भारत में स्त्री अनुपात की घटती दर
भारत में स्त्री अनुपात की घटती दर
भारत में स्त्री अनुपात की स्थिति विकसित देशों की तुलना में बड़ी दयनीय है। स्त्री अनुपात की दर में 1950-1951 से लेकर 2014-2015 में भारी परिवर्तन देखने को मिला है। जहाँ भारत को प्राचीन काल में मातृत्व प्रधान का दर्जा प्राप्त था। वह पुरुष प्रधान के रूप में परिणत हो गया। सबसे पहले हमें जानना चाहिए कि आखिर स्त्री अनुपात कहते किसको हैं ? स्त्री अनुपात का अर्थ प्रति 1000 पुरुषों के बदले स्त्रियों की संख्या से होता है। यदि पुरुषों एवं महिलाओं की संख्या प्रति 1000 में 1000 है तो यह स्थिति संतुलित एवं बेहतर मानी जाती है, लेकिन यदि प्रति 1000 पुरुषों के पीछे 780 या 900 महिलाएँ हैं तो यह स्थिति असंतुलित कहलाएगी। यही असंतुलन की स्थिति स्त्री अनुपात की घटती दर कहलाएगी।
स्त्री अनुपात की घटती दर के कारण
भारत में बहुत सारे ऐसे सामाजिक, धार्मिक एवं अन्य कारण हैं, जिनकी वजह से स्त्री अनुपात में निरन्तर कमी आ रही है। हम इन महत्वपूर्ण कारणों को विस्तार से समझ सकते हैं-
सामाजिक कारण
समाज के अन्दर ऐसी बहुत-सी कुरीतियाँ व्याप्त हैं, जिसकी वजह से स्त्री अनुपात का ग्राफ नीचे गिरता चला जा रहा है। शिक्षा के प्रसार में कमी, समानता के दर्जे का अभाव, पुरुषों को स्त्रियों से ऊँचा एवं योग्य माना जाना, बालकों के जन्म को विशेष बढ़ावा, लोगों की मानसिक सोच में कमी, परिवार को बालक के ही द्वारा आगे बढ़ाने की प्रवृत्ति आदि ऐसे सामाजिक कारण हैं जिनकी वजह से भारत जैसे प्रतिभाशाली देश में भी स्त्री अनुपात नीचे गिर रहा है।
भारत में कुछ लोगों का मानना है कि यदि स्त्रियों को ज्यादा पढ़ाया, लिखाया गया तो व पुरुषों का स्थान ले लेंगी, लेकिन ऐसी मानसिकता वाले लोग यह नहीं समझ पाते कि, देश की इन्नति में स्त्री का प्रधान स्थान है। अरस्तू के अनुसार, “माता एवं पिता ही बच्चों की प्रथम पाठशाला हैं। यदि इस विचार पर गौर करें तो जिस देश की नारियाँ पढ़ेंगी, लिखेंगी नहीं तो इनके बच्चे कैसे आगे बढ़ेंगे ? अर्थात् स्त्रियों का अनुपात संतुलित होना बहुत जरूरी है अन्यथा यह एक ऐसी स्थिति को जन्म देगा कि बहुत से पुरुष अविवाहित रह जायेंगे। यही कारण है कि भारत में स्त्रियों का अनुपात नीचे घट रहा है।
सामाजिक कारण के अन्तर्गत यदि हम दूसरे कारण की बात करें तो पुत्र की आकांक्षा भी महत्वपूर्ण कारण हैं, जिससे स्त्रियों के अनुपात में कमी आ रही है। हमारे भारत देश के लोग यह समझते हैं कि बालक का जन्म इनके वंश को आगे बढ़ाएगा, ऐसी सोच हमारे देश के लिये एवं समाज के लिये घातक है। बहुत से लोग भ्रूण हत्या करवाते हैं, जिससे माता एवं बालिका दोनों को खतरा हो सकता है। हालांकि भ्रूण जाँच एवं भ्रूण हत्या दोनों कानूनी अपराध हैं लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो बालक की आकांक्षा के लिये हमारे देश की भावी लड़की की हत्या करवाते हैं। भारत देश में स्त्री अनुपात दर घटने का यह भी महत्वपूर्ण कारण है।
