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संगठन- औपचारिक तथा अनौपचारिक

संगठन (Organisation)

संगठन से अभिप्राय

(Meaning of Organization)

संगठन प्रशासन का मूल भाग है। तुच्छ एवं विकारमय संगठन प्रशासन की असफलता है। किसी निश्चित लक्ष्य को मानवीय एवं भौतिक साधनों के एकीकृत स्वरूप द्वारा प्राप्त करने की क्रिया प्रशासन कहलाती है। उन वस्तुओं को करवाना, जिनको हम करवाना चाहते हैं, ही प्रशासन है। उद्देश्य की सफल प्राप्ति के लिए जिन साधनों को हम निश्चित सिद्धान्तों के अनुसार जुटाना चाहते हैं, वही संगठन है। किसी भी कार्य को करते समय, प्रत्येक कर्मचारी को उसकी स्थिति पर लगा देना ही संगठन है, जिससे कि उसमें कोई भ्रान्ति अथवा उलझन उत्पन्न न हो सके। संगठन शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में किया जाता है- प्रशासकीय संगठन की रूपरेखा, प्रशासकीय संगठन की सुनिश्चित पूर्वयोजनानुसार कर्मचारियों की नियुक्ति तथा प्रत्यक्ष एवं संगठन के व्यावहारिक रूप में। जब हम पूर्व नियोजित सिद्धान्त के अनुसार प्रारम्भिक सहयोग द्वारा कार्य करते हैं तो वह संगठन कहलाता है। हम प्रायः कह देते हैं कि प्रशासन आजकल ढीला है क्योंकि समाज में चोरबाजारी तथा घूसखोरी का बोलबाला है। शिथिल एवं अनियोजित संगठन प्रशासन के लिए क्षय रोग से कम नहीं है जो उचित उपचार न होने पर उसके जीवन का अन्त करके ही दम लेगा। बिना प्रभावशाली संगठन के लोक प्रशासन असम्भव है।

उर्विक (L. Unwick) संगठन की व्याख्या उसकी रूपरेखा तैयार करने के रूप में करता है। वह कार (मोटर) की उपमा प्रस्तुत कर उसके आकार की रूपरेखा तैयार करने के काम तथा प्रस्तुत कार के उत्पादन में अन्तर बताता है। कार के विभिन्न भागों के बिना किसी नियोजन के एकत्रित करने को संगठन नहीं कहा जाता। किसी वस्तु को उत्पन्न करने के लिए हम जो योजना बनाते हैं, वह उर्विक के अनुसार संगठन है। उनके अनुसार संगठन का सम्बन्ध उन क्रियाओं से है जो किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं और जिन्हें हम वर्गों में संगठन करके व्यक्तियों को समर्पित कर सकते हैं। किसी भी वस्तु को व्यवस्थित रूप प्रदान करने को संगठन कहा जाता है।

संगठन की परिभाषा

मूने (Mooney ) के अनुसार किसी भी सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मानवीय संघ के प्रत्येक रूप को संगठन कहते हैं।

प्रो० हरट के शब्दों में “संगठन व्यक्तियों के मध्य कार्यगत सम्बन्धों की व्यवस्था है।”  संगठन की परिभाषा उनके द्वारा इस प्रकार की गई है कि किसी निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्यों एवं उत्तरदायित्वों के विभाजन तथा कर्मचारियों की व्यवस्था को संगठन कहते हैं।

प्रो० फिफरन के अनुसार व्यक्ति से व्यक्ति तथा समूह से समूह के सम्बन्धों को जिनमें श्रम का श्रमिक विभाजन निहित हो संगठन कहते हैं।

लूथर गुलिक (Louther Gullick) के अनुसार शक्ति की औपचारिक बनावट को संगठन कहत हैं, जिसके द्वारा निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए समस्त कार्य को सम्भागों संगठित एवं समन्वित किया जाता है।

प्रो० गौस के अनुसार संगठन कर्मचारियों की वह व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक विभिन्न प्रकार के कार्य एवं उत्तरदायित्व समर्पित करते हुए निश्चित योजना को सुचारु रूप से पूर्ण किया जाता है।

कुछ लेखक संगठन की तुलना मशीन के साथ स्वीकार करने को तैयार नहीं है। मिलवर्ड (Milvard) के अनुसार संगठन में मानव तत्व के निकालने के अर्थ हैं, उसके हृदय को निकाल देना अतः किसी निश्चित लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए उसकी प्राप्ति लिए कार्यों को मनुष्यों में विभाजित करने की प्रक्रिया को संगठन कहते हैं।

