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अकबर कालीन वास्तुकला

अकबर कालीन मुगल वास्तुकला

अकबर कालीन मुगल वास्तुकला

अकबर का काल सम्मिश्रण और समन्वय का युग था। स्थापत्य-कला के क्षेत्र में भी इसका प्रभाव स्पष्ट दिखायी पड़ता है। उसके समय में बनायी गयी इमारतों पर ईरानी व भारतीय तत्व स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं परन्तु इनमें प्रमुखता भारतीय तत्वों को ही प्राप्त है। वस्तुतः अकबर के काल की कला को इतिहासकारों ने राष्ट्रीय कला का नाम दिया है। अकबर के स्थापत्य-कला के प्रति लगाव को स्पष्ट करते हुए उसके समकालीन लेखक अबुल फजल ने लिखा है, “सम्राट सुन्दर भवनों की योजना बनाता है और अपनी इन योजनाओं को पत्थर एवं मिट्टी का जामा पहनाता है।”

अकबर कालीन इमारतों का विवरण निम्नलिखित है-

हुमायूँ का मकबरा-

मुगल स्थापत्य-कला की सर्वप्रथम सुन्दर कृति हुमायूँ का मकबरा है। यह दिल्ली में स्थित है। इसका निर्माण अकबर की सौतेली माँ हाजी बेगम की देखरेख में हुआ था। इस मकबरे का निर्माता प्रधान कारीगर ईरानी था और हुमायूँ की पत्नी ईरानी-कला के आदशों से प्रभावित थी। यह मकबरा वास्तुकला की दृष्टि से सुन्दर कृति है। गुम्बद के साथ छतरियों का प्रयोग यहाँ पूर्णता को पहुँच गया था। इस मकबरे का गुम्बद भारत में अपनी प्रकार का पहला गुम्बद है। इतिहासकार इस गुम्बद की तुलना समरकन्द के तैमूर लंग और बीबी खानम के मकबरे से करते हैं।

आगरा का किला-

मकबरा महान द्वारा निर्मित विशाल इमारतों में आगरा का लाल किला सर्वाधिक प्रसिद्ध है। 1565 ई० में अकगर के शाही कारीगर कासिम खाँ के निरीक्षण में इसका निर्माण-कार्य प्रारम्भ हुआ। इसमें लगभग चार हजार कारीगरों ने निरन्तर पन्द्रह वर्ष तक परिश्रम किया और इस पर 35 लाख रूपये व्यय हुए।

जहाँगीरी महल-

अगरा के किले में अकबर द्वारा बनायी गयी शेष इमारतों में जहाँगीरी महल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसका निर्माण बादशाह अकबर ने अपने उत्तराधिकारी शाहजादा सलीम (बाद में जहाँगीर) के निवास के लिए कराया था। डॉ० रामनाथ का मत है कि यह इमारत मूलतः अकबर का अपना रनिवास थी परन्तु कालान्तर में जहाँगीर ने इसके सम्मुख 1611 ई० में एक हौज बनवाया था जिसके कारण इसका नाम जहाँगीरी महल पड़ गया था। यह लगभग वर्गाकार इमारत है। इसके चारों कोनों पर चार छतरियाँ है। प्रवेश-द्वार नोकदार मेहराब का है। इसमें मुख्यतः लाल पत्थर का प्रयोग है परन्तु बाह्य भाग पर कुछ संगमरमर का भी उपयोग किया गया है। सम्पूर्ण भवन हिन्दू-शैली से प्रभावित है। “भवन में यत्र-तत्र हंस, हाथी, मोर, तोते और मगर की आकृतियाँ खुदी हुई है। कमल और श्रीवत्स के रूपक हैं, जिनके आधार पर डॉ० रामनाथ ने लिखा है कि यह महल हिन्दू मन्दिर के सदृश प्रतीत होता है और यह अकबरकालीन स्थापत्य-कला का वास्तविक अर्थों में परिचायक है।”

