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लोक प्रशासन तथा राजनीति शास्त्र

लोक प्रशासन तथा राजनीति शास्त्र

लोक प्रशासन तथा राजनीति शास्त्र

(Public Administration and Political Science)-

विल्सन के कथानुसार “प्रशासन राजनीति की परिधि से बाहर है। प्रशासनिक समस्याएँ राजनीतिक समस्याएँ नहीं हैं। यद्यपि राजनीति द्वारा प्रशासन के लिए कार्य निर्धारित किया जाता है, परन्तु उसे प्रशासकीय पदों के साथ तिकड़म द्वारा लगाने की स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिये।”

अमेरिका में राजनीति तथा लोक प्रशासन को बहुत समय तक दो पृथक् क्षेत्रों के रूप में माना जाता रहा है। राजनीति का सम्बन्ध सामान्य नीति निर्धारण से है और प्रशासन का उन नीतियों को लागू करने से है। प्रो0 गुडनो (Goodknov) ने लिखा है, “सत्य यह है कि प्रशासन का एक बहुत बड़ा भाग ऐसा है जिसका राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है।” (“The fact is that there is a large part of administration which is unconnected with politics.”) ब्लंशली (Bluntshli) के अनुसार, “राजनीति एक राजकीय प्रक्रिया है, उन वस्तुओं के संबंध में जो विशाल एवं सर्वमान्य हैं। इसके विपरीत लोक प्रशासन व्यक्तिगत तथा छोटी वस्तुओं के सम्बन्ध में राज्य की क्रिया है।” (Politics is state activity in things great and universal. While administration on the other hand is the activity of the state in individual and small things.”) लोकतंत्रात्मक शासन का सिद्धान्त राजनीति तथा लोक प्रशासन के इस अन्तर को स्वीकार करता है।

परन्तु राजनीति तथा प्रशासन के पृथक्करण के सिद्धान्त की कुछ आलोचकों द्वारा कटु आलोचना की गई है। उनका कहना यह है बिना प्रशासकीय अधिकारियों की सलाह के मन्त्रिमण्डल के सदस्य सामान्य नीतियों का निर्धारण नहीं करते। अतः यह कहना गलत है कि प्रशसन नीति के निर्धारण में कोई भाग नहीं लेता। आधुनिक युग में राजनीति तथा प्रशासन की पारस्परिक निर्भरता पर अधिक बल दिया जाता है। डोनल्ड किंग्सले (Donald Kingsley) ने ठीक ही कहा है, “प्रशासन राजनीति की एक शाख है।” (“Administration is a branch of Politic.”) लोक प्रशासन मान्यताओं का यंत्रवत स्वयंसिद्ध शुष्क अध्ययन मात्र नहीं। वह गतिशील है और अपनी प्रगति तथा विकास की प्रत्येक मंजिल पर मानव विवेक से सम्बन्धित है। इस नवीन दृष्टिकोण के फलस्वरूप लोक प्रशासन का कार्यक्षेत्र भी पहले की अपेक्षा अधिक व्यापक हो गया है। लोक प्रशासन तथा राजनीति के इस सम्बन्ध को हम अग्रलिखित रूप से स्पष्ट कर सकते हैं :

