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अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति- परिभाषा, नामकरण के मुद्दे

अरस्तू ने लिखा है कि “परिभाषा विषय का आदि तथा अन्त दोनों ही होती है।” हम किसी विषय का वास्तविक स्वरूप तथा क्षेत्र समझे बिना उसे परिभाषित नहीं कर सकते और ऐसा अध्ययन अपने आप में तब तक पूर्ण नहीं हो सकता जब तक अध्ययन का विषय परिभाषित नहीं किया जाता। इसलिए-अध्ययन के प्रथम चरण पर विषय को परिभाषित करना आवश्यक भी है और समस्यात्मक भी। विशेषतः अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति जैसे विकासशील तथा बेहद उलझे हुए विषय को परिभाषित करना काफी कठिन कार्य है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों और अन्तक्रियाओं के स्वरूप की उच्च स्तरीय परिवर्तनशील प्रकृति तथा अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण और इसका विश्लेषण करने वाले विद्वानों के विचारों में विद्यमान मतभेदों ने इस विषय को परिभाषित करने के कार्य को और भी कठिन बना दिया है। निम्नलिखित परिभाषाओं से इस विषय के नामकरण और इसे परिभाषित करने की कठिनाई स्पष्टतः उभर कर सामने आती है :

परिभाषाएँ

एच० जे० मार्गेन्थो के अनुसार,

“राष्ट्रों के मध्य शान्ति की समस्या तथा राजनीतिक सम्बन्धों का विश्लेषण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अन्तर्गत आता है।” “यह राष्ट्रों के मध्य शक्ति तथा इसके प्रयोग के लिए संघर्ष है।”

चार्ल्स श्लीचर के अनुसार,

“अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध राज्यों के मध्य सम्बन्ध—इसके अन्तर्गत अन्तर्राज्यीय राजनीतिक एवं अराजनीतिक सम्बन्ध आते हैं।”

नार्मन पैडलफोर्ड तथा जार्ज लिंकन के शब्दों में,

“अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति सम्बन्धों के बदलते संदर्भ में राज्यों की नीतियों की अन्तः क्रियाएं हैं।’

पामर एवं पर्किन्स  इसे ‘अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध’ कहते हैं और यह कहते हैं कि

“अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध राज्य-व्यवस्था से सम्बन्धित विषय है।”

हैरोल्ड स्प्राऊट तथा मारग्रेट स्प्राऊट के अनुसार,

“स्वतंत्र राजनीतिक समुदायों की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं और सम्बन्धों के उन स्वरूपों का नाम ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति है जिसमें कुछ सीमा तक विरोध, टकराव अथवा हित-विरोध सदैव विद्यमान रहता है।”

इन परिभाषाओं की समीक्षा- उपर्युक्त सभी परिभाषाएँ अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के अर्थ, स्वरूप तथा क्षेत्र के सम्बन्ध में विद्वानों के मध्य विद्यमान अनेक विभिन्नताओं को स्पष्ट रूप से दिखलाती हैं। कुछ विद्वानों के विचारों में यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रों के मध्य पारस्परिक प्रतिक्रियाओं में शक्ति अथवा शक्ति-प्रयोग की धमकी शामिल रहती है। वे इसे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कहना अधिक उचित समझते हैं जबकि अन्य विद्वान् इसे राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों के रूप में परिभाषित करते हैं और इसे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहते हैं। इन विद्वानों में से कुछ विद्वान् विरोध एवं शक्ति के तत्वों पर जोर देते हैं और कई दूसरे राष्ट्रों के आपसी राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्धों को महत्व देते हैं।

साधारण भाषा में कह सकते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों की पारस्परिक प्रतिक्रियाओं के अध्ययन के दो समान महत्व के लोकप्रिय नाम हैं। इसका अध्ययन मुख्यतः राष्ट्र-राज्यों अर्थात् अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों की पारस्परिक प्रतिक्रियाओं, अधिक उचित कहा जाए तो अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था, के आचरण से सम्बन्ध रखता है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का विषय, राष्ट्रों के मध्य शक्ति के लिए संघर्ष का अध्ययन करता है जिसके द्वारा प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हित के लक्ष्यों को अपनी राष्ट्रीय शक्ति के प्रयोग द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करता है।