अकबरी महल–

जहाँगीरी महल के समीप अकबरी महल था, जिसके अब कुछ अवशेष ही बाकी है। इस भवन का निर्माण अकबर के शासनकाल के प्रारम्भिक वर्षों में हुआ था, अतः इसमें अलंकरण का अभाव है। जहाँगीरी महल जैसे कलात्मक भवन की तुलना में इसकी बनावट भद्दी प्रतीत होती है।

फतेहपुर सीकरी की प्रमुख इमारतें

  1. दीवानेआम

    यह ऊंची कुर्सी पर बनाया गया है। यह एक साधारण आयताकार कमरा है जिसमें खुदाई का अत्यधिक काम है। इसमें आगे की ओर बरामदा है जिस पर लाल पत्थर के ढालदार छज्जे हैं। यहाँ पर अकबर अपना आम दरबार किया करता था। इसके पास ही दफ्तर खाना है जिसके पीछे एक विस्तृत आँगन है जिसमें दीवाने-खास, शाही कार्यालय और विश्रामकक्ष आदि हैं।

  2. दीवानेखास

    दीवाने-खास एक छोटी-सी इमारत है। इसकी निर्माण योजना फतेहपुर सीकरी के अन्य भवनों से अलग है। देखने में यह इमारत दो मंजिल की मालूम पड़ती है, परन्तु वास्तव में वह ऐसी नहीं है। यह एक वर्गाकार इमारत है।

  3. पंचमहल

    स्तम्भों पर आधारित यह एक पाँच मंजिल की इमारत है, जिसका उपयोग सभा अथवा उत्सव के समय किया जाता होगा। इसके खम्भों पर अत्यधिक सजावट देखने को मिलती है। प्रत्येक स्तम्भ विविध प्रकार का है। इस महल की पहली मंजिल एक विशाल हॉल के समान है जिसमें 48 खम्भे हैं और इस पर ही अन्य चार मंजिलें बनी हुई हैं। ऊपर की प्रत्येक मंजिल उत्तरोत्तर छोटी होती गयी है। स्तम्भों पर उभरी हुई घण्टियों, फूल-पत्तियों, कलश एवं रूद्राक्ष-मालाओं से ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है कि इस महल में हिन्दू-कला का अत्यधिक प्रभाव है। इसकी अन्तिम मंजिल चार खम्भों पर आधारित एक गुम्बदी चंदोबा मात्र है। सभी मंजिलें जीनों से जुड़ी हुई हैं।

  4. शाहजादों का मकतब

    पंचमहल के नीचे का भवन शाही बालक-बालिकाओं के मकतब के रूप में प्रयोग किया जाता था। यह भी स्तम्भों पर आधारित दो मंजिल का भवन है। हिन्दू-मन्दिरों के समान छोटे स्तम्भों का इसमें प्रयोग हुआ है। इसकी छत पटावदार है। यह इमारत अपने समय रही होगी परन्तु अब इस पर किया गया खुदाई का कार्य धीरे-धीरे नष्ट होता जा रहा है।

  5. तुर्की सुल्ताना की कोठी

    जनानखाने के प्रांगण में स्थित यह एक छोटी सी इमारत है। जिसमें खुदाई का अत्यन्त आकर्षक कार्य है। इसे तुर्की सुल्ताना का महल कहा जाता है। यह एक मंजिल की इमारत है और इसके आगे स्तम्भों पर आधारित एक बरामदा है। आन्तरिक भाग में अत्यधिक सजावट है। पशु-पक्षियों की आकृतियों के साथ अनेकानेक पेड़-पौधों और फल-फूलों की भी इसमें खुदाई की गयी है। कालान्तर में औरंगजेब ने अपनी धर्मान्धता के कारण पशु-पक्षियों की आकृतियों को नष्ट करा दिया था। पर्सी ब्राउन इस छोटी सी इमारत की आन्तरिक सजावट के आधार पर इसे कलात्मक रत्न मानता है।