  1. राजनीति की सफलता प्रशासन के सहयोग पर अवलम्बित है। प्रशासन की सफलता राजनीति की ही सफलता है। दुर्बल तथा दूषित प्रशासन राजनीति के लिए क्षय रोग से कम नहीं है। भारत के स्वतन्त्र होने के उपरान्त असैनिक सेवा के कर्मचारियों ने अपनी कर्तव्यपरायणता तथा दूरदर्शिता का पूर्ण परिचय दिया। उन्होंने बड़ी ही कार्यकुशलता से अपना उत्तरदायित्व निभाकर संक्रमण काल में संगठन प्रदान किया। किसी भी दल की सरकार क्यों न हो, परन्तु समाज के मध्यम वर्ग से आने वाले असैनिक सेवाओं के कर्मचारी अपनी निष्पक्षता का परिचय सदैव ही देते रहे हैं।
  2. मन्त्रिमण्डल द्वारा प्रशासन के सम्बन्ध में जिन सामान्य नीतियों का निर्धारण किया जाता है, उनमें लोक प्रशासकों द्वारा दी गई मंत्रणाओं का विशेष हाथ होता है, सत्य तो यह है कि राजनीतिक का स्वरूप ही वे निश्चित करते हैं। सामान्य नीतियों के निर्धारण के लिए उपयुक्त सामग्री भी वे ही एकत्रित करते हैं।
  3. संविधान तथा प्रशासन में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यहाँ तक कि असाधारण व्यक्ति भी इन दोनों में कोई अन्तर नहीं करता। यद्यपि लोक प्रशासन संविधान का भाग नहीं है परन्तु उसके स्वरूप एवं संगठन को निश्चत करने का कार्य उसी का है।
  4. स्थानीय प्रशासन के क्षेत्र में राजनीति तथा प्रशासन का घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के द्वारा भी राजनीतिक तथा प्रशासन में घनिष्ठ सम्बन्ध त्यापित हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रवाद के इस बढ़ते हुए युग में एक राष्ट्र को अन्य राष्ट्रों के प्रति अपने कर्तव्यों का भार वहन करने के लिए प्रशासन पर निर्भर रहना पड़ता है, की विदेशी नीति को सक्रिय रूप विदेश मंत्रालय द्वारा ही दिया जाता है।

लोक प्रशासन तथा इतिहास

(Public Administration and History)-

किसी भी राष्ट्र के सम्बन्ध में प्रशासन का अध्ययन उस समय तक अपूर्ण रहेगा जब तक हम उसके विकास का अध्ययन नहीं करते। विकास सम्बन्धी सूचना प्राप्त करने के लिए हमें स्वाभाविक रूप से इतिहास का सहारा लेना पड़ता है। इतिहास मानव अनुभवों की विशाल खान है। लोक प्रशासन के लेखकों ने यद्यपि इस प्रकार के अध्ययन के सम्बन्ध में बहुत ही कम ध्यान दिया है, परन्तु प्रशासन के सम्बन्ध में इतिहास का बहुत बड़ा महत्व है। हमारी प्राचीन प्रशासनिक समस्याएं क्या थीं और विशेष परिस्थितियों में उनका समापन किस प्रकार हुआ, यह सब इतिहास में हमें ज्ञात हो सकता हैं इतिहास में, हम लोक प्रशासन के लिए उदाहरण एवं चेतावनी दोनों ही प्राप्त करते हैं। प्रशासन की भावी रेखा तैयार करने में इतिहास हमारी बहुत बड़ी सहायता करता है । लोक प्रशासन अन्य भौतिक शास्त्रों की भाँति प्रयोगात्मक नहीं है। इतिहास में प्रशासन सम्बन्धी जो अनुभव हैं वे ही हमारे लिए प्रयोग की सामग्री हैं। पाश्चात्य प्रशासन के सम्बन्ध में हमें बहुत-सी सूचनाएँ इतिहास से प्राप्त होती हैं। जदुनाथ सरकार, पी सरन तथा अब्दुल फजल द्वारा लिखित (Mughal Administration, Provincial Government under Mughals, and Inae Akbari) आदि ऐसी पुस्तकें हैं जिनसे हमें मुगल प्रशासन के सम्बन्ध में पता चलता है। लोक प्रशासन के सम्बन्ध में कौन-कौन से विचार कब और कैसी परिस्थितियों में जन्म पाते रहे हैं, किस प्रकार उसका खण्डन अथवा समर्थन होता रहा है, यह सब हमें इतिहास में मिल सकता है।

