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1970 ई. के दशक के देतांत की प्रगति का इतिहास

देतांत (तनाव-शैथिल्य) की प्रगति का इतिहास

अमरीका तथा सोवियत संघ के बीच देतांत (Detente) 1970 ई. के बाद के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की विशेषता बनी। शीत युद्ध के हास की प्रक्रिया में तथा दीतां के प्रादुर्भाव ने बहुत से महत्वपूर्ण परिवर्तनों को लाने में सहायता की है। एक ओर तो युद्धोत्तर काल की कई समस्याओं तथा मामले शान्तिपूर्ण ढंगों से निपटाए गए तथा दूसरी ओर अमरीका तथा चीन के मध्य मिलाप शुरू हुआ। दुर्भाग्यवश, इन सारे परिवर्तनों के साथ चीन तथा सोवियत संघ के बीच मतभेदों में वृद्धि हुई। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शीत युद्ध के ह्रास की प्रक्रिया तथा इसके परिणामस्वरूप दीता (Detente) के प्रादुर्भाव की समीक्षा 1970 ई. से लेकर 1980 ई. तक के समय में निम्नलिखित सहायक तथा सकारात्मक परिवर्तनों की सहायता से की जा सकती है-

  1. 1970 ई. का मारको-बॉन समझौता (Moscow-Bonn Agreement of 1970)
  2. 1971 ई. का बर्लिन समझौता (Berlin Agreement of 1971)
  3. 1972 ई. का कोरिया समझौता (Korean Agreement of 1972)
  4. 1972 ई. का पूर्वी जर्मनी-पश्चिमी जर्मनी समझौता (East Germany-West Germany Agreement, 1972)
  5. 1973 ई. का हैलसिंकी सम्मेलन तथा 1975 ई. का हैलसिंकी समझौता (Helsinki Conference 1973 and Helsinki Agreement of 1975)
  6. 1975 ई. में कम्बोडिया में शीत युद्ध की समाप्ति (End of Cold War in Cambodia, 1975)
  7. 1975 में वियतनाम युद्ध की समाप्ति (End of Vietnam War, 1975)
  8. अमरीका-चीन का मेल-मिलाप (S.A. China Rapprochement)
  9. 1977 ई. में तीसरा यूरोपीय सुरक्षा सम्मेलन (Third European Security Conference, 1977)
  10. 1979 ई. में इस्राइल तथा मिस्त्र के बीच कैम्प डेविड समझौता (Camp David Accord between Egypt and Israel, 1979)

अमरीका-सोवियत देतांत (तनाव-शैथिल्य)

(American-Soviet Detente)

1970 ई. से 1980 ई. तक के समय का एक महत्वपूर्ण विकास दोनों महाशक्तियों के बीच पूर्ण दीतां का प्रादुर्भाव था। 1962 ई. के बाद के वर्षों में दोनों महाशक्तियों के नेताओं के बीच विकसित पारस्परिक सम्बन्धों के कारण अमरीका तथा सोवियत संघ के बीच दीतां (विरोध को समाप्त करने तथा पारस्परिक सम्बन्धों में सहयोग स्थापित करने के लिए जानबूझ कर किया गया प्रयल) का प्रादुर्भाव हो गया। मई 1972 में अमरीका के राष्ट्रपति निक्सन (Nixon) सोवियत संघ गए तथा दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए :

  1. प्रक्षेपास्त्र रोधक मिसाइल व्यवस्था के परिसीमन पर सन्धि (The Treaty on the Limitation of Anti-Ballistic Missile System), तथा
  2. Strategic Arms Limitation (SALT-1) पर नियन्त्रण के सम्बन्ध में कुछ उपायों पर अन्तरिम समझौता।

जून 1973 में सोवियत संघ के प्रधान ब्रेजनेव ने बदले में वाशिंगटन की यात्रा की। उनकी यात्रा के दौरान कृषि, यातायात तथा समुद्र विज्ञान तथा सांस्कृतिक और वैज्ञानिक आदान-प्रदान के क्षेत्र में परस्पर सहयोग को बढ़ाने की दृष्टिगत रखते हुए चार द्वि-पक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये। निक्सन (Nixon) तथा ब्रेज़नेव (Brezhnev) दोनों ने परमाणु युद्ध न करना स्वीकार किया तथा जब कभी भी कहीं भी परमाणु युद्ध का खतरा पैदा हो, तत्काल ही बातचीत तथा परामर्श करना भी स्वीकार किया। दोनों देशों ने आगे आने वाले हैलसिंकी सम्मेलन में सहयोग देना भी स्वीकार किया।

1974 ई. में राष्ट्रपति फोर्ड तथा बेज़नेव, व्लाडिवोस्टक (Vladivostok) में मिले तथा “आगे के 10 वर्षों के लिए”Strategic Offensive weapon’s के सीमित करने के नये समझौतों की आवश्यकताओं को स्वीकार किया। उन्होंने अपने सम्बन्ध बनाये रखे तथा 1975 ई. के हैलसिंकी सम्मेलन में द्वि-पक्षीय बातचीत की। 1975 ई. में सोवियत तथा अमरीकी अन्तरिक्ष यात्रियों द्वारा अन्तरिक्ष में हाथ मिलाने में दोनों उच्च शक्तियों के तनाव दितां (Detente) द्वारा की गई प्रगति को स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित किया गया। 15 जून, 1979 को दोनों राष्ट्रों नेSALT-II समझौते पर हस्ताक्षर किये।

इस तरह 1971 ई. से 1979 के बीच दोनों महाशक्तियों के परस्पर सम्बन्धों में बड़ा उल्लेखनीय सुधार हुआ। शीत युद्ध के स्थान पर मित्रतापूर्ण सहयोग उनके सम्बन्धों की विशेषता बन गया। सोवियत संघ तथा अमरीका के बीच इस तरह घोर तनाव शैथिल्य से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शीत युद्ध का ह्रास हो गया। परन्तु दुर्भाग्य से यह तनाव शैथिल्य ज्यादा देर तक नहीं चल सका तथा 1979 ई. के आखिरी दिनों में अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर शीत युद्ध एक बार फिर उभर आया। 27 दिसम्बर, 1979 को अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप शीत युद्ध को पुनः उभारने का पहला बड़ा प्रमाण था। उसके बाद तनाव शैथिल्य की भावना का निरन्तर हास होता रहा तथा शीत युद्ध की शक्तियों ने फिर 1980 ई. के दशक के पूर्वार्द्ध में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर अपनी काली छाया डाल दी।

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