(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

अंतरराष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप/ प्रकृति (Nature of International Politics)

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप / प्रकृति (Nature of International Politics)

राष्ट्रों के मध्य सम्बन्ध तथा प्रतिक्रियाएं ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र-बिन्दु है। इसमें राष्ट्रों के बीच शक्ति के संघर्ष की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। इसके लिए इसे उन उद्देश्यों को पहचानना है जो राष्ट्रों को क्रिया तथा प्रतिक्रिया करने के लिए तथा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रों के संघर्ष के स्वरूप का विश्लेषण करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रक्रिया का अध्ययन करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप को अच्छी तरह समझने तथा राजनीति तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अन्तरों को निश्चित करने की आवश्यकता है।

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति को के लिए हमें राजनीति की प्रकृति को समझना होगा क्योंकि दोनों की प्रकृति एक जैसी है तथा दोनों परस्पर निर्भर प्रक्रियाएं हैं।

राजनीति का स्वरूप

डेविड ईस्टन ने राजनीति की परिभाषा इस तरह दी है, “राजनीति मूल्यों का सत्तायुक्त तथा बन्धनकारी निर्धारण है, जहाँ ‘मूल्यों’ का अर्थ है इच्छित परिस्थितियाँ एवं वस्तुएँ तथा ‘सत्तायुक्त अथवा आधिकारिक’ शब्द का अर्थ, मूल्यों की प्राप्ति तथा उनको लागू करने के लिए बल का न्याय-संगत प्रयोग है।” एक समाज में लोगों की अनेक आवश्यकताएँ एवं इच्छाएं होती हैं। इस कार्य के लिए वे स्वाभाविक रूप से समूहों का निर्माण करते हैं। जब प्रत्येक समूह अपने सदस्यों के हितों की प्राप्ति का प्रयत्न करता है तब विभिन्न समूहों के मध्य विरोध की अवस्था पैदा हो जाती है। फिर विरोध का समाधान अपने ही पक्ष में करने के लिए प्रत्येक समूह शक्ति प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इसी के द्वारा ही सदस्यों के हितों की रक्षा हो सकती है। इस प्रक्रिया में प्रत्येक समाज में शक्ति के लिए संघर्ष शुरू हो जाता है। इस संघर्ष में प्रत्येक समूह सारे समाज के लिए आधिकारिक मूल्यों को लागू करने का अधिकार प्राप्त करके इच्छित तथा समर्थित मूल्यों को पाने के लिए प्रयत्न करता है। राजनीति वह शब्द है जो प्रत्येक समाज में विद्यमान शक्ति संघर्ष को जतलाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

इस तरह राजनीति एक समूह-प्रक्रिया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समूहों में संगठित लोग अपने हितों सम्बन्धी विरोध का समाधान ढूंढते हैं। यह प्रक्रिया विरोध से उत्पन्न होती है, क्योंकि लोगों को निजी मूल्यों तथा हितों की भिन्नता के साथ सामंजस्य स्थापित करने के साधन ढूंढ़ने तथा एक स्वीकृत एकरूपता उत्पन्न करने की आवश्यकता होती है। पूर्ण एकरूपता तथा सहयोग तो किसी भी समाज में सम्भव नहीं है, क्योंकि मूल्यों तथा हितों का संघर्ष निरन्तर चलने वाला तथा अन्तहीन होता है। अतः समाज में शक्ति के लिए संघर्ष भी एक निरन्तर प्रक्रिया रहती है जिसके द्वारा विभिन्न समूह अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं।

राजनीति की विशेषताएं

ऐसे विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि:

