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सल्तनत कालीन प्रांतीय प्रशासन

सल्तनत कालीन प्रांतीय प्रशासन

सल्तनत कालीन प्रांतीय प्रशासन

गुलाम सुल्तानों की सरकार समान तत्वों से बना हुआ सुदृढ़ संगठन नहीं थी, बल्कि विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त पर आधारित थी। राज्य का ढाँचा अत्यन्त शिथिल था और अनेक सैनिक क्षेत्रों से मिलकर बना था। आकार, जनसंख्या अथवा आय की दृष्टि सेस ये क्षेत्र एक-समान नहीं थे। प्रत्येक क्षेत्र के अन्तर्गत कुछ भूमि होती थी जिसे ‘इक्ता’ कहते थे। यूरोपीय लेखकों ने ‘इक्ता’ शब्द का अनुवाद ‘सैनिक जागीर‘ किया है परन्तु हम इक्तों को प्रान्त (सूबा) कह सकते हैं, यद्यपि यह नामकरण पूर्णतया शुद्ध नहीं है। इक्तों के मालिकों को ‘मुक्ती’ कहते थे। व्यावहारिक दृष्टि से मुक्ती अपने क्षेत्रों के शासक थे और उन्हें विस्तृत अधिकार मिले हुए थे। इक्तों की शासन-व्यवस्था समान सिद्धान्तों पर आधारित नहीं थी। राजनीतिक अथवा सैनिक अधिकारों की दृष्टि से भी इक्ते एक-दूसरे से भिन्न थे। अपने क्षेत्र का शासन चलाने में मुक्ती स्वतन्त्र था। केवल स्थानीय परम्पराओं का उस पर नियन्त्रण होता था। वह अपने पदाधिकारियों की नियुक्ति करता, राजस्व वसूल करता, शासन का खर्च चलाता तथा बची हुई आय केन्द्रीय सरकार के पास भेज देता था। सिद्धान्त रूप से केन्द्रीय सरकार उसके हिसाब की जाँच कर सकती थी किन्तु व्यवहार में वह पूर्ण स्वतन्त्र था। उसका मुख्य कर्त्तव्य अपने क्षेत्र में शान्ति तथा व्यवस्था कायम रखना और राजाज्ञाओं को कार्यान्वित करना था। जब कभी सुल्तान उससे माँग करता था तो उसे उसकी सेवा के लिए सैनिक टुकड़ियाँ भेजनी पड़ती थीं। मुक्ती को भारी वेतन मिलता था जो प्रान्त की आय में से दे दिया जाता था। उसके पास अपनी एक सेना तथा पदाधिकारियों का दफ्तर होता था। इस युगमें मन्दावर, अमरोहा, सम्भल, बदायूँ, बरन (बुलन्दशहर) कोइल (अलीगढ़), अवध, कड़ा-मानिकपुर, बयाना, ग्वालियर, नागौर, हाँसी, मुल्तान, उच, लाहौर, समाना, सुनम, कुहराम, भटिण्डा और सरहिन्द मुख्य इक्ते थे। दिल्ली के अधीनस्थ जिन राजाओं के राज्य इन इक्तों की सीमाओं के भीतर स्थित होते थे उनसे कर वसूल करना भी इन्हीं मुक्तियों का काम था। ये सामन्त वे हिन्दू शासक थे जिन्हें सुल्तानों ने अपना करद बना लिया था, उन्हें खराज (भूमि कर) तथा जजिया देना पड़ता था। वे दिल्ली सुल्तान का प्रभुत्व स्वीकार करते थे किन्तु अपपने राज्यों के आन्तरिक प्रबन्ध के लिए स्वतन्त्र थे।