मिलवर्ड (Milward) के अनुसार संगठन परस्पर में सम्बन्धित पदों के ढाँचे का एक तरीका है जो हस्तान्तरित सत्ता की श्रेणी से सम्बन्धित रहते हैं।

औपचारिक संगठन

(Formal Organization)

औपचारिक संगठन वह संगठन है जिसमें पहले ही सिद्धान्तों एवं उपलब्ध मानव तत्व के आधार पर योजना तैयार कर ली जाती है, जिसके विषय में नियम बना लिए जाते हैं, जिनमें परिवर्तन सुगमता से नहीं होते। इन नियमों का अवलोकन दूर से किया जा सकता है। इसके विपरीत अनौपचारिक दृष्टिकोण प्रशासन का वह दृष्टिकोण है जो संगठन से सम्बन्धित हैं, पदाधिकारियों के वास्तविक आचरण पर अवलम्बित है, जिसमें बहुत सी बातें काम करती हैं और कभी-कभी बिना पहले ही निश्चित किये हुए, स्थिति को संभालने तथा संकट को टालने अथवा किसी प्रभावशाली निम्न पदाधिकारी को सहन करने के लिए संगठन में परिवर्तन किये जा सकते हैं। इस प्रकार के संगठन में उच्च पदाधिकारी तथा निम्न पदाधिकारी के सम्बन्ध कभी-कभी व्यक्तित्व एवं प्रभाव पर भी अवलम्बित रहते हैं। एक प्रभावशाली एवं दूरदर्शी उच्च पदाधिकारी अपने व्यापक गुणों के कारण अपने अधीन कर्मचारियों के व्यक्तित्व पर छा सकता है। कभी-कभी वर्तमान संगठन में किसी ऐसे व्यक्ति की सेवाएं प्राप्त करने के लिए, जिसकी सेवाएं समाज के लिए आवश्यक समझी जाती हैं, परिवर्तन बिना किसी पूर्वार्द्ध योजना के कर लिए जाते हैं। नये पद तथा विभाग उत्पन्न कर लिए जाते हैं। राजस्थान में प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री श्री सक्सेना की सेवाएं प्राप्त करने के लिए उनके अवकाश ग्रहण करने के उपरान्त भी सरकार ने वर्तमान शिक्षा संगठन में परिवर्तन करके कॉलेज शिक्षा संचालक का पद तथा उससे सम्बन्धित उसका विभाग खोला।

औपचारिक संगठन के लक्षण

(Characteristics of Formal Organization)

औपचारिक संगठन में अधिकार एवं उत्तरदायित्व को प्रत्येक स्तर पर परिभाषित किया जाता है। अधिकारों का प्रत्यायोजन संगठन में नीचे की ओर होता है। “जब दो से अधिक व्यक्तियों की क्रियाएँ एक दिए हुए उद्देश्य की तरफ जान बूझकर समन्वित की जाती हैं तब उसे औपचारिक संगठन कहा जाता है।” (बर्नार्ड) उरविक (Unvick) के

अनुसार, “संगठन का आशय उस ढाँचे से है जिसकी रचना विशेषज्ञों द्वारा स्पष्ट सिद्धान्तों, नियमों तथा उपनियमों के आधार पर की जाती है।“ डॉ. हाइट ने इसे संगठन को औपचारिक घोषित प्रकृति कहा है। इसके अन्तर्गत कर्मचारियों के पारस्परिक सम्बन्धों को लिखित आचार संहिता के रूप में किया जाता है। इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम संगठन का एक रेखा चित्र बना लिया जाता है। ऐसा संगठन अवैक्तिक होता है और उसमें दक्षता पर अधिक बल दिया जाता है। औपचारिक संगठन के लक्षण निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें संगठन की रचना एक निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए की जाती है।
  2. इस प्रकार का संगठन पूर्णतः अवैक्तिक होता है।
  3. अधिकार एवं उत्तरदायित्वों की स्पष्ट परिभाषा की जाती है।
  4. इसमें आदेश की एकता का पालन किया जाता है।
  5. इसमें श्रम विभाजन उपलब्ध कराया जा सकता है।
  6. औपचारिक संगठन में शक्तियों का प्रत्यायोजन होता है।
  7. श्रम विभाजन सम्भव बन पड़ता है।

औपचारिक संगठन के लाभ

(Advantages of Formal Organization)

