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अराज्यीय/ गैर-राज्यीय कर्ता

गैर-राज्यीय कर्ता

गैर-राज्यीय कार्यकर्ता क्या है?

(What are Non-state Actors?)

समकालीन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के अराज्यीय कर्ताओं के क्षेत्र में पार-राष्ट्रीय कर्ता/ संगठन, गैर शासकीय कर्ता या बहुराष्ट्रीय-कर्ता शामिल कर लिये जाते हैं। सभी अराज्यीय कर्ताओं को एक दूसरे से अलग करने वाला तत्व यह है कि यद्यपि उनकी गतिविधियाँ विश्व के विभिन्न राज्यों में लोगों तथा वस्तुओं को प्रभावित करती हैं, फिर भी ये सरकारों या राज्यों के साथ औपचारिक रूप से जुड़े हुए नहीं होते । अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था इन अराज्यीय कर्ताओं तथा इनकी भूमिका के बीच अन्तक्रियाओं को सामूहिक रूप से पार-राष्ट्रीय अन्तक्रियाएं कहा जाता है।

पार-राष्ट्रीय अन्तक्रियाएं’ के अंतर्गत “राज्य की सीमाओं के पार सभी मापन योग्य तथा गैर मापन योग्य तत्वों की गतिविधि शामिल है। जब कम से कम एक कर्ता किसी एक सरकार या किसी अन्तः सरकारी संगठन का एजेन्ट नहीं होता।” कई विद्वान तो पार-राष्ट्रीय सम्बन्ध के शब्द में ही अन्तःसरकारी संगठनों का गतिविधियों को भी शामिल कर लेते हैं। इसी रूप में क्जेले सैजेल्बैक पार-राष्ट्रीय सम्बन्धों की धारणा को सांस्थानीकृत पार-राष्ट्रीय सम्बन्धों का नाम देते हैं। हमारे समय के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में इन अराज्यीय कर्ताओं के विकास तथा उनकी गतिविधियों का विश्लेषण करते हुए राबर्ट ओ. कियोहेन तथा जोसेफ एस. नी सीनियर कहते हैं, ”बहुत-सा अन्तः सामाजिक अन्तःव्यवहार, जो काफी महत्वपूर्ण होता है, बिना सरकारी नियन्त्रण के ही होता है। राज्य, किसी भी स्थिति में, विश्व राजनीति में केवल मात्र अकेले ही कर्ता नहीं होते।” अर्नोल्ड वोल्फर, जिन्होंने दो शतक पहले लिखा था, का कहना है, “वैटिकन, अरब-अमरीका तेल कम्पनी तथा कई अन्य अराज्यीय इकाइयाँ कभी-कभी अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं की दिशा को प्रभावित करते हैं।” जब ऐसा होता है तो ये इकाइयाँ अन्तर्राष्ट्रीय कार्य- क्षेत्र में कर्ता अर्थात राष्ट्र-राज्यों के प्रतिद्वन्द्वी बन जाती हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय या पार-राष्ट्रीय कर्ताओं के रूप में कार्य करने की उनकी योग्यता इस बात की वास्तविकता पर आधारित है कि व्यक्ति अपने आप को तथा अपने हितों को राष्ट्र-राज्यों की अपेक्षा निगम-निकाय के साथ ही जोड़ते हैं। जब वोल्फर ने थी उसके बाद से विश्व में बहुत कुछ घट गया है तथा आज अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों, विशेषतया अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अराज्यीय कर्ता जो भूमिका निभा रहे हैं उसके प्रभाव के अधीन बहुत परिवर्तन हुए हैं। इन्होंने परम्परागत राज्य-केन्द्रित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अत्यधिक परिवर्तन किए हैं तथा यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में लोगों के साथ, निगम के नियमों के साथ तथा गैर-शासकीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को बनाने का साधन सिद्ध हुए हैं।

गैर-राज्यीय कर्ताओं की निरंतर बढ़ रही संख्या 

(Increasing Number of Non-state Actors)

