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लोक प्रशासन तथा राजनीति में सम्बन्ध, राजनीति तथा प्रशासन में अन्तर

लोक प्रशासन तथा राजनीति में सम्बन्ध

लोक प्रशासन तथा राजनीति में सम्बन्ध

(Relationship between Public Administration and Politics)

  1. एक दूसरे के पूरक हैं (Supplementary to each other)–

    राजनीति साध्य है और प्रशासन साधन, राजनीति के बिना प्रशासन के तथा प्रशासन बिना राजनीति अपूर्ण है, राजनीति की सफलता प्रशासकीय कार्यकुशलता पर अवलम्बित है और प्रशासकीय सफलता स्थायी राजनीति तथा स्वरूप पथ-प्रदर्शन पर आधारित है। लैसली लिप्सन (Leslle Lipson) के शब्दों में “सरकार के कार्यों को विभाजित करने वाली कोई सरल रेखा नहीं खींची जा सकती। सरकार एक ऐसी प्रक्रिया है जो अविरल गति से चलती रहती है। यह बात सत्य है कि प्रत्येक क्रिया में कई मंजिलें होती हैं। व्यवस्थापन एक मंजिल है तथा प्रशासन दूसरी मंजिल है किन्तु इतना होते हुए भी वे मंजिलें एक दूसरे से इतनी मिली हुई होती हैं कि कुछ स्थानों में उनमें कुछ भी भेद नहीं किया जा सकता।

  2. मंत्रियों को परामर्श (Advice to Ministers)—

    पाल. एपिलबी (Paul Appleby) ने इस सम्बन्ध में कहा है कि “लोक प्रशासन सार्वजनिक नीति का निर्माण है।” (Public Administration is the making of public policy) | इसमें यह सत्य छिपा हुआ है कि मन्त्री जन-प्रतिनिधि होते हैं और वे अपने विभाग के विशेषज्ञ नहीं होते। मन्त्री आते और जाते रहते है। वे स्थायी नहीं रहते। स्वाभाविक रूप से उन्हें विशेषज्ञों की सलाह पर निर्भर रहना पड़ता है। इसीलिए नीति निर्माण में उनके परामर्श की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

  3. योजना से पूर्व तथ्यों का ज्ञान (Collection of facts before planning)-

    डौनैस्ड स्मिथ के अनुसार “प्रशासन राजनीति की एक शाखा है।” (Administration is a branch of Plotics) राजनीतिज्ञ अपने सम्बन्धित विभागों के लिए योजनाएं तैयार करने से पूर्व तथ्यों को एकत्रित करते हैं। यह कार्य प्रशासन द्वारा किया जाता है, बिना उनके सहयोग के मन्त्री सदन में प्रश्नों के सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे सकते, राजनीति का बाँया अंग प्रशासन है।

  4. मंत्रियों की चेतावनी (Warning to the Ministers)-

    प्रो. लास्की ( Lasky) ने ठीक कहा है कि “कर्मचारियों के अनुभव से पृथक् की गई कोई नीति निश्चित रूप से ज्ञानहीन तथा हानिकारक होगी।” कर्मचारी वर्ग एक बहुत बड़ी सीमा में राजनीतिज्ञों द्वारा निर्मित नीतियों को प्रभावित करता है। मन्त्रियों का समय तो विभागीय समस्याओं को सुलझाने तथा अपनी सत्ता के बनाये रखने में ही निकल जाता है। नीति निर्माण वस्तुतः व्यवहार में कर्मचारियों द्वारा ही किया जाता है। गलत नीतियों के भयंकर परिणामों से वे राजनीतिज्ञों को सचेत रखने का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

  5. सम्बन्धों की घनिष्ठता (Closeness of relation hip)-

    लोक प्रशासन तथा राजनीति की घनिष्ठता को स्पष्ट करते हुए लुथरगुलिक (Luther Gullick) ने कहा है कि “सही अर्थ में राजनीति को प्रशासन से अलग नहीं किया जा सकता और न ही प्रशासक को राजनीति से, क्योंकि कोई भी नियन्त्रण को समाप्त करना नहीं चाहता और शासकों को उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए मुक्त नहीं करना चाहता, क्योंकि ऐसा करना घड़ी को पीछे घुमाने की तरह होगा और वर्षों के पश्चात मानव जाति को प्राप्त एक मूल्यवान पारितोषिक को फेंक देना होगा। अतः प्रशासन तथा राजनीति एक ही वस्तु के दो पहलू हैं, सैद्धान्तिक दृष्टि से चाहे हम उन्हें पृथक्-पृथक् मान लें किन्तु व्यवहार में वे एक दूसरे से पृथक् नहीं किए जा सकते। राजकीय इच्छा को स्पष्टी तथा उसका निष्पादन ही नीति-विषयक पूर्णता को उपलब्ध करा सकते हैं।

