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एडम स्मिथ और रिकार्डो के आर्थिक विकास के सिद्धांत एवं आलोचनाएं

एडम स्मिथ और रिकार्डो के आर्थिक विकास के सिद्धांत

एडम स्मिथ के आर्थिक विकास सिद्धांत

आर्थिक विकास सिद्धान्त के संदर्भ में एडम स्मिथ का काफी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इंग्लैंड में 1770 तक की आर्थिक प्रगति एडम स्मिथ. की बतायी हुई विधि के अनुकूल ही रही है। इसमें कोई संदेह नहीं था कि एडम स्मिथ की ‘वेल्थ ऑफ नेशंस’ ने देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी नीतियों को प्रभावित किया। इस सिद्धान्त के मुख्य गुण इस प्रकार हैं-

  1. संतुलित विकास –

    एडम स्मिथ ने श्रम-विभाजन के विस्तार को महत्त्व दिया तथा संतुलित विकास पद्धति को अपनाया।

  2. पूँजी विकास का आधार –

    इन्होंने अपने सिद्धान्त में पूँजी को आर्थिक विकास का आधार माना है।

  3. अहस्तक्षेप नीति –

    एडम स्मिथ आर्थिक विकास के लिए अहस्तक्षेप नीति को ही श्रेष्ठ समझते थे, क्योंकि सरकारी कारखाने हानि में चल रहे हैं जिससे पूँजी का ह्रास होता है।

  4. नीचे से विकास –

    स्मिथ ने नीचे से विकास अर्थात् कृषि विकास को आधार माना, जिससे औद्योगिक विकास के लिए मशीनों का आयात किया जा सके।

  5. बाजार में विस्तार –

    श्रम-विभाजन का लाभ प्राप्त करने एवं रोजगार को बढ़ावा देने, नवीन प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने तथा निजी साहस को प्रोत्साहन देने के लिए बाजार का विस्तार सर्वमान्य तथ्य है।

एडम स्मिथ के आर्थिक विकास सिद्धान्त की आलोचनाएं

एडम स्मिथ का आर्थिक विकास सिद्धान्त विश्व स्तर पर लोकप्रिय रहा फिर भी इस सिद्धान्त की निम्नलिखित आधार पर आलोचनाएँ भी की जाती हैं-

  1. मध्यवर्ग की उपेक्षा –

    स्मिथ का सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि समाज में केवल दो महत्त्वपूर्ण वर्ग हैं- प्रथम पूँजीपति और द्वितीय श्रमिक। परन्तु आधुनिक समाज में मध्य वर्ग का बहुत महत्त्व पाया जाता है क्योंकि यह वर्ग ही आर्थिक विकास के लिए आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करता है, परंतु इस सिद्धान्त में मध्य वर्ग की उपेक्षा की गई है।

  2. साहसी की अवहेलना –

    साहसी विकास का केन्द्र बिन्दु होता है, परन्तु स्मिथ विकास में साहसी के कार्य की अवहेलना करता है जो बहुत बड़ी भूल है।

  3. स्थिर अवस्था की अवास्तविक धारणा –

    स्मिथ का यह विचार कि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की अंतिम अवस्था गतिहीन या स्थिर अवस्था की है, अवास्तविक है।

  4. पूर्ण प्रतियोगिता की अवास्तविक धारणा –

    स्मिथ का विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है कि अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है। किसी भी अवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता नहीं पायी जाती। लगभग प्रत्येक देश में आंतरिक व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध, व्यक्तिगत क्षेत्र में रुकावटें पायी जाती हैं जो कि गलत अवधारणा है।

  5. बचत का एकपक्षीय अधिकार –

    स्मिथ का यह विचार भी दोषपूर्ण है कि समाज में केवल पूंजीपति, भूमिपति और साहूकार ही बचत करते हैं, जबकि उन्नत समाज में आय प्राप्तकर्ता भी बचत करने वाले वर्ग होते हैं।

रिकार्डो का आर्थिक विकास का सिद्धान्त

रिकार्डो आर्थिक विकास के सिद्धान्त का प्रतिष्ठित विचारधारा के एक उज्ज्वल सितारें हैं और उन्होंने एड्म स्मिथ के विकास के सिद्धान्त को एक अच्छे ढंग से विकसित तथा पूर्ण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। यद्यपि रिकार्डो ने विकास का कोई स्वतंत्र क्रमबद्ध सिद्धान्त प्रतिपादित नहीं किया है, परन्तु उनके विकास संबंधी विचार उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “The Principles of Political Economy and Taxation’ तथा अनेक पत्रों में बिखरे हुए हैं, जिन्हें रिकार्डो ने दूसरे अर्थशास्त्रियों को लिखा था।

रिकार्डो के विकास सिद्धान्त के गुण

  1. बचत का महत्त्व –

    आधुनिक अर्थशास्त्रियों की भांति रिकार्डो ने भी यह कहा कि अधिक पूँजी निर्माण के लिए अधिक बचत आवश्यक है। इस प्रकार रिकार्डो आधुनिक अर्थशास्त्रियों का अग्रगामी हैं।

