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मानवेन्द्र नाथ राय का जीवन परिचय

मानवेन्द्र नाथ राय का जीवन परिचय

मानवेन्द्र नाथ राय (1887-1954) 

Manvendra Nath Roy (1887-1954)

मानवेन्द्र नाथ राय, जिनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य था, एक अत्यन्त उच्चकोटि के विद्वान् और विचारक तथा एक प्रभावशाली लेखक और वक्ता थे। उन्होंने विपुल साहित्य लिखा और लगभग छः हजार पृष्ठों की एक विराट पुस्तक ‘आधुनिक विज्ञान के दार्शनिक परिणाम‘ (The Philosophical Consequences of Modern Science) भी लिखी जो प्रकाशित होने पर सम्भवतः कई जिल्दों में हमारे सामने आयेगी। भारत के आधुनिक राजनीतिक चिन्तकों में एम० एन० राय का महत्वपूर्ण स्थान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने हमारे समक्ष मौलिक मानववाद (Radical Humanism) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया जो राजनीतिक विचारों के क्षेत्र में एक नवीन योगदान माना जा सकता है। राय के मौलिक मानववाद को नवमानववाद (New Humanism) अथवा वैज्ञानिक मानववाद (Scientific Humanism) भी कहा जाता है। राय ने भौतिकवाद (Materialism) की भी एक नई व्याख्या की और इसे एक नैतिक पुट प्रदान किया। व्यक्ति की स्वतन्त्रता और समानता का जयघोष करके उन्होंने व्यक्ति की गरिमा को आगे बढ़ाया। राय ने दलविहीन लोकतन्त्र का सिद्धान्त भी हमारे सामने रखा जो चाहे व्यावहारिक न हो पर आकर्षक अवश्य है। उन्होंने समाज में नैतिक मूल्यों के पुनः प्रतिष्ठापन का आग्रह किया और साम्यवाद को तानाशाही प्रवृत्ति से बचाने का प्रयल किया। इन विभिन्न दृष्टियों से राय के योगदान को हम बड़ी प्रशंसा की दृष्टि से देखते हैं, पर उन्होंने जिस रूप में और जिस दुराग्रह के साथ गाँधीवाद, धर्म, ईश्वर एवं राष्ट्रवाद की आलोचना की, वह निश्चय ही उनके चिन्तन का अशोभनीय पहलू माना जायगा । राय ने स्वयं को राष्ट्रीय विचारधारा से अलग करके कोई विवेकपूर्ण बात नहीं की, क्योंकि इससे उनकी लोकप्रियता को जबर्दस्त आघात पहुँचा।

मानवेन्द्र नाथ राय का जीवन परिचय

(Life-Sketch of Manvendra Nath Roy)

एम० एन० राय का जन्म 22 मार्च 1887 में हुआ था। राय ने अपने जीवन के प्रारम्बिक काल में बंगाल के क्रान्तिकारी राष्ट्रवादी आन्दोलन की ओर आकर्षित हुए। विपिनचन्द्र पाल, अरविन्द घोष, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, साबरकर आदि उग्रपंथ के पथिकों ने उन्हें बड़ा प्रभावित किया। ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति से क्षुब्ध होकर उन्होंने क्रान्तिकारी दल से नाता जोड़ लिया। भारत में सशस्त्र क्रान्ति द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्ति के आकाँक्षी यतीन्द्र मुखर्जी का बायाँ हाथ बनने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक क्रान्तिकारी के रूप में 1910 और 1915 में उन्हें जेल जाना पड़ा।

