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कैबिनेट मिशन योजना के गुण एवं दोष

कैबिनेट मिशन योजना के गुण एवं दोष

कैबिनेट मिशन योजना के गुण

कैबिनेट मिशन योजना अब तक ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत योजनाओं में सर्वश्रेष्ठ थी। महात्मा गांधी ने इसे इन परिस्थितियों में सत्ता हस्तान्तरण के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा तैयार किया गया ‘सर्वोत्तम प्रलेख’ बताया। इस योजना के मुख्य गुण निम्नलिखित थे-

  1. अन्तरिम सरकार की व्यवस्था-

    इसमें अन्तरिम सरकार की व्यवस्था की गयी जिसके सभी सदस्य भारतीय होते थे। इस प्रकार भारतीयों को स्वतंत्रतापूर्वक अपना शासन चलाने की स्वतंत्रता दी गयी।

  2. राष्ट्र मंडल से पृथक् होने का अधिकार

    भारतीयों को यह अधिकार दिया गया कि वे स्वेच्छा से राष्ट्र मंडल के सदस्य रह सकते थे अथवा सदस्यता को छोड़ सकते हैं।

  3. भारत के सभी वर्गों के लिए संतोषजनक

    ऐसे प्रस्ताव रखे गये थे जो भारतीय समाज के लगभग सभी प्रमुख वर्गों की आकांक्षाओं की पूर्ति करते हों। इस योजना में कांग्रेस, लीग, सिक्ख, ईसाई तथा पारसी सभी को प्रतिनिधित्व दिया गया था। लगभग सभी वर्गों के हितों का पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने का प्रयत्न किया गया।

  4. भारत की एकता सुरक्षित रखना तथा लीग की पाकिस्तान की माँग को ठुकरा देना

    कैबिनेट मिशन योजना में भारत की एकता को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया था। लीग की पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर सम्पूर्ण भारत के लिए एक संघ की स्थापना का सुझाव रखा लीग केन्द्र को अधिक शक्तियाँ प्रदान करने के पक्ष में नहीं थी। अतः वैदेशिक, सार तथा प्रतिरक्षा के अतिरिक्त शेष सभी विषय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में रखे गये।

  5. संविधान सभा का लोकतंत्रीय आधार

    कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत प्रतिनिधित्व के आधार को व्यापक बनाने का प्रयत्न किया गया। देशी रियासतों तथा प्रान्तों दोनों को ही जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। इसी प्रकार प्रत्येक सम्प्रदाय को उसकी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व दिया गया।

  6. साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व को सीमित कर दिया जाना-

    कैबिनेट मिशन योजना द्वारा 1935 के अधिनियम के अन्तर्गत विभिन्न वर्गों के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व की जो व्यवस्था की गयी थी उसे समाप्त कर दिया गया।

  7. जनता के अधिकारों को मान्यता

    देशी रियासतों की जनता के अधिकारों की मान्यता दी गयी। यद्यपि योजना में यह स्पष्ट था कि देशी रियासतों की जनता के अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार है, परन्तु यह अधिकार राजाओं को भी नहीं दिया गया। योजना में जनता के प्रतिनिधियों को नामजद करने के लिए समझौता समितियों की व्यवस्था की गयी थी।

  8. संविधान सभा की प्रभुसत्ता

    ‘संविधान सभा’ को पूर्ण प्रभुसत्ता-सम्पत्र बनाया गया ब्रिटिश सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि वह इस संविधान सभा द्वारा बनाये गये संविधान को पूर्ण रूप से लागू करेंगी।

ब्रिटिश सरकार ने यह आश्वासन दिया कि वह इस संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को लागू करते हुए भारत को सारी शक्तियाँ दे देगी, यदि इस संविधान से अल्पसंख्यक वर्गों के लिए उचित संरक्षण हुए और संविधान सभा ब्रिटिश सरकार से सत्ता हस्तांतरण के कारण उत्पन्न हुए मामलों को निपटाने के लिए संधि करने को तैयार होगी।

