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दूरस्थ शिक्षा

दूरस्थ शिक्षा

मुक्त तथा दूरस्थ अधिगम प्रणाली द्वारा दूरस्थ शिक्षा  (Distance Education through Open and Distance Learning Process)

वर्तमान समय में दूरस्थ शिक्षा को प्राप्त करने का सबसे उपयुक्त साधन कम्प्यूटर एवं ऑनलाइन सुविधा है। इसके द्वारा शिक्षा प्राप्त करने की प्रक्रिया बहुत ही सुचारु रूप से सम्पन्न हो जाती है। इसके द्वारा प्रत्येक स्तर या उम्र के छात्र अधिगम प्रणाली का लाभ उठा सकते हैं। डिजिटल/ऑन-लाइन सेवाओं; जैसे—इण्टरनेट (ऑनलाइन चैट), वीडियो क्लब के माध्यम से छात्र अपनी अधिगम सम्बन्धी समस्याओं को एक साथ कई विषय विशेषज्ञों के समझ प्रस्तुत कर सकता है तथा उनके उत्तरों व सुझावों को प्राप्त कर सकता है। रेडियो, शैक्षिक दूरदर्शन चैनलों के माध्यम से सीखने सम्बन्धी कार्यक्रमों को सुना व देखा जा सकता हैं इनके समय व विषय पूर्ण निर्धारित होते हैं। दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में ‘इग्नू’ स्थापित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, उत्पादन विभाग तथा एन. सी. ई. आर. टी. के शैक्षिक प्रौद्योगिकी विभाग के अन्तर्गत स्थापित ऑडियो, वीडियो प्रोडक्शन विभाग द्वारा इस दिशा में अहम् भूमिका निभा रहा है।

दूरस्थ शिक्षा के कार्य (Functions of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा के निम्नलिखित कार्य हैं-

  • यह शिक्षा विद्यार्थियों में समानता के प्रत्यय का विकास करती है।
  • यह शिक्षा समयानुसार शैक्षिक तथा अशैक्षिक ज्ञान की वृद्धि में सहायक सिद्ध होती है।
  • यह शिक्षा सेवारत व्यक्तियों के लिए नई शिक्षा के विभिन्न आयामों को स्थापित करती है।
  • यह शिक्षा शिक्षार्थी के प्रवेश में सरलता से विभेदीकरण की आवश्यकता की पूर्ति करती है।
  • यह वर्तमान शिक्षा की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।
  • यह शिक्षा सबसे लचीला शैक्षिक अधिगम है। यह समय एवं स्थान तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है।
  • यह नियमित रूप से छात्रों को पृथक् प्रणाली के रूप में स्थानान्तरित करती है।
  • इससे छात्र के धन, समय तथा गति का सदुपयोग होता है।

ई-प्रयोगशाला, ई-पुस्तकालय एवं ई-संग्रहालय का महत्व (Importance of E-Labs, E-Libraries and E-Museum)

आज प्राथमिक स्तर पर शिक्षा मनोवैज्ञानिक ई-पुस्तकालय तथा ई-संग्रहालय के उपयोग के लिए छात्रों को प्रेरित करते हैं। इसके अभाव में रुचिपूर्ण एवं प्रभावी अधिगम सम्पन्न नहीं किया जा सकता। शिक्षकों को इन नवीन तकनीकों के विषय में पूर्व में ही बताया जाता है अर्थात् प्रशिक्षण काल में ही इन उपागमों की उपयोगिता एवं महत्त्व को बताया जाता है। ई-प्रयोगशाला तथा ई-पुस्तकालय और ई-संग्रहालय के महत्व को निम्न बिन्दुओं में विस्तार से समझाया जा सकता है-

  1. इसमें छात्र अपने प्रयासों से तथा शिक्षक के मार्गदर्शन से उन समस्त सामग्रियों को प्राप्त किया जाता है जिसमें उसकी रुचि होती है। इससे एक ओर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावशाली रूप में सम्पन्न होती है तो दूसरी और छात्रों का अधिगम स्तर बढ़ता है।
  2. ई-प्रयोगशाला, ई-पुस्तकालय एव इ-संग्रहालय के प्रयोग से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया स्वतन्त्र एवं स्वाभाविक रूप में पूर्ण होती है। छात्र पर अध्ययन के लिए कोई नियन्त्रण नहीं होता क्योंकि छात्र अपनी रुचिपूर्ण एवं सरल सामग्री को खोजकर अध्ययन करता है इसमें उसका शैक्षिक विकास सर्वोत्तम रूप में होता है तथा अधिगम स्तर पर बढ़ता है।
  3. ई-पुस्तकालय के माध्यम से छात्रों को समय का उपयोग करना सिखाया जाता है। ई-पुस्तकालय के द्वारा तरह-तरह की पाठ्य-सामग्री को तैयार किया जा सकता है। ई-संग्रहालय तथा ई-प्रयोगशाला के लाभों को कम्प्यूटर के माध्यम से उपयोगी एवं सुलभ बनाया जा सकता है।
  4. इसके द्वारा छात्र किसी खास विषय की सामग्री को पुस्तकालय में खोज सकते हैं।
  5. ई-पुस्तकालय के द्वारा समय की बचत होती है। व्यय भी कम होता है। ई-संग्रहालय तथा ई-प्रयोगशाला में सभी साधन उपलब्ध होने का लाभ छात्र उठा लेते हैं।
  6. छात्र पुस्तकालय में विशेष विषय की शिक्षण सामग्री को कम्प्यूटर के माध्यम से प्राप्त कर सकता है।

