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गरीबी का दुष्चक्र (Vicious Circle of Poverty)

निर्धनता के दुष्चक्र

निर्धनता के दुष्चक्र

(Vicious Circle of Poverty)

प्रो. रैगनर नर्कसे के अनुसार, “एक देश इसलिए निर्धन है, क्योंकि वह निर्धन है।’

रेगनर ने यह भी कहा है कि “निर्धनता के दुष्चक्र का अर्थ, नक्षत्र मण्डल के समान वृत्ताकार ढंग से घूमती हुई ऐसी शक्तियों से है, जो एक-दूसरे पर इस प्रकार क्रिया-प्रतिक्रिया करती हैं कि एक निर्धन देश निर्धनता की अवस्था में ही बना रहता है।”

उदाहरण के लिए, एक निर्धन व्यक्ति को खाने के लिए पर्याप्त खाद्य नहीं मिल पाता, खाद्य की कमी के कारण वह निर्धन हो जाता है, शारीरिक रूप से निर्बल होने पर उसकी कार्यक्षमता कम होने लगती है, जिसका अर्थ यह है कि वह निर्धन जिसका फिर यह अर्थ होता है कि उसे पर्याप्त भोजन नहीं मिलता यह क्रम इसी प्रकार आगे भी चलता रहता है। इस स्थिति को सम्पूर्ण देश के साथ सम्बद्ध करने पर, एक कथन के रूप में इस प्रकार कहा जायेगा कि – “एक देश इसलिए निर्धन हैं, क्योंकि वह निर्धन है।”

प्रो. रैगनर नर्कसे के अनुसार- “यह चक्रीय परिवर्तन अर्द्धविकसित देशों में पूँजी संचय की स्थिति के कारण व परिणाम का रूप स्पष्ट करता है। किसी देश में पूँजी की पूर्ति बचत करने की शक्ति व इच्छा पर निर्भर करती है। विश्व के अधिकांश निर्धन देशों में पूँजी निर्माण की समस्या की यह मांग व पूर्ति पक्ष रूपी चक्रीय सम्बन्ध प्रायः दृष्टिगोचर होता है। पूँजी निर्माण की कमी, पूँजी की पूर्ति का प्रभाव पड़ता है जो बचत करने की योग्यता व इच्छा पर माँग व पूर्ति दोनों पक्ष के आधार पर होती है।’

नर्कस के अनुसार – “पूँजी के अभाव में अतिरिक्त अन्य बातों के कारण भी कोई राष्ट्र गरीब हो सकता है, जैसे – प्राकृतिक साधनों का अभाव खनिज सम्पत्ति व जलपूर्ति आदि अथवा उनका अल्प विदोहन और बाजार की अपूर्णतायें भी निर्धनता के लिए पूर्ण प्रकार से उत्तरदायी ठहराई जा सकती हैं। विश्व के कुछ राष्ट्र केवल इस कारण गरीब हैं कि यहाँ पर प्राकृतिक साधनों की बाहुल्यता होने पर भी उनका उचित विदोहन सम्भव नहीं हो पाया है। पूँजी का अभाव, बचत करने की कम क्षमता तथा विनियोग करने की प्रेरणा के अभाव के कारण होता है।’

प्रो. विन्सल के शब्दों में, “निर्धनता एवं बीमारी एक दुश्चक्र में परस्पर क्रमबद्ध थे। पुरुष और स्त्रियाँ इसलिए बीमार थीं कि लोग गरीब थे, वे गरीब इसलिए हो गये क्योंकि वे बीमार थे। वे और अधिक गरीब इसलिए होते चले गये, क्योंकि वे बीमार थे और उनकी उत्तरोत्तर बीमारी का कारण उनकी गरीबी थी।”

प्रो. के.एन. भट्टाचार्य के अनुसार “निर्धनता और आर्थिक पिछड़ापन दो पर्यायवाची शब्द है। एक देश इसलिए निर्धन होता है, क्योंकि यह अर्द्धविकसित है। यह अर्द्धविकसित इसलिए है कि वह निर्धन और अर्द्धविकसित इसलिए बना रहता है, क्योंकि इसके पास विकास की गति प्रदान करने के लिए वांछित साधनों का अभाव होता है। निर्धनता एक अभिशाप है, परन्तु इससे बड़ा अभिशाप यह है कि निर्धनता अपनी जननी स्वयं है।”