शुद्ध व्यावहारिकता के दृष्टिकोण से स्टेनले हॉफमैन ने एक प्रचलित परिभाषा का सुझाव दिया है जो विषय को समझने में हमारा मार्गदर्शन कर सकती है। वे कहते हैं, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विषय का सम्बन्ध उन तत्वों तथा गतिविधियों से है जो कि विश्व की प्राथमिक इकाइयों (राज्य तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं-जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ) की बाहरी नीतियों तथा शक्ति को प्रभावित करती हैं तथा इनमें कई प्रकार के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध शामिल होते हैं, जो ऐसे राजनीतिक तथा गैर-राजनीतिक, सरकारी और गैर-सरकारी, औपचारिक एवं अनौपचारिक।”

नामकरण अथवा नाम की समस्या

राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों तथा पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग रूपों में पहचाना है तथा उसी के अनुसार इसका नामकरण भी किया है। कुछ इसे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहते हैं, जबकि विद्वानों का एक वर्ग इसे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कहने को अधिमान देता है। इसके लिए कुछ अन्य प्रचलित नाम इस प्रकार हैं : विश्व राजनीति, विश्व मामले, अन्तर्राष्ट्रीय मामले, विदेश राजनीति, विदेश नीति तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था इत्यादि। आओ, इन विभिन्न नामों के पीछे दिये जाने वाले तकों को समझने का यत्न करें।

अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध एवं अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति

अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध एवं अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति ये दोनों नाम प्रायः पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयुक्त होते हैं और बहुत-से लेखक अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के मध्य कोई सीमा रेखा नहीं खींचना चाहते। हंस मार्गेन्थो तथा कैनिथ थॉम्पसन जैसे उच्च कोटि के विद्वान् भी इन दोनों नामों का बदल-बदल कर प्रयोग कर लेते हैं। उनके विचार में, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अटूट अंग है।’ कई

अन्य विद्वान् जैसे पामर, पर्किन्स, बर्टन, श्वारजनबर्गर, श्लीचर, थीयोडोर ए० कोलोम्बिस तथा जेम्स एच० वोल्फ इसे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहना अधिक अच्छा मानते हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध

    वे विद्वान्, जो इसे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का नाम देना चाहते हैं, अपने पक्ष में कई तर्क देते हैं।

  • ‘अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध’ एक ऐसा व्यापक नाम है जो राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों के स्वरूप तथा इसके विशाल क्षेत्र पर प्रकाश डालता है।
  • इसमें लोगों के, उनके समूहों के तथा विश्व समाज के सभी प्रकार के सम्बन्धों का लेखा-जोखा रहता है।
  • राष्ट्रों के सम्बन्ध राजनीतिक तथा अराजनीतिक दोनों प्रकार के रहते हैं।
  • इसमें सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, कानूनी, सरकारी तथा गैर-सरकारी सभी प्रकार के सम्बन्ध आ जाते हैं।
  • सभी प्रकार का अन्तर्राष्ट्रीय कार्य किया जाना वित्तीय, व्यावसायिक, अंतर्राष्ट्रीय खेलें, तकनीकी सहयोग, सांस्कृतिक तथा औपचारिक सम्बन्ध, सभी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का ही एक भाग है। कोलोम्बिस तथा वोल्फ का विचार है, “युद्ध, अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस, कूटनीति, प्रवास, ओलम्पिक खेलें, जासूसी, व्यापार, विदेशी सहायता, अप्रवास, पर्यटन, जहाजों का अगवा करना, विश्व में महामारी, हिंसक क्रांतियाँ, ये सब कुछ अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के निरन्तर बढ़ते हुए क्षेत्र में आ जाते हैं।”
  • क्योंकि राष्ट्रों के आपसी सम्बन्ध अर्थात् राष्ट्रीय सीमा के इस पार और उस पार के सभी मानवीय व्यवहारों को प्रभावित करने वाले सभी सम्बन्ध इसके अध्ययन केन्द्र बिन्दु हैं, इसलिए दूसरे शब्दों की अपेक्षा ‘अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध’ शब्द अधिक तर्कसंगत समझा जाता है।