पार-राष्ट्रीय अन्तक्रियाओं में तथा युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अराज्यीय राष्ट्रीय कर्ताओं में प्रभावशाली वृद्धि हुई है। 15000 से भी अधिक अराज्यीय कर्ता हैं जो पार-राष्ट्रीय अन्तक्रियाओं में क्रियाशील हैं। अन्तर्राष्ट्रीय रैड क्रास, अन्तर्राष्ट्रीय वायु-यातायात संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी, चर्चों की विश्व परिषद, विकास का अन्तर्राष्ट्रीय आयोग, ट्रेड यूनियनों का विश्व संघ, अन्तर्राष्ट्रीय राजक्षमा, मानवीय अधिकार आयोग, उग्रवादी संगठन, जातीय गुट, सी.एन.डी., ई. एन. डी.,दी ग्रीन पीस, पर्यावरणवादी आदि अराज्यीय कर्ता के रूप में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। इसी श्रेणी में हम कुछ सीमा तक क्षेत्रीय संगठनों तथा आर्थिक समूहों को भी शामिल कर सकते हैं। इसी तरह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों को भी गैर-राज्यीय कर्ता कहा जा सकता है। फिर आज के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में बहुराष्ट्रीय निगम जिन की संख्या काफी अधिक है, भी अराज्यी कर्ताओं की श्रेणी में ही आते हैं। दिन प्रतिदिन अराज्यीय कर्ताओं की संख्या में आज भारी वृद्धि हो रही है। एक सीमित अनुमान के अनुसार सभी अन्तर्राष्ट्रीय क्रियाशीलता का 1/3वां भाग सिर्फ अराज्यीय कर्ताओं के बीच ही घटित होता तथा समस्त अन्तर्राष्ट्रीय क्रियाशीलता का करीब 50 प्रतिशत से अधिक भाग अराज्यीय कर्ताओं तथा राष्ट्र-राज्यों के बीच घटित होता है। समकालीन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में अराज्यीय कर्ताओं की भूमिका तथा राष्ट्र-राज्यों के साथ उनके सम्बन्धों के अध्ययन के बिना पूर्ण तथा वास्तविक नहीं हो सकता।

बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों की गिनती बढ़नी हो गई थी। 1901 में यह गिनती लगभग 180 थी तो 1975 के आस-पास 2500, आज तक इनकी संख्या 15000 से भी अधिक है क्योंकि आज कई एक बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों, विशेषकर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्बन्धों में काफी महत्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ अब अन्तर्राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा भी एक बड़ा उद्देश्य माना जा चुका है। इसके लिये कई एक गैर-सरकारी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ तथा मंच अथवा आन्दोलन सक्रिय हो गये हैं। यातायात तथा संचार साधनों की प्रगति में लोगों के साथ सम्बन्धों में वृद्धि की है इससे भी गैर-राज्यीय अभिनेताओं की संख्या और भूमिका बढ़ी है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा आयात-निर्यात की आवश्यकताओं के कारण बहुराष्ट्रीय तथा पार-राष्ट्रीय कम्पनियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। ये कम्पनियाँ कुछ देशों के उद्योगपतियों तथा पूँजीपतियों द्वारा मिलकर स्थापित की जाती हैं। प्रत्येक कम्पनी एक देश में पंजीकृत होती है परन्तु इसकी इकाइयाँ और उप-कम्पनियाँ बहुत से देशों में होती हैं। इसके साथ ही आज किसी देश की एक बड़ी कम्पनी अपने दफ्तर और इकाइयाँ, उत्पादन इकाइयाँ, मार्किट इकाइयाँ आदि स्थापित कर लेती है। इन दोनों प्रकार के विकासों से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में बहुर्राष्ट्रीय तथा पार-राष्ट्रीय निगमों अथवा कम्पनियों की संख्या और भूमिका के महान तथा तीव्र बढ़ोत्तरी हुई हैं यह निगम अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख गैर-राज्यीय कर्ता के रूप में उभरे हैं।

कुछ एक धार्मिक संगठन भी आज अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में कार्यरत हैं (Christian Church, Roman Catholic Church, OIC. World Congress of Religions आदि जैसी संस्थाएं एवं संगठन भी आज विश्व स्तर पर आगे से अधिक क्रियाशील हो रहे हैं।

