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गरीबी रेखा के निर्धारण का महत्त्व

गरीबी रेखा के निर्धारण का महत्त्व

गरीबी रेखा के निर्धारण का महत्त्व

एक निर्धनता रेखा के अनेक उपयोग होते हैं। यह एक निश्चित न्यूनतम उपभोग स्तर को निर्धारित/व्यक्त करता है। यह एक न्यूनतम सामाजिक स्वीकार्य जीवन स्तर को व्यक्त करता है। इससे यह माप की जा सकती है कि समय के साथ कितने लोग इस रेखा से ऊपर जा सकने में समर्थ हुए हैं। इससे सरकारी कार्यक्रमों पर अधिकार का निर्धारण होना होता है जिससे विभिन्न प्रकार की आर्थिक सामाजिक सहायता प्रदान की जाती है।

गरीबी रेखा के निर्धारण हेतु सरकार द्वारा उठाये गये कदम

भारत में निर्धनता का अनुमान योजना आयोग द्वारा किया जाता है जो कि समय-समय पर इसके लिए गठित की गयी समितियों की अनुसंशाओं के आधार पर होता है।

  1. इसके लिए पहला अनुमान योजना आयोग द्वारा गठित अध्ययन दल की अनुशंसाओं पर आधारित था जिसके अध्यक्ष डी० आर० गारगिल थे।

गारगिल समूह ने राष्ट्रीय निर्धनता रेखा का निर्धारण रु. 20 प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह उपभोग व्यय (1960-61 की कीमतों पर) के रूप में किया था जो कि ग्रामीण तथा नगरीय दोनों ही क्षेत्रों के लिए एक समान था।

  1. योजना आयोग तथा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद्, 1979-

    1979 में योजना आयोग से ICMR के सहयोग से आयु, लिंग, क्रियाकलाप आधारित, कैलोरी आवश्यकताओं का निर्धारण ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग किया। इसे निर्धनता रेखा की भोजन ऊर्जा विधि कहा गया। इसके अन्तर्गत यदि नगर निवासी प्रतिदिन 2100 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन भोजन के द्वारा प्राप्त करता है तो वह गरीबी रेखा से ऊपर होगा तथा यदि ग्रामीण निवासी 2400 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन भोजन के द्वारा प्राप्त करता है तो वह गरीबी रेखा से ऊपर होगा।

  2. डी०टी० लकडावाटन समिति-

    निर्धनता पर विशेष समिति 1989 में डी०टी० लकडावाटन की अध्यक्षता में बनायी गयी थी। इन्होंने रिपोर्ट 1993 में सौंपी। लकडावाटन समूह ने निर्धनता के लिए अपनायी जाने वाली विधि में आधारभूत परिवर्तन किए। इस सन्दर्भ में दो प्रमुख परिवर्तन थे –

  3. प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्य विशिष्ट निर्धनता सेवाओं का निर्धारण ग्रामीण तथा नगरीय दोनों क्षेत्रों के लिए इस परिवर्तन के पश्चात् कोई भी निर्धारित निर्धनता रेखा नहीं है। इनके स्थान पर राज्य विशिष्ट निर्धनता रेखाएं हैं जिनके द्वारा अखिल भारतीय निर्धनता रेखाओं के आकलन को प्राप्त किया जा सकता है।
  4. ग्रामीण निर्धनता रेखा आकलन के लिए कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का तथा नगरीय क्षेत्र के औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का उपयोग किया गया। वर्तमान में ग्रामीण निर्धनता रेखा के लिए CPI ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के लिए CPI- नगरीय का उपयोग किया जाता है।

लकडावाला समूह की अनुशंसाओं को 9वीं पंचवर्षीय योजना (1991-2002) से अपनाया गया ।

सुरेश तेंदुलकर समिति

सुरेश तेंदुलकर समिति ने गरीबी रेखा निर्धारण के सन्दर्भ में निम्नलिखित संस्तुतियाँ की –

  1. कैलोरी उपभोग स्तर तथा पोषक तत्व प्राप्तियों के स्तर के मध्य दुर्बल सहसंबंध होने के कारण निर्धनता रेखा के आकलन के लिए कैलोरी मानक के उपयोग को त्याग दिया जाना चाहिए।
  2. अखिल भारतीय नगरीय निर्धनता रेखा को अन्य निर्धनता रेखाओं के निर्धारण के लिए आहार के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सुझाव दो कारणों से उचित ठहराया जा सकता है
  1. 2004-05 में नगरीय क्षेत्रों में निर्धनता रेखा के सन्दर्भ में किए जाने वाले व्यय का स्तर 1776 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन के उपभोग का था जो कि FAO द्वारा भारत के लिए सुझाए गये 1800 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन के काफी निकट था।
  2. 2004-05 में नगरीय क्षेत्रों के प्रतिव्यक्ति व्यय का वास्तविक स्तर शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के एक वांछित स्तर के लिए पर्याप्त था।
  3. अखिल भारतीय नगरीय निर्धनता रेखा का आकलन निरन्तर MRP विधि के आधार पर किया जाना चाहिए न कि URP के आधार पर।
  4. अखिल भारतीय नगरीय निर्धनता रेखा के आधार पर प्रत्येक राज्य के लिए ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों के लिए इसकी समता स्तरों का आकलन किया जाना चाहिए।
  5. क्रय शक्ति समता के आधार पर प्रत्येक राज्य के लिए ग्रामीण व नगरीय निर्धनता रेखा का निर्धारण किया जाना चाहिए जिन स्तरों पर नगरीय क्षेत्रों में किया जाने वाला उपयोग संतुष्ट हो सके। तेन्दुलकर विधि के आधार पर योजना आयोग द्वारा 2004-05 तथा 2009-10 के लिए निर्धनता अनुपातों का आकलन किया गया है।

इस विधि के अनुसार अखिल भारतीय निर्धनता रेखाएं नगरीय तथा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए क्रमशः रहीं-

वर्ष शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र
2004-05 ₹578.80 ₹446.68 प्रतिव्यक्ति प्रति महीना
2009-10 ₹859.60 ₹672.80 प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह

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