ऐजुसेट का परिचय (Introduction of Edusat)

ऐजुसेट एक शैक्षणिक उपग्रह है। इसे भारतीय अन्तरिक्ष संस्थान द्वारा सितम्बर, 2004 में एक कृत्रिम उपग्रह के रूप में स्थापित किया गया था। इसे शिक्षण सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से छोड़ा गया है। इससे भारत में दूरस्थ शिक्षा प्रणाली को प्रभावशाली ढंग से चलाने में सहायता मिलेगी तथा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए शिक्षा का एक वैकल्पिक माध्यम मिलेगा। इसका दूसरा नाम जी. सैट-3 भी है। इसका नाम ऐजूसेट रखने का मुख्य कारण इसके कार्यकर्ताओं का सम्बन्ध ऐजुकेशन से जोड़ना है अर्थात् एजुकेशन से सम्बन्धित कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए इसकी स्थापना अन्तरिक्ष में की गयी। ऐजूसेट के निर्माण की घोषणा पूर्व मानव संस्थान विकास मन्त्री मुरली मनोहर जोशी ने अपने कार्यकाल में की थी। इस सेटेलाइट की रूपरेखा तथा कार्य-प्रणाली को अन्तिम स्वरूप भारतीय अन्तरिक्ष अनुखन्धान संगठन ने प्रदान किया था। शैक्षिक उपग्रह अपने देश में शैक्षिक सूचनाओं को प्रदान करने का एक ऐसा ही प्रभावी उपागम है जिसके द्वारा उपग्रह सेवाओं का विस्तार करके उसके शैक्षिक अनुप्रयोगों को सुनिश्चित किया जाता है।

ऐजुसेट के कार्य (Functions of Edusat)

ऐजूसेट सेटेलाइट की स्थापना के उपरान्त इस उपग्रह ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना कार्य आरम्भ कर दिया। इसने अनेक राज्यों के विश्वविद्यालयों में अपने शैक्षिक प्रसारणों से अभूतपूर्व प्रसिद्धि प्राप्त की है। आधुनिक समय में देश के अनेक राज्यों में इसके शैक्षिक प्रसारण व्यापक रूप से चल रहे हैं। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • ऐजूसेट उपग्रह के माध्यम से प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों को प्रभावी शिक्षण प्रदान किया जा सकता है, क्योंकि शिक्षण में नयी तकनीकी का प्रयोग किया जाता है।
  • ऐजूसेट के माध्यम से आधुनिक समय में शैक्षिक प्रगति को अभूतपूर्व प्रगति मिली है क्योंकि इसके माध्यम से सभी कठिन स्थानों पर कम्प्यूटर के माध्यम से महत्वपूर्ण शैक्षिक कार्यक्रमों को देखा जा सकता है।
  • ऐजूसेट के माध्यम से विभिन्न प्रकार की विदेशी तकनीकी का ज्ञान प्रबन्ध का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों को दिया जाता है।
  • ऐजूसेट का उपयोग दूरस्थ शिक्षा में प्रमुखता के साथ किया जा सकता है। इसमें घर बैठकर ही विद्यार्थी ऑन लाइन के माध्यम से शैक्षिक कार्यक्रमों का लाभ उठा सकते हैं।
  • ऐजूसेट के द्वारा स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है, जो विद्यार्थी चिकित्सा सेवा का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, वे इसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  • ऐजूसेट के माध्यम से विभिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों को देखने की तकनीकी का ज्ञान सम्भव होता है क्योंकि इसके माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के लिए तकनीकी ज्ञान अति आवश्यक है।
  • माध्यमिक शिक्षा में इसका उपयोग सरलता से किया जा सकता है तथा छात्रों को कम्प्यूटर का सामान्य ज्ञान कराया जाता है।
  • इसके माध्यम से शैक्षिक विशेषज्ञों से सम्बन्धित विशेषज्ञों के विचारों का लाभ प्राप्त कराया जाता है।
  • ऐजूसेट के माध्यम से छात्रों की अनेकों प्रकार की समस्याओं का समाधान किया जाता है क्योंकि शैक्षिक व्यवहार में बहुत-सी समस्याएँ एक जैसी होती हैं।

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