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अंग्रेज गवर्नर “वारेन हेस्टिंग्ज” का प्रशासनिक सुधार

वारेन हेस्टिंग्ज का प्रशासनिक सुधार

वारेन हेस्टिंग्ज सन् 1,772 से सन् 1774 तक बंगाल का गवर्नर रहा। सन् 1774 ई० में उसकी पदोन्नति करके उसे गवर्नर जनरल बना दिया गया। इस पद पर वह सन् 1785 तक रहा। वह एक योग्य प्रशासक था। गवर्नर जनरल के पद का उत्तरदायित्व सम्भालते ही उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। द्वैध शासन व्यवस्था के कारण जनता की दशा अत्यन्त दयनीय हो रही थी तथा चारों ओर अशान्ति तथा अराजकता व्याप्त थी।

इतनी अधिक समस्याओं के होते हुए भी वारेन हेस्टिंग्ज ने अत्यन्त धैर्यपूर्वक प्रशासनिक व्यवस्था में अनेक सुधार किये तथा एक निश्चित तथा सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था का आरम्भ किया। उसके कुछ प्रशासनिक सुधार इस प्रकार है-

प्रशासनिक सुधार

  • बंगाल में द्वैध प्रशासन प्रणाली के कारण चारों ओर अशान्ति तथा अव्यवस्था व्याप्त थी, अतः सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्ज ने द्वैध शासन प्रणाली का अन्त करके प्रबन्ध का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व कम्पनी के हाथों में ले लिया।
  • बंगाल का नवाब नाजिमुद्दौला को शासन के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया। उसकी पेंशन अब 32 लाख के स्थान पर 16 लाख रुपया वार्षिक कर दी गई।
  • बंगाल के नवाब के अल्पवयस्क होने के कारण दो उप नवाबों की नियुक्ति की गई थी। अब बंगाल के उप नवाब रजा खाँ तथा बिहार के उप नवाब शिताब राय को भी उनके पदों से मुक्त कर दिया गया तथा उन पर अभियोग चलाया गया, परन्तु बाद में मुक्त कर दिया गया।
  • अब राजकोष को मुर्शिदाबाद से कलकत्ता स्थानान्तरित कर दिया गया और इस प्रकार कलकत्ते के महत्व में और भी अधिक वृद्धि हो गई।
  • कम्पनी के कर्मचारियों के घूस लेने तथा उपहार, एभंट आदि स्वीकार करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
  • जनता की सम्पत्ति तथा जीवन की सुरक्षा के लिए चोर-डाकुओं का दमन किया गया। डाकुओं को उन्हीं के ग्रामों में ले जाकर मृत्यु-दंड दिया; ताकि अन्य व्यक्ति भयभीत होकर कानून का सम्मान करें।

राजस्व अथवा लगान व्यवस्था में सुधार

  • कलकत्ता में एक राजस्व परिषद का गठन करके राजस्व का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व उसे सौंप दिया गया।
  • कम्पनी ने करों को एकत्रित करने का कार्य स्वयं सम्हाल लिया। भारतीय एजेंटों “आमिलों’ को उनके पद-भार से मुक्त कर दिया गया। उनके स्थान पर अंग्रेज कलेक्टर नियुक्त किये गये। उनकी सहायता के लिए अनेक देशी कर्मचारी नियुक्त किये गये।
  • सन् 1772 ई० में लगान एकत्रित करने का कार्य अपने हाथ में लेने के उपरान्त कम्पनी ने आरम्भ में पाँच वर्षों तक सर्वाधिक बोली बोलने वाले को भूमि दे दी। परन्तु बाद में अनुभव किया गया कि पाँच वर्ष के लिए भूमि ठेके पर देने की व्यवस्था लाभदायक सिद्ध न हुई। इस कारण 5 वर्ष पश्चात् सन् 1777 में बोली देने की प्रथा वार्षिक कर दी गई।

स्मरणीय है कि वारेन हेस्टिंग्ज के राजस्व सुधारों का प्रमुख उद्देश्यों करों को भली प्रकार वसूल करना था, उसका विचार कृषकों के कष्टों को दूर करना नहीं था। इस प्रकार सर्वाधिक बोली बोलने वाले को भूमि देने पर कृषक कराहते ही रहे।

व्यापारिक सुधार

  • सन् 1717 से केवल कम्पनी का माल कर-मुक्त था और उस पर किसी प्रकार की कोई चुंगी नहीं थी, परन्तु बाद में सभी अंग्रेजों ने कर देना बन्द कर दिया। परिणामस्वरूप सरकारी खजाने में बहुत ही कम धन जाने लगा। अन्त में स्थिति से बाध्य होकर वारेन हेस्टिंग्ज ने “दस्तक” अथवा “फ्री पास’ की व्यवस्था को समाप्त कर दिया तथा अब सभी के माल पर चुंगी ली जाने लगी।
  • कम्पनी, भारतीय व्यापारियों तथा अंग्रेज व्यापारियों सभी से समान रूप से कर लिया जाने लगा। परिणामस्वरूप व्यापार की दशा में सुधार हुआ और भ्रष्टाचार भी बन्द हो गया।
  • व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए पांच के अतिरिक्त सभी चुंगीघरों को समाप्त कर दिया गया। इसका कारण यह था कि स्थान-स्थान पर चुंगी होने के कारण व्यापार के विकास में बड़ी बाधा उत्पन्न होती थी।
  • नमक, सुपारी तथा तम्बाकू के अतिरिक्त अन्य सभी व्यापारिक वस्तुओं पर चुंगी में 26 प्रतिशत छूट दी गई।
  • कम्पनी के लिए माल खरीदने के उद्देश्य से एक व्यापारिक परिषद् (Board of Trade) का गठन किया गया। इन समस्त कार्यों ने व्यापार को बड़ा प्रोत्साहन दिया।
  • भारत के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए वारेन हेस्टिंग्ज ने भूटान तिब्बत तथा मिस्र आदि देशों को व्यापारिक मिशन भेजे।

