स्थायी बन्दोबस्त की प्रमुख विशेषताएं
बंगाल की राजस्व व्यवस्था में सुधार करके लार्ड कार्नवालिस ने अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किया। उसके द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था ही बाद में “स्थायी बन्दोबस्त” के नाम से प्रसिद्ध हुई।
स्थायी बन्दोबस्त के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ
वारेन हेसटिंग्ज ने कम्पनी की आय में वृद्धि करने के विचार से भूमि की पंच वर्ष के लिए और बाद में केवल एक वर्ष के लिए ठेके पर देना आरम्भ कर दिया। ठेके पर भूमि देने की यह प्रणाली असन्तोषजनक और दोषपूर्ण सिद्ध हुई। उसमें अनेक दोष थे-
- उत्साह तथा जिद में आकर जमींदार अधिक से अधिक बोली लगाते थे, परन्तु वे भूमि की आय से इतनी राशि नहीं प्राप्त कर सकते थे, इस कारण सरकार का बहुत-सा धन बिना वसूल किये ही रहाह जाता था।
- जमींदारों को यह भी विश्वास नहीं होता था कि अगले वर्ष भूमि उनको मिलेगी अथवा नहीं, इस कारण वह भूमि की दशा को सुधारने का कोई प्रयास नहीं करता था, परिणामस्वरूप भूमि ऊसर होने लगी।
- एक वर्ष के ठेके में अपनी धनराशि को पूरा करने के लिए जमींदार कृषकों पर बहुत अत्याचार करते थे।
बंगाल का स्थायी भूमि प्रबन्ध
इंग्लैण्ड की सरकार को लार्ड कार्नवालिस के भारत आने के पूर्व ही भूमि के ठेके पर देने के दोषों का पता चल चुका था। इसी कारण सन् 1784 ई० के पिट्स इण्डिया एक्ट में कम्पनी के संचालको को स्पष्ट आदेश दिया गया था कि वे भारत में वहाँ की न्याय व्यवस्था तथा संविधान के अनुसार उचित भूमि व्यवस्था लागू करें। अप्रैल 1784 ई० में जब कार्नवालिस भारत आ रहा था तो कम्पनी के संचालकों ने उसे स्पष्ट निर्देश दिये थे कि वह पिट्स इण्डिया एक्ट की धाराओं अनुसार भारत में भूमि कर निश्चित कर दे। लार्ड कार्नवालिस शीघ्रता से कोई कार्य नहीं करना चाहता था। उसने भूमि कर की जांच पड़ताल का कार्य बंगाल प्रशासन के एक अनुभवी सदस्य सर जान शोर को दिया। उसने सम्पूर्ण लगान व्यवस्था का लगभग तीन वर्ष तक अध्ययन किया। उसकी रिपोर्ट के आधार पर कार्नवालिस ने दस वर्ष के लिये भूमि जमींदारों को सौंप दी परन्तु जब वह परीक्षण सफल रहा तो कार्नवालिस ने उसे एक स्थायी रूप दे दिया और भूमि सदा के लिए जमींदारों को सौंप दी गई। इस व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार थीं-
- अभी तक जमींदारों की कानूनी स्थिति यह थी कि वे भूमिकर एकत्रित करने के अधिकारी तो थे, परन्तु भूमि के स्वामी नहीं थे, परन्तु अब उनको भूमि का स्थायी रूप से स्वामी मान लिया गया।
- अब उन्हें नित्यप्रति दिये जाने वाले उत्तराधिकार के शुल्क से भी मुक्ति मिल गई।
- इसके अतिरिक्त जमींदारों से लिया जाने वाला कर भी निश्चित कर दिया गया, परन्तु उसकी रकम में वृद्धि की जा सकती थी। यह निश्चित किया गया कि सन् 1793 ई० में किसी जमींदार को लगान से जो कुछ भी प्राप्त होता था, सरकार भविष्य में उसका 10/11 भाग लिया करेगी, शेष धन का अधिकारी जमींदार रहेगा।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण
मार्शमैन तथा आर0 सी0 दत्त जैसे विद्वानों ने स्थायी बन्दोवस्त की अत्यन्त प्रशंसा की है। मार्श मैन ने इसे एक अन्यन्त बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य बताया है। इसी प्रकार इतिहासकार आर० सी० दत्त का कथन है, “लार्ड कार्नवालिस द्वारा प्रतिपादित स्थायी भूमि व्यवस्था, अंग्रेजों द्वारा कभी किये गये कार्यो में सर्वाधिक बुद्धिमत्तापूर्ण तथा सफल कार्य था।”
स्थायी भूमि के अनेक गुण इस प्रकार हैं-
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जमींदारों के लिये लाभदायक-
भूमि के इस स्थायी बन्दोवस्त का लाभ जमींदार वर्ग को ही रहा। उन्हें भूमि का स्वामित्व प्राप्त हो गया। समय के साथ-साथ भूमि से अधिक उत्पादन होने लगा जिससे जमींदार समृद्धशाली हो गये।
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बार-बार भूमि कर निश्चित करने के झंझट से मुक्ति-
इस व्यवस्था से सरकार और जमींदार दोनों को ही प्रतिवर्ष भूमि कर निश्चित करने वाली कठिनाइयों से मुक्ति मिल गई।
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सरकार की आय का निश्चित होना-
स्थायी प्रबन्ध से भूमि-कर की रकम निश्चित कर दी गई, परिणामस्वरूप सरकार की आय भी निश्चित हो गई तथा अब सरकार सरलता से बजट बना सकती थी।