  1. राजनीति, समूहों की अन्तक्रियाओं की प्रक्रिया है। समूह, राजनीति के मुख्य कर्ता हैं।
  2. प्रत्येक समूह अपने-अपने हितों के लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। हित ही राजनीति के उद्देश्य होते हैं।
  3. मूल्यों तथा हितों सम्बन्धी विरोध तथा लोगों की असहमतियाँ, वह जड़ है जिससे राजनीति उत्पन्न होती है। राजनीति, विरोध के कारण उत्पन्न संघर्ष से ही पैदा होती है। अतः विरोध ही राजनीति की परिस्थिति तथा स्रोत है। व्यक्तियों के मध्य हितों की प्राकृतिक भिन्नता ही संघर्ष का मूल कारण है, यही भिन्नता हमें राजनीति की ओर ले जाती है।
  4. लोग समाज में विद्यमान विरोध का समाधान करने के लिए प्रेरित होते हैं क्योंकि वे अपने हितों को सन्तुष्ट करने तथा अपने मूल्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। वे समाज में सहनशील समन्वय लाने का प्रयत्न करते हैं। हित तथा मूल्य दोनों राजनीति के उद्देश्य हैं।
  5. विरोध के समाधान के लिए समूह शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं क्योंकि शक्ति ही हित तथा मूल्यों की प्राप्ति का साधन होती है। शक्ति, दूसरे के व्यवहार को प्रभावित, नियोजित तथा नियंत्रित करने की योग्यता होती है। विरोध की स्थिति में हर समूह के लिए यह प्राकृतिक ही है कि वह दूसरे समूह के लोगों के व्यवहार को प्रभावित करे तथा उसे नियमित करने का प्रयत्न करे। इसके लिए हर समूह शक्ति प्राप्त करना चाहता है तथा इसी से समाज में शक्ति के लिए संघर्ष पैदा होता है। इसीलिए शक्ति ही राजनीति को चलाने वाला तत्व है।
  6. राजनीति में शक्ति साधन तथा साध्य दोनों है क्योंकि समूह न केवल वर्तमान में ही बल्कि भविष्य के लिए भी, मूल्यों एवं हितों की सन्तुष्टि के लिए शक्ति चाहते हैं। वे भविष्य के लिए शक्ति सुरक्षित रखना चाहते हैं। यही बात शक्ति को साध्य के रूप में संचित करने के लिए बाध्य करती है।
  7. क्योंकि विरोध निरन्तर चलता रहता है इसलिए इसका समाधान भी साथ-साथ होता रहता है। इसलिए राजनीति एक निरन्तर बनी रहने वाली व्यवस्था है।
  8. क्योंकि राजनीति, समूहों तथा व्यक्तियों के बीच मूल्यों तथा हितों की प्राकृतिक भिन्नता के कारण उत्पन्न अनिवार्य विरोध से उत्पन्न होती है। इसलिए इसे हम समाज में शक्ति के लिए संघर्ष कह सकते हैं जिसमें विरोध का समाधान ढूँढ़ा जा सकता है। राजनीतिक संघर्ष का निचोड़ ही शक्ति है। यही कारण है कि कई लोग राजनीति को शक्ति प्राप्त करने, इसे बनाये रखने तथा इसे बढ़ाने की प्रक्रिया के रूप में ही परिभाषित करने लगे हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप भी ‘राजनीति’ के जैसा ही है। मागेंन्यो कहते हैं, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, सभी राजनीति के समान ‘शक्ति के लिए संघर्ष’ का ही नाम है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अन्तिम उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, पर उसका तात्कालिक उद्देश्य सदैव शक्ति ही रहता है।”

राजनीति के समान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति भी शक्ति के लिए संघर्ष ही है। इसके 7 मुख्य तत्व:

  1. राष्ट्र ( राज्य ) प्रमुख अभिनेता अथवा कर्ता है

    राष्ट्रों का अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वही स्थान है जो राजनीति में समूहों का। जिस तरह राजनीति समूहों के बीच अन्तःक्रियाओं की प्रक्रिया है इसी तरह अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति राष्ट्र राज्यों की अन्तक्रियाओं की प्रक्रिया है। लेकिन राष्ट्र-राज्यों के साथ-साथ उपराष्ट्रीय, पार-राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय समूह भी इसमें महत्वपूर्ण भाग लेते हैं तथा इनकी भूमिका दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। परन्तु अभी भी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रमुख अभिनेता राष्ट्र-राज्य ही हैं, क्योंकि इन्हीं के पास ही बल प्रयोग तथा हिंसा के साधन होते हैं, अन्य समूहों के पास नहीं।

  2. राष्ट्रीय हित उद्देश्य है

    एक राष्ट्र दूसरे राज्यों के साथ परस्पर क्रियाओं से जो प्राप्त करने का प्रयत्न करता है उसका उद्देश्य राष्ट्र हित ही होता है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति वास्तव में वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा तेजी से परिवर्तित होने वाले वातावरण में विभिन्न राज्य अपने-अपने हितों की पूर्ति करने में संलग्न रहते हैं। राष्ट्रीय हित ही राज्यों की अन्तःक्रियाओं को निर्धारित करते हैं।

