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पिछड़े बालक

पिछड़े बालक 

पिछड़े बालक से तात्पर्य उन बालकों से है जो शिक्षा प्राप्त करने में सामान्य बालकों से  काफी पिछड़ जाते हैं। अतः जो बालक अपनी कक्षा के अन्य बालकों से अध्ययन तथा शैक्षिक प्रगति की दृष्टि से पिछड़ जाते हैं, उन्हें पिछड़ा बालक कहते हैं पिछड़े बालकों का मंद बुद्धि होना आवश्यक नहीं है। औसत बुद्धि बालक अथवा तीव्र बुद्धि बालक भी परिस्थितिजन्य कारणों से पिछड़ा बालक हो सकता है यदि यह कक्षा के औसत छात्रों से शैक्षिक दृष्टि से कम होता है। पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकता है यदि वह कक्षा के औसत छात्रों से शैक्षिक दृष्टि से कम होता है।पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं शारीरिक कारणों के अतिरिक्त परिवार के कलहपूर्ण, अशिक्षित, दूषित व शोर-शराबा से युक्त वातावरण, परिवार की निर्धनता, बुरे मित्रों की संगति, अयोगय व निष्ठुर अध्यापक, निर्देशन का अभाव जैसे कारणों की वजह से बालक अपनी शिक्षा को ठीक ढंग से जारी नहीं रख पाते हैं तथा शिक्षा प्राप्त करने में पिछड़ जाते हैं।पिछड़ेपर को छात्रों के शैक्षिक निष्पत्ति प्राप्त कर प्रतिशतों के अलावा प्रायः शैक्षिक लब्धि (Educational Quotient) अर्थात् EQ. के द्वारा व्यक्त करते है। शैक्षिक लब्धि ज्ञात करने का सूत्र है-

backward child

 बर्ट के अनुसार जिस बालक की शैक्षिक लब्धि 85 से कम होती है उसे पिछड़ा बालक कहा जा सकता है। पिछड़े वालक की यह परिभाषा प्रायः सभी विद्वान स्वीकार करते हैं।

पिछड़े बालकों की विशेषताएँ (Characteristics of Backward Children)

पिछड़े बालकों को पहचानने के लिए यह आवश्यक है कि उनकी प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट रूप से जाना जाये। पिछड़े बालकों में निम्नलिखित मुख्य विशेषतायें पाई जाती हैं-

  1. ऐसे बालकों के सीखने की गति धीमी होती है।
  2. ऐसे बालकों की विद्यालयी शैक्षिक उपलब्धि उनकी बुद्धि सापेक्ष प्रायः काफी कम होती है।
  3. ऐसे बालक अपनी कक्षा का कार्य तथा गृहकार्य समुचित ढंग से करने में असमर्थ होते हैं।
  4. ऐसे बालक विद्यालय के सामान्य पाठ्यक्रम व शिक्षण विधियों से लाभ उठाने में विफल रहते हैं।
  5. ऐसे बालकों में जीवन के प्रति निराशा रहती है।
  6. ऐसे बालक मानसिक रूप से अस्वस्थ प्रतीत होते हैं।
  7. ऐसे बालक प्रायः कक्षा में असमायोजित व्यवहार करते हैं।

पिछड़े बालकों की पहचान (Identification of Backward Children)

निःसन्देह पिछड़े बालकों के लिए विशिष्ट शैक्षिक प्रावधान करने आवश्यक हैं जिससे उनके पिछड़ेपन को दूर करके उनहें मुख्य शैक्षिक धारा में सुचारू रूप से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। पिछड़े बालकों का मानसिक विकास अथवा बुद्धि की दृष्टि से पिछड़ा होना जरूरी नहीं है। जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है कि पिछड़े बालकों से तात्पर्य शैक्षिक दृष्टि  से पिछड़े बालकों से है। अध्यापकगण, अभिभावक तथा सहपाठी आलोकन व निरीक्षण के द्वारा पिछड़े बालकों को पहचान सकते है।

