गरीबी एवं पर्यावरण प्रदूषण के मध्य सम्बन्ध

गरीबी एवं प्रदूषण के मध्य सम्बन्ध

गरीबी एवं प्रदूषण के मध्य सम्बन्ध

(Relation between Poverty and Pollution)

गरीबी – सामान्यतया गरीबी का आशय लोगों के निम्न जीवन स्तर से लगाया जाता है। भारतीय योजना आयोग के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी से कम उपभोग करने वाले व्यक्तियों को गरीब या निर्धन माना जाता है।

पर्यावरण प्रदूषण

पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण अवनयन की अन्तिग सीमा होती है। जब पर्यावरण अवनयन इतना अधिक हो जाता है कि वह विभिन्न जीव-जन्तुओं के लिए, विशेष रूप से मानव के लिए हानिकारक व जानलेवा हो जाता है, तो उसे पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है। संक्षेप में पारिस्थितिकी तन्त्र में उसकी सहनशक्ति से अधिक मानव द्वारा किया गया हानिकारक परिवर्तन पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है।

गरीब व्यक्तियों को प्राकृतिक संसाधनों, जैसे- भूमि, जल, वन आदि के अत्यधिक उपयोग करने की प्रवृत्ति होती है। इसलिए वे इनका अधिक विनाश करते हैं। इसी कारण यह कहा जाता है कि गरीबी पर्यावरण की सबसे बड़ी प्रदूषक होती है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि का कारण गरीबी को गाना जाता है। एशिया, लैटिन अमेरिका एवं अफ्रीका के पिछड़े हुए देश विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करने के साथ-साथ समस्याएँ भी उत्पन्न करते हैं। निर्धन लोगों का यह विचार होता है कि घरेलू एवं आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इनके अधिक बच्चे होने चाहिए। निर्धन परिवारों की इस सोच के कारण जनसंख्या बढ़ती है जो निर्धनता को जन्म देती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या के कारण भूमि पर अधिक दबाव पड़ता है, भूमि का अधिक शोषण किया जाता है, अधिक चराई तथा पेड़ों की कटाई होती है। इन कारणों से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या द्वारा अधिक जल का उपभोग किया जाता है। पेड़ों की अधिक कटाई से वर्षा में कमी आती है जिससे सिंचाई व पेयजल की कमी होती है। अधिक जनसंख्या से भूमि का विखण्डन होता है, पानी की कमी से भू-क्षरण होता है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए अधिक जलाऊ लकड़ी को आवश्यकता पड़ती है। इससे पेड़ों की कटाई पुनः शुरू हो जाती है। परन्तु कभी-कभी बाढ़ आने से उपजाऊ भूमि समाप्त हो जाती है।

निर्धनता के परिणामस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि होती है। जनसंख्या वृद्धि से ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं कि पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता है। पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जो निर्धनता को पुनर्जन्म देता है। अतएव पर्यावरण प्रदूषण एवं निर्धनता का दुष्चक्र चलता रहता है। निर्धन लोगों में जागरूकता का अभाव होता है। पारिवारिक सदस्यों की जनसंख्या बढ़ने से वे शहरों की ओर प्रवास करते हैं। एक ओर जहाँ निर्धन लोगों के शहरों के प्रवास के कारण मलिन बस्तियाँ बढ़ती है व जल आपूर्ति, सफाई, कूड़े-कचरे के ढ़ेर जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे वायु प्रदूषण की समस्या इत्पन्न हो जाती है। मुम्बई जैसे शहर में सैकड़ों मलिन बस्तियाँ हैं जो पूरे शहर को प्रदूषित करती हैं।

यूनीसेफ की रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरणीय प्रदूषण को केवल निर्धनता दूर करके रोका जा सकता है। रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि स्वास्थ्य व शिक्षा की मदद से निर्धनता को दूर किया जा सकता है। शिक्षित. कृषक अधिक उत्पादन करते हैं। शिक्षा में सुधार से प्रतिव्यक्ति आय बढ़ती है तथा पर्यावरणीय दशाओं में सुधार आता है।

विश्व का प्रत्येक देश निर्धनता उन्मूलन के लिए प्रयासरत है ताकि निर्धन लोग स्वस्थ जीवनयापन कर सकें। विगत कुछ दशकों में औसत जीवन स्तर ऊपर उठा है लेकिन अत्यन्त धनवान व अत्यन्त गरीब के बीच अन्तर बढ़ा है। निर्धनता के कई कारणों में से दो प्रमुख कारण शिक्षा की कमी एवं निर्धनता उ.मूलन नीतियों का अनुचित क्रियान्वयन रहा है। कई अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिवेदन यह दावा करते हैं कि निर्धनता के कारण पर्यावरणीय अवनयन होता है। ज्ञान के अभाव में निर्धन लोग प्रत्येक उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन का अत्यधिक शोषण करते हैं जिससे पर्यावरणीय प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है।

मेरे विचार में यह प्रत्येक व्यक्ति को समझना चाहिए कि निर्धनता एवं पर्यावरणीय प्रदूषण अन्तर्सम्बन्धित हैं। निर्धनता पर्यावरण पर दबा डालती है तथा पर्यावरणीय समस्याएँ निर्धनों के जीवन को अत्यन्त कष्टदायी बनाती हैं। लोग, चाहे वे धनी हों या निर्धन, जल, भोजन, प्राकृतिक संसाधनों का इपभोग करते हैं। सभी आर्थिक गतिविधियाँ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष अथवा दूरस्थ रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होती है तथा प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ने पर पर्यावरण पर दबाव पड़ता है। पर्यावरणीय क्षति से लोगों, विशेष रूप से निर्धनों का जीवन कष्टदायी बनता है चूँकि निर्धन लोग पर्यावरण पर अधिक निर्भर होते हैं, इसलिए इन पर पर्यावरणीय प्रदूषण का अधिक कुप्रभाव होता है।

निर्धनता पर्यावरण पर अधिक प्रभाव डालती है। अनुचित मल निस्तारण व्यवस्था से अस्वस्थकारी जीवन दशाएँ, उपजाऊ भूमि पर अधिक दबाव, प्राकृतिक संसाधनों का अति विदोहन तथा अधिक वनोन्मूलन होता हैं। पर्यावरणीय प्रदूषण निर्धनों के जीवन को अत्यन्त दुःखद बनाता है। पर्यावणीय प्रदूषण के कारण भू-अवनयन होने से अनाज के उत्पादन में कमी आती है। संक्षेप में, पर्यावरणीय अवनयन के आर्थिक, सामाजिक प्रभावों को निर्धनों द्वारा सर्वाधिक अनुभव किया जाता है। वर्तमान समय में सभी देशों की सरकारों को निर्धनता उन्मूलन के लिए कठोर प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि पर्यावणीय प्रदूषण से होने वाले गम्भीर परिणामों से बचा जा सके। हमारा विश्वास है कि निर्धनता उन्मूलन किए बिना पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को समाप्त नहीं किया जा सकेगा।

गरीबी एवं पर्यावरण प्रदूषण में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। जिन देशों या क्षेत्रों में गरीबी अधिक पायी जाती है, वहाँ पर्यावरण प्रदूषण भी अधिक होता है क्योंकि गरीबों के पास सभी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती और उनका जीवन स्तर अत्यन्त निम्न होता है। इसके विपरीत जिन देशों या क्षेत्रों में गरीब कम होती है, वहाँ पर्यावरण प्रदूषण भी कम होता है।

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