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मानसिक मंद बच्चों के लिए शिक्षा प्रावधान

मानसिक मंद बच्चों के लिए शिक्षा प्रावधान

(Education provisions for Mentally Retarded Children)

मुख्यतः यह एक सवाल होता है कि क्या मंदित-मना बालक शिक्षा प्राप्त कर सकता है या नहीं, अगर शिक्षा का अभिप्राय कक्षा उत्तीर्ण करने से है, तो इस प्रश्न का उत्तर नहीं में है। यदि मन्दित बालकों के सन्दर्भ में शिक्षा का अभिप्राय उन क्षमताओं का विकास करने से होता है, जो ऐसे बालकों में होती है, पर वे विकसित नहीं होती। ऐसी शिक्षा चाहे हस्त श्रम के बारे में हो अथवा किसी सामाजिक कार्य के बारे में दी जा सकती हैं। मन्दित बालकों में बहुत से बालक ऐसे होते हैं, जिन्हें अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रशिक्षित किया जा सकता है। अपना स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करने के उद्देश्य से बहुत से बालकों को विशेष सहायता द्वारा पढ़ना-लिखना सिखाकर उपयोगी और आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। शिक्षा, पाने योग्य मन्दबुद्धि बालका को विशेष सामान्य विद्यालयों में भेजना निरर्थक होता है, क्योंकि उन्हें पढ़ने-लिखने में विशेष देखभाल एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

मानस-मन्द बालकों के लिए भविष्य के बारे में रुचि रखने वाले माता-पिता , शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि को कतिपय विशिष्ट बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

शिक्षा के उद्देश्य-

मानस-मन्द बालकों की शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं-

  1. मानस-मन्द बालक को आत्मनिर्भर एवं जिम्मेदार नागरिक बनने की ओर प्रोत्साहित करना।
  2. शारीरिक स्वास्थ्य एवं आर्थिक सुदृढ़ता की ओर प्रेरित करना।
  3. किसी व्यवसाय का प्रशिक्षण देना।
  4. उसे सामाजिक एंव मानवीय मूल्यों से परिचित कराना।
  5. उसके व्यक्तित्व को विकसित करना।
  6. अवकास के सदुपयोग की ओर अपनी सुरक्षा कर सकने की क्षमता विकसित करना।
  7. पारिवारिक उत्तरदायित्व को समझने की योग्यता उत्पन्न करना।
  8. उन्हें स्वतन्त्र अभिव्यक्ति की छूट देना।
  9. उनकी शिक्षा में अधिक बल संवेदनात्मक प्रशिक्षण पर दिया जाना चाहिए।
  10. उनकी शिक्षा सामूहिक रूप से नहीं व्यक्तिगत तौर पर दिया जाना चाहिए।
  11. उन्हें ऐसे कार्य दिये जाये, जिनके पूरा हो जाने पर उन्हें संतोष हो।
  12. उनकी सफलता पर उन्हें प्रोत्साहित अवश्य किया जाये।
  13. घर पर उन्हें छोटे-छोटे कार्य करने के अवसर देना चाहिए।
  14. उन्हें अपनी सफलता का पर्याप्त अवसर प्रदान करना चाहिए।

प्रशिक्षत शिक्षक-

मन्दितमना बालकों को शिक्षा प्रदान करने में प्रशिक्षित एवं कुशल शिक्षकों का नियोजन किया जाये। शिक्षक में धैर्य, सहयोग, सहानुभूति एवं अपनत्व की भावना होनी चाहिए। निर्देशन का पक्ष शिक्षक में सबल चाहिए। यदि सम्भव हो सके तो शिक्षक को उपचारात्मक विधियों का ज्ञान हो। पाश्चात्म देशों में मन्दित बालकों के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित शिक्षक की आवश्यकता को बहुत पहले ही मान्यता दे दी गयी है। भारत में मुम्बई और दिल्ली में ऐसी संस्थाओं की स्थापना की गयी है, जिनमें मन्द-बुद्धि बालकों को शिक्षित करने वाले शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है। यह प्रशिक्षण केवल उन्हीं शिक्षकों को दिया जाता है, जो मन्द-बुद्धि बालकों को शिक्षा देने का दायित्व ग्रहण करते हैं।

