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प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा

(Education of the Gifted Children)

प्रतिभाशाली बालकों के लिए कौन-कौन विशेष शैक्षिक प्रयास किये जाने चाहिए, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। प्रायः प्रतिभाशाली बालकों की शैक्षिक उपलब्धि सामान्य बालकों की शैक्षिक उपलब्धि से अच्छी होती है तथा अध्ययन की दृष्टि से उनकी प्रायः कोई समस्यायें नहीं होती हैं यही कारण है कि कुछ व्यक्तियों के द्वारा प्रायः कहा जाता है कि ऐसे बालकों की शिक्षा की चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे स्वयं अपनी पढ़ाई ठीक ढंग से कर लेंगे। दरअसल प्रतिभाशाली बालकों में शारीरिक दृष्टि से विकलांग बालकों जैसे गूंगे, बहरे, अंधे आदि की तरह से अथवा मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालकों की तरह से अपनी ओर विशिष्ट ध्यान आकर्षित करने की संवेगात्मक अपील (Emotional Appeal) नहीं होती है। यही कारण है कि पहले प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशिष्ट शैक्षिक कार्यक्रमों की व्यवस्था करने के विचार को विगत में हतोत्साहित किया जाता रहा था। परन्तु विगत कुछ वर्षों में विज्ञान तथा तकनीकी के क्षेत्र में हुए आविष्कारों तथा उनमें प्रतिभाशाली व्यक्तियों के द्वारा किये गये योगदान को ध्यान में रखकर अब प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। प्रतिभाशाली बालकों के लिए उपयोगी तथा प्रभावशाली शैक्षिक व्यवस्था करने के लिए अनेक विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। प्रतिभाशाली बालकों के वांछित सर्वांगीण विकास को प्रोत्साहित करने के लिए विशिष्ट कक्षाओं (Special Class), तीव्र गति से आगे बढ़ाने (Acceleration) की व्यवस्था, संपुष्ट कार्यक्रम (Enrichment Programme) आदि का प्रयोग किया जा सकता है। विद्यालयों में प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा को निम्न ढंग से प्रोत्साहित किया जा सकता है-

  1. विशिष्ट कक्षायें (Special Classes)-

    प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए ‘विशिष्ट कक्षा-विशिष्ट पाठ्यक्रम अभिगमन’ एक अत्यन्त महत्ववपूर्ण विधा है। इसके अन्तर्गत प्रतिभाशाली बालकों को अधिक व्यापक तथा विस्तृत पाठ्यक्रम बढ़ाया जाता है जिससे उनकी विशिष्ट योग्यताओं का अधिक से अधिक विकास संभव हो सके।

  2. तीव्र गति (Acceleration)-

    तीव्र गति से तात्पर्य प्रतिभाशाली बालकों को प्रारम्भ से ही तीव्र गति से शैक्षिक प्रक्रिया से गुजरना है। विद्यालयों में जल्दी प्रवेश दिलाकर तथा तीव्र गति से विद्यालयी शिक्षा समाप्त करके बालकों की प्रतिभा का विकास किया जा सकता है। वर्ष में एक से अधिक बार कक्षा उन्नति (Skipping) के द्वारा ऐसे बालकों की शैक्षिक गति को तीव्रता प्रदान की जा सकती है।

  3. संपुष्ट कार्यक्रम (Enrichment Programme)-

    संपुष्ट कार्यक्रम से तात्पर्य प्रतिशाली बालकों को अधिक पुष्ट, व्यापक तथा विस्तृत अनुभव कराने से है। प्रतिभाशाली बालकों को पुस्तकालय, भ्रमण आदि की विशेष सुविधायें देकर उनके अन्तर्गत ज्ञानार्जन में सहायता की जा कती हैं।

  4. व्यक्तिात ध्यान (Individual Attention)-

    अध्यापकों तथा अभिभावकों को प्रतिभाशाली बालकों के प्रति व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए! इन बालकों को उचित परामर्श तथा निर्देश देकर उनकी विशिष्ट योग्यताओं का अधिकाधिक विकास करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

  5. श्रेष्ठ अध्यापक (Excellent Teacher)-

    प्रतिभाशाली बालकों को शिक्षा प्रदान करने के लिए श्रेष्ठ अध्यापकों की आवश्यकता होती है। सुयोग्य अध्यापकों के संपर्क में आने पर ही वे अपनी क्षमताओं तथा योग्यताओं का अधिकतम विकास कर सकते हैं प्रतिभाशाली बालकों के अध्यापकों को ऐसे बालकों के मनोविज्ञान का ज्ञान भी होना चाहिए।

  6. प्रोत्साहन (Motivation)-

    प्रतिभाशाली बालकों के अध्यापकों को अपनी योग्यता का अधिकतम विकास करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। परिवार, विद्यालय तथा समाज के प्रतिभाशाली बालकों के विकास में प्रारम्भ से ही रुचि लेनी चाहिए तथा ऐसे अवसर प्रदान करने चाहिए जिससे ऐसे बालकों का सर्वांगीण विकास सम्भव हो सके। प्रतिभाशाली बच्चों की विशिष्ट आवश्यकता को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने गतिनिर्धारक स्कूल (Pace Setting Schools) स्थापित किये हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में प्रावधान किया गया है कि देश के प्रत्येक जिले में एक नवोदय विद्यालय खोला जाएगा। जिसमें योग्यता के आधार पर छात्रों का चयन करके उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली निःशुल्क आवासीय शिक्षा प्रदान की जाएगी। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित मेधावी छात्रों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रकार की योग्यता छात्रवृत्तियाँ (Merit Scholarships) भी प्रदान की जाती हैं। निःसन्देह देश की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने तथा उसे आगे बढ़ाने के लिए मेधावी छात्रों की जरूरत है एवं इसके लिए उन की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे उच्च कोटि के वैज्ञानिक चिंतन तथा आविष्कर्ता मिल सकें। इसके लिए मेधावी बालकों की शिखा पर प्रारम्भ से ही विशेष ध्यान देना समाज तथा राष्ट्र दोनों का एक पुनीत कर्तव्य है।

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