गुटनिरपेक्षता- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं

डॉ. महेन्द्र कुमार लिखते हैं, “गुटनिरपेक्षता अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की उन अद्भुत घटनाओं में से एक है, जो अन्तर्राष्ट्रीय दृश्य पटल पर दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उभरी तथा जो अब तक अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के स्वरूप को आकार देने में महत्वपूर्ण शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।” निश्चय ही गुटनिरपेक्षता का प्रादुर्भाव तथा विकास हमारे समय की सबसे अधिक लोकप्रिय तथा प्रभावशाली घटना है। आज विश्व समुदाय के लगभग 2/3 राज्य इसमें शामिल हैं तथा यह युद्धोत्तर काल के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का एक अपूर्व तथा प्रभावशाली विकास है। भारत जैसे नये बने राज्यों की विदेश नीतियों के सिद्धान्त के रूप में उभरते हुए, गुटनिरपेक्षता हमारे समय का सबसे अधिक लोकप्रिय तथा प्रभावशाली आन्दोलन बन गया है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में बहुत से विद्वान भी इसे भावी विश्व-व्यवस्था की सर्वोत्तम धारणा मानते हैं। गुटनिरपेक्षता अपनी विभिन्न विशेषताओं, पंचशील तथा लाभप्रद-द्विपक्षीवाद तथा बहुपक्षीयवाद सहित भविष्य में विश्व क्रम का एक आदर्श प्रस्तुत करती है।
गुटनिरपेक्षता क्या नहीं है?
(What Non-alignment is not)
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के शब्दकोश में सबसे लोकप्रिय शब्द होने के बावजूद इस शब्द की अलग-अलग व्याख्याएं, विशेषतया पश्चिमी विद्वानों द्वारा निरन्तर हो रही हैं। आरम्भ में इसकी व्याख्या ‘तटस्थता’ या ‘तटस्थतावाद’ या ‘तटस्थीकरण’ आदि शब्दों की सहायता से की जाती रही। जार्ज श्वारजनबरगर छः शब्दों का उल्लेख करते हैं : ‘अलगाववाद’, ‘गैर-वचन-बद्धता’, ‘तटस्थता’ ‘तटस्थीकरण, ‘एकपक्षतावाद तथा ‘निर्लिप्तता’ जिनका अर्थ कुछ सीमा तक गुटनिरपेक्षता के अर्थ जैसा ही है, लेकिन इसमें से कोई भी शब्द गुटनिरपेक्ष की परिभाषा देने के लिये उचित रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता। अलगाववाद का अर्थ है ‘अलग रहने की नीति’, ‘परन्तु गुटनिरपेक्ष का अर्थ है, केवल सैनिक सन्धियों तथा शीतयुद्ध से दूर रहना, न कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों से। इसी तरह अवचनबद्धता का अर्थ है, बहुत सारे सम्बन्धों में दूसरी शक्तियों से अलग रहने की राजनीति तटस्थता का अर्थ है, दो युद्ध में संलग्न राज्यों के बीच तटस्थ रहने का निर्णय; तटस्थीकरण तटस्थ रहने वाले राज्यों का राजनीतिक तथा वैधानिक स्तर जैसे स्विट्ज़रलैण्ड का स्तर होता है; एकपक्षीयवाद गिने-चुने एकपक्षीय जोखिम भरी निर्णय लेने वाली नीति को कहते हैं; तथा निर्लिप्तता का अर्थ है विभिन्न विचारधाराओं तथा शक्तियों के बीच संघर्ष से दूर रहना। ये सारे शब्द गुटनिरपेक्षता के अर्थ के निकट भी नहीं हैं। गुटनिरपेक्षता न तो एक वैधानिक स्तर है तथा न ही एक कूटनीतिक साधन । यह न तो अलगाव का सिद्धान्त है और न ही निष्क्रियता का।
गुटनिरपेक्षता क्या है?
