कौटिल्य की रचना : अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र

कौटिल्य की रचना : अर्थशास्त्र

(The Work of Kautilya : The Arthshastra)

अर्थशास्त्र का रचना काल

‘अर्थशास्त्र’ कौटिल्य द्वारा लिखी हुई एक पुस्तक है जिसके अन्तर्गत व्यक्त किये गये राजनीतिक विचारों ने आधुनिक भारतीय और पश्चिमी विद्वानों को चकित कर दिया है। अर्थशास्त्र की रचना और रचनाकार के सम्बन्ध में विचारक एकमत नहीं हैं। इस सम्बन्ध में जॉली का मत है कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक धोखा देने वाली चीज है जिसे कि सम्भवतः तीसरी शताब्दी ईसवी में तैयार किया गया था | अर्थशास्त्र का वास्तविक रचनाकार कोई मन्त्री नहीं था वरन् एक सिद्धान्तशास्त्री था। कौटिल्य नाम झूठा है क्योंकि परम्परागत स्रोतों में उसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। मेगस्थनीज ने कहीं भी उसके नाम का उल्लेख नहीं किया है। इसी प्रकार पांतजलि ने अपने ‘महाभाष्य’ में चन्द्रगुप्त एवं अन्य मौर्यों का उल्लेख किया है किन्तु कौटिल्य के सम्बन्ध में वे चुप हैं। मि० जॉली के अतिरिक्त डी० आर० भण्डारकर, ए० बी० कीथ, विण्टरनिट्ज आदि विद्वानों का मत है कि पुस्तक चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन के काफी पश्चात् ईसाई युग की प्रारम्भिक शताब्दियों में लिखी गयी।

परन्तु डॉ० शामाशास्त्री, गनपति शास्त्री, एन० एन० ला, स्मिथ तथा जायसवाल आदि विद्धान् उपर्युक्त मत से सहमत नहीं है। उनका मत है कि अर्थशास्त्र का रचनाकार चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन काल ही है। अर्थशास्त्र वही ग्रन्थ है जिसकी रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमन्त्री कौटिल्य ने मौर्य के पथ-प्रदर्शन के लिए की थी। डॉ० जायसवाल का विचार है कि अर्थशास्त्र में अनेक ऐसे उदाहरण आते हैं जिनकी तुलना चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से ही कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त जैन, बौद्ध एवं ब्राह्मण ग्रन्थों में चन्द्रगुप्त के मन्त्री के रूप में कौटिल्य का उल्लेख आता है। इस सम्बन्ध में डॉ० श्यामलाल पाण्डेय का कथन है कि “प्रस्तुत अर्थशास्त्र चाहे मौर्य काल की रचना हो चाहे उसके पश्चात् किसी समय का नवीन संस्करण हो, परन्तु इतना अवश्य मानना पड़ेगा कि इस अर्थशास्त्र में राजशास्त्र सम्बन्धी जिन सिद्धान्तों की स्थापना की गयी है मौर्यकालीन ही है।”

अर्थशास्त्र-राजनीतिशास्त्र की रचना

यह एक विचारणीय प्रश्न है कि कौटिल्य ने इस ग्रन्थ का नाम राजनीतिशास्त्र न रखकर ‘अर्थशास्त्र’ क्यों रखा ? कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के प्रथम अध्याय में यह स्पष्ट कर दिया है कि वे दण्ड का विवेचन कर रहे हैं। दण्ड-नीति शब्द प्राचीन काल से भारत में राजनीति से सम्बन्धित विद्या के लिए प्रयुक्त हुआ है। शुक्र ने राजनीति विद्या को दण्ड-नीति की संज्ञा दी है। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ का नामकरण करने का स्पष्टीकरण किया है। उनका कहना है कि, “मनुष्यों की जीविका को अर्थ कहते हैं। मनुष्यों से युक्त भूमि को भी अर्थ कहते हैं। इस प्रकार की भूमि को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने वाले उपायों का निरूपण करने वाला शास्त्र अर्थशास्त्र कहलाता है।” शुक्र-नीति में भी अर्थशास्त्र की लगभग यही परिभाषा दी गयी है। संक्षेप में कौटिल्य ने अर्थ और अर्थशास्त्र को व्यापक अर्थ में समझा है। कौटिल्य के शब्दों में, “सम्पूर्ण शात्रों का विधिवत् अध्ययन करके और उनके प्रयोगों को अच्छी तरह परीक्षा करके ही राजा के लिए इस शासन विधि की रचना की है ।” अत: यह स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र का प्रमुख विषय राजनीति है। प्राचीनकाल में राजनीतिक विषय और आर्थिक विषय एक ही माने जाते थे। अर्थशास्त्र का तात्पर्य दोनों से होता था। संक्षेप में, अर्थशास्त्र राजधर्म पर लिखा हुआ एक व्यवहार और यथार्थ प्रधान ग्रन्थ है।