पामर तथा पर्किन्स ‘अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध’ को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की अपेक्षा इस आधार पर अधिक उचित समझते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति विभिन्न प्रकार के सम्बन्धों का परिणाम होती है। इसलिए वे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय सम्बन्धों के प्रत्येक पहलू के अध्ययन का सुझाव प्रस्तुत करते हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति

    कई विद्वान अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध’ नाम का विरोध करते हैं और वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति नाम के प्रयोग की वकालत करते हैं। उनके विचार में :

  • ‘अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध’ शब्द बहुत सामान्य एवं खुला शब्द है जो राष्ट्रों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक क्रियाओं के वास्तविक रूप को स्पष्ट करने में असफल रहता है।
  • इसके अतिरिक्त यह नाम लोगों, उनके समूहों तथा विश्व समाज के आपसी निजी तथा सरकारी सभी तरह के सम्बन्धों को शामिल करके इसे अनुचित रूप में विस्तृत कर देता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का नाम इसलिए भी असंगत लगता है क्योंकि इसमें सहयोग तथा सम्पकों को अन्तर्राष्ट्रीय अन्तक्रियाओं का प्रमाण चिन्ह माना जाता है, जिसका अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है।
  • वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की विशेषता है विरोध, शक्ति के लिए संघर्ष, युद्ध एवं विवाद, इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध नाम का प्रयोग राष्ट्रों के मध्य राजनीति के अध्ययन के लिए न केवल अनुचित है बल्कि प्रामक भी है।

लैग तथा मॉरिसन ‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति’ नाम को उचित मानते हैं जिसके अन्तर्गत राष्ट्रों की अन्तक्रियाओं की प्रक्रिया, जिसके परिणाम विरोध तथा संघर्ष होते हैं और जिनका अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समाधान होता है, का ठीक अध्ययन हो पाता है क्योंकि राष्ट्रों के मध्य सभी तरह के सम्बन्धों का ‘राजनीतिक क्षेत्र’ हमारे अध्ययन का केन्द्र बिन्दु है, इसलिए हमें ‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति’ नाम पर ही दृढ़ रहना चाहिए। हमारे विषय का मुख्य क्षेत्र राष्ट्रों के मध्य शक्ति के लिए संघर्ष है जो राष्ट्रों के बीच क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं की व्यवस्था को जन्म देते हैं। यह मुख्यतः उन अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों से सम्बन्धित हैं जिनमें उद्देश्यों और हितों के बीच संघर्ष रहता है। यही दृष्टिकोण सम्बन्धों के स्वरूप को राजनीतिक रूप देता है और अधिक स्पष्टता के लिए हम यह कह सकते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शब्द अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के उस मुख्य दृष्टिकोण के अध्ययन के निर्णय को विशिष्टता प्रदान करता है जिसमें विरोध-सुलझाव तथा शक्ति के लिए संघर्ष का अध्ययन किया जाता है।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अथवा दोनों