पाठ्यचर्चा-

मानस-मन्द बालकों को पाठ्यक्रम में उनके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, बालकों की व्यक्तिगत आवश्यकताएं पूरी हो जायें, इसीलिए शिक्षा देते समय ऐसे बालकों को संवेगात्मक एवं सांस्कृतिक विकास की व्यवस्था होनी चाहिए।पाठ्यक्रम ऐसा हो, जिसमें प्रत्येक प्रथम आयु वर्गों में बांट देने चाहिए।

नर्सरी स्तर (3 से 8 वर्ष)

इस आयु वर्ग के बालकों की शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए-

  1. अपनी देखभाल स्वंय करना,
  2. समन्वय,
  3. हस्तादि का प्रयोग,
  4. बोलने की क्षमता का विकास, क्रियाकलाप स्तर पर बालकों के निम्नलिखित क्रियाकलाप होने चाहिए-
  • वस्त्र पहनना,
  • सामूहिक गान,
  • व्यक्तिगत गान,
  • कौशलपूर्ण कार्य।

माध्यमिक स्तर (6 से 13 वर्ष तक)-

इस स्तर पर मन्दितमना बालक की मानसिक आयु 6 से 9 वर्ष के बालकों जैसी होती है, माध्यमिक स्तर पर शिक्षण एवं प्रशिक्षण दोनों श्रेणी के बालक आ जाते हैं। इस स्तर पर निम्नलिखित पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जानी चाहिए-

  1. पढ़ना-लिखना, साधारण गणित उन बालकों के लिए, जिनका मानसिक स्तर 6 के बालक जैसा हो।
  2. सामाजिक सह सम्बन्धों का ज्ञान।
  3. वाक् शक्ति के बारे में प्रशिक्षण तथा भाषा प्रयोग पर बल।
  4. नियमित आदतों के बारे में प्रशिक्षण तथा भाषा प्रयोग पर बल।
  5. इन्द्रियों के बारे में प्रशिक्षण, जैसे-नामों की पहचान, रंगो व अजाव की पहचान, सूंघना, चखना, छूना आदि। शारीरिक मांसपेशियों का समन्वय। इसमें टहलना, घूमना, व्यायाम करना आदि।
  6. हस्त कार्य शिक्षण-सीना, पीरोना, बुनना, कागज काटना आदि।
  7. बोल-चाल के शब्द का ज्ञान आदि।

प्रौढ़ स्तर के पाठ्यक्रम (11 से 18 वर्ष)

इन बालकों की मानसिक आयु 9 वर्ष के बालकों जैसी होती है। इस आयु वाले बालक मन्द-बुद्धि के बालकों अवकाश का उचित उपयोग करना, सामाजिक दायित्व समझना, कौशल सीखना और नागरिकता का ज्ञान दिया जाना चाहिए। इस स्तर पर निम्नलिखित का ज्ञान होना चाहिए-

  1. खेल द्वारा चिकित्सा।
  2. नाटिकाएँ
  3. सामाजिक अध्ययन
  4. भूगोल
  5. सरल शारीरिक विज्ञान का ज्ञान
  6. पढ़ना-लिखना तथा गणित
  7. सामाजिक कार्यों में भाग लेना
  8. कार्य एवं हस्तकला में प्रशिक्षण
  9. स्वास्थ्य एवं शारीरिक प्रशिक्षण
  10. खाना पकाने, रसोई और स्वच्छता के विषय में जानकारी।
  11. सामूहिक गान आदि।

व्यावसायिक प्रशिक्षण

यह कार्यक्रम 16 से 18 वर्ष वाले बालक, किशोरों, प्रौढ़ों के लिए होता है। इसमें विषय सम्मिलित होते हैं- मार्गदर्शन, व्यावसायिक सूचना, हस्त कार्यों में व्यावसायिक कार्य दिलाना आदि।

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