  6. खास महल

    यह अकबर का व्यक्तिगत आवास-गृह था। यह दो मंजिली इमारत है। इसके चारों कोनों पर छतरियाँ थीं। इसकी बाह्य दीवार सफेद संगमरमर के जालीयुक्त पर्दो तथा लाल ग्रेनाइट के पत्थरों की बनी थी। परन्तु अब उसके अवशेष बाकी हैं। इसके दक्षिण की ओर अकबर का शयन-कक्ष था। यह अत्यन्त सादे प्रकार की इमारत है। साथ ही लगा हुआ एक पुस्तकालय-कक्ष है तथा ऊपरी मंजिल में झरोखा-दर्शन है। “खास महल और तुर्की सुल्ताना की कोठी के सामने ही एक पत्थर का चौपड़ है जिसके बीच उठा हुआ एक चबूतरा है। इस चौपड़ को गुलाबजल से भर दिया जाता था और सम्राट तथा उसकी बेगमें ऊपरी बैठकर सुगन्धित ठण्डी हवा का आनन्द लेते थे।”

  7. जोधाबाई का महल

    पर्सी ब्राउन का मत है कि यह महल फतेहपुर सीकरी में निर्मित इमारतों में सबसे अधिक विशाल है और इसमें तत्कालीन स्थापत्य कला शैली का विकसित रूप दृष्टिगत होता है। यह एक आयताकार इमारत है। चारों ओर से 32 फीट ऊँची दीवार से घिरी इस इमारत का केवल एक ही प्रवेश-द्वार है। इस इमारत की निर्माण-शैली को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें हिन्दू-शैली की बहुतायत है। सम्पूर्ण महल देखने में मन्दिर के समान प्रतीत होता है। इसमें उभरे हुए कमल और श्रीवत्स है। पर्सी ब्राउन और हैवेल जैसे इतिहासकारों का मानना है कि इसके निर्माण का कार्य गुजरात के कलाकारों को सौपा गया था। सम्भवतया इसीलिए इसमें हिन्दू-शैली की बहुतायत है। डॉ0 आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने लिखा है, “इसकी निर्माण-योजना एवं व्यवस्था में कोई कमी नहीं है तथा इसे मध्यकालीन मुगलों के शाही के आवासगृह का एक सुन्दर नमूना माना जा सकता है।” महल की छतों में रंगीन टाइल्स लगाकर उनकी साज-सज्जा में वृद्धि की गयी है।

  8. मरियम की कोठी

    जोधाबाई के महल के समीप स्थित यह इमारत मरियम की कोठी के नाम से विख्यात है। बहुत से लेखक इसे अकबर की ईसाई रानी का महल मानते हैं, जब कि डॉ० श्रीवास्तव इसे जहाँगीर की माता का महल लिखते हैं। इसे संगीन महल के नाम से भी जाना जाता है। इसके आन्तरिक भाग में अत्यन्त सुन्दर भित्ति-चित्र अंकित हैं, जिनमें युद्ध के दृश्य, शिकार खेलने, हाथियों के युद्ध और जुलूस आदि के चित्र अत्यन्त प्रभावोत्पादक थे। इसमें हिन्दू देवी-देवताओं व परियों के चित्र भी थे।

  9. राजा बीरबल का महल-

    अकबर के दरबारी विदुषक और मित्र बीरबल का महल सीकरी के तीसरे सहन में स्थित है। यह अत्यधिक अलंकृत भवनों में से है। चार कक्षों की यह दो मंजिला इमारत है। पहली मंजिल में दो बरसातियाँ है और ऊपरी मंजिल के ऊपर चपटे गुम्बद हैं। इस महल में दोहरे गुम्बदों का प्रयोग किया गया है। डॉ० श्रीवास्तव का मत है कि “इस इमारत की मुख्य विशेषता इसकी खुदाई के काम की सुन्दरता और इसके अत्यधिक सजे हुए ब्रेकेट हैं।” इसके आन्तरिक एवं बाह्य भाग में शिल्पकला के सजीव उदाहरण देखने को मिलते हैं।

