अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर शीतयुद्ध का प्रभाव
उत्तर-युद्ध काल में शीत युद्ध की उत्पत्ति ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की प्रकृति तथा व्यवहार को गहरे रूप में प्रभावित किया। 1945-70 के वर्षों के दौरान चले लगातार शीत युद्ध ने इस प्रभाव को और भी गहन स्वरूप दिया। इस समय के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की निम्नलिखित विशेषताएँ शीत युद्ध के प्रभाव को स्पष्ट प्रकट करती हैं :
- विश्व में दो परस्पर विरोधी एवं प्रतियोगी महाशक्तियों-अमरीका एवं सोवियत संघ का जन्म हुआ।
- यूरोपीय देश शीत युद्ध के प्रभावहीन पश्चिमी यूरोप तथा पूर्वी यूरोप में बंट गये ।
- शक्ति-राजनीति तथा सैनिक गठबन्धनों की राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की कड़वी सच्चाई बन गई।
- अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा की प्राप्ति एवं रक्षा एक उद्देश्य बन गया परन्तु इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये वातावरण असहायक तथा कठोर बन गया।
- शस्त्र-दौड़, विशेषकर परमाणु शस्त्र दौड़ की गति काफी तेज हो गई तथा शस्त्र-नियंत्रण तथा निःशस्त्रीकरण का मुद्दा बहुत जटिल रूप ले गया।
- शीत युद्ध के प्रभाव में विश्व स्तर पर निर्णय-निर्माण, विशेष कर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में निर्णय-निर्माण का कार्य बहुत कठिन बन गया।
- विश्व दो विरोधी गुटों-अमरीकी गुट तथा सोवियत गुट में बंट गया। विश्व शक्ति संरचना द्विध्रुवीय बन गई।
- शक्ति सन्तुलन का स्थान आतंक सन्तुलन ने ले लिया।
- शीत युद्ध, सैनिक गठबन्धनों तथा शक्ति-राजनीतिक से दूर रहने के लिये बहुत से एशिया तथा अफ्रीका के नये राज्यों में गुट निरपेक्षता की विदेश नीति को अपना लिया तथा 1960 के दशक में विश्व में गुट निरपेक्ष आन्दोलन ने जन्म लिया।
- विश्व में उपनिवेशवाद विरोधी प्रक्रिया का जन्म हुआ तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलनों ने सफलता प्राप्त करनी आरम्भ कर दी।
- साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद नव-उपनिवेशवाद में परिवर्तित होने लगे।
- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्र नीति के आर्थिक उपकरणों की भूमिका बढ़ने लगी।
- दोनों महाशक्तियों में विद्यमान शीत युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र के अधीन स्थापित सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को व्यवहार में लागू किया जाना बहुत कठिन बना दिया।
- विश्व राजनीति में स्थानीय युद्धों तथा परोक्ष युद्धों की राजनीति अस्तित्व में आ गई।
- विश्व राजनीति में प्रचार तथा मनोवैज्ञानिक तथा राजनीतिक युद्ध-कौशलों का प्रयोग बढ़ गया।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था नये स्वतन्त्र प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्यों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई तथा विश्व राजनीति में एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमरीका की भूमिका को बल मिला।
इसी प्रकार शीत युद्ध ने उत्तर-युद्ध काल के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बंधों की प्रकृति को विशाल एवं गहरे रूप में प्रभावित किया। विश्व राजनीति ने शीत-युद्ध राजनीति का रूप ले लिया।
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