सकारात्मक रूप से गुटनिरपेक्षता का अर्थ है विदेश-नीति का वह मूल सिद्धान्त जिसके अन्तर्गत कोई भी देश अपने आप को शीत युद्ध तथा सैन्य सन्धियों से दूर रखते हुए, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में अपने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हितों तथा शान्ति तथा सुरक्षा के अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य की मांग, दोनों के आधार पर सक्रिय भाग लेता है। यह विदेश नीति का वह सिद्धान्त है जिसका अर्थ है सामान्य रूप से सन्धियों से तथा विशेषतया सैनिक सन्धियों से दूर रहना। यह शब्द प्रायः उन राष्ट्रों की विदेश नीतियों का वर्णन करने के लिये किया जाता रहा है, जो न दो साम्यवादी गुट और न ही गैर-साम्यवादी गुट के साथ सैनिक अथवा सुरक्षात्मक सन्धि तथा गठजोड़ करते हैं।
गुटनिरपेक्षता की परिभाषा
गुट-निरपेक्ष शब्द का पहली बार प्रयोग करने का श्रेय जार्ज लिस्का (George Liska) को जाता है, जिसने इसका प्रयोग उस राज्य की नीतियों का वर्णन करने के लिए किया। जिसने युद्धोत्तर काल की विश्व राजनीति में दोनों गुटों में से किसी एक में भी न शामिल होने का निर्णय किया। उसके बाद ही फिर ‘गुट-निरपेक्ष’ शब्द का प्रयोग दोनों महाशक्तियों तथा उनके गुटों के बीच की सैनिक सन्धियों, शीत-युद्ध तथा शक्ति-राजनीति से दूर रहने की नीति के लिए किया जाने लगा। साधारण शब्दों में, ‘गुटनिरपेक्षता का अर्थ शीत-युद्ध तथा सैन्य सन्धियों से दूर रहने के बावजूद एक राष्ट्र के राष्ट्रीय हितों तथा विश्व-विचार पर आधारित स्वतन्त्र निर्णय द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में सक्रिय रूप से भाग लेना । उस युग में जब सारा विश्व वास्तव में दो गुटों में बंटा हुआ था, जिसके मध्य शीत युद्ध छिड़ा हुआ था, भारत जैसे बहुत से देशों के नीति-निर्माताओं ने शीत युद्ध से दूर रहने तथा अपनी सुरक्षा तथा शेष राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने पर अधिक से अधिक ध्यान देना श्रेष्ठ समझा।
- अप्पोदोराय के शब्दों में, गुटनिरपेक्षता की सबसे अच्छी परिभाषा इस तरह की जा सकती है : “किसी भी देश के साथ सैन्य सन्धि और विशेषतया किसी साम्यवादी या पश्चिमी गुट के किसी राष्ट्र के साथ सैनिक सन्धि में शामिल न होना । गुटनिरपेक्षता प्रत्येक सैनिक सन्धि को शीत युद्ध तथा तनावों का उपकरण मानती है। इसलिए यह इसे विश्व-शान्ति तथा सुरक्षा के लिए भयानक मानते है। ये सन्धियां ऐसे साधन हैं जिनके द्वारा महाशक्तियां सदस्य राष्ट्रों की स्वतन्त्रता तता सुरक्षा में हस्तक्षेप करती है। इस तरह ये विश्व शान्ति तथा राष्ट्रो की स्वतन्त्रता पर अंकुश का साधन बन जाती हैं। परिणामस्वरूप गुटनिरपेक्षता का अर्थ है- ‘गठजोड़ विरोधी’ तथा ‘शीत-युद्ध विरोधी’ सिद्धान्त ।
- भारतीय गुटनिरपेक्षता के निर्माता पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था, ”गुटनिरपेक्षता का अर्थ है सैनिक गुटों से अपने आप को अलग रखने का किसी देश द्वारा प्रयत्न करना । इसका अर्थ है जहाँ तक हो सके तथ्यों को सैन्य दृष्टि से न देखना चाहे कभी-कभी ऐसा करना भी पड़ता है, परन्तु हमारा स्वतन्त्र दृष्टिकोण होना चाहिये तथा सारे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होने चाहिए।”
- एम.एस राजन गुटनिरपेक्षता की परिभाषा देते हुए लिखते हैं, “विशेषतया तथा नकारात्मक रूप में गुटनिरपेक्षता का अर्थ है सैनिक या राजनीतिक गठबन्धों की अस्वीकृति। सकारात्मक रूप से इसका अर्थ है अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर, जैसे भी तथा जब भी यह सामने आए, प्रत्येक मामले के लाभों के अनुरूप ही तदर्थ निर्णय लेना।”