  3. विरोध अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की परिस्थिति है

    विभिन्न राष्ट्रीय हित न तो पूरी तरह संगत होते हैं और न ही असंगत। विभिन्न राष्ट्रों के राष्ट्रीय हितों की असंगतता ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष का कारण होती है-जो आपसी झगड़ों में अभिव्यक्त होती है। यह अलग बात है कि कई बार हितों को संगत बनाने के लिए राष्ट्रों का आपस में सहयोग हो जाता है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में विरोध और सहयोग, बल तथा प्रभाव सदैव उपस्थित रहते हैं। इनके अध्ययन के द्वारा ही हम अन्तर्राष्ट्रीय सच्चाई को जान सकते तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवहार को समझ सकते हैं।

  4. शक्ति साधन है

    विरोध की परिस्थिति में हर राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हित के लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहता है। इनको प्राप्त करने का साधन है-शक्ति। इसलिए सभी राष्ट्र शक्ति प्राप्त करने, उसे बनाये रखने तथा उसे बढ़ाने में निरन्तर लगे रहते हैं। किसी राष्ट्र के राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने के पीछे जो शक्ति होती है उसे ‘राष्ट्रीय शक्ति कहते हैं। निश्चित परिणाम प्राप्त करने के लिए दूसरे राष्ट्रों के कार्यों तथा व्यवहार को नियमित करने तथा नियंत्रित करने की योग्यता ही राष्ट्रीय शक्ति होती है।

  5. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति साधन तथा साध्य दोनों हैं

    अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति साधन तथा साध्य दोनों है। राष्ट्र सदा राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति के लक्ष्य के लिए शक्ति का प्रयोग करते हैं। उसी के साथ वे शक्ति को राष्ट्रीय हित को अनिवार्य भाग भी मानते हैं। प्रत्येक राष्ट्र सदैव अपनी राष्ट्रीय शक्ति को बनाये रखने तथा बढ़ाने के काम में लगा रहता है।

  6. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति विभिन्न राज्यों में विरोध सुलझाने की प्रक्रिया भी है

    अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, विभिन्न राज्यों के बीच शक्ति के लिए संघर्ष ही है। राष्ट्र-राज्य प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय कार्यकर्ता है। इनकी क्रिया तथा प्रतिक्रिया से ही अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध स्थापित होते हैं। विरोध अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की शर्त है। यही तत्व सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस तत्व की अनुपस्थिति में राष्ट्रीय हित तथा शक्ति के पास करने के लिए कुछ नहीं रह जाता। विरोध ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का मूल आधार है। राष्ट्रों के आपसी झगड़ों तथा सहयोग के पीछे यही तत्व काम करता है परन्तु इसके साथ-साथ इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि केवल ‘विरोध’ के अस्तित्व के कारण ही राष्ट्र अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के समान उद्देश्यों को लेकर एक-दूसरे के साथ सहयोग करना स्वीकार करते हैं। उदाहरण के लिए विरोधों का अस्तित्व ही तीसरे सम्भव महायुद्ध के भय को जीवित रखता है। इसके साथ-साथ यह डर राष्ट्रों को आपस में सहयोग करने तथा तीसरे महायुद्ध को रोकने के लिए प्रभावशाली कदम उठाने के लिए भी प्रेरित करता है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में, विरोध तथा सहयोग तथा राष्ट्रों द्वारा अपने-अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न तथा निरन्तर विरोध की स्थिति में अपना लाभदायक स्तर कायम रखने की प्रक्रिया का अध्ययन आवश्यक बना देता है। इस तरह हम अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध सुलझाव की प्रक्रिया के रूप में व्याख्या कर सकते हैं।

  7. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों के मध्य निरन्तर अन्तक्रियाओं की एक व्यवस्था

    क्योंकि अलग-अलग राष्ट्रों के राष्ट्रीय हितों का आपस में ही विरोध होता है और यह निरन्तर विद्यमान रहता है। अतः विरोध को अन्तर्राष्ट्रीय समाज में से पूर्णतया समाप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए राष्ट्रों को आपस में तालमेल के निरन्तर प्रयत्न की आवश्यकता रहती है। इस तालमेल को प्राप्त करने के लिए यह शक्ति का साधन अपनाते हैं। इसलिए वे अन्तक्रियाओं की एक निरन्तर प्रक्रिया में लीन रहते हैं। यही तथ्य अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को निरन्तर बनाता है। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रों के व्यवहार को समझने के लिए इसका निरन्तर विश्लेषण होना चाहिए।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment

error: Content is protected !!