फिर आज के युग में मानव अधिकारों तथा पर्यावरण रक्षा, परमाणु निशस्त्रीकरण की प्राप्ति, विश्व कल्याण, मानव कल्याण, समाज सेवा आदि के क्षेत्रों में सम्बन्धित कई एक गैर-सरकारी और गैर-राज्यीय कार्यकर्ता विश्व स्तर पर काफी कार्य कर रहे हैं। इस श्रेणी में हमें Amnesty International, Planet Protection Movement, Green Peace, Human Rights Commission, International League of Rights of Man, Red Cross, Green Cross, Blue Cross आदि संगठन एवं संस्थाएं आती हैं। इनके साथ ही विज्ञान एवं शिक्षा के प्रसार एवं विकास के उद्देश्य से स्थापित कई एक संस्थाएं जैसे International Council of Scientific Unions, UNESCO, World Order Model Project आदि भी आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोक-कल्याण के उद्देश्य से कार्यरत हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आज हजारों गैर-सरकारी, गैर-राजकीय अन्तर्राष्ट्रीय संगठन एवं संस्थाएं, जिन्हें सामूहिक रूप से गैर-राज्यीय अभिनेता अथवा कार्यकर्ता कहा जाता है, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण एवं सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। राज्य-केन्द्रित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था आज कमजोर हो गई है तथा विश्व स्तर पर राष्ट्र-राज्यों के साथ-साथ आज अनेक प्रकार के गैर-राज्यीय कार्यकर्ता अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में महत्वपूर्ण, सकारात्मक एवं सक्रिय भूमिका निभा रहे है।

गैर-राज्य कर्ता की भूमिका

(Role of Non-state Actors)

  1. प्रभुसत्ता तथा राष्ट्रवाद की धारणाओं में परिवर्तन:

    अराज्यीय कर्ताओं के प्रादुर्भाव तथा पार-राष्ट्रीय सम्बन्धों ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों तथा राज्य केन्द्रित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को प्रभावित किया है। अराज्यीय कर्ताओं ने प्रभुसत्ता तथा राष्ट्रवाद की धारणा को ही बदल कर रख दिया है। इन्होंने राष्ट्र-राज्यों की अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में कर्ताओं की भूमिका को भी प्रभावित किया है। आज राष्ट्र-राज्यों की नीतियां, निर्णय तथा कार्य सभी पर अराज्यीय कर्ताओं का प्रभाव होता है क्योंकि अराज्यीय कर्ता अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में शक्तिशाली अराजनीतिक, व्यापारिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा वाणिज्य कर्ताओं के रूप में उभर कर सामने आए हैं। अराज्यीय कर्ताओं, अन्तः सरकारी संगठनों (IGOS), अन्तर्राष्ट्रीय अन्तःसरकारी संगठनों (INGOs or NGOs) तथा बहुराष्ट्रीय निगमों (MNCs) को भूमिका का विश्लेषण करते हुए – नी (Ney) तथा कियोहेन (Keohane) लिखते हैं कि ये अराज्यीय कर्ता संप्रेक्षण पेटी (Transmission-Belt) के रूप में कार्य करके राष्ट्रीय-निर्णय निर्माताओं की विदेश नीति कार्य सूची को बनाने तथा विस्तृत करने में सहायक होते हैं जिसके द्वारा एक राष्ट्र की विदेश नीति दूसरे राष्ट्र की विदेश नीति के प्रति संवेदनशील होती है। इसके साथ ही अराज्यीयकर्ता राष्ट्र राज्यों के सीधे नियन्त्रण से बाहर बड़ी सीमा तक अपने हितों की प्राप्ति में लगे हैं जबकि इसके साथ ही अपने कार्यों के परिणामस्वरूप पैदा होने वाली विशेष समस्याओं में सरकारों को भी यदा-कदा शामिल कर लेते है।

  2. गैरराज्यीय कर्ता तथा राष्ट्रराज्य व्यवस्था:

    अराज्यीय कर्ताओं ने राष्ट्र-राज्य व्यवस्था तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में राष्ट्र-राज्यों की भूमिका में बहुत बड़े परिवर्तन कर दिए हैं। ये अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्निर्भरता को बढ़ाने में तथा अन्तर्निरिता के इस युग में सम्बन्धों का संगठन करने में उपकरण सिद्ध हुए हैं। कुछ क्षेत्रों में इन्होंने राष्ट्र-राज्यों की भूमिका को मात कर दिया है तथा कर भी रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में निम्न राजनीति ने अधिक महत्व काफी वृद्धि हो गई है। ग्रहण कर लिया है क्योंकि अब बहुराष्ट्रीय निगमों जैसे अराज्यीय कर्ताओं की भूमिका में

  3. नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की उपज के रूप में गैरराज्यीय कर्ता:

