नेहरू का समाजवाद का विचार
नेहरू का समाजवाद का विचार
नेहरू ने समाजवाद की अपनी विचारधारा विकसित की। समाजवाद के इस आदर्श सिद्धान्त पर उनका आग्रह था कि आर्थिक स्वतन्त्रता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता कोई मायने नहीं रखती। 1955 में अवाडी काँग्रेस अधिवेशन में उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका समाजवाद रूसी साम्यवाद का अन्य देशों के समाजवाद का अनुकरण नहीं है। “समाज का अर्थ धन का वितरण नहीं है और न ही केवल जन कल्याणकारी राज्य का निर्माण है। समाजवादी अर्थ-व्यवस्था मात्र से ही लोक कल्याणकारी राज्य सम्भव नहीं बन सकता । आवश्यकता इस बात की है कि देश में उत्पादन बढ़ाया जाए, धन की वृद्धि हो, और फिर अर्जित धन का समुचित ढंग से वितरण किया जाए।” एक अन्य स्थल पर उन्होंने कहा-संसार की तथा भारत की समस्याओं का समाधान केवल समाजवाद द्वारा ही सम्भव दिखाई देता है, और जब मैं इस शब्द का प्रयोग करता हूँ, तब केवल मानवीय नाते से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक-आर्थिक दृष्टि से भी करता हूँ। किन्तु समाजवाद आर्थिक सिद्धान्त से भी अधिक महत्वपूर्ण है। यह एक जीवन-दर्शन है और इसलिए मुझे अँचता भी है, मेरी दृष्टि से मैं निर्धनता चारों ओर फैली हुई बेरोजगारी, भारतीय जनता का अधःपतन तथा दासता को समाप्त करने का मार्ग समाजवाद को छोड़कर अन्य किसी प्रकार से सम्भव नहीं देखता।
अपनी समाजवाद अवधारणा पर चलते हुए नेहरू ने नियोजित विकास के अन्तर्गत मिश्रित अर्थ-व्यवस्था को प्रश्रय दिया। तीव्र आर्थिक विकास के लिए न केवल औद्योगिक विकास को गति दी वरन् कृषि और भूमि सुधार द्वारा जमींदारों के शोषण से दबी ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने की चेष्टा की। उनका उद्देश्य एक आर्थिक ढाँचे का निर्माण करना था जो बिना व्यक्तिगत एकाधिकार तथा पूँजी के केन्द्रीयकरण के अधिकतम उत्पादन प्रदान कर सके और शहरी और ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था में उपयुक्त सन्तुलन पैदा कर सके। नेहरू ने जीवन, समाज और सरकार के सम्बन्ध में समाजवाद तथा लोकतान्त्रिक साधनों को संयुक्त किया और ‘मध्यम मार्ग’ अपनाया। उन्होंने लोकतान्त्रिक साधनों के माध्यम से समाजवादी समाज की स्थापना में निछा प्रकट की। 1958 में ‘समाजवाद’ पर विचार प्रकट करते हुए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा-“मैं उस उग्र प्रकार का समाजवाद नहीं चाहता जिसमें राज्य सर्वशक्ति सम्पन्न होता है और प्रायः सब कार्य-कलापों का संचालन करता है। राजनीतिक दृष्टि से राज्य बहुत शक्ति-सम्पन्न होता है अतः मैं आर्थिक शक्ति के विकेन्द्रीयकरण की योजना के आदर्श रूप को भारतीय जन-जीवन के लिए व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करना चाहता हूँ।” अपने समाजवाद की स्थापना के लिए नेहरू बल प्रयोग या हिंसात्मक साधनों के विरुद्ध थे। “हमारे सामने प्रश्न यह है कि शान्तिपूर्ण तथा न्यायोचित उपायों से गणतन्त्र और समाजवाद को एक साथ कैसे संयुक्त किया जाए। भारत के सामने यही समस्या उपस्थित है। हम इस उद्देश्य को बलपूर्वक अथवा दबाव से पूरा नहीं कर सकते। हमें लोगों की सद्भावना तथा सहयोग प्राप्त करना है।”
नेहरू के समाजवाद में अभावों से पीड़ित जनता के लिए दर्द था, जीवन के सभी क्षेत्रों में सभी के लिए समानता की कामना थी। नेहरू ही के शब्दों में, “हमारा उद्देश्य भारत में समाजवादी समाज की स्थापना करना है। हमारा उद्देश्य यह है कि भारत में प्रत्येक पुरुष, महिला तथा बच्चे को समान अवसर प्राप्त हों और बड़ी-बड़ी विषमताएँ दूर हो जाएँ। यह कोई सरल उद्देश्य नहीं है, क्योंकि इससे हमारा तात्पर्य प्रशिक्षण, शिक्षा तथा अन्य सैंकड़ों उपायों से मानव का सुधार करने से है। समाजवाद इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार सोचते तथा विचारते हैं, हम अपने पड़ोसी के साथ कैसा आचरण करते हैं और मिल-जुलकर एक साथ काम करने के लिए अपनी क्षमता का किस प्रकार विकास करते हैं।”
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