लार्ड वैवेल ने मिशन योजना के सम्बन्ध में कहा—’यह योजना कठोर परिश्रम, गहन अध्ययन और सद्भावना और सच्चाई का परिणाम है। ये ऐसे प्रस्ताव हैं जो भारत के भावी संविधान के लिए यथोचित और काम चलाऊ आधार प्रस्तुत करते हैं, भारत के सम्मुख ये दल-अशान्ति से मुक्ति का मार्ग प्रस्तुत करते हैं।”

कैबिनेट मशन के दोष

यद्यपि कैबिनेट मिशन योजना पूर्व की योजनाओं से श्रेष्ठ थी फिर भी उसमें अनेक दोष थे-

  1. पाकिस्तान की अप्रत्यक्ष स्वीकृति

    यद्यपि योजना में पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया गया था फिर भी मुसलमानों को अनेक रियायतें देकर पाकिस्तान के सार को स्वीकार कर लिया गया था। योजना में प्रस्तुत वर्ग योजना का आधार साम्प्रदायिक था। ‘ख’ और ‘ग’ वर्ग में मुसलमानों का बहुमत था। जहाँ वे अल्पसंख्यकों (हिन्दुओं) के साथ स्वेच्छारितापूर्ण व्यवहार करने को स्वतंत्र थे। प्रान्तों को अधिक शक्तियाँ सौंपी गयी थी। संविधान सभा के निर्माण में भी मुसलमानों को रियायतें दी गयी थी। मि0 जिन्नाह ने अपने 5 जून, 1946 के भाषण में स्वीकार किया था कि कैबिनेट मिशन योजना में पाकिस्तान के अंकुर मौजूद हैं।

  2. मिर्बल केन्द्र-

    योजना द्वारा प्रस्तावित संघीय या केन्द्रीय सरकार को अत्यन्त निर्बल बनाया गया था। केन्द्र को केवल तीन विभाग-सुरक्षा, यातायात तथा वैदेशिक मामले ही सौंपे गये थे इस प्रकार मुद्रा, बैंकिंग, तटकर और चुंगी, तेल और भाप, योजना और विकास, मुद्रा विनिमय आदि महत्वपूर्ण विषयों से संघ को वंचित रखा गया था।

  3. प्रान्तों का वर्ग विभाजन अवैज्ञानिक

    प्रान्तों के वर्गीकरण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। केवल लीग को प्रसन्न करने का प्रयास किया गया था। आसाम में हिन्दुओं का बहुमत था परन्तु इस प्रान्त को बंगाल के पास सम्मिलित कर दिया गया, जहाँ मुसलमानों का बहुमत था। इसी प्रकार उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त में जहाँ कि कांग्रेस बहुमत में थी, उसे ‘ख’ वर्ग में सम्मिलित कर दिया गया।

  4. संविधान सभा निर्माण के दोष

    संविधान सभा प्रभुता-सम्पन्न नहीं थी। प्रान्तों के वर्ग को अपना संविधान बनाने का अधिकार देना अनुपयुक्त था। प्रान्तों के वर्गों के संविधान बन चुकने के बाद संघ का संविधान बनाया जाना था जो कि सर्वथा अनुचित था।

  5. रियासतों से सम्बन्धित उपबन्ध दोषपूर्ण-

    रियासतों को संघीय सरकार की सर्वोच्चता से पृथक् रखा गया था। यह कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार स्वतंत्रता के पश्चात् देशी रियासतों पर सर्वोपरिता न तो स्वयं रख सकती है और न ही नवीन संविधान के अनुसार गठित केन्द्रीय सरकार को दे सकती है। इसका तात्पर्य यह था कि देशी रियायतें पूर्ण स्वतंत्र होंगी तथा यह उनकी इच्छा पर निर्भर होगा कि वे संघ के संविधान को माने या न मानें। इसका स्पष्ट उद्देश्य भारत को विभिन्न टुकड़ों में विभाजित करना था।