प्रान्तीय प्रशासन केन्द्रीय प्रशासन का प्रतिरूप था। सल्तनत को अनेक प्रान्तों में विभाजित किया गया था जिसे ‘विलायत‘ कहा जाता था। प्रान्तों की संख्या के बारे में कोई निश्चित ज्ञान नहीं है क्योंकि इनकी संख्या सल्तनत की सीमाओं के घटने-बढ़ने से बदलती रहती थी। जहाँ तक प्रान्त के बली अथवा मुक्ता के कार्यों का सम्बन्ध है वह प्रान्त में सुल्तान का लघु रूप था। वह प्रान्त में सुल्तान के नायब अथवा प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था। उसे कार्यकारी एवं न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त थीं। उसके पास निश्चित संख्या में एक प्रान्तीय सेना भी होती थी जिसे आवश्यकता के समय वह सुल्तान के सहायतार्थ भेजता था। वह भू-राजस्व की वसूली का कार्य भी देखता था। प्रान्त में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखना उसका प्रमुख कर्तव्य था। वह प्रान्त में दरबार लगाता, न्याय का निष्पादन करता, विद्रोहियों का दमन करता तथा राज्यादेशों को कार्यान्वित करता था। सल्तनत काल में सामान्यतः वली अपने प्रान्तों में रहते थे परन्तु जो वली शाही दरबार में रहते वे अपने उच्चाधिकारियों के द्वारा प्रान्तीय प्रशासन का संचालन करे। बली की नियुक्ति, स्थानान्तरण एवं अपदस्थीकरण सुल्तान द्वारा किया जाता था। वजीर के परामर्श से प्रत्येक प्रान्त में ‘ख्वाजा’ अथवा ‘साहिबे दीवान’ नियुक्त किया जाता था जो प्रान्त के राजस्व का लेखा-व्यौरा रखता तथा उसका विवरण केन्द्र को भेजता था।

शिक प्रशासन

प्रत्येक विलायत अथवा प्रान्त अनेक शिकों में विभाजित किये गये थे। खलजी शासन काल से पूर्व दोआब एवं बंगाल अनेक शिकों में विभक्त थे। तुगलक शासनकाल में भी अनेक शिकों का उल्लेख मिलता है। परन्तु लोदी सुल्तानों के राज्यकाल में ‘शिक’ शब्द का प्रयोग कम हो गया तथा उसके स्थान पर ‘सरकार’ शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। प्रान्तों की संख्या की भाँति ‘शिक’ अथवा ‘सरकार’ की संख्या भी परिवर्तित होती रहती थी। प्रत्येक शिक में एक शिकदार होता था। उसके अधीन सैनिक दल होता था जिसकी सहायता से वह विद्रोहियों का दमन करता तथा राजस्व की वसूली में अधिकारियों की सहायता करता था। प्रान्तों को शिकों के अतिरिक्त इक्ताओं में भी विभाजित किया गया था। इक्ता में शान्ति-व्यवस्था की स्थापना तथा भू-राजस्व की वूसली करना इक्तादार का प्रमुख कर्तव्य था। उसके अधीन सैनिक दल भी होता था जिसके द्वारा वह विद्रोहियों का दमन करता तथा लोगों को राजस्व देने के लिये बाध्य करता था। इक्तादारों की नियुक्ति प्रोन्नति एवं स्थानान्तरण सुल्तान द्वारा होता था। वह सुल्तान द्वारा है अपदस्थ भी किया जा सकता था जिसके कारण वह उसी के प्रति उत्तरदायी होता था।

परगना एवं गाँव प्रशासन

शिक से नीचे प्रशासन की इकाई परगना थी जिसमें अनेक गाँव सम्मिलित होते थे। परगना का प्रमुख अधिकारी चौधरी था जो शान्ति-व्यवस्था के लिये उत्तरदायी होता था। वह राजस्व की वसूली में राजस्व अधिकारियों की सहायता करता था। प्रत्येक परगना में आमिल, सरहंग, मुशरिफ, मुहास्सिल, गुमाश्ते नामक अधिकारी होते थे। इनके अतिरिक्त राजस्व का लेखा रखने के लिये कारकुन भी होते थे।

परगना अनेक गाँवों में विभाजित था तथा गाँव प्रशासन की सब से छोटी इकाई थी। गाँव में मुखिया या मुकद्दम होता था जो गाँव में शान्ति एवं व्यवस्था के उत्तरदायी था। गाँव प्रशासन में पंचायत का भी महत्वपूर्ण स्थान का क्योंकि साधारण झगड़े पंचायत द्वारा ही निणीय किये जाते थे।

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