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क्या लोक प्रशासन एक विज्ञान है?

क्या लोक प्रशासन एक विज्ञान है?

क्या लोक प्रशासन एक विज्ञान है?

(Is Public Administration a Science?)

साधारणतः विज्ञान का हम भौतिक विज्ञान से अर्थ लगाते हैं, जिनमें भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, भूगर्भ शास्त्र तथा गणित आदि सम्मिलित हैं। वे विज्ञान इस श्रेणी में सम्मिलित हैं जिनकी प्रकृति निश्चित होती है। सामान्यतः विज्ञान के अर्थ होते हैं किसी वस्तु का क्रमिक एवं सुव्यवस्थित ज्ञान। विज्ञान से हमें ऐसे ज्ञान का आभास होता है जो निश्चित हैं, जिसके तथ्यों की सत्यता का परीक्षण किया जाता है, जो समय, स्थिति तथा वातावरण से प्रभावित नहीं हैं, जिसका सम्बन्ध भौतिक पदार्थों से है, जो भविष्य के विषय में निश्चित निष्कर्ष निकाल सकता है और जिसका ज्ञान पर्यवेक्षण तथा अन्वेषण पर अवलम्बित है।

यदि हम लोक प्रशासन के सम्बन्ध में उपर्युक्त कथित मापदण्ड को अपनायें तो कदाचित उसे विज्ञान मानने में शंका अवश्य होगी। एनसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइन्सेज में मोरिस कोहन (Morris Cohen) लोक प्रशासन को विज्ञान का स्तर प्रदान नहीं करता। डाक्टर फाइनर ने भी लोक प्रशासन के सम्बन्ध के विषय में इसी प्रकार का मत प्रकट किया है। डाक्टर ह्वाइट (White) भी इस प्रश्न को, कि लोक प्रशासन वास्तव में विज्ञान है अथवा नहीं, भविष्य के लिए स्थगित करने की सलाह देता है। ये दार्शनिक लोक प्रशासन को दर्शन शास्त्र का ही एक अंग मानते हैं। उसे कला के रूप में स्वीकार करने पर अधिक बल देते हैं। उर्विक (Urwick) के अनुसार लोक प्रशासन केवल एक कला है तथा अन्य कलाओं की भाँति प्रशासन की कला भी नहीं खरीदी जा सकती। (“Administrative skill cannot be bought”)। ग्लैडिन (Gladden) के शब्दों में “प्रशासन एक पृथक् क्रिया है जिसके लिए विशेष प्रकार के ज्ञान तथा विधि की आवश्यकता है।” (“Administration is a distinct activity calling for specialised knowledge and technique”) आर्डवेटवीड (Ordwaytwead) के अनुसार, “प्रशासन संक्षेप में एक उत्तम कला है।” (Administration is, in short a fine art)। जब किसी ज्ञान को व्यवहार तथा विशेष परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जाता है तो वह कला कहलाती है। लोक प्रशासन का व्यावहारिक अथवा प्रयोगात्मक पक्ष कलात्मक है। वास्तव में प्रशासन एक शक्तिशाली तथा दूरदर्शितापूर्ण कला है। लक्ष्य की प्राप्ति स्वयं एक कला है। विशेष लक्ष्य के लिए साधनों को एकत्रित करना भी एक कला है परन्तु लोक प्रशासन की कला की सीमाओं में बाँधना उसके साथ अन्याय करना है। कला की पृष्ठभूमि में जो ज्ञान अन्तर्निहित है उसका अर्जन विज्ञान है। इस सत्य के स्पष्टीकरण से पूर्व उन तर्कों के सम्बन्ध में पर्यालोचन करना आवश्यक है जिनके द्वारा लोक प्रशासन की अवैज्ञानिकता प्रतिस्थापित की जाती है।

लोक प्रशासन विज्ञान क्यों नहीं है?

(Why is it not a Science?)

  1. निश्चितता का अभाव-

    लोक प्रशासन के निष्कर्ष निश्चितता से वंचित रहते हैं, उसके द्वारा किये गये प्रयोगों तथा साधनों का फल प्रत्येक परिस्थिति में एक-सा नहीं रहता। गणित विज्ञान की भाँति  लोक प्रशासन में प्रत्येक स्थिति तथा देश में एक से नहीं रह सकते। लोक प्रशासन में रसायन शास्त्र की भाँति हम यह नहीं कह सकते कि दो भाग हाइड्रोजन तथा एक भाग ऑक्सीजन मिश्रित कर देने से पानी उत्पन्न होता है। लोक प्रशासन में इतनी निश्चितता के साथ कुछ भी नहीं कहा जाता, क्योंकि उसका सम्बन्ध मनुष्य से है जबकि विज्ञान का पदार्थ से।