राजनीति तथा प्रशासन में अन्तर

(Distinction between Politics And Administration)

लोक प्रशासन तथा राजनीति के परस्पर सम्बन्ध पर विचार करने वाले लेखकों में एक वर्ग ऐसा भी है जो लोक प्रशासन को क्षेत्र एवं अवधारणा की दृष्टि से राजनीति से पृथक् मानते हैं। इस वर्ग के एक लेखक हैं, प्रो० गुडनो (Goodnow) जी यह मानते हैं कि प्रशासन का एक बहुत बड़ा भाग राजनीति से असम्बन्धित है। (A large part of administration is unrelated with politics) इसके दूसरे लेखक हैं ब्लंशली (Bluntschli), जिसके अनुसार ‘राजनीति राज्य की ऐसी प्रक्रिया है जिसका सम्बन्ध बड़ अथवा सार्वकालिक कार्यों से है, परन्तु इसके विपरीत प्रशासन का सम्बन्ध व्यक्ति तथा छोटे-छोटे कार्यों से होता “(Politics is the state activity in things great and universal while administration on the other hand is the activity of the state individual and the state) एक अन्य लेखक प्रो० विल्सन (Woodrow Wilson) ने भी इस बात पर बल दिया है कि यह तीनों के हित में है कि राजनीति तथा प्रशासन को पृथक् रहना चाहिए। यदि प्रशासन में राजनीति का प्रवेश होता है तो वह भ्रष्ट होने से किसी भी रूप में नहीं बच सकता। यदि प्रशासन में भ्रष्टाचार घुस जाता है तो सम्पूर्ण राज्य व्यवस्था के लड़खड़ाने का भय बना रहता है। विल्सन (Wilson) के ही शब्दों में “प्रशासन राजनीति के खास क्षेत्र की परिधि से बाहर है। प्रशासनिक प्रश्न राजनैतिक प्रश्न नहीं होते। यद्यपि राजनीति प्रशासन के प्रश्नों को तय करती है किन्तु उसे प्रशासकीय पदों के साथ हस्तक्षेप करने की स्वीकृति नहीं होनी चाहिए।”

राजनीति तथा प्रशासन में निम्नलिखित अन्तर है –

  1. राजनीतिज्ञ अवैतनिक एवं अव्यवसायी होते हैं, जबकि प्रशासन के सदस्य वैतनिक एवं व्यवसायी होते है।
  2. राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ नहीं होते किन्तु उसके विपरीत प्रशासकीय अधिकारी विशेष योग्यता प्राप्त होते हैं।
  3. राजनीतिज्ञ किसी विशिष्ट विचारधारा में विश्वास करने वाला तथा किसी राजनैतिक दल से सम्बद्ध होता है किन्तु प्रशासकीय अधिकारी तटस्थता की स्थिति में रहकर किसी दल से अपने को सम्बद्ध नहीं रखता ।
  4. राजनैतिक अधिकारी को जनता के साथ विविध प्रकार के वायदे करने पड़ते हैं किन्तु प्रशासन लोकहित की पूर्ति से अपने को सम्बद्ध रखता है।
  5. राजनीतिक अधिकारी का सम्बन्ध प्रशासकीय अधिकारी की अपेक्षा विभागीय समस्याओं को सुलझाने से अधिक रहता है।
  6. राजनीतिज्ञ नीतिनिर्धारक है और प्रशासक उसका निष्पादक।
  7. राजनैतिक अधिकारी निर्णायक जबकि प्रशासकीय अधिकारी सलाहकार है।
  8. राजनैतिक अधिकारी लोकमत से प्रभावित होता है और इसके विपरीत प्रशासकीय अधिकारी इससे अप्रभावित रहता है।

निष्कर्ष में हम यह कह सकते हैं कि राजनीति तथा प्रशासन का अन्तर सैद्धान्तिक अधिक तथा व्यवहारिक कम है। व्यवहार में इन दोनों के मध्य कोई विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

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