अन्त में हम कह सकते हैं कि विदेश नीति के एक मूलभूत सिद्धान्त के रूप में गुटनिरपेक्षता का अर्थ है : शीत युद्ध का विरोध, सैन्य तथा राजनीतिक गठजोड़ और शक्ति-गुटों से दूर रहना तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करने की नीति, अर्थात् राष्ट्रीय हित तथा विश्व-समस्याओं पर स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय लेना। इसका अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में न तो पूर्ण अलगाववाद में है और न ही पूर्व-प्रतिज्ञाओं पर आधारित लिप्तता है। यह एक सिद्धान्त है, जो अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को महत्व देता है तथा इसका समर्थन करता है और इसके लिए शीत युद्ध तथा सन्धियों में निर्लिप्तता की वकालत करता है।
गुटनिरपेक्ष विदेश नीति की विशेषताएं
(Characteristics of Non-aligned Foreign Policy)
क्योंकि गुटनिरपेक्षता अब पूर्णतया विकसित तथा विस्तृत अवधारणा बन चुकी है इसलिए इसकी सभी विशेषताओं को समाहित करने वाली कोई एक परिभाषा बनाना कठिन हो गया है। इसे समझने का ढंग इसकी विशेषताओं का विश्लेषण है।
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शीत युद्ध का विरोध–
गुटनिरपेक्षता का प्रादुर्भाव उस समय हुआ, जब अमरीका तथा (भू.पू.) सोवियत संघ के बीच युद्धकालीन सहयोग को शीत-युद्ध के पक्ष में भुलाया जा चुका था। शीत युद्ध में प्रत्येक की यह कोशिश थी कि वह दूसरे को अलग कर दे। युद्ध के बाद की शांति, एक तनावपूर्ण शांति थी तथा (भू.पू.) सोवियत संघ तथा अमरीका के बीच शीत युद्ध ने सारे विश्व को फिर से युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया था। दोनों में से प्रत्येक ने दूसरे राज्यों, विशेषतया नये बने भारत जैसे सम्प्रभु राष्ट्रों को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न किया। भारत जैसे कई और राज्य शीत युद्ध को अन्तर्राष्ट्रीय शांति के लिए पूर्णतया हानिकारक मानते थे तथा इसके साथ राष्ट्रों की शांति तथा सुरक्षा के लिए भी यह हानिकारक माना जाता था। इसलिए शीत युद्ध के विरोध को उन्होंने अपनी विदेश नीतियों के मूलभूत सिद्धान्त के रूप में अपनाया। गुटनिरपेक्षता ने शीत युद्ध का विरोध किया, इसने इसे असामान्य तथा भयानक नीति माना तथा इसके द्वारा पैदा किए गए गलत चलनों तथा तनावों से दूर रहने का प्रयत्न किया।
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सैन्य तथा राजनीतिक गठबन्धनों का विरोध–
नेहरू के शब्दों में, “जब हम कहते हैं कि हमारी नीति गुटनिरपेक्षता की है, तो स्पष्ट रूप से हमारा अभिप्राय सैनिक गुट के साथ गुटनिरपेक्षता से होता है। तनावों को पैदा करते हैं, का विरोध करती रही है। यह शीत युद्ध के उपकरण के रूप में NATO, SEATO तथा वार्सा समझौते जैसी सुरक्षात्मक सन्धियों का विरोध करती है। ये सन्धियां दबाव का कारण बनती हैं तथा अपनी-अपनी सन्धियों के अन्तर्गत आने वाले सदस्यों पर प्रभुत्व जमाने तथा नियन्त्रण स्थापित करने का साधन बनती है।” गुटनिरपेक्षता ने इन सन्धियों को शीत युद्ध का संचालन करने, शक्ति राजनीति तथा दूसरे राष्ट्रों पर नियन्त्रण जारी करने वाली एजेन्सियां माना और ये सन्धियां किसी राष्ट्र के स्वतन्त्र कार्य करने के अधिकार तथा उन्हें पूर्वाग्रहों तथा आत्मगत मूल्यों के अनुसार कार्य करने पर अंकुश लगाने वाली एजेन्सियां मानी गई। गुटनिरपेक्षता ने सभी प्रकार का राजनीतिक सुरक्षा सम्बन्धी समझौतों से दूर रहना माना क्योंकि ये गठबन्ध शीत युद्ध का कारण बनते थे। गुटनिरपेक्षता के अनुसार ये समझौते अथवा गठबन्धन विश्व शान्ति को सबसे बड़ा खतरा होते हैं क्योंकि प्रत्येक ऐसी संधि की एक प्रति-सन्धि संगठित हो जाती है, इसलिए इससे भय, शंका, घृणा तथा अविश्वास पैदा हो जाता है। परिणामस्वरूप शांति तथा सुरक्षा के नाम पर सम्भावित शांति की उल्लंघना के लिए पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है। गुटनिरपेक्षता गठबन्धनों को युद्ध, साम्राज्यवाद तथा नव-उपनिवेशवाद का साधन मानती है तथा इसलिए इनका विरोध करती है।