लोक प्रशासन तथा समाजशास्त्र

(Public Administration and Sociology)-

समाजशास्त्र अपने मौलिक रूप में समाज का अध्ययन है। लोक प्रशासन भी समाज की एक प्रक्रिया है। समाजशास्त्र तथा प्रशासन में घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाज का सम्बन्ध भी मनुष्य तथा उसके वातावरण से है, लोक प्रशासन का भी सम्बन्ध उस व्यक्ति से है जो समाज का सदस्य है। प्रशासन द्वारा ही समाज को संगठित रूप प्राप्त होता है। समाजशास्त्र लोक प्रशासन के विद्यार्थियों में वातावरण का अध्ययन करने की उत्सुकता उत्पन्न करता है। उसके दृष्टिकोण को व्यापक बनाता है। समाज में उत्पन्न होने वाले समुदायों के विकास, प्रवृत्ति, पारस्परिक सम्बन्ध तथा उसकी उत्पत्ति एवं प्रशासन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करने के लिए उसका ज्ञान आवश्यक है। प्रशासन की समस्याओं को समझने के लिये केवल व्यक्ति को समझना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उस वातावरण को भी समझना आवश्यक है जिसके अन्तर्गत वह निवास करता है। समाजशास्त्र लोक प्रशसन के तत्ववेत्ताओं के सम्मुख खोज करने के लिए एक विस्तृत क्षेत्र प्रस्तुत करता है। जाति, परिवार, सामाजिक परम्पराएं, वर्ग तथा विवाह प्रथाएँ आदि। इन सब बातों का हमारे जीवन में मुख्य स्थान है। समाज कल्याण प्रशासन का कर्तव्य एवं लक्ष्य है।

समाजशास्त्र ने लोक प्रशासन को न केवल साहित्य ही प्रदान किया है परन्तु एक नवीन दृष्टिकोण भी दिया है। चाहे दलीय प्रशासन हो अथवा लोक प्रशासन, दोनों को ही समाजशास्त्र ने पूर्ण रूप से प्रभावित किया है। सामाजिक रीति रिवाज, जाति अथवा वर्ग विशेष की आदतों तथा सामाजिक वातावरण का प्रभाव अपराधों पर पड़ता है। अपराधों का रोकना प्रशासन का कार्य है। प्रशासन ने जेल व्यवस्था में कई प्रकार के सुधार किए हैं। अपराधियों को समाजोपयोगी बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएँ प्रस्तुत की हैं। बाल अपराधों के सम्बन्ध में खोज की व्यवस्था की जाती है। उनके लिए पृथक् प्रकार की जेलों की व्यवस्था की जाती है। मैक्स वैबर ने नौकरशाही राज्य के विषय में सामाजिक दृष्टि से जिन बातों का निरूपण किया है वह लोक प्रशासन के विद्यार्थी के लिए अत्यन्त रुचि लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। सामाजिक पृष्ठभूमि से हम उस स्थान तथा वहाँ के व्यक्तियों के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। जिनका सम्बन्ध प्रशासन से हैं। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि प्रशासन स्वतः ही कार्यशील सामाजिक विज्ञान है।

लोक प्रशासन तथा मनोविज्ञान

(Public Administration and Psychology)

मनोविज्ञान समाज में मानवीय आचरण का अध्ययन है, और लोक प्रशसन समाज में मानवीय प्रक्रियाओं का अध्ययन है, अब से पहले प्रशासन में मनोविज्ञान के महत्व को स्वीकार नहीं किया जाता था, परन्तु अर्थशास्त्र की भाँति आज मनुष्य की प्रत्येक क्रिया में मनोवैज्ञानिक तत्व को खोजने की चेष्टा की जाती है। लोक प्रशासन में मनोवैज्ञानिक का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। असैनिक सेवाओं के कर्मचारियों के चयन में भी मनोवैज्ञानिक परीक्षणों तथा व्यक्तित्व परीक्षण पर आवश्यक बल दिया जाता है। एक कुशल प्रशसक के लिए निःसन्देह यह आवश्यक है कि उसके पास मनोविज्ञान का ज्ञान किसी न किसी मात्रा में होना चाहिए, क्योंकि उसका सम्बन्ध उस गति युक्त व्यक्ति से है जो परिस्थितियों अथवा किसी भावावेश में आकर अपने व्यवहार को बदल देता है। समूह मनोविज्ञान (Group psychology) का तो बहुत ही महत्व है। समूह के क्रिया कलापों से तो हमारा दिन-रात सम्बन्ध रहता हैं जनमत को समझने में मनोविज्ञान से बहुत कुछ सहायता मिलती है। बहुत से अपराधों का विश्लेषण इसी आधार पर किया जाता है। संवेदना, नेतृत्व, आदत, संवेग, सलाह, खेल, मनोरंजन आदि मनोवैज्ञानिक तत्वों का प्रभाव लोक प्रशासन की सफलता एवं सामाजिक व्यवहार पर अवलम्बित है।

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