  2. लाभ की दर में वृद्धि –

    रिकार्डो का मत था कि आर्थिक विकास को त्वरित करने के लिए लाभ की दर बढ़ानी चाहिए, क्योंकि पूँजी संचय इसी पर निर्भर करता है।

  3. विदेशी व्यापार का महत्त्व –

    रिकार्डो ने देश की आर्थिक साधनों का अनुकूलतम उपयोग व अन्य में वृद्धि के लिए विदेशी व्यापार को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया है। परंतु वह औपनिवेशिक व्यापार के विरुद्ध था, क्योंकि वह सभी देशों के उद्योगों को शक्तिहीन करता है। इसी विचार में वह मार्क्स का अग्रगामी था।

  4. कृषि विकास पर जोर-

    रिकार्डो ने देश के आर्थिक विकास के लिए कृषि के विकास पर बहुत जोर दिया। उनका मत था कि औद्योगिक विकास कृषि के विकास पर निर्भर करता है। विकास का यह क्रम न केवल इंग्लैण्ड या अन्य यूरोपीय देशों में रहा बल्कि भारत और अल्पविकसित देशों में भी पाया जाता है।

  5. प्रावैगिक सिद्धान्त –

    रिकार्डो का सिद्धान्त प्रावैगिक है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के विभिन्न चरों, जैसे जनसंख्या, मजदूरी, लगान तथा लाभ आदि में परिवर्तनों के प्रभावों का क्रमबद्ध अध्ययन करता है।

रिकार्डो के आर्थिक विकास सिद्धान्त की आलोचनाएं

प्रो० रिकार्डो का विकास सिद्धान्त बहुत एकांगी तथा रूढ़िवादिता से ग्रस्त है इसलिए कई अर्थशास्त्रियों ने इन्हें विकास अर्थशास्त्री के रूप में मानने से इनकार कर दिया है। उनके अनुसार रिकार्डो ने “केवल एडम स्मिथ द्वारा छोड़ी गई आर्थिक कड़ियों को अपेक्षाकृत एक जटिल ढंग से जोड़ने का प्रयास किया।” रिकार्डो की आर्थिक विकास के सिद्धान्त की प्रमुख आलोचनाएं निम्नलिखित हैं-

  1. स्थिर अवस्था –

    रिकार्डो ने स्थिर अवस्था के बारे में जो विचार दिये हैं वे त्रुटिपूर्ण हैं। आज विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी स्थिर अवस्था नहीं पायी जाती जबकि उनका विकास काल काफी लंबा हो चुका है।

  2. प्रौद्योगिकी के महत्व की उपेक्षा –

    रिकार्डो ने प्रौद्योगिकी के महत्व की सर्वथा अवहेलना की है, जो कि आर्थिक विकास की कुंजी है।

  3. घटते प्रतिफल के नियम को अनावश्यक महत्त्व –

    रिकार्डो ने घटते प्रतिफल के नियम को निवारण के संबंध में विकसित तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी क्षमताओं का भी मूल्यांकन नहीं किया। जिसे कि आज के उन्नत राष्ट्रों द्वारा कृषि क्षेत्र में पूर्णतः सिद्ध किया जा चुका है।

  4. अहस्तक्षेप नीति –

    प्रो० शुम्पीटर ने एडम स्मिथ की भांति रिकार्डो के भी अहस्तक्षेप नीति के विचार की कड़ी आलोचना की है। आज प्रत्येक अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता, मुक्त व्यापार एवं सरकारी अहस्तक्षेप का अभाव पाया जाता है। विकास में राज्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो गई है।

  5. जनसंख्या संबंधी दोषपूर्ण विचार –

    रिकार्डो की यह धारणा है कि जनसंख्या में वृद्धि होने पर मजदूरी की दर में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता अवास्तविक है।

  6. ब्याज रहित विचार –

    रिकार्डो के आर्थिक विकास सिद्धान्त में ब्याज का कहीं उल्लेख नहीं आता है। ब्याज को लाभ का ही अंग मानते हैं, यह पूर्णतया गलत है।

  7. स्थिर गुणांक –

    रिकार्डो के अनुसार पूँजी एक स्थिर गुणांक होते हैं। यह धारणा गलत है। पूँजी एवं श्रम दोनों स्वतंत्र चर होते हैं।

  8. पूर्ण प्रतियोगिता –

    रिकार्डो का सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता की धारणा पर आधारित है, तथा पूर्ण प्रतियोगिता मिथ्या धारणा है।

  9. पूर्ण रोजगार –

    रिकार्डो का पूर्ण रोजगार की धारणा भी गलत है।

  10. अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक तत्व –

    अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक तत्व, जैसे – संस्थाएं, योग्यताएं आदि को विद्यमान मान लिया है।

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