गरीबी अथवा निर्धनता (Poverty)
गरीबी अथवा निर्धनता का अर्थ
गरीबी अथवा निर्धनता का अर्थ उस स्थिति से जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में असमर्थ रहता है। तीसरी दुनिया के देशों में व्यापक निर्धनता पाई जाती है, यद्यपि यूरोप एवं अमरीका के कुछ भागों में भी निर्धनता विद्यमान है।
एडम स्मिथ के अनुसार गरीबी अथवा निर्धनता की परिभाषा –
“किसी व्यक्ति को धनी अथवा निर्धन इस बात पर माना जा सकता है जिस पर वह मानव जीवन की आवश्यकताओं व सुख-सुविधाओं का भोग करता हो ।”
खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार – “खाद्य एवं कृषि संगठन ने निर्धनता की परिभाषा भुखमरी रेखा के आधार पर दी जो कैलोरी प्राप्त पर थी, यह 2300 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के रूप में थी।”
भारत में निर्धनता/गरीबी के कारण
भारत में निर्धनता/गरीबी के निम्न कारण हैं –
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भारत में कृषि की प्रधानता –
भारत एक अल्पविकसित देश है, जिसमें अधिकांश जनसंख्या कृषि एवं कृषि से सम्बद्ध क्रियाओं में लगी रहती है यहाँ राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का योगदान अधिक होने के कारण अधिकांश जनसमूह खेतों में दिनभर कार्य करने के बावजूद भी भरपेट भोजन के लिए परेशान रहते हैं। कृषि क्षेत्र में 7-8 माह काम चलता है। शेष बाकी महीनों में मजदूर लोग खाली रहते हैं जो गरीबी को बढ़ावा देता है।
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प्रतिव्यक्ति निम्न आय –
यहाँ का दूसरा मुख्य कारण प्रति व्यक्ति आय का स्तर बहुत ही कम/निम्न है। इसी कारण यहाँ दरिद्रता के विशाल सागर दिखाई पड़ते हैं यहाँ जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहा है। इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है। यहाँ आय का स्तर ही नीचा नहीं बल्कि आय स्तर में भी असमानता है।
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जनसंख्या की तीव्र वृद्धि –
भारत जनसंख्या में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है यहाँ की जनसंख्या वृद्धि विकसित देशों की तुलना में बहुत अधिक है, तीव्रगति से बढ़ती हुई जनसंख्या आर्थिक विकास व बेरोजगारी की समस्या बनी हुई है।
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बेरोजगारी तथा प्रच्छन्द बेरोजगारी –
यहाँ बेरोजगारी तथा प्रच्छन्द बेरोजगारी अधिक मात्रा में व्याप्त है क्योंकि यहाँ प्राकृतिक संसाधनों का पूर्णतया विदोहन न होने के कारण बेरोजगारी की समस्या विद्यमान है, क्योंकि रोजगार के अवसरों का सृजन नहीं हो पाता।
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पूँजी निर्माण की निम्न दर-
यहाँ पूँजी निर्माण की निम्नता है जो अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पूँजी की कमी के कारण प्रतिव्यक्ति उत्पादकता का स्तर भी नीचा है। जिसके कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी है। जो गरीबी को बढ़ावा देता है।
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प्राकृतिक संसाधनों का अल्प प्रयोग –
यहाँ उत्पादन के पुराने और अप्रचलित तरीकों का प्रयोग होता है जिनका विकसित देशों ने बहुत पहले ही परित्याग कर दिया है। पिछड़ी हुई तकनीकी के कारण उत्पादन तथा उत्पादिकता निम्न हो जाती है। अतः तकनीकी पिछड़ापन यहाँ की एक अन्य विशेषता है।
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द्वैत अर्थव्यवस्था-
यहाँ द्वैत अर्थव्यवस्था पायी जाती है अर्थात् बाजार व्यवस्था और निर्वाह अर्थव्यवस्था। बाजार अर्थव्यवस्था का स्वरूप नगरीय होता है या नगरों के समीप होते हैं। दूसरी ओर निर्वाह अर्थव्यवस्था ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। जो अल्पविकसित व पिछड़े स्वरूप की होती है। बाजार अर्थव्यवस्था में उच्च कोटि की जटिल तकनीकी का प्रयोग होता है। अर्थात् इनमें आरामदायक एवं विलासिता से सम्बन्धित वस्तुओं का उत्पादन होता है। जबकि निर्वाह अर्थव्यवस्था में कृषि से सम्बद्ध पदार्थों के उत्पादन की प्रधानता रहती है और उत्पादन तकनीकी परम्परागत और पिछड़ी हुई होती है। निर्वाह अर्थव्यवस्थाओं में निर्धनता और पिछड़ेपन की प्रधानता होती है। द्वैत अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत बाजार अर्थव्यवस्था का क्षेत्र बहुत ही कम होता है तथा निर्वाह अर्थव्यवस्था का क्षेत्र विस्तृत होता है, अर्थात् नगरीय जनसंख्या और ग्रामीण जनसंख्या में भारी अन्तराल होता है, जो गरीबी का सबसे बड़ा मुख्य कारण है।
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निर्यातों व आयातों पर निर्भरता –
भारतीय अर्थव्यवस्था में अधिकांश रूप से विदेशी व्यापार उन्मुख हैं, जिनके कारण यहाँ कुछ प्रारम्भिक वस्तुएं ही पैदा की जाती हैं, जिन्हें पूरी तरह से निर्यात कर दिया जाता है और जिसके बदले में उपभोक्ता वस्तुओं तथा मशीनरी का आयात होता है।
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