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शक्ति राजनीति में निर्लिप्तता–
गुटनिरपेक्षता शक्ति राजनीति विरोधी अवधारणा है। यह संघर्ष को सबसे अधिक शक्तिशाली तत्व नहीं मानती। यह स्वीकार करती है कि प्रत्येक राष्ट्र को शक्तिशाली होने का अधिकार है परन्तु केवल अपने राष्ट्रीय हित की पूर्ति के लिए ही। यह शक्ति की अवधारणा का स्थानीय, क्षेत्रीय, महाद्वीपीय तथा विश्वव्यापी प्रभुत्व की स्थापना के लिए संघर्ष का खण्डन करती है। यह शक्ति प्राप्त करने के लिए या स्तर-निर्माण के लिए या दूसरों पर शासन करने के लिए शक्ति प्रयोग का खण्डन करती है। यह उस शक्ति संघर्ष का विरोध करती है, जिसका उद्देश्य दूसरों पर अपनी इच्छाएं या उद्देश्य लादना होता है। यह शक्ति राजनीति को अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा की उल्लंघना की और एक कदम मानती है।
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शांतिपूर्ण सह–अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप–
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप पंचशील के दो मुख्य सिद्धान्त हैं। गुटनिरपेक्षता के भी यही सिद्धान्त हैं। गुटनिरपेक्षता की नीति यह विश्वास करती है कि शीत-युद्ध तथा युद्ध की तैयारी द्वारा शान्ति कायम करने के प्रयत्न अनुचित तथा हानिकारक हैं तथा इन्हें शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप के सिद्धान्त में बदल देना चाहिए । गुटनिरपेक्षता यह स्वीकार करती है कि अलग-अलग राजनीतिक व्यवस्थाओं वाले देश शांतिपूर्वक इकठे रह सकते हैं, सहयोग कर सकते हैं तथा परस्पर लाभों के लिए विश्व शांति तथा समृद्धि के लिए कर सकते हैं। साम्यवादी और गैर-साम्यवादी राष्ट्रों के बीच मित्रता पैदा करना तथा उसका विकास करना सम्भव है। इस प्रकार गुटनिरपेक्षता सभी के साथ बिना किसी भेदभाव के मित्रता तथा प्रयोग का सिद्धान्त है।
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स्वतन्त्र विदेश नीति का समर्थन–
गुटनिरपेक्षता में विदेश नीति के निर्माण तथा इसके लागू करने में स्वतन्त्रता को बनाए रखने का सिद्धान्त शामिल होता है। वास्तव में, गुटनिरपेक्षता का जन्म बड़ी सीमा तक नये राज्यों की महाशक्तियों तथा विकसित देशों के सम्भावित दबाव से अपनी विदेश नीतियों को स्वतन्त्र रखने की इच्छा के कारण हुआ। यह अनुभव किया गया कि किसी भी एक गुट के साथ गुटबन्दी कार्य की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगा देता है। इससे गुट का अनुयायी बनना पड़ता है तथा निर्णय लेना भी पक्षपातपूर्ण होता है। इसके अतिरिक्त गुटबन्दी के कारण विदेश नीतियां राष्ट्रीय हितों पर तथा विश्व स्थिति पर उनके विचारों पर आधारित नहीं होतीं। इसके विपरीत गुटनिरपेक्षता स्वतन्त्रता तथा कार्य की स्वतन्त्रता का साधन हो सकती है। नेहरू के शब्दों में, “अपने-आप में नीति, केवल हमारे श्रेष्ठ निश्चयों के अनुसार कार्य करने की तथा हमारे जो मुख्य उद्देश्य तथा आदर्श हैं उन्हें आगे बढ़ाने की नीति हो सकती है।” गुटनिरपेक्ष का अर्थ इसलिए “स्वतन्त्र विदेश नीति’ है। नेहरू ने गुटनिरपेक्षता के इस पहलू को हमेशा महत्व दिया। “भारत किसी भी देश या देशों के समूह पर आश्रित नहीं हो सकता। उसकी स्वतन्त्रता तथा विकास से एशिया में भारी अन्तर आएगा तथा इससे सारे विश्व को फर्क पड़ेगा।’ विदेशी सम्बन्धों में कार्य की स्वतन्त्रता को बनाए रखने का यह श्रेष्ठ साधन है। इसने गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों को अपनी भूमिका निभाने में राष्ट्रीय हितों के उद्देश्यों को प्राप्त करने में तथा उनके विश्व के बारे में स्वतन्त्र विचारों पर आधारित विदेश नीति निर्माण करने तथा लागू करने में सहायता दी है। कार्य करने की इस स्वतन्त्रता में गुटनिरपेक्ष राष्ट्र इस योग्य हो जाते हैं कि प्रत्येक मामले को उसके गुणों के आधार पर बिना पक्षपात के आंका जा सके। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् तथा सोवियत संघ एवं साम्यवादी गुट के विघटन के बाद गुटनिरपेक्ष राज्य अब इस नीति को स्वतन्त्र विदेश नीति के सिद्धान्त के रूप में एक उचित तथा आवश्यक नीति सिद्धान्त मानते हैं।
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अलगाववाद की नहीं, बल्कि क्रियाशीलता की नीति–
कभी-कभी गुटनिरपेक्षता को अलगाववाद समझ लिया जाता या फिर इसे अक्रियाशीलता की नीति घोषित कर दिया जाता है। गुटनिरपेक्षता, अलगाववाद अर्थात् अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों से दूर रहने की नीति का खंडन करती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में पूर्णतया भाग लेने के अधिकार तथा उत्तरदायित्व को स्वीकार करती है। यह मात्र असहाय दर्शक तथा तमाशबीन बने रहने की नीति का खंडन करती है। इसका अर्थ विश्व राजनीतिक में पूर्णतया बहादुरी से भाग लेना तथा अन्तर्राष्ट्रीय मामलों व समस्याओं पर स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचार प्रकट करना एवं अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति सुरक्षा तथा विकास के लिए पूर्ण सहयोग देना है। गुटनिरपेक्ष राज्य, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की प्रक्रिया में पूर्णतया तथा सक्रियता से जुटे हुए हैं। वे हमेशा अन्तर्राष्ट्रीय मामलों तथा समस्याओं पर अपने विचार प्रकट करते हैं तथा निर्णय लेते रहते हैं। वे अपने अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों को निभाने में कभी पीछे नहीं रहे।
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गुटनिरपेक्षता न तो कूटनीतिक साधन है न ही वैधानिक स्तर–
गुटनिरपेक्षता उस कूटनीतिक तटस्थता से बहुत भिन्न है जो कि कोई भी राष्ट्र संकट के समय प्रयुक्त कर सकता है। कूटनीतिक तटस्थता का अर्थ संकट की वास्तविकताओं का पता होने के बावजूद अक्रियाशीलता की नीति अर्थात् यह पता होता है कि क्या ठीक है तथा क्या गलत फिर भी कोई निर्णय या कार्यवाही नहीं की जाती। इसके विपरीत, जैसे जार्ज लिस्का (George Liska) कहते हैं, “गुटनिरपेक्षता का अर्थ है उचित तथा अनुचित में भेद करना तथा उचित का समर्थन करना।” यह युद्धकालीन तटस्थता भी नहीं है। जिसमें एक राष्ट्र तटस्थता का स्तर अपना लेता है तथा युद्ध में दूर रहता है। गुटनिरपेक्षता का सिद्धान्त शीतयुद्ध तथा सैनिक गठबन्धनों से दूर रहना है। इसका अर्थ है आत्म-निर्णय तथा राष्ट्रीय हितों पर आधारित स्वतन्त्रतापूर्वक कार्यवाही। इसका अर्थ यह नहीं कि दूर खड़े रहो या जांचने से इन्कार करो। इसका अर्थ अनिर्णय या निर्जीवता का स्वागत भी नहीं। यह शीतयुद्ध से लाभ उठाने वाली नकारात्मक और अवसरवादी नीति नहीं है। यह कार्य करने की सकारात्मक तथा गतिशील नीति है। यह स्विटजरलैण्ड की तरह स्थायी तटस्थता वाला वैध स्तर भी नहीं है। यह वह सिद्धान्त या वह नीति है, जो एक सरकार अपनाती है तथा जो उसके विदेशों के साथ सम्बन्धों का नियमन करती है। इसलिये सरकार में हुये प्रत्येक परिवर्तन के बाद गुटनिरपेक्षता में विश्वास को पुनः स्पष्ट करना पड़ता है।
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गुटनिरपेक्षता, गुटनिरपेक्ष देशों की गुटबन्दी नहीं है–
