मुगल काल में हिन्दी, संस्कृत, उर्दू साहित्य के विकास के विभिन्न चरण
हिन्दी साहित्य
सल्तनत-काल में हिन्दी साहित्य में विकास की जो प्रक्रिया प्रारम्भ हुई उनमें मुगलकाल में द्रुत गति से विकास हुआ। इस युग में हिन्दी केवल दरबार और शाही महलों तक सीमित नहीं रही अपितु वह एक जन-आन्दोलन के रूप में विकसित होने लगी थी। डॉ० श्रीवास्तव ने लिखा है कि “मुगल-काल हिन्दी कविता का स्वर्णयुग’ था।
बाबर हुमायूँ का काल-
बाबर और हुमायूँ के काल तक हिन्दी को राजाश्रय प्राप्त नहीं हुआ, परन्तु हिन्दी में कुछ उच्चकोटि के ग्रन्थों की रचना अवश्य हुई जिनमें मलिक मुहम्मद जायसी का पदमावत सर्वोत्कृष्ट कृति है। रूपक के रूप में लिखी गयी यह रानी पदिमनी की उत्कृष्ट ऐतिहासिक कथा है।
अकबर का काल-
अकबर के शासनकाल में हिन्दी अपने विकास की चरम सीमा पर थी। अकबर की उदारता, साहिष्णुता एवं सुरक्षा-व्यवस्था के कारण अन्य भाषा के कवियों के साथ-साथ हिन्दी कवियों को भी प्रोत्साह न प्राप्त हुआ और उन्होंने कुछ उत्कृष्ट रचनाएँ कीं। इन कवियों में तुलसीदास, सूरदास, अब्दुर्रहीम खानखाना, रसखान और बीरबल अत्यन्त प्रसिद्ध थे। अकबर के दरबारी कवियों में राजा टोडरमल, भगवानदास एवं मानसिंह करण, हरिनाम आदि भी अच्छे कवि थे।
अकबरकालीन हिन्दी काव्य में श्रेष्ठ कवि तुलसीदास जी थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की। ‘रामचरितमानस’ उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध महाकाव्य है। साथ ही ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘दोहावली’, ‘गीतावली’, ‘जानकीमंगल’ आदि अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थों के रचने का श्रेय उन्हें प्राप्त है। तुलसीदास की महान साहित्यिक प्रतिभा से भारतीयों के साथ विदेशी भी प्रभावित थे। ग्रिअर्सन ने उनके सम्बन्ध में लिखा है, “तुलसीदास समस्त भारतीय साहित्य में सर्वश्रेष्ठ महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं।”
अकबरकालीन दूसरे प्रसिद्ध कवि सूरदास थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की। सूरसागर उनकी सबसे अधिक लोकप्रिय कृति है। ये कृष्ण के महान उपासक थे। इन्होंने कृष्ण की बाल-लीलाओं का अत्यन्त सुन्दर एवं सजीव वर्णन किया है। अकबर के शासनकाल में अनेक मुसलमान कवियों ने हिन्दी में श्रेष्ट रचनाएँ की। अब्दुर्रहीम खानखाना फारसी, अरबी, तुर्की और संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी के भी असाधारण विद्वान थे। उन्होंने हिन्दी में अनेक पदों की रचना की। डॉ० श्रीवास्तव के मतानुसार, “वास्तव में हिन्दी काव्य का कोई भी इतिहास सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी अब्दुर्रहीम खानखाना की देनों के उल्लेख के बिना अधूरा ही रहेगा।” आप तुलसीदास के अभिन्न मित्रों में से थे। मुसलमान कवियों में हिन्दी के दूसरे प्रसिद्ध कवि रसखान थे जो कृष्ण के भक्त थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ प्रेमवाटिका तथा सुजान रसखान हैं।
उन्होंने वृन्दावन में कृष्ण-लीला का सजीव वर्णन किया है। आपकी भाषा की मार्मिकता, शब्द-चयन और भाव-विह्वलता सभी अद्वितीय हैं।
‘आइने-अकबरी’ के वर्णन के अनुसार यह कहा जाता है कि अकबर केवल हिन्दी कविता का प्रेमी और कवियों का संरक्षण ही नहीं था अपितु स्वयं भी हिन्दी का कवि था और उसने हिन्दी में कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। यही कारण है कि उसके शासनकाल में हिन्दी साहित्य को विकसित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
जहाँगीर का काल-
जहाँगीर के शासनकाल में भी हिन्दी साहित्य उत्तरोत्तर उन्नति की ओर अग्रसरित होता रहा। उसके शासन में जद्रुप गोसाई, राम मनोहर लाल, वृक्षराज और किशनदास आदि हिन्दी कवियों को राजाश्रय प्रदान किया गया था। केशवदास जहाँगीर के समय का अत्यन्त महत्वपूर्ण कवि था। उसने वीरसिंह देव चरित कवि-प्रिया एवं जहाँगीर चन्द्रिका नामक प्रसिद्ध रचनाएँ की। जहाँगीर का छोटा भाई दानियाल हिन्दी का जाना माना कवि था।
शाहजहाँ का काल-