  10. जामा मस्जिद

    जामा मस्जिद अबुल फजल के निवास स्थान के पीछे बनी हुई है। यह एक आयताकार भवन है। इसके सहन में शेख सलीम चिश्ती और उनके पौत्र इस्लामखाँ के मकबरे हैं। मस्जिद पर तीन गुम्बद हैं। मध्य-भाग का गुम्बद अन्य गुम्बदों की तुलना में बड़ा है। डॉ० आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने इस मस्जिद के सम्बन्ध में लिखा है, “सीकरी की जामा मस्जिद की योजना यद्यपि अरबी अथवा ईरानी नमूने की है परन्तु इसकी बनावट भारतीय है। इसमें ईरानी इमारतों के अंगों को अपनाया तो गया है परन्तु उनकी पूर्ण रूप से नकल नहीं की गयी है।

  11. शेख सलीम चिश्ती का मकबरा-

    सफेद संगमरमर का बना हुआ यह मकबरा अत्यन्त आकर्षक है। सीकरी की अन्य सभी इमारतें लाल पत्थर की है परन्तु इसमें कहीं भी लाल पत्थर का प्रयोग नहीं है। पर्सी ब्राउन का कथन है कि प्रारम्भ में यह मकबरा भी लाल पत्थर का बनाया गया था। बाद में अकबर के उत्तराधिकारियों ने इसे वर्तमान रूप प्रदान किया है। इसकी निर्माण-योजना वर्गाकार है। कब-कक्ष का व्यास पाँच मीटर है और इसके ऊपर एक सुन्दर गुम्बद है। डॉ० श्रीवास्तव ने सलीम चिश्ती के मकबरे की स्थापत्य-कला की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि “इस मकबरे की मुख्य विशेषताएँ इसके सजावटपूर्ण स्तम्भ और इसके चौड़े छज्जों को सहारा देने वाले आलम्बन (Struts) हैं। इसके स्तम्बों की आकृति अदभुत है।

  12. इस्लामखाँ का मकबरा

    शेख सलीम चिश्ती के मकबरे के समीप उनके पौत्र इस्लामखाँ का मकबरा है जो लाल पत्थर का बना हुआ है। अकबर के शासन काल में वह एक मनसबदार था परन्तु जहाँगीर ने उसे पदोन्नत करके बंगाल का गवर्नर बना दिया था। 1613 ई० में उसकी मृत्यु के बाद उसे सीकरी में जामा मस्जिद के सहन में दफना दिया गया था। मकबरा यद्यपि अत्यन्त सुरूचिपूर्ण ढंग से बना हुआ है परन्तु आसपास की इमारतों के कारण कुछ दब सा गया है।

  13. बुलन्द दरवाजा

    यह जामा मस्जिद के दक्षिण की दीवार में बना है। बुलन्द दरवाजा भारत का सबसे ऊंचा प्रवेश-द्वार है। जमीन की सतह से 176 फुट ऊंचे चबूतरे पर यह 134 फुट ऊँचा है अर्थात जमीन की सतह से इसकी ऊँचाई 311 फुट है। अपनी अत्यधिक ऊंचाई के कारण यह समस्त इमारतों पर छाया हुआ प्रतीत होता है। अकबर ने अपनी दक्षिण-विजय अथवा बंगाल और गुजरात को विजय करने की स्मृति में इसका निर्माण कराया था। डॉ0 श्रीवास्तव ने लिखा है कि “बुलन्द खड़े होकर दृष्टिपात किया जाये, तब वह उत्तेजक तथा विस्मयकारक शक्ति का रूप मालूम पड़ता है, परन्तु इसका प्रभाव भारी अथवा कृत्रिम नहीं लगता।”

  14. शाही अस्तबल और अबुल फजलगृह

    बीरबल के निवास स्थान से कुछ दूरी पर शाही अस्तबल है। इसके दोनों ओर मेहराबदार बरामदों में जानवरों को बाँधने के स्थान है। यहीं से एक छोटा द्वार जामा मस्जिद की ओर भी खुलता है। मस्जिद के पीछे साधारण प्रकार के दो आवास-गृह हैं, जो अबुल फजल और फैजी के निवास स्थान थे। सजावटहीन इस साधारण इमारत में पुस्तकें रखने के लिए बड़े-बड़े आले बने हुए हैं।