कौटिल्य का अर्थशास्त्र राजनीति और शासन कला की एक महान् रचना है। डॉ० आल्तेकर के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र के वाङ्मय में अर्थशास्त्र का वही स्थान है जो व्याकरणशास्त्र के वाङ्मय में पाणिनि अष्टाध्यायी का है। पाणिनि की भाँति ही कौटिल्य ने समस्त पूर्ववर्ती विचारकों को पर्दे के पीछे कर दिया, उनके ग्रन्थ धीरे-धीरे उपेक्षित व लुप्त हो गये”

अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु

कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के प्रारम्भ में ही चार विद्याओं का उल्लेख किया है। प्रथम, आन्वीक्षिकी (दर्शन और तक), दूसरी, त्रयी (धर्म-अधर्म या वेदों का ज्ञान), तीसरी, वार्ता (कृषि, व्यापार आदि) और चौथी, दण्ड नीति (शासन कला या राजनीतिशास्त्र) । अर्थशास्त्र का प्रतिपाद्य विषय प्रमुख रूप से दण्ड-नीति ही है।

‘अर्थशास्त्र’ की रचना कौटिल्य ने गद्य और पद्य दोनों में की है। इसमें राजनीति से सम्बन्धित बातों का अत्यन्त ही रोचक वर्णन है। विषय के अच्छे से अच्छे ग्रन्थ के साथ इसकी तुलना की जा सकती है। पुस्तक में 15 अधिकरण है तथा प्रत्येक अधिकरण में कुछ अध्याय हैं। विभिन्न अधिकरणों में जिन विषयों का वर्णन किया गया है, वे इस प्रकार हैं—

  1. राज्य में अनुशासन की स्थापना तथा राज सम्बन्धी कार्यों का वर्णन,
  2. राज्य में अध्यक्षों की नियुक्ति,
  3. राज्य में कानून की व्यवस्था,
  4. राज्य में प्रजापीड़कों से रक्षा,
  5. राज्य कर्मचारियों पर नियन्त्रण,
  6. राज्य सत्ता के सात अंग,
  7. राज्य में षड्गुणों की व्यवस्था,
  8. युद्ध, विजय तथा पराजय और सेना व्यवस्था सम्बन्धी विचार,
  9. विभिन्न विपत्तियों से बचने के उपाय,
  10. युद्ध के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक विचार,
  11. छल, भेद नीति व कूट युद्ध के द्वारा शत्रु का नाश तथा विजित देश में शत्रु के साथ व्यवहार,
  12. शक्तिशाली अभियोक्ता के प्रति दुर्बल राजा के कर्त्तव्य,
  13. शत्रु के दुर्ग पर अधिकार प्राप्त करना,
  14. शत्रु नाश करने के लिए मन्त्रों, विषैली औषधियों इत्यादि के सम्बन्ध में वर्णन,
  15. अर्थ सम्बन्धी निर्णयों पर पहुँचने के लिए उपयोगी युक्तियाँ।

अर्थशास्त्र की अध्ययन पद्धति

कौटिल्य एक यर्थाथवादी और व्यावहारिक दार्शनिक है, इसलिए उसने अर्थशास्त्र में आगमनात्मक पद्धति तथा ऐतिहासिक पद्धति का व्यवहार किया है। उसकी अध्ययन-पद्धति विवेक और भूत के अनुभव पर आधारित है। उसने अपने विचारों की पुष्टि ऐतिहासिक तथ्यों से की है। कौटिल्य की अध्ययन-पद्धति अरस्तू, मेकियावेली और बेकन से मिलती-जुलती है।

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