    अपने आप में यह अराज्यीय कर्ता तो परमाणु युग, अन्तरिक्ष युग, संचार क्रांति के युग, यातायात क्रांति, कल्याणवाद तथा अन्तर्राष्ट्रीय की उपज हैं जो स्वयं राष्ट्र-राज्य व्यवस्था की उपज हैं। इनमें से बहुत से अराज्यीय कर्ता तो इसलिए बने तथा काम कर रहे हैं क्योंकि राष्ट्र-राज्यों ने इनकी उपयोगिता को स्वीकार किया है। अन्तः सरकारी संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन तथा इसी प्रकार के कई अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठन राष्ट्र-राज्यों की इच्छाओं के कारण ही बने हैं। राष्ट्र राज्यों के पास आज भी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति का प्रयोग कर सकने का एकाधिकार है। ये आज भी अराज्यीय कर्ताओं की गतिविधियों को, उनके अपने व्यवहार पर अधिकार से कहीं अधिक नियन्त्रित करते हैं।

  4. क्या गैरराज्यीय कर्ताओं ने राष्ट्रराज्य व्यवस्था को ग्रहण लगा दिया है?:

    इस प्रकार यद्यपि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के अराज्यीय कर्ता महत्वपूर्ण तथा सक्रिय कर्ता हैं, इन्होंने न तो अभी तक राष्ट्र-राज्य व्यवस्था को समाप्त ही किया है तथा न निकट भविष्य में ऐसी कोई आशा की जा सकती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, फिर भी इनके कारण कई प्रकार के झगड़े तथा तनाव भी पैदा हो रहे हैं। उदाहरण के लिए बहुराष्ट्रीय निगम अधिकतर अमीरों के गरीब पर नव-उपनिवेश राष्ट्रीय नियन्त्रण का साधन बने हैं। तीसरे विश्व के राष्ट्र, अगर उनके अस्तित्व को नहीं तो उनकी इस प्रकार की भूमिका को समाप्त करने के लिए उत्सुक हैं।

  5. गैरराज्यीय कर्ता तथा विश्व जनमत:

    गैरराज्यीय कर्ताओं की गतिविधियों के कारण विभिन्न देशों के नागरिकों में आपसी सम्बन्ध विकसित हुए हैं। ये सम्बन्ध राष्ट्र-राज्य की सीमाओं को पार करके भी स्थापित हुए हैं। आज लोगों के साथ सम्बन्ध काफी विस्तृत तथा सुदृढ़ हुए हैं। यह विश्व जनमत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। आज इन्हें लोगों के साथ कूटनीति का नाम दिया गया है। अच्छी बात यह है कि यह कूटनीति खुली भी है तथा नैतिकता पर भी आधारित रहती है।बहुराष्ट्रीय निगमों जैसे गैर-राज्यीय कर्ताओं ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को और अधिक जटिल तथा समस्यात्मक बना दिया है। ये ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में राजनीतिक सम्बन्धों के घटे हुए महत्व के लिए उत्तरदायी हैं। इनमें से कुछ तो अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा के अग्रदूत हैं जबकि कुछ अन्य विकसित राष्ट्रों पर अविकसित राष्ट्रों की निर्भरता एवं नव-उपनिवेशवाद लाने वाले अभिकरणों के रूप में कार्य कर रहे हैं। इनमें से कई एक कर्ताओं ने अन्तर्राष्ट्रीयवाद, सार्वभौमिकता के पक्ष में राष्ट्रवादी भावना की समाप्ति तथा विभिन्न सशक्त शान्तिपूर्ण, विकासवादी तथा पर्यावरण रक्षक आन्दोलनों की वृद्धि में अपना योगदान दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में इन्होंने पार-राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को उत्पन्न किया है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्यार्थी जब तक अराज्यीय कर्ताओं तथा पार-राष्ट्रीय सम्बन्धों के बारे में पूर्णतया अध्ययन नहीं कर लेते तब तक वे अपने विषय के स्वरूप तथा क्षेत्र के बारे में अध्ययन नहीं कर सकते। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में महत्वपूर्ण कर्ताओं की भूमिका निभाने वाले विभिन्न अराज्यीय संगठनों द्वारा पार-राष्ट्रीय सम्बन्धों का संस्थानीकरण समकालीन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के निरन्तर चलते रहने वाले कार्य हैं। यह निश्चित है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के भविष्य में अराज्यीय कर्ता बने रहेंगे तथा ये और अधिक प्रभावशाली कर्ता बन जाएंगें।

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