सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (I.C.T.)
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की अवधारणा (Concept of I.C.T.)
आज का संसार सूचनाओं के विस्फोट का संसार है या यूँ भी कहा जा सकता है कि “आधुनिक युग सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का युग है।” अधिकांश विकास कार्यक्रम व शैक्षिक उद्देश्यों की निष्फलता का कारण यह रहता है कि उनकी सहायता करने वाली सूचनाएँ एवं तथ्य उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। लेकिन सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के द्वारा ऐसी सभी सूचनाओं एवं तथ्यों को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए वर्तमान समय में शिक्षा तथा विकास से सम्बन्धित सभी कार्यक्रमों की पूर्णत: सम्भव हो गयी है। आज सूचना एवं संचार साधनों ने मनुष्य जीवन के सभी पक्षों को व्यापक रूप से प्रमाणित किया है तथा शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी है, आज शिक्षक को अध्यापन शैली में दक्ष होने के साथ-साथ सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा उसके साधनों के प्रयोगों का ज्ञान प्राप्त रखना परम आवश्यक हो गया है। तभी वह बालकों का सही मार्गदर्शन कर पायेगा तथा अधिगम प्रक्रिया में आने वाली समस्त समस्याओं को उचित रूप से सुलझा पायेगा। तभी वह शिक्षा के स्तर को भी उच्च बना पायेगा।
शिक्षा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग (Applications of I.C.T. in Education)
शिक्षा में सूचना एवं संचार (सम्प्रेषण) प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से यह आश्य है कि इसके द्वारा शिक्षकों की सीखने की प्रक्रिया को विकसित किया जा सकता है और साथ-ही-साथ उनके प्रशिक्षण कार्यों को सफलतापूर्वक करने में सहयोग दिया जा शिक्षकों तथा छात्रों की शिक्षा की पाठ्य-पुस्तक सम्बन्धी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। सकता है। वर्तमान समय में जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे और इन समस्या से निजात पाने के लिए शिक्षक तथा छात्रों को सूचना एव संचार (सम्प्रेषण) प्रौद्योगिकी का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि इसके माध्यम से वह शिक्षा की पाठ्य-वस्तु से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की जानकारी को ही सहज प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा में सूचना एवं संचार (सम्प्रेषण) प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के द्वारा किसी खास विषय को स्पष्ट करने के लिए उस विषय को निम्न भागों में बाँट सकते
- विषय का समाकलन, तथा
- विषय का मूल्यांकन।
(A) विषय का समाकलन (Integration of Subject)-
समाकलन से हमारा आशय शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा सम्बन्धी समग्र विचार प्रस्तुत करने से है। आज प्रायः बाल केन्द्रित शिक्षण विधियों एवं गतिविधियों पर आधारित शिक्षण ही बालकों की स्थायी सीख प्रदान कर सकता है। ऐसे विचार आज शिक्षा जगत में अपनी टीम कार्यप्रणाली के नाम से जाने जाते हैं। इसमें सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का विशेष योगदान है इस योगदान को निम्नलिखित तथ्य उजागर करते हैं-
- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से विषयगत विकास की सम्भावना में वृद्धि होती है। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर विकास के चिन्तन एवं तार्किक विचार हमें प्राप्त होते हैं।
- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से विभिन्न विषयों के शिक्षण में शिक्षण विधियों का समाकलित रूप प्राप्त हो जाता है करके सीखने की विधियों के संदर्भ में समाकलित एवं समग्र विचार हमें प्राप्त होते हैं।
- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी विचारों के एकत्रीकरण की विषयगत पूर्णता को पूरा करने तथा विभिन्न विद्वानों के विचारों की पूर्णता एवं समग्रता को सम्भव बनाने में आज शिक्षा जगत को अपना अमूल्य योगदान दे रही है।
- आज के शिक्षा के क्षेत्र में बालकों के समक्ष प्रकरण एवं विभिन्न विषयों के प्रस्तुतीकरण का समाकलित रूप सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से सर्वमान्य तरीकों से प्रस्तुत किया जा रहा है जिसका लाभ सम्पूर्ण शिक्षा जगत को प्राप्त हो रहा है।
(B) विषय का मूल्यांकन (Evaluation of Subject)-
मूल्यांकन प्रक्रिया को. प्रभावी बनाने में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का महत्व बढ़ता जा रहा है; जैसे- विभिन्न परीक्षणों का ज्ञान प्राप्त करके उनका प्रयोग करना, साक्षात्कार एवं लिखित परीक्षाओं का प्रचलित रूप, परीक्षा-प्रणाली वर्तमान में वस्तुनिष्ठ, अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के रूप में विकसित है जिसका मूल्यांकन किया जाना, विश्वसनीयता एवं वैद्यता सम्बन्धी प्रणालियों का विकास, शिक्षकों द्वारा प्रश्न-पत्रों का उचित एवं मूल्यांकित प्रयोग तथा समग्रता एवं एकरूपता को भी सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से मूल्यांकित किया जा सकता है तथा शिक्षा के क्षेत्र में इसका अनुप्रयोग सफलता से किया जा सकता है।
