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गाँधीवाद और मार्क्सवाद

गाँधीवाद और मार्क्सवाद

गाँधीवाद और मार्क्सवाद

(Gandhism and Marxism)

गाँधीजी और कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों में कई विलक्षणताएँ हैं। दोनों दरिद्रता के दानव का संहार करना चाहते हैं। निर्धनों को धनिकों के शोषण से तथा अत्याचारों से मुक्त करना चाहते हैं। दोनों समाज में अमीर-गरीब के भेद तथा वर्गों का अन्त करने के लिए उत्सुक है। दोनों श्रम को असाधारण महत्व देते हैं। दोनों इस सिद्धान्त की क्रियात्मक रूप देना चाहते हैं कि प्रत्येक से उसकी सामर्थ्य के अनुसार काम लिया जाए तथा प्रत्येक को उसकी आवश्यकतानुसार पारिश्रमिक दिया जाए । राज्य के विषय में दोनों का सिद्धान्त एक जैसा है। दोनों भावी आदर्श व्यवस्था में राज्य की सत्ता नहीं मानते हैं। मार्क्स का यह कहना है कि राज्य एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण करने का साधन है, गाँधीजी इसे हिंसा का मूर्तरूप तथा वैयक्तिक स्वतन्त्रता का विरोधी समझते हैं। अतः दोनों राज्य की सत्ता के उन्मूलन पर बल देते हैं। इन समानताओं के होते हुए भी स्थूल रूप से इन दोनों में एक बड़ा भेद हिंसा के प्रश्न पर दिखायी देता है। गाँधीजी अहिंसा के उपासक हैं, मार्क्स संघर्ष को सृष्टि का प्रधान तत्व मानते हैं। मार्क्सवादी साम्यवाद की स्थापना के लिए क्रान्ति, युद्ध तथा हिंसा के उपायों को बुरा नहीं समझते ।

इन समानताओं के आधार पर कई बार यह कल्पना की जाती है कि हिंसारहित साम्यवाद गाँधीवाद है तथा साम्यवाद हिंसायुक्त गाँधीवाद है। किशोरीलाल मशरुवाला ने लिखा है कि, “गाँधीवाद हिंसारहित साम्यवाद है।” (Gandhism is Communism minus violence) वस्तुतः यह धारणा अत्यन्त भ्रान्तिपूर्ण है, क्योंकि दोनों में उपर्युक्त समानताओं के होते हुए भी बहुत अधिक मौलिक भेद है। इन दोनों में हिंसा का एक ऐसा प्रधान और मौलिक अन्तर है, जो इन्हें सर्वथा भिन्न सिद्धान्त पर बल देता है। इन दोनों विचारधाराओं के अन्तर को निम्नलिखित रूपों में स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. दार्शनिक आधार की दृष्टि से अन्तर

    मार्क्स विशुद्ध भौतिकवादी है जबकि गाँधीवाद एक नैतिक सिद्धान्त होने के कारण आध्यात्मिकतावादी है। मार्क्सवाद भोग और प्रचुरता का दर्शन है तो गाँधीवाद और अपरिग्रह का। गाँधी धर्म और ईश्वर में गहरी आस्था रखते हैं जबकि मार्क्स तथा उसके अनुयायी धर्म और ईश्वर के कट्टर विरोधी हैं।

  2. साधन और साध्य का अन्तर

    मार्क्सवाद साध्य को महत्व देता है। मार्क्सवाद का विचार है कि श्रेष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किसी भी प्रकार के साधन अपनाये जा सकते हैं और इस सम्बन्ध में नैतिक मापदण्ड के आधार पर विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। किन्तु गाँधीजी साध्य के साथ साधनों की पवित्रता पर बल देते हैं। वे साध्य साधन में बीज तथा वृक्ष का सा सम्बन्ध मानते हैं।

  3. पद्धति का अन्तर

    गाँधीवाद और मार्क्सवाद में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अन्तर पद्धति का है। गाँधीवाद अहिंसा और प्रेम पर आधारित है। उनकी पद्धति प्रेम के बल से विरोधियों को परास्त करने की थी। मार्क्सवाद अपने वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हिंसा के प्रयोग को नितान्त आवश्यक मानता है।

