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शिक्षित बेरोजगारी

शिक्षित बेरोजगारी

शिक्षित बेरोजगारी के कारण

यह बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी है। इसके निम्न कारण हैं –

  1. रोजगार परक शिक्षा प्रणाली का अभाव,
  2. स्वरोजगार की इच्छा शक्ति का अभाव,
  3. सरकारी नौकरियों के प्रति आकर्षण,
  4. शिक्षित युवाओं का शहरों की ओर पलायन,
  5. विनियोग की कमी,
  6. व्यावसायिक शिक्षा का मन्द विकास,
  7. रोजगार प्रशिक्षण तथा मार्ग दर्शन की कमी,
  8. मन्द विकास दर,
  9. विपरीत इत्पादन प्रौद्योगिकी,
  10. शिक्षित वर्ग की विचारधारा।

शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के सुझाव

जब शिक्षित व्यक्तियों को अपनी योग्यतानुसार कार्य नहीं मिलता और वह बेरोजगार रहता है, तो इसे शिक्षित बेरोजगारी कहते हैं। भारत में शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के लिए निम्न सुझाव दिए जा सकते हैं-

  1. व्यावसायिक एवं तकनीकी अध्ययनों पर जोर देना-

    हमें वर्तमान शिक्षा प्रणाली व्यावसायिक एवं तकनीकी अध्ययनों पर जोर देना होगा क्योंकि व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात छात्र अपना व्यवसाय या उद्योग प्रारम्भ कर सकता है। इस प्रकार उसे रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।

  2. प्रशिक्षण सुविधाओं का प्रसार-

    देश में प्रशिक्षण सुविधाओं का प्रसार किया जाना चाहिए, जिसमें शिक्षित व्यक्तियों को व्यावसायिक एवं तकनीकी प्रशिक्षण दिए जाने चाहिए जिससे कि उसे अपना रोजगार तलाश करने में आसानी रहे।

  3. सशक्त शिक्षा-

    शिक्षा को सशक्त किया जाना चाहिए अर्थात् लापरवाह व न पढ़ने वाले छात्रों को किसी भी कीमत पर उत्तीर्ण नहीं किया जाना चाहिए। इससे छात्रों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत तो कम होगा, किन्तु शिक्षित बेरोजगारी कम होगी।

  4. रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न करना-

    व्यवसाय एवं उद्योगों में शिक्षित बेरोजगारों के लिए रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न किए जाने चाहिए।

  5. शिक्षित व्यक्तियों को प्राथमिकता –

    अशिक्षित व्यक्तियों की अपेक्षा शिक्षित व्यक्तियों को रोजगार में प्राथमिकता देनी चाहिए।

  6. जनशक्ति नियोजन –

    किसी देश के लिए मानव पूँजी अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखती है अतः इसका पूर्ण सदुपयोग किया जाना चाहिए। जनशक्ति के नियोजन के अभाव में कुछ प्रशिक्षित श्रमिक को रोजगार नहीं मिल पाता है तो कहीं विशिष्ट प्रकार के प्रशिक्षित श्रमिक उद्योगों को नहीं मिल पाते है। इस प्रकार बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए जनशक्ति नियोजन आवश्यक है।

  7. जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण –

    बेरोजगारी को दूर करने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण आवश्यक है तभी की पूर्ति दर को कम किया जा सकता है। बेरोजगारी दूर करने के लिए एक दीर्घकालीन उपाय है।

  8. भूमि सुधार कार्यक्रमों का क्रियान्वयन –

    भारत में भूमि सुधार कार्यक्रमों जैसे- कृषि जोतों की सीमा बन्दी एवं भूमि की चकबन्दी आदि का शीघ्र क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त जिन लोगों को भूमि का आवंटन किया गया है उन्हें तथा छोटे कृषकों को कृषि से सम्बन्धित आवश्यक साधन उपलब्ध कराये जाने चाहिए जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि हो सके।

  9. बहुफसली कृषि को प्रोत्साहन –

    भारत में श्रमिकों को पूर्ण रोजगार प्रदान करने के लिए बहुफसली कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्नत बीजों, सिंचाई एवं खाद आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए।

  10. ग्रामीण औद्योगीकरण को प्रोत्साहन –

    ग्रामीण क्षेत्रों की बेरोजगारी दूर करने के लिए कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात, बैंकों एवं विद्युत आपूर्ति आदि सुविधाओं का विकास किया जाना चाहिए।

  11. रोजगार उन्मुख नियोजन-

    देश में नियोजन करते समय रोजगार सृजन को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए इस सम्बन्ध में जो नीतियाँ इस दिशा में बाधक दिखलाई देती है उन्हें शीघ्र ही हटा देना चाहिए।

  12. लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास –

    बेरोजगारी दूर करने के लिए लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास आवश्यक हैं। इन उद्योगों की स्थापना में कम पूँजी की आवश्यकता होती है तथा ये अधिक उत्पादन एवं रोजगार उपलब्ध कराते हैं।

  13. उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग –

    देश में स्थापित उद्योगों की उत्पादन क्षमता के पूर्ण उपयोग हेतु प्रयास किया जाना चाहिए जिससे उत्पादन लागत में कमी आयेगी तथा रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध होगें।

  14. शिक्षा को व्यावहारिक रूप-

    देश में विद्यार्थी की हाईस्कूल की शिक्षा के पश्चात उनकी रुचि व योग्यता के अनुसार व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए अर्थात् देश में श व्यावहारिक रूप प्रदान किया जाना चाहिए।

  15. आधुनिकीकरण व स्वचालन पर नियन्त्रण –

    भारत में कुछ गत वर्षों में उद्योगपतियों द्वारा मशीनों के आधुनिकीकरण व स्वचालन पर विशेष बल दिया गया है क्योंकि उत्पादन क्षमता में जहाँ वृद्धि की जानी चाहिए वहाँ सम्भवतः श्रमिकों पर कम निर्भर रहना है लेकिन रोजगार की दृष्टि से यह उचित नहीं है। अतः सरकार को यह चाहिए कि वह केवल पूँजीगत वस्तुओं तथा निर्यात सम्बन्धी वस्तुओं को ही प्राथमिकता दे।

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