वेवेल योजना एवं शिमला समझौता
लॉर्ड वेवेल भारत में प्रधान सेनापति के पद पर कार्य कर चुका इस हैसियत से उन्हें भारतीय समस्याओं का अच्छा ज्ञान था। वैवेल एक उदार एवं गम्भीर प्रकृति के व्यक्ति जब उन्हें भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया तो उन्होंने भारत आकर स्पष्ट शब्दों में कहा कि “मैं अपने थैले में बहुत-सी चीजें लाया हूँ।” वे 1945 के प्रारम्भ में भारत आये। इसी अवसर पर एक रेडियो भाषण में उन्होंने भारतीयों के समक्ष वह योजना रखी जिसे इतिहास में वैवेल योजना (Wavell Plan) के नाम से जाना जाता है।
वेवेल योजना के मुख्य प्रावधान
इस योजना के मुख्य प्रावधान इस प्रकार थे-
- सरकार, संवैधानिक गत्यावरोध समाप्त करके भारत को स्वशासन की ओर ले जाना चाहती है।
- गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी परिषद में समस्त राजनीतिक दलों के नेताओं निमन्त्रित किया जाता है। प्रधान सेनापति के अलावा अन्य सभी सदस्य इस समिति में भारतीय को होंगे।
- विदेशी विभाग भी भारतीय सदस्य के साथ में होगा।
- कार्यकारिणी परिषद में हिन्दू (अनुसूचित को छोड़कर) व मुसलमान सदस्य बराबर संख्या में होंगे।
- कार्यकारिणी परिषद के इस रूप में भारतीयों की पूर्व माँगे पूरी हो जाती हैं।
- 1935 के अधिनियम के अन्तर्गत वर्णित विशेषाधिकारियों का प्रयोग गवर्नर-जनरल अकारण नहीं करेगा।
- गवर्नर-जनरल केवल भारत सरकार का प्रधान होगा। यह ब्रिटिश हितों का संरक्षक नहीं होगा इसके लिए एक उच्चायुक्त की नियुक्ति अलग से की जायेगी।
- संविधान का निर्माण भारतीयों द्वारा युद्ध के बाद स्वयं किया जायेगा।
- इन शर्तों के सम्बन्ध में सभी राजनीतिक दलों का एक सम्मेलन शिमला में होगा। शिमला सम्मेलन 22 जून सन 1945 को प्रारम्भ हुआ इसमें 22 प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। सभी राजनीतिक दलों के वरिष्ठ कर्मचारी प्रान्तों के मुख्यमंत्री, गवर्नरों द्वारा शासित प्रदेशां के भूतपूर्व प्रधनमंत्री सम्मिलित थे। सम्मेलन को देखकर इसकी सफलता की आशा की जाने लगी परन्तु यह असफल रही।
शिमला सम्मेलन की असफलता के कारण
शिमला सम्मेलन की विफलता के निम्नलिखित मुख्य कारण थे-
- सम्मेलन की असफलता का सबसे बड़ा कारण मि० जिन्ना की हठधर्मी थी। उनके विचार से मुस्लिम लीग ही मुसलमानों का एकमात्र नेतृत्व करती है जिसे कांग्रेस ने कभी भी स्वीकार नहीं किया जिन्ना ने सरकार पर कांग्रेस का पक्ष लने का भी आरोप लगाया।
- सरकार ने बहुत पहले से ही मुस्लिम लीग को कुछ विशेषाधिकार दे रखे थे। उनकी पुरानी नीति “फूट डालो राज्य करो’ नीति के अन्तर्गत दिय गये थे। इसलिए अन्तरिम सरकार तब तक नहीं बनाई जा सकती थी तब तक मुस्लिम लीग तैयार नहीं हो जाती।
- वैवेल प्लान में हिन्दू मुसलमानों को बराबर प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई थी। यह सरासर अन्याय और प्रजातंत्र के विरुद्ध था क्योंकि हिन्दू 70% थे और मुसलमान केवल 30%!
- ब्रिटिश सरकार वास्तव में भारतीयों को स्वतंत्रता देने के पक्ष में नहीं थी। केवल मित्र-राष्ट्रों को सन्तुष्ट करने के लिए ही यह योजना रखी गई थी।
शिमला सम्मेलन के परिणाम
शिमला सम्मेलन के निम्नलिखित महत्वपूर्ण परिणाम हुए।
- इस सम्मेलन से स्पष्ट हुआ कि ब्रिटिश सरकार भारतीय स्वतंत्रता का विचार करना प्रारम्भ कर रही है।
- अधिकांश नेताओं की रिहाई तथा उसके साथ सरकार के वार्तालाप से जनता में आशा का संचार हुआ।
- इस सम्मेलन में साम्प्रदायिकता ने अपने कुप्रभाव को प्रदर्शित किया जहाँ मुस्लिम साम्प्रदायिकता अपने उग्र रूप में सामने आई वहीं वह सम्मेलन की असफलता का कारण भी बनी।
- संवैधानिक गत्यावरोध समाप्त होने की सम्भावनाएं बढ़ गयीं।
- पाकिस्तान निर्माण का विचार व लीग को हठधर्मिता स्पष्ट हुई।
- कांग्रेस की नीति तुष्टीकरम की नीति के रूप में सामने आई।
शिमला सम्मेलन लीग की हठधर्मिता से असफल हुआ। मौलाना आजाद के शब्दों में ‘शिमला सम्मेलन भारतीय इतिहास में एक महान् असफलता है। यह पहला अवसर था जबकि समझौता वार्ता भारत और ब्रिटेन बीच राजनीतिक जीवन के प्रश्न पर असफल नहीं हुआ था बल्कि साम्प्रदायिक समस्या पर भारत के विभिन्न दलों के बीच मतभेद के कारण हुआ था।” डॉ० पट्टाभि सीतारमैया के शब्दों में, “तीन वर्ष पहले कांग्रेस ने 1942 क्रिप्स मिशन को असफल बनाया था अगर स्वयं क्रिप्स को इसके लिए उत्तरदायी न ठहराया जाये शिमला में मुस्लिम लीग ने वैवेल योजना को विफल बनाया था बल्कि लार्ड वैवेल ने सारा दोष अपने सिर ले लिया था।’
महत्वपूर्ण लिंक
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