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कैबिनेट मिशन (मंत्रिमंडल मिशन योजना)

कैबिनेट मिशन का भारत आगमन, उद्देश्य एवं गतिविधियां

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् ब्रिटिश साम्राज्य आर्थिक रूप से टूट चुका था। भारतीय जनता में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति घृणा तथा उत्तेजना थी। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ तथा अन्य घटनाओं से ब्रिटिश शासक वह भली-भांति समझ चुके थे कि अब भारत पर शासन करना उनके लिए संभव नहीं है। द्वितीय-विश्व युद्ध के पश्चात् हुए चुनाव में श्रमिक दल की विजय हुई। श्रमिक दल के नेता तथा प्रधानमंत्री श्री क्लीमैंट एटली ने कामन्स सभा में यह घोषित किया कि शीघ्र ही भारत को स्वाधीनता प्रदान करने की दिशा में कार्यवाही की जायेगी। प्रधानमंत्री ऐटली ने भारत के तत्कालीन वायसारय वैवेल को परामर्श के लिए इंग्लैंड बुलाया। वायसराय से परामर्श करने के बाद ऐटली ने केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधान-मंडल के लिए चुनावों की घोषणा की। उन्होंने कहा कि चुनावों के पश्चात् संविधान का निर्माण करने के लिए एक संविधान सभा का निर्माण किया जायेगा।

कैबिनेट मिशन का भारत आगमन

ऐटली की उपरोक्त घोषणा के अनुरूप सन् 1945-46 में केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधान सभाओं के लिए चुनाव हुए जिनमें कांग्रेस को सफलता मिली।

1945-46 के चुनावों के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने एकसंसदीय प्रतिनिधि मंडल को भारत भेजा जिसने तत्कालीन परिस्थितियों का अध्ययन किया तथा ब्रिटिश सरकार से भारत को सत्ता हस्तान्तरित करने की सिफारिश की। इसके पश्चात् लार्ड ऐटली ने ब्रिटिश केबिनेट के तीन सदस्यों (सर स्ट्रोफोर्ड क्रिप्स, लार्ड पैथिक लारेन्स तथा सर ए० बी० एलेक्जेन्डर को भारत भेजा)।

उद्देश्य

इस मिशन के दो उद्देश्य थे.

  1. समझौता एक ऐसे समझौते की खोज करना था जिस पर भारतीय संविधान का निर्माण किया जा सके।
  2. अन्तरिम सरकार राष्ट्रीय अन्तरिम सरकार की स्थापना के सम्बन्ध में बातचीत करना।

परन्तु इस मिशन के सदस्यों ने शीघ्र ही यह अनुभव किया कि भारतीय नेताओं में भारत ने शासन, संविधान सभा के निर्माण और अन्तरिम सरकार के सम्बन्ध में गम्भीर मतभेद हैं। लीग अपनी ‘पृथक सम्प्रभु मुस्लिम राज्य’ की माँग पर दृढ़ थी। इसी समय लीग ने अप्रैल 1946 के अधिवेशन में हा कि ‘लीग किसी भी ऐसे संविधान को स्वीकार नहीं करेगी जिसमें अखण्ड भारत स्वीकार किया जायेगा। साथ ही उद्देश्य के लिए वह किसी भी संविधान सभा में सहयोग नहीं करेगी।”

शिमला का त्रिदलीय सम्मेलन

जब कांग्रेस और लीग में कोई समझौता नहीं हो सका तो कैबिनेट मिशन ने दोनों दलों के तीन-तीन सदस्यों को किसी समझौते पर पहुंचने के लिए शिमला में आमंत्रित किया।

  1. कांग्रेस–

    कांग्रेस की ओर से इस सम्मेलन में मौलाना आजाद, पं० जवाहर लाल नेहरू औरसरदार पटेल गये।

  2. लीग-

    लीग की ओर से मि० जिन्नाह, नवाब इस्माइल खाँ और लियाकत अली खाँ ने भाग लिया।

  3. तीसरा दल-

    तीसरे दल के रूप में वायसराय और मिशन के तीनों सदस्यों ने सम्मेलन में भाग लिया।

असफलता-

यह सम्मेलन 5 मई से 11 मई तक चला। कांग्रेस ने अथक प्रयास किया परन्तु लीग समझैते के लिए आतुर नहीं थी और वह पाकिस्तान की मांग पर दृढ़ रही। अतः 12 मई को सम्मेलन की असफलता घोषित कर दी गई। कैबिनेट मिशन के सदस्य भी कांग्रेस के साथ, पाकिस्तान की माँग के विचार से सहमत नहीं थे।

कैबिनेट मिशन योजना

कैबिनेट मिशन ने अन्ततः भारत के संवैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए अपनी ही ओर से एक योजना 16 मई को प्रकाशित की।

(A) दीर्घकालीन हल से सम्बन्धित प्रस्ताव

दीर्घकालीन हल से सम्बन्धित प्रमुख प्रश्न निम्न प्रकार थे-

  1. संघ की स्थापना

    भारत की भावी प्रशासनिक व्यवस्था के लिए एक संघ की व्यवस्था की जाये। इस संघीय व्यवस्था में ब्रिटिश प्रान्त तथा देशी रियासतें दोनों को ही रखा जाये। वैदेशिक मामले, संचार साधन तथा प्रतिरक्षा की, संघ की तथा अन्य विभाग सीभ प्रान्तों के पास रखे जायें।

  2. संघीय कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के गठन की सिफारिश-

    एक संघीय कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका में ब्रिटिश भारत तथा देशी रियासतों के प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया जाये।