  2. पर्यवेक्षण तथा तथ्य परीक्षण का अभाव-

    विज्ञान की भाँति लोक प्रशासन का ज्ञान पर्यवेक्षण पर अवलम्बित नहीं है। पर्यवेक्षण का प्रयोग जिस रूप में हम विज्ञान में करते हैं उसमें वह लोक प्रशासन में सम्भव नहीं है। विज्ञान की भाँति लोक प्रशासन के पास ऐसी कोई प्रयोगशाला नहीं है जहाँ पूर्व अर्जित तथ्यों की सत्यता स्थिर की जा सके। विज्ञान की भाँति लोक प्रशासन में स्थिरता नहीं है क्योंकि उसके ऊपर समय तथा स्थिति का विशेष प्रभाव पड़ता है।

  3. सैद्धान्तिक एकरूपता का अभाव-

    लोक प्रशासन की वैज्ञानिकता के विरुद्ध एक तर्क यह दिया जाता है कि इसके सिद्धान्तों का अभाव पाया जाता है। आधारभूत सिद्धान्तों के सम्बन्ध में इसके प्रति पाठकों में मतैक्य नहीं है। यद्यपि फेयोल, उर्विक, टेलर, विलाबी तथा स्टीन आदि लेखकों ने इस दिशा में काफी महत्वपूर्ण प्रयास किया है परन्तु सैद्धान्तिक मतैक्य स्थापित करने में वे भी असफल रहे। परत्येक विचारक अपने ही ढंग से उसकी व्याख्या करता है। कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका में राजनीतिशास्त्रियों का एक सम्मेलन इस कार्य के लिए बुलाया गया था कि वे लोक प्रशासन के सम्बन्ध में एक मत स्थापित करें परन्तु उनमें से कोई भी एक ऐसा मत प्रस्तुत नहीं कर सका जो सबको मान्य होता। “आज्ञा की एकता” को ही लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों का विवेचन किया गया। इस एकरूपता के अभाव में लोक प्रशासन को विज्ञान की संज्ञा देना मूर्खता से कम नहीं है।

  4. लोक प्रशासन के किसी भी अंग का पूर्ण सत्य के रूप में हम अध्ययन नहीं कर सकते अर्थात् उसका कोई भी अनुशासनात्मक भाग ऐसा नहीं है जिस पर समय, स्थान, सामाजिक संगठन तथा वातावरण से सम्बन्धित अन्य वस्तुओं का प्रभाव न होता हो। प्रत्येक अंग का संगठन भी पृथक् होता हो। इसके अर्थ ये हैं कि प्रत्येक प्रकार की परिस्थितियों के लिए नियम भी पृथक् होने चाहिए। अतः लोक प्रशासन का धर्म गिरगिट का सा धर्म है जो परिस्थितियों के अनुकूल बदलता रहता है।
  5. संगठित ज्ञान का अभाव-

    लोक प्रशासन के कुछ आलोचकों का उसके विरुद्ध यह आक्षेप भी है कि उसके अन्तर्गत संगठित ज्ञान का निःसंदेह अभाव रहता है। लोक प्रशासन का स्वरूप सर्वथा एक सा न रहकर परिवर्तित होता रहा है। उससे सम्बन्धित विचार भी बदलते रहे हैं। प्रशासन का वर्तमान स्वरूप प्राचीन नहीं है। उसके ज्ञान का विकास हुआ है जो कि देशगत तथा कालगत है।

  6. आदर्शात्मकता-

    राजनीति शास्त्र की भाँति लोक प्रशासन की वैज्ञानिकता के विरुद्ध उसकी भावनात्मकता का तर्क प्रस्तुत किया जाता है। प्रशासन के समक्ष निश्चित लक्ष्य की स्थापना की जाती है जिसमें नैतिकता का पुट पाया जाता है। आदर्श की स्थापना की जाती है जो भावुकता भी लिए होता है और कल्पना से भी काम लिया जाता है।

लोक प्रशासन की वैज्ञानिकता के सम्बन्ध में आक्षेपों की सत्यताओं से मुख नहीं मोड़ा जा सकता। परन्तु लोक प्रशासन के सम्बन्ध में विज्ञान के जिस दृष्टिकोण से उन्होंने विचार किया है वह संकुचित तथा एकपक्षीय ही कहा जायेगा। विज्ञान किसी भी वस्तु के सम्बन्ध में अर्जित संगठित ज्ञान को कहते हैं। विज्ञान का अर्थ केवल भौतिक विज्ञान से नहीं है। किसी भी विश्लेषणात्मक एवं क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है। यह विज्ञान का व्यापक दृष्टिकोण है। इस दृष्टि से विचार करने पर हम सरलता से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि लोक प्रशासन भी इतिहास, राजनीति शास्त्र तथा समाज शास्त्र आदि की भाँति विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता है।

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