गृहकार्य करने में कठिनाई का अनुभव करने वाले, कक्षा में अध्यापक के प्रश्नों का समुचित उत्तर देने में असमर्थ रहने वाले, परीक्षाओं में कम अंक प्राप्त करने वाले अथवा पढ़ाई से जी चुराने वाले बालक भी शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हो सकते हैं। अतः अध्यापक, अभिभावक तथा सहपाठी ऐसे बालकों को पहचान कर उनकी विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं की ओर ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। विभिन्न प्रकार के प्रमापीकृत सम्प्राप्ति परीक्षणों (Standardized Achievement Tests) का प्रयोग करके भी पिछड़े बालकों को पहचाना जा सकता है। पिछड़े बालकों को पहचानने तथा उनके पिछड़ेपन की मात्रा को आंकिक रूप में परिवर्तित करने के लिए शैक्षिक लब्धि (Educational Quotient) की गणना भी की जा सकती है। शैक्षिक लब्धि ज्ञात करने का सूत्र पीछे दिया जा चुका है।

पिछड़े बालकों की शिक्षा (Education of Backward Children)

पिछड़े बालकों के पिछड़ेपन के कारण प्रायः उनकी पारिवारिक स्थिति, विद्यालयी वातावरण, मित्र मंडली तथा उनका स्वयं का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व संवेगात्मक विकास होता है। इन कारणों को दूर करके बालकों के पिछड़ेपन को काफी सीमा तक दूर किया जा सकता है। अभिभावकों तथा अध्यापकों को मिला कर बालकों के पिछड़ेपन के कारणों को ज्ञात करना चाहिए तथा उन्हें दूर करके उन बालकों को शिक्षा की मुख्यधारा में सम्मिलित करने का प्रयास करना चाहिए। अभिभावक तथा अध्यापकगण अग्रांकित बातों पर ध्यान देकर पिछड़े बालकों की शिक्षा में सार्थक योगदान कर सकते हैं-

  1. अभिभावकों तथा अध्यापकों को ऐसे बालकों के शारीरिक दोषों तथा रोगों का उपचार करना चाहिए। बच्चों की शारीरिक निर्बलता को दूर करने के लिए उन्हें संतुलित भोजन के दिए जाने की व्यवस्था करायी जानी चाहिए।
  2. निर्धन परिवार के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, शिक्षण सामग्री तथा छात्रवृत्तियाँ देने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  3. ऐसे बालकों के पारिवारिक वातावरण में सुधार करने के प्रयास किये जाने चाहिए। बालकों के माता पिता में अच्छी आदतें विकसित करने तथा अशिक्षित माता-पिता को साक्षर बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए।
  4. ऐसे बालकों के संगी साथियों पर नजर रखनी चाहिए तथा यदि वे कुसंगति में पड़कर स्कूल न जाकर पढ़ना-लिखना छोड़कर इधर-उधर घूमते रहते हैं तो उन्हें कुसंगति में पड़कर स्कूल न जाकर पढ़ना-लिखना छोड़कर इधर-उधर घूमते रहते हैं तो उन्हें कुसंगति से बचाना चाहिए।
  5. ऐसे बालकों की शिक्षा लिए विशेष शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए। उन्हें सरल व रुचिकर ढंग से तथा श्रव्य व दृश्य सामग्री की सहायता से धीमी गति से पढ़ाया जाना चाहिए।
  6. ऐसे बालकों में लिए विशेष कक्षाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए, जिनमें छात्र संख्या काफी कम रखी जाये तथा जहाँ पिछड़े बालक अपनी रुचि, आवश्यकता व परिस्थिति के अनुरूप उचित शिक्षा प्राप्त कर सकें।
  7. ऐसे बालकों की शिक्षा पर अध्यापकों तथा अभिभावकों दोनों को व्यक्तिगत रूप से विशेष ध्यान देना चाहिए।
  8. ऐसे बालकों के पढ़ने के लिए विद्यालय व घर पर श्रेष्ठ तथा विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति की जानी चाहिए।

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