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सल्तनत काल की सामाजिक स्थिति

सल्तनत कालीन सामाजिक स्थिति

सल्तनत कालीन सामाजिक स्थिति

जाति-व्यवस्था—

भारत में जाति-व्यवस्था का रूप अत्यन्त प्राचीन है। मध्य-युग भी इससे प्रभावित रहा। मध्यकालीन मुस्लिम समाज के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुसलमानों में भी आपस में पर्याप्त मतभेद था। तुर्क भारतीय मुसलमानों को आदर और प्रचलन हो गया था।

पाक-शास्त्र की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। विभिन्न त्यौहारों, उत्सवों और पर्यों के अवसर पर विभिन्न व्यंजन तैयार किये जाते थे। दूध, घी और मक्खन का विशेष महत्व था। उच्च वर्ग के लोग ऐसे अवसरों पर मादक-द्रव्यों का भी सेवन करते थे। महिलाओं के लिए मद्यपान वर्जित था। हिन्दू निम्न वर्ग के लोग पीतल के बर्तनों का प्रयोग करते थे, जबकि धनिक वर्ग सोने व चांदी के बर्तन प्रयोग में लाते थे। फलों का सेवन करने की भी प्रथा थी। साधारण स्थिति के लोग भी नारंगी, खीरा, ककड़ी, अमरूद, आम व अंगूर का सेवन करते थे।

मुस्लिम समाज में माँस का प्रयोग बहुतायत में होता था। मेण्डेलसो ने लिखा है कि “वे (मुसलमान) सामान्य रूप से गौ-माँस, बकरी, मछली, भेड़ और अन्य शिकारयुक्त चिड़ियों का माँस खाते थे’ तथा उन्हें स्वादिष्ट बनाने के लिए विभिन्न मसालों का प्रयोग करते थे। सूफी मतावलम्बी कुछ परिवार शाकाहारी होते थे। यद्यपि शरियत में शराब का पीना वर्जित था, परन्तु मुस्लिम समाज में इसका प्रचलन था। लगभग सभी सल्तनतकालीन सुल्तान सुरा का सेवन करते थे। अलाउद्दीन खिलजी के समय में शराब पर प्रतिबन्ध लगाने के प्रयास किये गये परन्तु लोग छिपकर इसका सेवन करते रहे। इब्नबतूता ने कहा है कि दिल्ली के आसपास गाँवों में जलाने की लकड़ियों में छुपाकर शराब लायी जाती थी। मुसलमानों में अफीम और पोस्त का भी प्रचलन था।

गरीब मुसलमान मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करते थे परन्तु धनिक वर्ग सोने और चांदी के बर्तन इस्तेमाल करते थे। तुलनात्मक दृष्टि से मुसलमान स्वच्छता की दृष्टि से हिन्दुओं से पिछड़े हुए थे और रसोई के नियमों का कठोरता से पालन नहीं करते थे। सभी लोग एक ही ‘दस्तरखान’ पर बैठ कर भोजन करते थे। हिन्दू और मुसलमान दोनों अतिथि-सत्कार में विश्वास करते थे।

वेशभूषा व आभूषण—

वेशभूषा के क्षेत्र में भिन्नता के होते हुए भी दोनों सम्प्रदायों ने एक-दूसरे से पर्याप्त प्रेरणा ग्रहण की। उत्तर भारत में हिन्दू पुरुष धोती और पगड़ी तथा महिलाएं साड़ी पहनती थीं। दक्षिण भारत में स्त्री व पुरुष दोनों लुंगी का प्रयोग करते थे। वस्त्र ऊनी, सूती व रेशमी होते थे।

मुसलमान सामान्य वर्ग के लोगों का पहनावा कमीज, पायजामा और अचकन था। लुंगी की भी परम्परा थी। उच्च वर्ग के लोग बेलबूटों से अलंकृत सुन्दर रेशमी वस्त्र धारण करते थे। स्त्रियाँ शरीर से चिपका हुआ पायजामा व कुर्ता (जम्फर) पहनती थीं। धार्मिक वर्ग से सम्बन्धित लोग एक लम्बा कुर्ता व साफा पहनते थे। हिन्दू व मुसलमान दोनों ही आभूषण धारण करने का चाव रखते थे। सिर से लेकर पांव तक विभिन्न प्रकार के आभूषणों को पहनने की परम्परा थी। स्त्रियाँ और पुरुष दोनों ही आभूषण धारण करते थे। धनी वर्ग के आभूषण हीरे-जवाहरात और स्वर्ण के बनाये जाते थे, जबकि निम्न वर्ग में चांदी के आभूषणों का रिवाज था। आभूषणों के लिए नाक-कान में छिद्र करवाने की परम्परा प्रचलित थी।