शाहजहाँ ने भी हिन्दी साहित्य के विकास में योगदान दिया। तिरहुत के दो हिन्दी कवियों को उसने खिलअत एवं नकद धनराशि उपहार में दी। शाहजहाँकालीन कवियों में चिन्तामणि, मतिराम, बिहारी एवं कवीन्द्र आचार्य प्रसिद्ध थे। प्रसिद्ध कवि हरिनाथ, शिरोमणि मिश्र और वेदांगराय भी दरबार में आश्रित थे। तत्कालीन कवि प्राणनाथ एवं दादू ने हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मों में सदभाव उत्पन्न करने के अनेक सफल प्रयास किये। शाहजहाँ का पुत्र दाराशिकोह अपने समय का श्रेष्ठ विद्वान था। उसे फारसी भाषा के साथ हिन्दी एवं संस्कृत पर असाधारण अधिकार था।
औरंगजेब का काल-
औरंगजेब के सत्तारूढ़ होने के बाद हिन्दी साहित्य को अत्यन्त क्षति पहुँची। मुगल सम्राट के हिन्दी-विरोधी रूख को देखकर विभिन्न राजाओं ने हिन्दी को आश्रय प्रदान किया। इस काल में भूषण, मतिराम आदि कवियों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं के द्वारा हिन्दी साहित्य में अमर कृतियों का सृजन किया। ‘मोहता नैणसी के ख्यात’,’खुमान रासो’,’राणा रासो’ आदि ग्रन्थ इस युग की देन हैं, परन्तु शाही संरक्षण के अभाव में हिन्दी साहित्य उत्तरोत्तर पतन की ओर उन्मुख हुआ।
संस्कृत साहित्य
प्रथम मुगल शासक बाबर एवं उसके उत्तराधिकारी हुमायूँ ने संस्कृत के विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और न ही राजाश्रय प्रदान किया। परन्तु अकबर के सत्तारूढ़ होने के बाद संस्कृत को राजाश्रय प्रदान किया गया तथा संस्कृत के अनेक विद्वानों को राजकीय संरक्षण प्राप्त हुआ। अकबर के शासनकाल में फारसी और संस्कृत का एक शब्दकोष ‘फारसी प्रकाश’ की रचना हुई। हिन्दू पण्डितों एवं जैन-धर्माचार्यों ने अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों को लिपिकबद्ध किया। अकबर के युग के इतिहास को दरभंगा के ठाकुर महेश ने संस्कृत में लिखा था। अतः स्पष्ट है कि अकबर के काल में फारसी व हिन्दी साहित्य के साथ संस्कृत को भी उन्नति के समान अवसर प्राप्त हुई। जहाँगीर एवं शाहजहाँ ने अपने महान पूर्वज के पदचिन्हों पर चलते हुए संस्कृत साहित्य एवं कवियों का राजाश्रय प्रदान किया जो समय-समय पर बादशाह से पुरस्कार प्राप्त किया करते थे। शाहजहाँ का पुत्र दारा स्वयं संस्कृत का विद्वान था। उसने संस्कृत के अनेक ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया वह वेदान्त का महान ज्ञाता था।
औरंगजेब को हिन्दी अथवा संस्कृत साहित्य से कोई लगाव नहीं था। मुगल शासक की उदासीनता को देखकर हिन्दू राजाओं ने संस्कृत को आश्रय प्रदान किया परन्तु शक्तिशाली मुगल शासकों की ओर से कोई प्रोत्साहन प्राप्त न होने के कारण संस्कृत साहित्य उत्तरोत्तर पतन की ओर उन्मुख हुआ।
उर्दू साहित्य
सल्तनत-काल में उर्दू में पर्याप्त प्रगति हो गयी थीं। अतः मुगल-काल तक आते-आते उर्दू की प्रगति लगभग अवरूद्ध हो गयी। अकबरकालीन उर्दू कवियों में नूरी आजमपुरी, हजरत कमालुद्दीन मखदूम, शेख सादी और मुहम्मद अफजल अत्यन्त प्रसिद्ध थे शाहजहाँ के शासन के उर्दू कवियों में चन्द्रभान ब्राह्मण और नासिर इलाहाबादी विशेष रूप से उल्लेखनीय थे। उत्तर भारत के साथ-साथ मुगल-काल में दक्षिण भारत में भी उर्दू की पर्याप्त उन्नति हुई।
दक्षिण में मुगल शासन की स्थापना के बाद भी उर्दू की प्रगति अवरूद्ध नहीं हुई। इसी समय दिल्ली में उर्दू प्रेमियों ने एक दल बनाया। इसमें प्रसिद्ध कवि सौदा, मीर और हसन थ। सौदा कसीदा व गजल में प्रवीण थे। मीर की काव्य-शैली अत्यन्त दर्दपूर्ण थी। उनकी गजल अत्यन्त मर्मस्पर्शी थी। उन्होंने उर्दू साहित्य को महत्वपूर्ण देन दी। उनका उर्दू-काव्य अनेक खण्डों में उपलब्ध है।
मुहम्मदशाह प्रथम मुगल शासक था जिसने उर्दू को राजकीय संरक्षण प्रदान किया और दक्षिण में उर्दू के प्रसिद्ध शायर वली को अपने दरबार में नियन्त्रित किया। वली की साहित्यिक प्रतिभा के में डॉ० युसूफ हुसैन ने लिखा है, “वली की कविता में प्रेम का बाहुल्य है। वह मधुर एवं सम्बन्ध भावना-प्रधान है और पर्याप्त समय तक उसका विशुद्ध स्वरूप मस्तिष्क पर प्रभाव डाले रहता है।”
वली की शैली को कालान्तर में हातिम और मजहर ने अपनाया था। उर्दू के दिल्ली में लोकप्रिय हो जाने के बाद जौक, गालिब व मौमिन ने इसे विकास की ओर उन्मुख किया।
महत्वपूर्ण लिंक
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- मुगलकालीन सामाजिक स्थिति
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- शाहजहाँ कालीन वास्तुकला (“शाहजहाँ का काल मुगलकाल का स्वर्णयुग था”)
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