  4. ईश्वर और धर्म के सम्बन्ध में भेद

    मार्क्सवाद ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता और धर्म को अफीम का नशा कहता है। मार्क्सवाद के नितान्त विपरीत गाँधीवाद विचारधारा मूल रूप में धर्म पर आधारित विचारधारा है।

  5. वर्गों के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय में अन्तर

    गाँधीवाद और मार्क्सवाद में वर्ग संघर्ष के प्रश्न पर भी तीव्र मतभेद है। मार्क्सवाद के अनुसार समाज में शोषक और शोषित दो वर्ग होते हैं, जिनके हित परस्पर विरोधी हैं और परस्पर विरोधी हितों के कारण उनमें संघर्ष अवश्यम्भावी है। लेकिन गाँधीवादी दर्शन में वर्ग संघर्ष के लिए कोई स्थान नहीं है। यह वर्ग सामंजस्य को प्रधानता देता है और संघर्ष के स्थान पर प्रेम, त्याग और सत्याग्रह आदि साधनों द्वारा समस्याओं को सुलझाना चाहता है।

  6. व्यक्तिगत सम्पत्ति के विषय में भेद

    मार्क्सवाद व्यक्तिगत सम्पत्ति को नष्ट करना चाहता है तथा सम्पूर्ण सम्पत्ति का स्वामित्व समाज अथवा राज्य को प्रदान करता है। गाँधीवाद व्यक्तिगत सम्पत्ति को अपने आप में कोई बुराई नहीं समझता और न ही उसे नष्ट करना चाहता है। गाँधीवाद तो भोग-विलास की प्रवृत्ति की निन्दा करता है और वह सम्पत्ति के संग्रहकर्ता को स्वामी नहीं वरन् प्रन्यासी बनाकर रखना चाहता है जिससे सम्पत्ति का प्रयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए किया जा सके।

  7. केनीयकरण और विकेन्द्रीकरण का अन्तर

    मार्क्सवाद औद्योगीकरण में विश्वास करता है तथा विशाल उद्योगों की स्थापना के साथ-साथ उत्पादन बढ़ाने के लिए उद्योगों का अधिकाधिक मशीनीकरण करना चाहता है। लेकिन गाँधीवाद कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देने के पक्ष में है।

  8. साम्यवादी पूँजीवाद का उन्मूलन करने के लिए उद्योगों के राष्ट्रीयकरण पर तथा उत्पादन के सभी साधनों पर राज्य का स्वामित्व चाहते हैं। गाँधीजी बड़े उद्योगों के तथा इनके राष्ट्रीयकरण के विरोधी हैं।
  9. गाँधीवाद में व्यक्ति को साध्य मानते हुए उसे अधिक महत्व दिया गया है। मार्क्स तथा अन्य साम्यवादी व्यक्ति को नहीं, अपितु राज्य को महत्व देते हैं। गाँधीजी समाज में परिवर्तन लाने के लिए उसका निर्माण करने वाले व्यक्ति को सुधार और चरित्र का विकास करना चाहते हैं। वे नवीन सामाजिक व्यवस्था का श्रीगणेश व्यक्ति से करते हैं। इसके विपरीत साम्यवादी अपना श्रीगणेश राज्य से करते हैं। वे क्रान्ति या षड्यन्त्र द्वारा सर्वप्रथम राजनीतिक सत्ता हस्तगत करने का प्रयास करते हैं और इसे हस्तगत करने के बाद अपनी इच्छानुसार समाज के आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन करके नवीन सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं।

श्री विनोबा ने इन दोनों विचारधाराओं के मौलिक भेद की सरल विवेचना करते लिखा है कि, “एक बार इस तरह की चर्चा हो रही थी कि गाँधीवाद और मार्क्सवाद में अहिंसा का ही अन्तर है। मैंने कहा, ‘दो व्यक्ति नाक, कान और आँख की दृष्टि से बिल्कुल एक से थे। इतने मिलते-जुलते थे कि राजनीतिक छल के लिए एक की जगह दूसरे को बिठाया जा सकता था। फर्क इतना ही था कि एक की नाक से साँस चल रही थी और दूसरे की साँस बन्द हो गयी थी। परिणाम यह हुआ कि एक के लिए भोजन की तैयारी हो रही थी और दूसरे के लिए शवयात्रा की।”

संक्षेप में दोनों दर्शन आमने सामने एक-दूसरे को निगलने के लिए तैयार हैं।

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