  6. अन्तरिम सरकार से सम्बन्धित उपबन्ध दोषपूर्ण

    अन्तरिम सरकार में लीग को कांग्रेस के बराबर ही स्थान देने की योजना प्रजातंत्रवादी सिद्धान्तों के अनुरूप न थी। कांग्रेस भारत की 75 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती थी। फिर भी कांग्रेस को 6 और लीग को 5 स्थान दिये गये जो केवल 25 परतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती थी। इस प्रकार बहुसंख्या हिन्दू सम्प्रदाय तथा अल्पसंख्यक मुस्लिम सम्प्रदाय को समान स्थान दिये गये जो नितान्त अनुचित थे। इसके अतिरिक्त योजना में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया था कि अन्तरिम सरकार कितनी अवधि तक कार्य करेगी।

  7. अन्य दोष-

    योजना की अनेक बातें अस्पष्ट तथा जटिल थीं। प्रान्तों के सम्बन्ध में जो उपबन्ध थे, कांग्रेस ने उनका जो अर्थ निकाला उससे विपरीत अर्थ लीग से निकाला। माइकेल ब्रेचर ने कहा कि, “योजना का मुख्य दोष इसकी जटिल और कष्टकारी प्रक्रिया थी।” योजना को आंशिक रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता था। योजना पूर्ण रूप से स्वीकार अथवा अस्वीकार की जानी थी।

कैबिनेट मिशन योजना की स्वीकृति

यद्यपि कैबिनेट मिशन योजना में अनेक दोष थे, तथा सभी दलों ने योजना की आलोचना भी की; तथापि अन्य उपाय न होने पर शीघ्र स्वतंत्रता प्राप्त करने के कारण सभी दलों ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया।

संविधान सभा का चुनाव-कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत जुलाई 1946 से संविधान सभा के लिए चुनाव हुए। प्रान्तों में कुल 296 स्थानों में से 212 स्थान कांग्रेस को मिले। ब्रिटिश प्रान्तों के लिए निर्धारित 210 सामान्य स्थानों में से कांग्रेस ने 195 स्थानों पर अधिकार कर लिया, शेष 11 स्थानों में से 2 पंजाब की यूनियनिस्ट पार्टी को 1 साम्यवादी दल को, 2 दलित उदार संघ को, शेष 6 स्वतंत्र प्रत्याशियों को मिले। कांग्रेस को इन 6 स्वतंत्र सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। चीफ कमिश्नर वाले प्रान्तों में कुल चार स्थानों में से 3 स्थान कांग्रेस ने ले लिये। मुसलमानों के कुल 78 स्थानों में से लीग के 73 स्थान मिल गये; शेष 5 स्थानों में से कांग्रेस को 3, पंजाब की यूनियनिस्ट पार्टी के 1 और बंगाल की किसान प्रजा पार्टी को 1 स्थान प्राप्त हुआ। इस प्रकार कांग्रेस के अप्रत्याशित सफलता मिली।

लीग द्वारा योजना की अस्वीकृति

लीग ने निम्नलिखित दो कारणों से योजना को अस्वीकार कर दिया-

  1. लीग संविधान सभा के साधारण स्थानों पर कांग्रेस की शानदार विजय देखकर स्तब्ध रह गयी।
  2. कांग्रेस की इस घोषणा के बाद कि वह अन्तिम सरकार में भाग नहीं लेगी, लीग ने गवर्नर जनरल से अपने सहयोग से मंत्रिमंडल बनाने की प्रार्थना की थी, पर गवर्नर जनरल ने इस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया।

6 जुलाई को लीग ने घोषणा की कि वह संविधान-सभा और अन्तरिम सरकार में भाग नहीं लेगी पाकिस्तान की प्राप्ति के लिए ‘सीधी कार्यवाही’ की घोषणा कर दी।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः कैबिनेट मिशन योजना में दोष थे, तथापि ब्रिटिश सरकार द्वारा अब तक प्रस्तुत योजनाओं में यह भारतीयों के हितों के सर्वाधिक अनुकूल थी अधिकांश राजनीतिक दलों तथा वर्गों व सम्प्रदायों ने इस योजना को अपनी स्वीकृति दे दी। गाँधीजी ने स्वयं इस योजना की प्रशंसा की थी।

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