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प्रशासन की कार्यकुशलता में वृद्धि-
सरकार को अपना अधिकांश समय भूराजस्व को एकत्रित करने तथा उससे सम्बन्धित समस्याओं की ओर लगाना पड़ता था। परन्तु स्थायी व्यवस्था के परिणामस्वरूप सरकार को राजस्व सम्बन्धी समस्याओं से मुक्ति मिल गई। अब सरकार अन्य प्रशासनिक कार्यो की ओर ध्यान दे सकती थी।
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उत्पादन तथा समृद्धि में वृद्धि-
स्थायी व्यवस्था के फलस्वरूप भूमि की दशा में सुधार होने लगे और अधिक अन्न का उत्पादन होने लगा।
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ब्रिटिश सरकार की स्थिरता प्राप्त होना-
स्थायी बन्दोबस्त के कारण बंगाल में अंग्रेजी सरकार का आधार सुदृढ़ हो गया। अंग्रेजों ने जमींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया था। इसी कारण वे सरकार के प्रबल समर्थक बन गये और सन् 1857 की क्रान्ति के समय भी अंग्रेजों के ही भक्त बने रहे। डॉ० ईश्वरीप्रसाद के अनुसार “राजनैतिक दृष्टि से भी यह कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण था। जमींदार लोग ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा तथा बने रहने में रुचि लेने लगे। विद्रोह के समय भी उनकी वफादारी दृढ़ रही। इस दृष्टिकोण से यह व्यवस्था अत्यन्त सफल रही।”
स्थायी बन्दोबस्त के दोष
मिल, थार्नटन और हाम्ज आदि कुछ इतिहासकारों ने स्थायी व्यवस्था की कड़ी आलोचना की है। उनके अनुसार इस व्यवस्था में अनेक दोष थे-
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आरम्भ में जमींदारी पर उल्टा प्रभाव-
प्रारम्भ में अनेक जमींदार वंश नष्ट हो गये, क्योंकि उन्होंने अपना समस्त धन भूमि सुधारने पर व्यय कर दिया, परन्तु उत्पादन में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई, इस कारण वह अपनी रकम को जो उस समय के अनुसार बहुत अधिक थी। समय पर जमा न कर सके, इसी कारण बिक्री के नियम जो कि विनाशकारी नियम के नाम से भी प्रसिद्ध है, के अनुसार उनकी बिक्री कर दी गई।
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कृषकों के हितों की उपेक्षा-
इस स्थायी बन्दोबस्त में कृषकों के अधिकारों तथा हितों का तनिक भी ध्यान नहीं रखा गया तथा उन्हें पूर्ण रूप से जमींदारों की दया पर ही छोड़ दिया गया। जमींदार उन पर अनेक प्रकार के अमानवीय अत्याचार करते थे और उन्होंने किसानों से अधिकाधिक धन बटोरना प्रारम्भ कर दिया।
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राज्य के भावी हितों की अवहेलना-
स्थायी व्यवस्था के द्वारा राज्य के भावी हितों की उपेक्षा की गई। समय के साथ-साथ भूमि से प्राप्त होने वाली आय में वृद्धि होने लगी, परन्तु राजकीय भाग निश्चित था, इस कारण बढ़ी हुई आय में सरकार को एक पैसा भी नहीं मिल सका।
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खेती करने वालों पर करों का भारी बोझ-
समय के साथ-साथ सरकार के व्यय में वृद्धि हो रही थी, परन्तु यह जमींदारों से एक पाई भी अधिक लेने में असमर्थ थी। इस कारण जमींदारों से होने वाले घाटे को सरकार अन्य व्यक्तियों पर भारी कर लगाकर पूरा करती थी। इस प्रकार जमींदारों के लाभ के लिये अन्य लोग करों के भार से दब गये जो पूर्णतया अन्याय था।
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अन्य प्रान्तों पर भार-
समय व्ययतीत होने पर बंगाल सरकार के एक घाटे का प्रान्त रह गया। बंगाल के अकृषक वर्ग पर जी कर लगाने से जब यह घाटा पूरा न हुआ तब सरकार ने बाध्य होकर अन्य प्रान्तों पर भारी कर लगाये।
निष्कर्ष- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि स्थायी भूमि व्यवस्था गुण तथा दोषों का एक अजीब-सा मिश्रण था। इसमें जमींदारों का ही कल्याण हुआ। परन्तु राज्य और कृषकों के हितों की अवहेलना हुई। इस समय में प्रैटनकार का स्थायी बन्दोबस्त का मूल्यांकन कितना उचित है, “स्थायी व्यवस्था में तीन सम्बन्धित पार्टियों, अर्थात जमींदार, जनसाधारण तथा राज्य से जमींदारों के हितों की आंशिक रक्षा हुई, कृषकों की रक्षा स्थगित कर दी गई तथा राज्य के हितों को स्थायी रूप से स्थगित कर दिया गया।”
महत्वपूर्ण लिंक
- लार्ड कार्नवालिस के प्रशासनिक सुधार
- सल्तनत कालीन सामाजिक स्थिति
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- अकबर कालीन मुगल वास्तुकला (मुगल कालीन वास्तुकला)
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