  1. औपचारिक संगठन में व्यवस्था पूर्णतः स्पष्ट होने के कारण कार्यों का द्विगुणन नहीं होता।
  2. इसी स्पष्टता के कारण कर्मचारियों के मध्य मतभेद उत्पन्न होने की संभावनाएं कम हो जाती है।
  3. उत्तरदायित्वों की स्पष्टता से टाल मटोल करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है।
  4. संगठन के उद्देश्य सरलता से प्राप्त किए जा सकते हैं।
  5. व्यक्ति विशेष पर आवश्यकता से अधिक ध्यान केन्द्रित करने की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है।
  6. अवसरवादिता एवं पक्षपात को प्रोत्साहन नहीं मिलता।
  7. औपचारिक संगठन में प्रशासकीय दक्षता के माप सरलता से स्थापित किये जा सकते हैं।
  8. कर्मचारी सेवा में अपने को अधिक सुरक्षित अनुभव करता है।

औपचारिक संगठन के दोष

(Disadvantages of Formal Organization)

  1. मानवीय तत्व की उपेक्षा, किसी भी संगठन का सार केवल उसकी यान्त्रिक प्रविधि नहीं है। संगठन को समझने के लिए उसके कार्यरत व्यक्तियों की मनोवृत्ति एवं व्यवहार को समझना अत्यधिक आवश्यक है। इसके अभाव में संगठन केवल एक रेखा-चित्र मात्र रह जायेगा। रोथलिस बर्जर का यह कहना सही है कि “मानवीय समस्या को मानवीय समाधान की आवश्यकता है।”
  2. इस प्रकार के संगठन में पहल करने की क्षमता नष्ट हो जाती है।
  3. अधिकारी जनहित से विमुख हो शक्ति का प्रयोग अपने स्वार्थ के लिए ही करते हैं। कर्मचारी अन्य मानवीय संगठनों द्वारा की गई सेवाओं पर ध्यान नहीं देते ।
  4. कर्मचारियों का व्यवहार यन्त्रवत होकर निरीह बन जाता है।
  5. औपचारिक संगठन अनौपचारिक संगठन में बाधा उत्पन्न करता है।
  6. औपचारिक संगठन में समन्वय (Co-ordination) की समस्या सदैव ही बनी रहती है।

अनौपचारिक संगठन

(Informal Organization)

उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुधा हमें औपचारिक संगठन की सीमाओं को लाँघना पड़ता है। अनौपचारिक संगठन का प्रत्यक्ष व्यक्ति सामाजिक सम्बन्धों से है। प्रो0 डेविस ने इसे मानवीय सम्बन्धों का जाल कहा है। इसे किसी एक समूह से सम्बन्धित प्रतिक्रिया भी कहा जा सकता है। इसे हम एक सामान्य अनुभव भी कह सकते हैं। अनौपचारिक संगठन की अवधारणा इस सत्य पर आधारित है कि व्यक्ति को एक ढाँचे में बाँधकर नहीं रखा जा सकता। इस अवधारणा के प्रमुख प्रवर्तक इल्टन मेयो को कहा जाता है। साइमन (Simon) के अनुसार अनौपचारिक संगठन का सम्बन्ध संगठन में कार्यरत व्यक्तियों का परस्पर आचार एवं व्यवहार से हैं। जब एक संगठन में लोग मिलकर कार्य करते हैं तो उसके अन्तर्गत सामाजिक सम्बन्धों का उदय होना अनिवार्य है। अनौपचारिक संगठन को मानवतावादी अवधारणा भी कहा जाता है।

साईमन (Simon) के शब्दों में, ”अनौपचारिक संगठन का अभिप्राय व्यवहारों के समस्त समूह से है।

 हाइट (LD. White) के अनुसार ”अनौपचारिक संगठन एक साथ काम करने वाले लोगों को पारस्परिक अन्तःक्रियाओं के फलस्वरूप विकसित होते हैं।” ह्वाइट के ही शब्दों में बिखरे हुए टुकड़ों को जोड़कर एक इमारत बनाने की अवैक्तिक प्रक्रिया है।”

अनौपचारिक संगठन के लक्षण

(Characteristics of Informal Organization)

  1. इस प्रकार के संगठन स्वाभाविक रूप से उत्पत्र होते हैं।
  2. इसमें व्यक्तिगत व्यवहार को संगठन का आधार माना जाता है।
  3. औपचारिक संगठन का इसके अन्तर्गत कोई स्थान नहीं होता।
  4. शासकीय संगठन के प्रत्येक स्तर अथवा सोपान पर यह पाया जाता है।
  5. इसमें रीति रिवाजों एवं पारस्परिक सम्बन्धों का पूर्ण योगदान रहता है।
  6. मनुष्य इसमें यन्त्र सदृश कार्य नहीं करता वरन सामूहिक व्यवहार एवं विश्वास से इसकी प्रक्रिया प्रभावित रहती है। इसमें मनुष्य की बहुमुखी प्रकृति की जानकारी अति आवश्यक है।