प्रथम महायुद्ध छिड़ने पर जर्मनी ने भारत में अशान्ति उत्पन्न करने की चाल खेली ताकि ब्रिटिश नेताओं का ध्यान बँट जाय । जर्मनी ने गुप्त रूप से भारत में क्रान्तिकारी दल को धन और शस्त्र भेजने की व्यवस्था की। शस्त्रों की गुप्त सहायता प्राप्त करने के लिए राय 1915 में ‘डच इंडीज‘ के लिए पलायन कर गये । उद्देश्य में असफल रहने पर वे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में घूमते रहे और तब 1917 में मैक्सिकों जा पहुँचे । मैक्सिकों में उन्होंने समाजवादी शक्तियों को संगठित करने में विशेष रूचि ली और बहुत-कुछ उन्हीं के प्रभाव से मैक्सिकों के समाजवादी आन्दोलन को अन्तर्राष्ट्रीय दिशा में मोड़ा गया। राय मैक्सिकों में समाजवादी दल की नेशनल कान्फ्रेंस के प्रथम चेयरमैन बन गए। माइकेल बोरोडिन ने उन्हें मार्क्सवाद की ओर प्रेरित किया। राय ने मैक्सिको में साम्यवादी दल की स्थापना की। 1919 में वे रूस गए और लगभग एक दशाब्दी तक साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीय (Communist International) के घनिष्ठ सम्पर्क में रहे। अपनी बौद्धिक प्रतिभा से उन्होंने लेनिन को बड़ा प्रभावित किया । ‘मास्को इन्स्टीट्यूट‘ के पौर्वात्य विभाग (Oriental Department of the Moscow Institute) के प्रधान के रूप में राय ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रभावित करने की चेष्टा की और भारत में साम्यवादी दल की स्थापना के लिए पृष्ठभूमि तैयार की। 1927 में उन्हें एक प्रतिनिधि मण्डल के नेता के रूप में चीनी साम्यवादी दल को परामर्श देने के लिए चीन भेजा गया। उन्होंने चीनी साम्यवादियों को सलाह दी कि वे अपनी सामाजिक आधारभूमि को विस्तृत करने के लिए कृषि क्रान्ति की योजना (Plan of Agrarian Revolution) पर अमल करें।

राय एक मौलिक और स्वतन्त्र विचारक थे। साम्यवादी जगत पर रूस का एकाधिकार उन्हें रुचिकर नहीं था।1928 में तृतीय साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीय नेतृत्व के रूसी एकाधिकार का उन्होंने विरोध किया। स्टालिन की उग्रवामपक्षीय विचारधारा भी उनकी आलोचना की शिकार बनी। फलस्वरूप 1928 में राय को ‘कोमिन्टर्न’ से निकाल दिया गया। राय नाम बदल कर भारत लौट आये, लेकिन शीघ्र ही कानपुर षड्यंत्र केस के सम्बन्ध में 1931 में उन्हें लगभग 6 वर्ष के लिए कारागार में डाल दिया गया।

लगभग 15 वर्ष के निर्वासन और 6 वर्ष के कारावास के बाद 1936 में मानवेन्द्र नाथ राय सक्रिय रूप से भारतीय राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने गाँधीवाद के विरुद्ध अभियान तीव्र कर दिया। उन्होंने ‘गाँधीवाद को एक प्रतिक्रियावादी सामाजिक दर्शन बताया जिसका ‘सामाजिक समन्वय का सिद्धान्त‘ अव्यावहारिक था। राय काँग्रेस में रहे, लेकिन गाँधीवादी नेतृत्व से कतई सन्तुष्ट न हो सके । अतः क्षुब्ध होकर उन्होंने 1939 में काँग्रेस के भीतर ही ‘League of Radical Congressmen’ बनाई। 1940 में राय ने अपने साथियों सहित काँग्रेस को सदा के लिए छोड़ दिया और अपनी अलग रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी (Radical Democratic Party) की स्थापना की। उनका साप्ताहिक पत्र ‘स्वतन्त्र भारत’ (Independent India) जिसकी नींव वे 1937 में ही डाल चुके थे, काँग्रेस ‘रेडिकल ह्यूमैनिस्ट’ (Radical Humanist) नाम दिया गया। राय ने आरोप लगाया कि की रीति-नीति पर कठोर प्रहार करता रहा। इस पत्र को ही आगे चलकर 1949 में गाँधी के नेतृत्व में काँग्रेस चरखा कातने वालों का संघ बनती जा रही है। राय ने ‘वैज्ञानिक राजनीति’ (Scientific Politics) की वकालत की। 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का समर्थन भी उन्होंने इसलिए नहीं किया कि यह आन्दोलन, उनकी दृष्टि में, काँग्रेस के औद्योगिक और पूँजीवादी संरक्षकों द्वारा संगठित था । राय ने गाँधी को फासिस्ट और काँग्रेस को भारतीय पूँजीवाद द्वारा पोषित संस्था बताया। 1946 में राय की विचारधारा में एक आधारभूत परिवर्तन आया। 1947 में उन्होंने अपने दल को भंग कर दिया और वे अपने ‘नवीन दर्शन’ (New Philosophy) को पूर्णतया देने में लग गए जो ‘मौलिक मानववाद’ (Radical Humanism) के नाम से विख्यात है। 1954 में राय की मृत्यु हो गई। वास्तव में राय के विचारों में सदैव अस्थिरता रही है। वे कभी भी एक स्पष्ट और दीर्घकालीन राष्ट्रीय विचारधारा का पोषण नहीं कर सके, तथापि राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में उन्हें कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता।

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