आमोद-प्रमोद–

हिन्दू समाज में बसन्त, रक्षाबन्धन, होली, दीपावली, दशहरा आदि त्यौहार धूमधाम से मनाये जाते थे। कट्टर मुस्लिम शासकों ने कभी-कभी इन त्यौहारों को प्रतिबन्धित करने का भी प्रयास किया परन्तु उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई। मनोरंजन के लिए खेलकूद, द्वन्द्व-युद्ध, शिकार, पशु-पक्षियों के युद्ध और चौपण आदि भी प्रमुख थे। मुसलमान ईद, शब्बेरात और नौरोजे के त्यौहार को धूमधाम से मनाते थे। सुरापान भी मनोरंजन का ही एक साधन था। संगीत, नृत्य एवं नाटकों के द्वारा मन बहलाने की भी प्रथा थी। मुस्लिम धार्मिक संस्कारों में अकीका (चूडाकर्म), बिसमिल्लाह (मकतब), सुन्नत, विवाह आदि महत्वपूर्ण थे। हिन्दू और मुसलमान दोनों अन्धविश्वासी थे। जादू-टोनों, भूत-प्रेत और इन्द्रजाल में उनका विश्वास था।

हिन्दू समाज जाति-व्यवस्था पर आधारित था। तुर्कों के आगमन के साथ ही इस व्यवस्था में और अधिक जटिलता आ गयी थी। तुर्कों की क्रूरता एवं काम-पिपासा से सुरक्षा के कारण हिन्दू समाज में बाल विवाह एवं पर्दा जैसी कुप्रथाओं का जन्म हुआ। स्त्री-शिक्षा के अत्यन्त सीमित होने का एक प्रमुख कारण तुर्की शासन की स्थापना था।

सल्तनतकालीन राज्य एक मजहबी राज्य था जहाँ इस्लाम के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बियों को कर देना पड़ता था। हिन्दुओं से ‘जजिया’ नामक एक धार्मिक कर वसूल किया जाता था जिसे वसूल करके मुसलमान अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करते थे। यदि कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेता था तब उससे यह कर वसूल नहीं किया जाता था और उसे विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं।

सल्तनत-काल में हिन्दुओं को राज्य में कोई महत्वपूर्ण गौरवशाली पद नहीं दिया जाता था। सेना में सैनिक अथवा कोई निम्न पदाधिकारी का पद हिन्दुओं को दिया जा सकता था। महमूद गजनवी के समय से ही हिन्दुओं की सेना में भरती अन्य जाति के सैनिकों के साथ किराये के टुओं के रूप में की जाती थी। सल्तनत-काल में हिन्दुओं की स्थिति किसी भी प्रकार से सन्तोषजनक नहीं थी।

सल्तनत-काल में हिन्दुओं को केवल उच्च राजकीय पदों से ही वंचित नहीं किया गया अपितु उनके साथ राजनैतिक एवं सामाजिक कारणों से घृणापूर्ण व्यवहार भी किया गया। तुर्की शासक व सामन्त हिन्दू पत्नियाँ प्राप्त करने के आकांक्षी थे। वे हिन्दुओं को बाध्य करते थे कि वह अपनी कन्याओं का विवाह उनसे करें। विवाह से पूर्व इन लड़कियों को इस्लाम धर्म में दीक्षित कर लिया जाता था जिसके कारण हिन्दुओं को दोहरे अपमान का सामना करना पड़ता था। इतिहासकार बरनी ने लिखा है कि “बलबन हिन्दुओं का कट्टर शत्रु था और वह ब्राह्मणों को समूल नष्ट कर देना चाहता था।”

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