सामाजिक कारण के अन्तर्गत यदि हम तीसरे कारण की बात करें तो लड़का एवं लड़की में भेदभाव भी एक महत्वपूर्ण एवं घातक कारण हैं। आज यदि हम शिक्षा, रोजगार, रक्षा आदि की बात करें तो हर जगह स्त्रियों ने अपना परचम लहराया है, लेकिन भारत जैसे देश की दुर्दशा यह है कि आज भी लोग लड़के को अधिक सुविधा एवं लड़कियों को कम सुविधा प्रदान करते हैं। फलस्वरूप स्त्रियों के अनुपात में कमी होती जा रही है।
धार्मिक कारण
भारत एक विकासशील देश के अन्तर्गत आता है, आज भी यह देश विकसित नहीं हो पाया। इसका कारण भी स्त्रियों के प्रति भेदभाव ही है। धार्मिक कारण ऐसे होते हैं जो गलत सोच रखने वालों को गलत बना देता है एवं अच्छी सोच वालों को अच्छा बना देता है। भारत में हिन्दू धर्म की यह मान्यता है कि यदि लड़का पिता को आग देगा तभी इसे मोक्ष प्राप्त होगा अर्थात् लड़की के अस्तित्व एवं इसकी स्वतंत्रता का हनन भी स्त्री अनुपात के घटने का कारण है। बहुत से लोग यह मानकर लड़कों को जन्म दिलवाना ज्यादा श्रेष्ठ एवं लड़की को जन्म दिलवाना कम अच्छा मानते हैं जिसके परिणामस्वरूप असंतुलन की स्थिति आ गयी है।
अन्य कारण
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त अन्य बहुत से कारण हैं जो स्त्री अनुपात की दर को घटाने के लिये उत्तरदायी हैं-
- बालिकाओं के पोषक आहारों में कमी
- सरकार द्वारा स्त्रियों के अनुपात को बढ़ाने के लिये कोई ठोस कदम न उठाया जाना।
- लोगों के मन में मानसिक सोच का अभाव ।
- स्त्री शिक्षा का अभाव।
इपर्युक्त विवेचन को हम निम्नलिखित लैंगिक तालिका के द्वारा समझ सकते हैं अर्थात् स्त्रियों के अनुपात को गणितीय ढंग से भी व्यक्त किया जा सकता है –
वर्ष | प्रति 1000 हजार पुरुषों में स्त्रियों का अनुपात (संख्या) |
1951 | 946 |
1961 | 941 |
1971 | 930 अत्यधिक खराब स्थिति |
1981 | 934 |
1991 | 927 अत्यधिक खराब स्थिति |
2001 | 933 |
2011 | 940 |
परिणाम
भारत में स्त्रियों के अनुपात की घटती दर का परिणाम बड़ा घातक एवं बड़ा सोचनीय हो सकता है, यदि इसके लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये। इन परिणामों को हम निम्नलिखित पंक्तियों के माध्यम से समझ सकते हैं –
- देश के विकास में अवरोध सबसे बड़ा परिणाम हो सकता है, जिसकी झलक हमें 1971 एवं 1991 में दिखाई देती है। देश के विकास के लिये स्त्रियों के अनुपात में वृद्धि बहुत जरूरी है। इसका दुष्परिणाम हमें आगामी वर्षों में भोगना पड़ेगा।
- स्त्रियों एवं पुरुषों का अनुपात यदि असंतुलित हो रहा है तो बहुत से पुरुषों को अकेले ही जिन्दगी काटनी पड़ेगी अर्थात् बहुत से पुरुष अविवाहित जीवन बिताने के लिये विवश हो जाएंगे। इसका परिणाम यह होगा कि देश में बलात्कार जैसी आदि समस्याओं को झेलना पड़ेगा।
- देश का आर्थिक, सामाजिक ढाँचा पूरी तरह से विखण्डित हो सकता है, जिससे देश के विकास में एक बहुत बड़ा अवरोध उत्पन्न हो सकता है।
अतः हम कह सकते हैं कि देश तभी विकसित होगा जब स्त्री एवं पुरुषों के अनुपात की खाई भर जाएगी अन्यथा इसका दुःखद अन्त हो सकता है। स्त्रियाँ देश के विकास के लिए ही नहीं अपितु हमारे सम्पूर्ण जीवन में एक इच्च स्थान रखती हैं। अतएव हमें स्त्रियों के अनुपात दर में बढ़ोत्तरी करने के उपाय सोचने चाहिए।
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