माउंटबेटन योजना की प्रमुख विशेषताएं
माउंटबेटन योजना
20 फरवरी 1947 की लार्ड ऐटली की घोषणा के अनुसार 23 मार्च को माउन्टबैटन ने भारत आकर अपना पद ग्रहण कर लिया। उन्होंने सबसे पहले महात्मा गाँधी से और फिर अन्य नेताओं से विचार-विमर्श किया। उन्होंने यह अनुभव किया कि कांग्रेस और लीग में अखण्ड भारत के सम्बन्ध में समझौता असम्भव है, लीग अपनी पाकिस्तान की मांग पर दृढ़ है। ऐटली की उपर्युक्त घोषणा में लीग की मांग को पूरा करने के लिए संकेत था। अतः यह निष्कर्ष निकाला गया कि पाकिस्तान की मांग स्वीकार कर लेने पर ही समस्या का समाधान संभव है। परिस्थितियों से विवश होकर कांग्रेस के नेताओं ने माउंटबैटन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। यद्यपि कांग्रेस देश के दुखदं विभाजन के लिए प्रारम्भ में उद्यत न थी, पर अगस्त 1946 की घटनाओं तथा उसी प्रकार की अन्य घटनाओं ने उसे विभाजन स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया था। माउंटबेटन ने मि० जिन्नाह से भी वार्तालाप किया। इस प्रकार वार्तालाप के बाद माउंटबैटन 18 मई 1947 की ब्रिटिश सरकार से परामर्श करने के लिए लन्दन पहुंचे। वहाँ से लौटकर उन्होंने 3 जून 1947 को भारत के गतिरोध को दूर करने के लिए अपनी ‘माउंटबैटन योजना’ प्रस्तुत की।
माउन्टबैटन योजना की मुख्य विशेषताएं
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भारत का विभाजन-
वर्तमान परिस्थितियों में भारत की समस्या का एकमात्र समाधान भारत का विभाजन है, अतः भारत को दो भागों में बाँटा जायेगा-भारत और पाकिस्तान।
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15 अगस्त 1947 को सत्ता हस्तान्तरण-
ब्रिटिश सरकार सत्ता हस्तान्तरित करने के लिए जून 1948 तक प्रतीक्षा न कर 15 अगस्त 1947 का सत्ता हस्तान्तरण का कार्य सम्पन्न कर देगी।
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पंजाब, बंगाल व आसाम का वर्गीकरण-
बंगाल, पंजाब व आसाम के विधान-मंडलों के अधिवेशन भी दो भागों में होंगे
- एक भाग उन जिलों के प्रतिनिधियों का होगा, जिन्हें मुसलमानों का बहुमत है।
- दूसरा भाग उन जिलों के प्रतिनिधियों का होगा जिनमें मुसलमानों का बहुमत नहीं है। दोनों को यह निर्णय करना होगा कि वे पाकिस्तान अथवा भारत में मिलना चाहते हैं।
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जनमत संग्रह-
उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त के लोग जनमत संग्रह के द्वारा यह निर्णय करेंगे कि वे पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं या भारत में ही बसे रहना चाहते हैं।
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सिंध-
सिंध के विधान-मंडल को अपनी विशेष बैठक में अपना निर्णय करने की छूट दी जायेगी।
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आसाम-
आसाम के सिलहट जिले के मुस्लिम बहुमत क्षेत्रों को भी जनमत संग्रह के द्वारा पाकिस्तान या भारत में रहने का अधिकार दिया जायेगा।
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सीमा आयोग-
बंगाल, पंजाब व आसाम के विभाजन के लिए एक सीमा आयोग की नियुक्ति होगी जो उपर्युक्त प्रान्तों की सीमा निर्धारित करेगा।
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औपनिवेशिक पद-
नये दोनों राज्यों का दर्जा औपनिवेशिक दर्जा होगा, परन्तु दोनों ही राज्यों को ब्रिटिश राष्ट्र-मंडल से पृथक् होने को स्वतंत्रता होगी।
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सर्वोच्चता की समाप्ति-
ऐसी रियासतों पर से भी 15 अगस्त 1947 से ब्रिटिश सर्वोच्चता हटा दी जायेगी और उनको स्वतंत्रता होगी कि वे भारत अथवा पाकिस्तान किसी भी राज्य में सम्मिलित हों अथवा अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दें।
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लेनदारी व देनदारी-
भारत व पाकिस्तान के अधिराज्यों के मध्यम लेनदारी व देनदारी को विभाजित करने के लिए भी समझौता होगा।
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राष्ट्रमंडल की सदस्यता-
भारत और पाकिस्तान को राष्ट्रमंडल की सदस्यता के त्याग का अधिकार होगा।
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