  3. संविधान पर पुनर्विचार का अधिकार-

    कोई भी प्रान्त इस योजना के आरम्भ होने के दस वर्ष बाद अपने विधान मंडल के बहुत से संविधान पर पुनर्विचार कर सके। प्रत्येक दस वर्ष बाद उसे संविधान पर पुनर्विचार का अधिकार प्राप्त हो।

  4. अवशिष्ट शक्तियाँ-

    संघ को सौंपे गये विषयों के अतिरिक्त अन्य सभी विषय प्रान्तीय सरकारों के अधीन रहे।

  5. प्रान्तों का वर्गीकरण-

    सभी प्रान्तों को अलग-अलग अपने समूह बनाने का अधिकार प्राप्त हो। इन प्रान्तों की अपनी पृथक् कार्यपालिकायें तथा व्यवस्थापिकायें हो सकती हैं।

योजना में तीन प्रकार के समूहों का उल्लेख किया गया-

  • पहले में संयुक्त प्रान्त, बम्बई, मद्रास, बिहार तथा उड़ीसा राज्यों को रखा।
  • दूसरे समूह में पंजाब, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त तथा सिन्ध को रखा गया।
  • तीसरे वर्ग में मुस्लिम बहुमत वाले उत्तर-पूर्वी सीमा के प्रान्त बंगाल और आसाम थे।

प्रत्येक समूह को यह निश्चित करने का अधिकार था कि कौन-कौन से प्रांतीय विषयों पर उसका नियंत्रण हो।

  1. देशी रियासतों के अधिकार-

    जो विषय संघ सरकार को न सौंपे जाये उन पर देशी रियासतों पर पूर्ण अधिकार हो।

  2. साम्प्रदायिक मुद्दों का निर्णय-

    केन्द्रीय व्यवस्थापिका में साम्प्रदायिक मुद्दों पर निर्णय दोनों ही वर्गों के उपस्थित प्रतिनिधियों के अलग-अलग बहुमत के द्वारा किया जाये। इसका उद्देश्य देश में साम्प्रदायिकता की समस्या का समाधान करना था। उसने लीग को पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट रूप से ठुकरा दिया।

(B) संविधान निर्माण से सम्बन्धित प्रस्ताव

संविधान के निर्माण से सम्बन्धित प्रमुख प्रस्ताव निम्न प्रकार थे-

  1. संविधान सभा का निर्माण

    भारत के लिए नया संविधान बनाने हेतु एक संविधान सभा का निर्माण किया जाये। संविधान सभा में कुल 389 सदस्य हों। इनमें 292 ब्रिटिश भारत प्रान्तों के, 93 देशी रियासतों के और 4 सदस्य चीफ-कमिश्नर वाले प्रान्तों से हों। ब्रिटिश भारत के प्रान्तों में इस सदस्यों का निर्वाचन प्रान्तीय विधान-मंडल निचले सदन से अनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा करें। देशी राज्यों के प्रतिनिधियों की एक नियुक्ति एक विशेष ‘मंत्रणा समिति’ करेगी।

संविधान सभा तीन वर्गों में बाँटी गई-

  • मद्रास, बम्बई, यू० पी०, सी० पी०, बिहार और उड़ीसा के 187 सदस्य व चीफ-कमिश्नर वाले प्रन्तों के 3 सदस्य।
  • पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त, सिन्ध और विलोचिस्तान के 36 सदस्य।
  • बंगाल व आसाम के 70 सदस्य।
  1. प्रतिनिधित्व-

    यह निश्चित किया गया कि लगभग 10 लाख व्यक्तियों पर संविधान सभा में एक सदस्य होगा। प्रान्तों के लिए निर्दारित स्थान जनसंख्या के आधार पर बाँटे जायें।

  2. वर्ग-

    अल्पसंख्यक वर्गों को भारतीय प्रतिनिधित्व देने की प्रथा को समाप्त कर दिया जाये। मतदाताओं को केवल तीन वर्गों में विभक्त किया जाये साधारण, मुसलमान तथा सिक्ख (केवल पंजाब) में। साधारण मतदाताओं में सिक्ख और मुसलमानों को छोड़कर बाकी सभी सम्प्रदाय हिन्दू भारतीय ईसाई, पारसी तथा आंग्ल भारतीय सम्मिलित थे।

  3. ब्रिटिश भारतीय संधि-

    भारत की संविधान सभा और ब्रिटिश संसद के बीच हस्तांतरित करने के फलस्वरूप उठने वाले विषयों से सम्बन्धित एक सन्धि होगी। यह आशा व्यक्त की गयी कि भारत ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का सदस्य बना रहेगा। यद्यपि भारतीयों को सत्ता हस्तान्तरण करने के पश्चात् ब्रिटेन के लिए देशी रियासतों पर सर्वोपरिता रखना कठिन होगा, परन्तु यह नवीन सरकार को भी नहीं दी जायेगी।

  4. अन्तरिम सरकार की स्थापना-

    संविधान निर्माण कार्य पूरा होने तक गवर्नर जनरल की वर्तमान कार्यपालिका को समाप्त करके उसके स्थान पर भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के सदस्यों के प्रतिनिधियों को मिलाकर एक न्तरिम सरकार का निर्माण किया जायेगा अन्तरिम सरकार में कुल 14 सदस्य होंगे जिनमें दलों की संख्या निम्न प्रकार होंगी-6 कांग्रेस, 5 लीगी, 1 भारतीय ईसाई, 1 सिख तथा 1 पारसी। अन्तरिम सरकार में युद्ध विभाग सहित समस्त विभाग के विश्वासप्राप्त भारतीयों के हाथों में रहेंगे और ब्रिटिश शासन द्वारा इस अन्तरिम सरकार को अपना पूर्ण सहयोग दिया जायेगा।

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