    उपर्युक्त विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शब्द अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध शब्द से अधिक सुस्पष्ट एवं उचित है। चाहे कुछ भी हो, यह स्वीकार करना होगा कि वास्तविक प्रयोग में दोनों शब्द एक जैसे लोकप्रिय हैं। बहुत-से विद्वान्, राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों के विशेष गुणों को विशिष्टता प्रदान करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शब्द का प्रयोग अधिक उचित समझते हैं जबकि अन्य कुछ विद्वान् इस विषय के क्षेत्र के विशाल रूप को बनाये रखने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध शब्द का प्रयोग करते हैं। व्यापक तथा सामान्य बोध के लिए हम अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध शब्द का प्रयोग कर सकते हैं परन्तु राष्ट्रों के मध्य सम्बन्धों-प्रतिक्रियाओं के केन्द्रीय बिन्दु को प्रकट करने के लिए हमें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शब्द का प्रयोग करना चाहिए। परन्तु राष्ट्रों के बीच राजनीति, राष्ट्रों के विभिन्न प्रकार के आपसी सम्बन्धों का ही परिणाम होती है। इसलिए हम केवल एक ही शब्द को विशिष्टता प्रदान करने में बिलकुल ही कठोर नहीं हो सकते।

  2. अन्तर्राष्ट्रीय मामले, विश्व मामले तथा विदेशी मामले

    निःसंदेह ये सभी नाम हमारे अध्ययन विषय के लिए कम उपयुक्त हैं, क्योंकि ये सभी शब्द बड़े सामान्य हैं। विशेषतः अन्तर्राष्ट्रीय मामले, विश्व मामले, विदेशी मामले आदि शब्द अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं के स्वरूप को सुस्पष्ट नहीं कर सकते। इन शब्दों में बड़े सामान्य भाव का बोध होता है, जिसके घेरे में विश्व की सभी समस्याएँ आ जाती हैं। हमें संसार को ‘राज्यों का समुदाय’ मानना चाहिए। हमें उस भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक वातावरण को समझना चाहिए जिसमें राज्य क्रिया एवं प्रतिक्रिया करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप का विश्लेषण करने के लिए इसे समझना आवश्यक है। इसलिए हम अध्ययन के इस विषय को स्पष्टता तथा विशिष्टता देने के लिए इन सब में किसी एक नाम को स्वीकार नहीं कर सकते और न ही हम इसे अपने अध्ययन का मुख्य आधार मान सकते हैं।

  3. विश्व राजनीति

    कुछ लेखक इस विषय के लिए विश्व राजनीति शब्द का प्रयोग उचित समझते हैं। ये लेखक इसका राजनीति से भेद करके इसकी उपयुक्तता की वकालत करते हैं। उनका यह तर्क है कि राजनीति का अर्थ है ‘राज्य-राजनीति’ अर्थात् राज्य में विद्यमान शक्ति के लिए संघर्ष तथा ‘विश्व राजनीति’ शब्द राज्यों के मध्य शक्ति तथा राजनीति के संघर्ष जतलाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं विशेषतः संयुक्त राष्ट्र संघ तथा इसकी शाखाओं की बड़ी संख्या एक विश्व समाज के अस्तित्व को सिद्ध करती है जो तेजी से विश्व राज्य की ओर अग्रसर हो रहा है। इसलिए ऐसे लेखक यह मानते हैं कि ‘विश्व राजनीति’ नाम विश्व स्तर पर राजनीति की व्याख्या करने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। लेकिन आलोचक इस तर्क को अस्वीकार करते हैं। उनके विचार में इस शब्द का प्रयोग विश्व-राज्य की पूर्व कल्पना पर आधारित है। आज एक बड़ी संख्या में अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं, राज्यों के भीतर काम करने वाली संस्थाओं के सामने विद्यमान हैं किन्तु इन संस्थाओं को चाहे कुछ भी हो विश्व-राज्य की संस्थाएँ नहीं माना जा सकता। भविष्य में ये संस्थाएँ ऐसी बन सकती हैं किन्तु आज इनके पास स्वतन्त्र रूप से क्रिया तथा प्रतिक्रिया करने की शक्ति का अभाव है। इसलिए प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्यों के मध्य विद्यमान राजनीति की व्याख्या करने के लिए हम ‘विश्व राजनीति’ के नाम का प्रयोग नहीं कर सकते। इस समय इस शब्द को ‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति’ अथवा ‘अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध’ के शब्द के पक्ष में छोड़ देना ही हितकर है।

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