गुटनिरपेक्षता का एक अन्य महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि यह न केवल दोनों शक्ति गुटों के विरुद्ध है बल्कि तीसरे गुट अर्थात् गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के गुट के निर्माण के भी विरुद्ध है। यह नीति एक ‘तीसरी शक्ति या ‘तीसरा गुट बनाने की नीति नहीं है। भारत की गुटनिरपेक्षता के पीछे ‘मुनरो सिद्धान्त’ जैसा या नेहरू सिद्धान्त जैसा कुछ भी नहीं है। गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य शांति का एक क्षेत्र बनाना है- एक ऐसा क्षेत्र जिसमें युद्ध, शीत-युद्ध तथा गठबन्धनों का खण्डन किया जाता है, शान्ति का समर्थन सकारात्मक ढंग से किया जाता है तथा सहयोग में विश्वास किया जाता है। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने हमेशा सफलतापूर्वक, गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के समूह को एक गुट में बदलने का विरोध किया है। गुटनिरपेक्ष एक आन्दोलन है तथा इसके पीछे कोई औपचारिक संस्था का संगठनीय ढांचा या संविधान नहीं है।
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गुटनिरपेक्षता, शान्तिपूर्ण, सह–अस्तित्व तथा आपसी विकास के लिये सहयोग की नीति है–
गुटनिरपेक्षता का अर्थ है शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व द्वारा राष्ट्रों में शांति तथा सहयोग लाना। यह शीत युद्ध तथा गठबन्धनों का इसलिए खंडन करती है; क्योंकि ये शांति के नहीं, युद्ध के साधन हैं। इसका अर्थ है शांति की नीति (Policy of Peace) यह ठहरी हुई धीमी आवाज में बात करने की, न कि चिल्लाने की नीति है। “यह अपनी शक्तिशाली भावनाओं को शक्ति में न कि गुस्से में बदलने” की नीति है। यह इस आधार-वाक्य पर आधारित है कि युद्ध अनिवार्य नहीं है, इसे टाला जा सकता है। शीत युद्ध, सैनिक संधियां तथा शक्ति आधारित राजनीति, विशेषतया दोनों विरोधी गुटों के बीच युद्ध की अनिवार्यता पर आधारित हैं। गुटनिरपेक्षता युद्ध का तथा इसलिए सैनिक संधियों तथा शक्ति आधारित राजनीति का खंडन करती है। यह शान्तिपूर्ण साधनों से शान्ति का समर्थन करती है। यह सभी झगड़ों के शांतिपूर्ण निपटारे में विश्वास करती है तथा राष्ट्रों के बीच विरोधों को समाप्त करने के लिए शान्तिपूर्ण तालमेल को श्रेष्ठ साधन मानती है। एक अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में गुटनिरपेक्षता के विकास का आधार ऐसा ही तर्क है।
इस प्रकार उक्त सभी तत्त्व गुटनिरपेक्षता के मूलभूत तत्व हैं। विदेश नीति के एक सिद्धान्त के रूप में, इसका अर्थ है, “किसी भी शक्ति-गुट के साथ वचनबद्धता से स्वतन्त्रता तथा बाहरी मामलों में कार्यवाही करने की स्वतन्त्रता” यह निष्क्रियता का नकारात्मक सिद्धान्त या तटस्थता या अलगाववाद नहीं है। इसके विपरीत यह क्रियाशीलता का सिद्धान्त है। यह एक गतिशील अवधारणा है तथा विदेश नीति की स्वतन्त्रता का मूलभूत तथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। 1961 में नेहरू, नासिर तथा टीटो ने गुटनिरपेक्षता की पांच अनिवार्य विशेषताएं या परीक्षण बनाए थे, ये हैं :
- गुटनिरपेक्षता तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित स्वतन्त्र विदेश नीति।
- नव-उपनिवेशवाद का विरोध तथा उदारवादी आन्दोलन का समर्थन।
- किसी भी सैनिक संधि/गुट का सदस्य न होना।
- किसी भी बड़ी शक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक संधि की अनुपस्थिति।
- राज्य की भूमि पर किसी भी विदेशी सैनिक अड्डे/अड्डों की अनुपस्थिति।
प्रत्येक राष्ट्र जो गुटनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में स्वीकृत होना चाहता है, उसे इन पाँचों शर्तों को पूरा करना होता है।
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