विद्यालय संचालन में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के लाभ (Advantage of I.C.T. in School)
शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यन्त प्रभावशाली दृष्टिकोण बनाती जा रही है। प्रायः विद्यालय प्रबंध विकेन्द्रीयकरण तथा लोकतांत्रिक पर आधारित होता है। शिक्षा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी से क्या-क्या लाभ हो रहे हैं इसको यहाँ हम निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट कर सकते हैं-
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संसाधनों के समन्वय में सहायक–
एक अच्छे विद्यालय के सुचारु संचालन के लिए मानवीय एवं भौतिक साधनों के बीच सामंजस्य बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है। यह कार्य आज संचार प्रौद्यगिकी के द्वारा पूरा किया जा सकता है।
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उत्तरदायित्व की भावना का विकास-
संचार प्रौद्योगिकी की प्रमुख विशेषता पारदर्शिता बनाए रखने की होती है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रत्येक विद्यालयी कर्मचारी का क्षेत्र निश्चित होता है तथा उसको अपने उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए प्रबन्ध द्वारा कुछ उत्तरदायित्व भी सौंपे जाते हैं और उत्तरदायित्व तभी पूर्ण किए जा सकते हैं जब उस अधिकारी या कर्मचारी को कार्य से सम्बन्धित अधिकार प्राप्त होत हैं। सूचना एवं संचार (सम्प्रेषण) प्रौद्योगिकी व्यक्ति के क्षेत्र एवं अधिकारों की व्याख्या करती है।
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लक्ष्य प्राप्ति हेतु नियन्त्रण की आवश्यकता–
विद्यालय प्रबन्ध में स्वेच्छाचारिता एवं निरंकुशता को रोकने के लिए लक्ष्य प्राप्ति में नियन्त्रण की आवश्यकता अत्यन्त आवश्यक तथ्य माना जाता है। प्रबन्धन द्वारा निरीक्षण करके आवश्यकता अनुसार अपने सुझाव देना वर्तमान में सूचना एवं संचार (सम्प्रेषण) प्रौद्योगिकी का सशक्त माध्यम बन गया है।
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विचारों की स्वतन्त्रता-
आज विचारों की स्वतन्त्रता को अधिक महत्व दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति से उसके विचार जानने का प्रयास किया जाता है, जिससे कि विद्यालय सम्बन्धी नीतियों एवं नियमों के निर्धारण में विचारों से लाभ मिल सके। संचार की प्रक्रिया में विचारों का आदान-प्रदान होता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार स्वतन्त्रतापूर्वक प्रकट करने का अधिकारी है। विद्यालय प्रबन्ध से सम्बन्धित सभाओं में प्रत्येक व्यक्ति के विचार जानकर ही अन्तिम निर्णय तक पहुँचा जाता है, जिससे विभिन्न विद्वानों के विचारों का लाभ विद्यालय के शैक्षिक प्रबन्ध को प्राप्त होता है।
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समानता लाना-
विद्यालय प्रबन्ध में समानता का सिद्धान्त अपनाकर सबको समान रूप से कार्य का वितरण करना होता है। अधिकार के सम्बन्ध में भी समानता का दृष्टिकोण अपनाना पड़ता है। संचार में जब व्यक्ति किसी के विचारों को सुनता है तो समान रूप से वह दूसरे व्यक्ति को अपने विचारों से अवगत कराता है। प्रबन्ध में समानता का सिद्धान्त सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के द्वारा जनसामान्य के स्तर तक पहुँचाया जा रहा है। धीरे-धीरे यही विचार एक सिद्धान्त के रूप में विकसित होते हैं जिसका प्रयोग विद्यालय प्रबन्ध में किया जा रहा है। अतः विद्यालय प्रबन्ध में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का योगदान महत्वपूर्ण है।
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कार्य का विभाजन संबंधी लाभ–
कार्य का विभाजन करते समय व्यक्ति की योग्यता एवं उसकी रूचि का ध्यान विद्यालय प्रबंध में रखा जाता है। व्यक्ति की रुचि एवं योग्यता में ज्ञान का आधार संचार प्रौद्योगिकी की व्यवस्था ही होती है।
महत्वपूर्ण लिंक
- I.C.T. | Aims of ICT| Use of LCD & CCTV in Education
- मानसमन्दता (Mental Retardation)- मानसमन्दता का वर्गीकरण, पहचान, विशेषताएँ
- मानसिक रूप से मंद बच्चों के लिए शिक्षा प्रावधान
- प्रतिभाशाली बालक- परिभाषा, विशेषताएँ एवं शैक्षिक प्रावधान
- शारीरिक विकलांगता- आंगिक दोष, दृष्टिदोष, श्रवण दोष, वाणी दोष
- प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा (Education of the Gifted Children)
- मंद बुद्धि बालकों की पहचान एवं शिक्षा
- विशिष्ट बालक- अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं विशेषताएँ
- पिछड़े बालक- अर्थ, विशेषताएँ, पहचान, शैक्षिक प्रावधान
- मार्गदर्शन/निर्देशन- प्रधानाचार्य और शिक्षक की भूमिका, आवश्यकता, विशेषताएँ, सीमाएँ
- Transfer of Learning: Types | Theories |Educational Implications
- Measurement of Personality- Methods and Techniques
- Creativity Tests- Torrance & Baqer Mehdi Test of Creativity
- NCERT: Role of NCERT | Organisation of NCERT
- SEX EDUCATION- Sex Education in various Stage
- Characteristics of Teaching
- Functions of Education in the Sphere of Social Change
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