अतः ओपचारिक संगठन अनौपचारिक संगठन से सदैव ही प्रभावित रहते हैं। अनौपचारिक संगठनों का उद्देश्य मानवीय आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति करने से रहता हैं जोजफ ए0 लिटटर के शब्दों में “अनौपचारिक संगठन एक ऐसी वास्तविकता है। जिसकी उपेक्षा प्रबन्ध केवल अपनी जोखिम पर कर सकता है।

अनौपचारिक संगठन के लाभ

(Advantages of informal Organization)

  1. इसे औपचारिक संगठन की अभिपूर्ति कहा जा सकता है।
  2. इससे संगठन में समन्वय सरलता से उत्पन्न किया जा सकता है।
  3. संगठन में सम्प्रेक्षण की महत्वपूर्ण प्रक्रिया को इससे बल मिलता है।
  4. सर्तकतापूर्ण ढंग से संगठन में कार्य करने को प्रोत्साहन मिलता है।
  5. प्रबन्ध की बहुत कमियों को इससे मुक्ति मिलती है।

अनौपचारिक संगठन की हानियाँ

(Disadvantages)

  1. वास्तविकता से ओझल होकर यह मनोवैज्ञानिक भावनाओं का सहारा लेकर कार्य करता है।
  2. उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रबन्ध के प्रयत्नों को दुर्बल बनाता है।

औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में अन्तर

(Difference between Formal & Informal Organization)

  1. औपचारिक संगठन यान्त्रिक (Mechanistic) होता है, जबकि अनौपचारिक संगठन मानवीय सम्बन्धों पर आधारित होता है।
  2. औपचारिक संगठन में चाहे कितनी पूर्णता क्यों न हो किन्तु उसमें अवश्य ही कहीं न कहीं रिक्तता रह जाती है जिसकी पूर्ति अनौपचारिक संगठन द्वारा होती है।
  3. औपचारिक संगठन एक कानूनी धारणा है। जब कभी भी सम्बन्धों की स्पष्टता के प्रश्न को लेकर आपत्तियां की जाती है तो उन्हें आचार संहिता के आधार पर दूर किया जाता है। इसके विपरीत अनौपचारिक संगठन का स्वरूप वैधानिक नहीं होता, उसमें पारस्परिक सम्बन्धों की घनिष्ठता रहती है।
  4. आवश्यकता एवं परिस्थितियों के अनुसार कार्य करने की पद्धति को अनौपचारिक संगठन की संज्ञा दी जाती है तथा लिखित आदेशों के अनुसार कार्य करने की पद्धति को औपचारिक संगठन कहा जाता है।
  5. डॉ० हाइट (L D. White) ने औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठनों के मध्य अन्तर बताते हुए लिखा है कि औपचारिक संगठन की प्रवृत्ति विवेकशील तथा अवैयक्तिक बनने की ओर रहती है, जबकि अनौपचारिक संगठन की प्रवृत्ति भावुक एवं व्यक्तित्व की ओर।
  6. औपचारिक संगठन सैद्धान्तिक होता है और अनौपचारिक संगठन व्यवहारिक।
  7. औपचारिक संगठन में नियमों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है तथा अनौपचारिक संगठन में यह प्रवाह समतल रूप में होता है।
  8. अनौपचारिक संगठन की अपेक्षा औपचारिक संगठन का आकार छोटा होता है।
  9. अनौपचारिक संगठन स्वतः ही बनते हैं । जबकि इसके विपरीत औपचारिक संगठन उत्पन्न किए जाते हैं।
  10. अनौपचारिक संगठन निश्चित तकनीकी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाये जाते हैं और इसके विपरीत अनौपचारिक संगठन सामाजिक सम्बन्धों की तुष्टि के लिए उत्पन्न कराए जाते हैं।
  11. औपचारिक संगठन का निर्माण अधिकारों के प्रत्यायोजन के लिए उत्पन्न होता है, जबकि अनौपचारिक संगठन सामाजिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
  12. औपचारिक संगठन अनौपचारिक की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है।

अन्त में हम फिफनर तथा प्रस्थस (Pfiffner & Presthus) के इस मत से सहमत हैं कि किसी भी प्रबन्धीय संस्था जिसमें औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन की प्रमुख रेखाएँ मेल खाती हैं, वह स्वस्थ एवं सुखद संस्था है।

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