गरीबी (निर्धनता) के दुश्चक्र की विशेषताएं

गरीबी के दुश्चक्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. यह दुश्चक्र निरन्तर रूप से चलता रहता है।
  2. इसमें फंसा हुआ व्यक्ति आसानी से निकल नहीं पाता है।
  3. यह चक्र व्यक्तियों को शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर कर देता है।
  4. इसमें फंसा व्यक्ति स्वयं को असहाय समझने लगता है।

नर्कसे के विचारों का आलोचनात्मक मूल्याँकन

नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. मिर्डल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Asian Drama’ में विचार व्यक्त किया है कि “ऐसा लगता है कि प्रो. रैगनर नर्कसे ने निर्धनता के दुष्चक्र की प्रतिक्रिया को किसी फिल्म की कहानी अथवा घटनाक्रम पर आधारित करने का प्रयास किया है, जिसमें प्रत्येक घटना किसी निश्चित क्रम व निश्चित समय पर घटित होती है और ऐसा होना स्वाभाविक है, क्योंकि घटनाक्रम के पीछे निर्माता व निर्देशक की इच्छा व पूर्ण निश्चित मोड़ो की उपस्थिति अवश्यम्भावी है, परन्तु एक अर्थव्यवस्था की स्थिति इससे सर्वथा भिन्न है। कौन-सा आर्थिक घटक कब और किस प्रकार मोड़ ले लेगा, उसे कौन से अन्य ज्ञात व अज्ञात तत्व किस स्तर पर और किस रूप में प्रभावित करेंगे। यह अनुमान तो लगाया जा सकता है परन्तु उसे एक स्वचालित मशीन का रूप नहीं दिया जा सकता है।’

निर्धनता के दुष्चक्र के कारण

(Causes of Vicious Circle of Poverty)

भारत में निर्धनता के दुष्चक्र के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. देश का अल्प विकारा होना,
  2. आय एवं धन की अत्यधिक असमानता,
  3. प्रति व्यक्ति न्यून आय का होना,
  4. अपर्याप्त वृद्धि दर का होना,
  5. जनसंख्या की इच्च वृद्धि दर,
  6. बेरोजगारी के कारण दरिद्रता में वृद्धि,
  7. श्रम की निम्न इत्पादकता तथा कम आय रोजगार,
  8. अत्यधिक क्षेत्रीय असमानताएँ,
  9. आवश्यक वस्तुओं की निम्न प्राप्यता,
  10. मुद्रा प्रसार,
  11. पूंजी का अभाव,
  12. पुरानी व घिसी-पिटी तकनीक,
  13. अपर्याप्त सरकारी व्यय,
  14. सामाजिक कारण व पुरानी सामाजिक संस्थाएँ,
  15. कम आय एवं धीमा आर्थिक विकास,
  16. ग्रामीण अर्थव्यवस्था,
  17. योग्य एवं निपुण उद्यमियों का अभाव,
  18. प्राकृतिक साधनों का उचित उपयोग न होगा।

निर्धनता के दुष्चक्र को तोड़ने के उपाय

(Measures to Eradicate the Vicious Circle of Poverty)

निर्धनता के दुष्चक्र को तोड़ने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

  1. ग्रामीण गरीबों की आर्थिक दशा को सुधारना चाहिए।
  2. विशेष क्षेत्र विकास कार्यक्रमों का संचालन करना चाहिए।
  3. रोजगार प्रजनन कार्यक्रमों का संचालन किया जाय।
  4. भूमि सुधार नीति अपनायी जाय।
  5. आधारभूत संरचना का विकास किया जाय।
  6. देश में उद्यमशीलता का विकास किया जाय।
  7. पर्याप्त प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किए जाएं।
  8. उत्पादकता में वृद्धि एवं बेरोजगारी की समस्या का समाधान करके पूँजी निर्माण की दर बढ़ायी जाय ।
  9. प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण करके इनका उचित विदोहन हो।
  10. देश में तकनीकी विकास पर जोर दिया जाय।
  11. सरकारी नीतियों का निर्माण एवं क्रियान्वयन उपयुक्त एवं उचित आधार पर हो।
  12. विदेशी पूँजी एवं सहयोग को प्रोत्साहन दिया जाय।
  13. नवीनतम तकनीक का आयात किया जाय।
  14. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित किया जाय।

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