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मानवेन्द्र नाथ राय के विचारों का विकास और उनका रोमांटिक क्रान्तिवाद

मानवेन्द्र नाथ राय 

मानवेन्द्र नाथ राय के विचारों का विकास

(Evolution of Roy’s Ideas)

राय के ‘मौलिक अथवा नव-मानववाद’ के विवेचन से पूर्व यह उपयुक्त होगा कि हम राय के विचारों के विकास की एक रूपरेखा जान लें। मोटे रूप में, राय के चिन्तन-इतिहास को तीन स्पष्ट कालों में विभाजित किया जा सकता है-

प्रथम अवधि का आरम्भ 1901 से माना जा सकता है जबकि राय बंगाल के आतंकवादी आन्दोलन से सम्बद्ध थे। विचारों की दृष्टि से उस समय राय एक राष्ट्रीय-अराजकतावादी (Nationalist-Revolutionist) थे अथवा स्वयं राय के ही शब्दों में, वे एक रोमांटिक क्रान्तिवादी’ (Romantic-Revolutionist) थे।

दूसरी अवधि 1917 से शुरू हुई जबकि वे एक रूढ़िवादी मार्क्सवादी (Orthodox Marxist) बन गए। 1930 से 1946 तक उन्होंने मार्क्सवाद के विस्तृत ढाँचे में अनेक बार अपनी स्थिति बदली।

तीसरी अवधि 1946 में आरम्भ हुई। इसमें ‘नव माननवतावाद’ (New Humanism) पर उनके विचार विकसित हुए। राष्ट्रीय अराजकतावाद, मार्क्सवाद और नव मानववाद (National Anarchism, Marxism and New Humanism) की ये तीनों अवधियाँ आधारभूत रूप से एक-दूसरे से पृथक् हैं। प्रेरणाओं और स्रोतों, विचारों और आदर्शों, निष्कर्षों और प्रणालियों-किसी भी दृष्टि से इन तीनों कालों में परस्पर कोई क्रमिक सम्बन्ध अथवा समानता नहीं दिखाई देती। एक अवधि दूसरी अवधि की ओर नहीं ले जाती और न ही इन अवधियों में राय के विचारों में कोई स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया दिखाई देती है। यह कहा जाता है कि ‘स्वतन्त्रता’ (Freedom) इन तीनों अवधियों में पाए जाने वाला सामान्य तत्व है, किन्तु राय की प्रथम अवधि में स्वतन्त्रता से अभिप्राय ‘एक राष्ट्र’ (Nation) की स्वतन्त्रता से है और दूसरी अवधि में इसका अभिप्राय ‘एक वर्ग’ (A class) की स्वतन्त्रता से है और तीसरी अवधि में इसका आशय ‘एक व्यक्ति’ (A individual) की स्वतन्त्रता से है।

वस्तुतः राय के विचार कभी स्थिर नहीं रहे। उनमें परिवर्तन आता रहा। हम राय को एक रोमांटिक क्रान्तिकारी, एक मार्क्सवादी क्रान्तिकारी और एक मौलिक मानववादी के रूप में चित्रित कर सकते हैं।

राय और रोमांटिक क्रान्तिवाद

(Roy and Romantic Revolution)

राय अपने चिन्तन के प्रथम काल (1901-1915) में एक रोमांटिक क्रान्तिकारी रहे। वर्तमान शताब्दी के प्रथम दशक में देश भर में ब्रिटिश शासन के प्रति तीव्र असन्तोष की लहर व्याप्त थी। देश का युवावर्ग उदारवादियों की नीति और पद्धति से कतई सन्तुष्ट न था। उग्रवाद हिलेरें ले रहा था और बंगाल तथा महाराष्ट्र में आतंकवाद पनप रहा था। आतंकवादी समकालीन यूरोप के हिंसात्मक अराजकतावादी आन्दोलनों से अनुप्रेरित थे। बंकिमचन्द्र के ‘आनन्द मठ’ के सामाजिक आदर्शवाद ने भी उन्हें अनुप्राणित किया। वे ‘साँस्कृतिक राष्ट्रवाद’ (Cultural Nationalism) से भी प्रभावित थे। राय पर भी ‘आनन्द मठ’ और साँस्कृतिक राष्ट्रवाद का विशेष प्रभाव पड़ा तथा अन्य आतंकवादियों के समान वे भी यह विश्वास करने लगे कि आतंकवादी उपायों से ब्रिटेन को भारतीयों के हाथों में सत्ता सौंप देने के लिए बाध्य किया जा सकता है। थोड़े से उत्कट साहसी क्रान्तिकारी शस्त्रों के बल पर ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर सकते हैं जो ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंक सकें। हथियार एकत्र करने के लिए भूमिगत आतंकवादियों को समर्थन देने के लिए और संगठन के कार्य के लिए आवश्यक धन राजनीतिक डकैती के साधनों से प्राप्त किया जा सकता है। राय का विचार था कि इन बातों के लिए भगवत गीता अनुमति देती है। महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को सलाह दी कि अपने भाइयों और सम्बन्धियों (कौरवों) के विरुद्ध हथियार उठाने में उसे कोई हिचक नहीं करनी चाहिए और नैतिकता के परम्परागत नियमों को तिलांजलि दे देनी चाहिए और उसे यह सब कुछ एक निर्मोही के भाव से करना चाहिए, उसे यह समझ लेना चाहिए कि वह अपना कर्त्तव्य निभा रहा है। राय ने इसी आदर्श को भारत के लिए अनुकरणीय माना और कहा कि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए क्रान्तिकारी हिंसात्मक साधनों को अपनाना हेय नहीं है। तत्कालीन आतंकवादी राय के इन विचारों से प्रभावित हुए, तथापि यह क्रान्तिकारी या आतंकवादी आन्दोलन बुद्धिजीवियों को प्रभावित न कर सका, क्योंकि इस आन्दोलन में सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रम का अभाव था। यह सिद्धान्त में केवल रोमांटिकवाद (Sheer Romanticism in Theory) था और व्यवहार में केवल चन्द्र-आभा (Moon-light in Practice)। यह अधिकाँशतः मध्यवर्गीय युवा वर्ग तक ही सीमित था, जन-साधारण का समर्थन इसे नहीं मिला। रोमांटिक क्रान्तिकारी की इस अवधि में राय के विचार केवल एक सीमित उद्देश्य से अनुप्रेरित रहे, उनमें किसी गम्भीर दूरदर्शिता का अभाव रहा। जर्मनी से शस्त्राशस्त्रों की प्राप्ति के अनेक असफल प्रयत्न किए गए और तब राय को अपनी रीति-नीति पर पुनर्विचार के लिए बाध्य होना पड़ा। न्यूयॉर्क में रहते समय राय ने समकालीन इतिहास की राजनीति और आर्थिक पहलू का अध्ययन किया और समाजवाद की ओर उन्मुख होने लगे। फिर भी अभी तक उनके जीवन में एक रूढ़िवादी मार्क्सवाद की शुरूआत नहीं हुई, उनके पूर्ववर्ती चिन्तन में कोई आधारभूत परिवर्तन नहीं आया क्योंकि साँस्कृतिक आध्यात्मवाद अब भी उनके उपमस्तिष्क में छाया हुआ था। एक क्रान्तिकारी मार्क्सवादी के रूप में उनके जीवन की शुरूआत तो मैक्सिको में हुई।

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