  15. हाथीपोल, सराय और हिरन मीनार

    हाथीपोल का प्रवेश-द्वार काफी ऊंचा है। इसके दोनों ओर अठपहले बुर्ज हैं। इसके दोनों ओर ऊँची कुर्सी पर हाथियों की दो मूर्तियाँ थीं जिनकी सूंड़ आपस से गुथी हुई थी। औरंगजेब ने अपनी धार्मिक संकीर्णता के कारण इसे नष्ट करा दिया।

संगीन बुर्ज के समीप सराय है जिसमें विदेशों से आने वाले यात्री विश्राम करते थे। सराय और हरम के मध्य जाली की एक पर्देदार गैलरी है, ताकि हरम की महिलाएँ यहाँ आकर विदेशी व्यापारियों द्वारा प्रदर्शित सामग्री को देख सके।

सराय से कुछ दूर झील के किनारे हिरन मीनार है। यह 90 फुट ऊंची है। इसके शीर्ष-भाग में एक गुम्बदयुक्त छतरी बनी है जो चारों ओर से खुली है। कुछ लोगों की मान्यता है कि इसे अकबर ने अपने एक प्रिय हाथी की कब्र के रूप में बनवाया था, जबकि दूसरा मत यह है कि यहाँ पर बैठकर अकबर हिरनों का शिकार किया करता था।

  1. कोषागार चिकित्सालय

    दीवाने-खास के दूसरी ओर राजकीय कोषागार है। अत्यन्त साधारण इस इमारत में बड़े-बड़े आले हैं जो सम्भवतया धन को संग्रहित करने के काम आते होंगे। दीवाने-खास के दाहिनी ओर एक चिकित्सालय के अवशेष हैं। इसका विस्तृत , क्षेत्रफल इसकी विविधता का द्योतक है।

  2. ज्योतिषी की बैठक

    ज्योतिषी की बैठक कोषागार के पश्चिम में है। यह चारों ओर से खुली हुई है तथा इस पर घनी खुदाई का कार्य है। पर्सी ब्राउन का मत है कि इसके निर्माण कार्य में अकबर ने अपनी सनक से काम लिया है, क्योंकि अत्यधिक सजावट ही इसका मुख्य दोष प्रतीत होता है।

अकबर के काल की अन्य इमारतें-

  1. लाहौर के किले के निर्माण का श्रेय अकबर को है। इसका निर्माण-कार्य आगरा के किले के साथ-साथ हुआ। पर्सी ब्राउन का कथन है कि “इस किले की निर्माण-योजना आगरा के किले की तुलना में अधिक उत्तम है, क्योंकि यह आयताकार है और इसकी आन्तरिक व्यवस्था अच्छी तरह से सुनियोजित है।” इसमें सजावट अधिक है। इसमें ब्रेकेटों पर खुदी हुई हाथियों और मोरों की आकृतियाँ इस बात की प्रतीक हैं कि यहाँ हिन्दू कारीगरों ने अपनी शैली का उन्मुक्त रूप से प्रयोग किया है।
  2. अकबर ने इलाहाबाद में 1583 ई० में एक किले का निर्माण कराया था जो अब अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। इसके भग्नावशेषो को देखकर कला-विशेषज्ञों ने इस इमारत को अत्यन्त महत्वपूर्ण बताया है।
  3. 1581 ई0 में अटक के किले को बनवाया गया था। सीमावर्ती प्रदेशों की सुरक्षा की दृष्टि से यह किला महत्वपूर्ण है परन्तु अब इसकी स्थिति खण्डहरों से अच्छी नहीं है।

उपर्युक्त इमारतों के अतिरिक्त फतेहपुरसीकरी और अन्यत्र स्थित निम्नलिखित अन्य इमारतें भी अकबर के स्थापत्य कला के चाव के प्रतीक हैं-(i) इबादतखाना, (ii) दफ्तरखना, (iii) हकीम का महल, (iv) नौबतखाना (v) बारहदरी, (vi) हमाम, (vii) लंगरखाना, (viii) कबूतरखाना, (ix) मस्जिद शाहकुली, (x) राजा टोडरमल का महल, (xi) अजमेर के ख्वाजा की दरगाह की मस्जिद, (xii) मेड़ता की मस्जिद, (xiii) आमेर की मस्जिद।

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