न्याय सम्बन्धी सुधार

  • अभी तक अपने-अपने क्षेत्रों में जमींदार लोग न्याय सम्बन्धी अधिकारों का प्रयोग करते थे। वारेन हेस्टिंग्ज ने जमींदारों के इन अधिकारों को समाप्त करके उनके पास केवल साधारण मुकदमें सुनने का अधिकार ही रहने दिया।
  • प्रत्येक जिले में एक फौजदारी तथा दीवानी न्यायालय स्थापित किये गये। दीवानी न्यायालयों में न्यायाधीश अंग्रेज कलेक्टर ही होता था परन्तु फौजदारी न्यायालयों का अधिकार भारतीयों के पास ही रहने दिया।
  • दीवानी मुकदमों की अपील सुनने के लिए कलकत्ता में एक सदर दीवानी न्यायालय स्थापित किया गया तथा फौजदारी के मुकदमों की अपील के लिए सदर निजामत की स्थापना की गई।
  • न्यायालयों के लिए रिकार्ड रखना अनिवार्य कर दिया गया।
  • सभी प्रकार के मुकदमों के निर्णय एक विशेष अवधि में करने होते थे ताकि मुकदमें को आवश्यकता से अधिक न खींचा जा सके।
  • वारेन हेस्टिंग्ज ने अनेक भारी जुर्माने की व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया।
  • न्यायाधीशों को सरकार की ओर से वेतन दिये जाने की व्यवस्था की गई तथा उनके फीस लेने अथवा उपहार लेने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया।
  • न्याय अब हिन्दू मुसलमान दोनों धर्मों के अनुसार किये जाने लगा। वारेन हेस्टिंग्ज ने हिन्दू कानूनों की एक संहिता भी तैयार कराई थी।

व्यय में कटौती

  • बंगाल के नवाब को 32 लाख रुपया वार्षिक पेंशन दी जाती थी, अब उसे प्रशासनिक कार्यों से मुक्त कर दिया गया तथा उसकी पेंशन भी घटकर 16 लाख रुपया वार्षिक कर दी गई। इस प्रकार सोलह लाख रुपया वार्षिक की बचत की गई।
  • मुगल सम्राट शाह आलम की पेंशन पूर्ण रूप से बन्द कर दी गई। इसका कारण यह था कि वह अंग्रेजों का साथ छोड़कर मराठों से जा मिला। इस प्रकार लगभग 32 लाख रुपया वार्षिक की बचत की गई।
  • शाह आलम को इलाहाबाद तथा कड़ा के जिलों से वंचित कर दिया गया। इन दोनों जिलों को अवध के नवाब शुजाउद्दौला को 50 लाख रुपये के बदले में दिया गया।
  • रुहेलों के विरुद्ध अवध के नवाब की सहायता करने के उपबन्ध में वारेन हेस्टिंग्ज ने अंग्रेजों के लिए 40 लाख रुपये प्राप्त किये।

इस प्रकार वारेन हेस्टिंग्ज ने विभिन्न प्रशासनिक, राजस्व सम्बन्धी, व्यापारिक तथा न्याय सम्बन्धी सुधारों से दीर्घकालीन अशान्ति तथा अराजकता को समाप्त करके शान्ति तथा व्यवस्था करने का प्रयास किया। उसने कम्पनी तथा जनता के कल्याण के लिए एक अत्यन्त उपयोगी प्रशासनिक व्यवस्था का आधार तैयार किया।

यथार्थ में लार्ड क्लाइव ने जिस अंग्रेजी साम्राज्य की आधारशिला रखी थी, वारेन हेस्टिंग्ज ने उस साम्राज्य को व्यवस्था प्रदान की। किसी विद्वान ने कहा है, “यदि भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का संस्थापक क्लाइव था, तो वारेन हेस्टिंग्ज उसका प्रशासनिक संगठनकर्ता था।”

वारेन हेस्टिंग्ज के सुधार उसका महान कार्य हैं, इतना ध्यान रखना होगा कि इस दिशा में वारेन हेस्टिंग्ज के कार्य केवल प्रथम चरण ही थे, वास्तविक सफलता तो उसके उत्तराधिकारी लार्ड कार्नवासि को ही है। जिस नागरिक प्रशासन की आधारशिला वारेन हेस्टिंग्ज ने रखी थी, उस पर भवन का निर्माण लार्ड कार्नवालिस ने किया। सर विलियम हण्टर के अनुसार “वारेन हेस्टिंग्ज ने उस सिविल प्रशासन की नींव रक्खी जिस पर कार्नवालिस ने महान भवन का निर्माण किया।”

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