार्य में देरी तथा अनियमितता बरतने वालों का दायित्व स्पष्ट करके उन्हें दण्डित किया जाए।
  6. स्थानगत दूरियों में कमी सचिवालय के कार्यों में कुशलता लाने के लिए विभागाध्यक्ष, सचिव तथा मंत्री के मध्य स्थानगत दूरियां कम की जाएं। सचिव तथा विभागाध्यक्ष के कार्यालय निकटवर्ती कक्ष में हों तथा मन्त्री भी अधिक दूर न रहे।
  7. क्रियान्विति में सुधार नीतियों तथा नियमों को सही तरीके से उपयुक्त समय में क्रियान्वित करने की व्यवस्था की जाए। क्रियान्विति के समय प्रायः मूल उद्देश्य की अवहेलना करते हुए व्यक्तिगत स्वार्थों को ध्यान में रखा जाता है। इस पर रोक लगाई जाए, जो अधिकारी नियमों को पढ़ने की परवाह नहीं करते और लिपिकों को मनमानी व्याख्या के लिए छोड़े देते है, उन्हें दण्डित किया जाये।
  8. विशेषज्ञों का सम्मान प्रशासनिक विभागों की अध्यक्षता विशेषज्ञ अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए। प्रायः होता यह है कि गैर अनुभवी भारतीय प्रशासनिक सेवा के युवा अधिकारियों को विभागाध्यक्ष बना दिया जाता है और दो-तीन वर्ष के अन्तर पर उन्हें एक विभाग से दूसरे विभाग में स्थानान्तरित कर दिया जाता है, यह गलत है। तकनीकी विभागों का संचालन हमेशा विशेषज्ञों को सौंपा जाना चाहिए और सामान्यज्ञों का स्थान केवल नियोजन, समन्वय, मण्डल आयोग इत्यादि में ही शीर्ष पर रहें, शेष कार्यों में उन्हें सहयोगी बनाया जावे।

केन्द्रीय सचिवालय तथा कार्यकारी विभागों के बीच सम्बन्ध

भारत सरकार में सचिवालय तथा उसके कार्यकारी विभागों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने के लिए निम्नलिखित व्यवस्था की गई है-

  1. इस व्यवस्था के अन्तर्गत मंत्रालय तथा कार्यकारी विभागों के पृथक्-पृथक कार्यालय एवं उनकी अपनी फाइलें होती हैं, जिनके बीच विचार-विमर्श स्वयं पूर्ण संदेशों एवं पत्रों द्वारा सम्पन्न होता है।
  2. मंत्रालय तथा कार्यकारी विभाग पृथक्-पृथक् कार्यालयों की पृथक् फाइलें रखते हैं, परन्तु कार्यकारी विभाग के अध्यक्ष को पदेन सचिव का दर्जा प्रदान करके मंत्रालय और कार्यलय को निकल सम्पर्क में लाया जाता है।
  3. इस व्यवस्था में मंत्रालय तथा कार्यकारी विभाग के कार्यालय तो अलग होते हैं, परन्तु फाइलें एक समान होती हैं। इसके अतिरिक्त एक फाइल ब्यूरो अथवा अभिलेख प्रकोष्ठ भी बनाया जाता है, जो कर्मचारी विभाग के संगठन में स्थित होता है।
  4. इस व्यवस्था में मंत्रालय और कार्यकारी विभाग का समान कार्यालय, समान फाइलें तथा समान व्यूरो होता है। ये सभी कार्यकारी विभाग के अध्यक्ष के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में होते हैं।
  5. कार्यकारी विभाग के अध्यक्ष को कार्यायल के वरिष्ठ अधिकारी के साथ संयुक्त किया जाना चाहिए, जिससे वह मन्त्रालय में स्थित कार्यालय की सहायता से नीति के निर्माण एवं कार्यान्वयन दोनों के लिए उत्तरदायी हो सके।
  6. इस व्यवस्था के अन्तर्गत ऐसी विशेष स्थितियां आती हैं, जिनमें मंत्रालयों तथा कार्यकारी विभागों के अध्यक्षों के बीच शत-प्रतिशत विलम्ब किया जाता है।

इस प्रकार सचिवालय एक शीर्षस्थ प्रशासनिक निकाय के रूप में कार्यकारी अभिकरणों पर पर्यवेक्षण और नियन्त्रण रखते हुए कार्य सम्पादन करवाता है।

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