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मानसमन्दता (Mental Retardation)

मानसमन्दता (Mental Retardation)

मुख्यतः मानसन्दता मानव व्यक्तित्व की एक काली छाया है, जो विश्व के मानस जाति के लिए चुनौतीपूर्ण समस्या है। मन्दितमना बालक अपने वयवर्ग के बालकों से प्रत्येक क्षेत्र में पिछड़ा होता है। अपनी कठिनाइयों एवं सीमित क्षमताओं के कारण वह अपवंचित अनुभव करते हैं। मानसन्दता, बालचिकित्सकों, मनोविश्लेषकों, शिक्षाविदों एवं अभिभावकों के लिए चुनौती बन गयी है।

मानस-मन्द बालकों के लिए सार्थक पहल करने का श्रेय ‘ईटार्ड और सेग्विन’ (Etard & Segvin) को कहा जाता है। इन्होंने उन आयामों को तलाशने का कार्य किया, जिनके द्वारा मन्दिमना बच्चों को शिक्षित-प्रशिक्षित किया जा सके। भारत में स्वैच्छिक संगठन द्वारा सन् 1966 में मानसमन्दता पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसी अवसर पर All India Association on Mental Retardation की स्थापना की गयी।

मानसमन्दता का अर्थ

(Meaning & Definition of Mental Retardation)

मानस मन्दता का अभिप्राय मानसिक अक्षमता या न्यूनता से होता है, अर्थात् औसत से कम मानसिक योग्यता एवं बुद्धि-लब्धि होना। मन्दितमना बालक सूझ, ग्राह्य क्षमता, तर्कशक्ति, अवधान केन्द्रण की क्षमता एवं शब्द भण्डार तथा शब्द कौशल सामान्य रूप से वंचित अनुभव करते हैं। बालक की शारीरिक आयु बढ़ने के अनुरूप उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास नहीं होता। वे हम उम्र बालकों के पीछे होते हैं। मानसमन्दता को अल्प मस्तिष्क-दुष्क्रिया (Minimal Brain Dysfunction), मस्तिष्क विकार (Brain Damage) मस्तिष्क क्षति एवं बोधात्मक अक्षमता के रूप में समझा जा सकता है।  मन्दितमना बालकों में ज्ञानार्जन की गति न्यून होती है। वे मस्तिष्क व्यवहार को समझने एवं समस्याओं को सुलझाने में असमर्थ होते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में इन्हें दूसरों की मदद की आवश्यकता होती है।

ट्रेडगोल्ड के अनुसार- “मानसिक विकास की गति वह सीमित अवस्था मानसमन्दता है, जिसके फलस्वरूप परिपक्व होने पर व्यक्ति अपने परिवेश में समायोजित होने अथवा समूह की मांगो को पूरा करने में असमर्थ होता है और अपने अस्तित्व का निर्माण किसी बाहरी सहायता अथवा मार्गदर्शन के बिना नहीं कर पाता।”

बेण्डा के अनुसार- “एक मन्दितमना व्यक्ति वह है, जो स्वयं को तथा अपने कार्यों र्को प्रतिबन्धित करने में अक्षम होता है अथवा जिसे पर्यवेक्षण एवं नियन्त्रण की आवश्यकता होती है, जिससे उसका तथा समुदाय का कल्याण हो।”

डॉ. एच. बी. के अनुसार- “मानसिक मन्दता वह व्यक्ति है, जो समाज के द्वारा निर्धारित नियमों एवं प्रतिनियमों पर अपनी कार्य क्षमता की सूझ नहीं होती है।”

हेबर के अनुसार- “मानसमन्दता औसत से न्यून कार्य क्षमता का उल्लेख करती।” इसका आरम्भ बालक के विकास की अवधि से होता है और यह अनुकूलन व्यवहार की कमी से सम्बन्धित रहती है।

भारतीय विद्वान चन्द्रपति के विचार के अनुसार- “मानस-मन्द बालक में विषय की सूझ एवं समस्या समाधान की क्षमता अत्यन्त अल्प होती है और उसमें साधारण से अधिक महत्वपूर्ण कार्यों से पलायन करने की प्रवृत्ति रहती हैं। प्रायः लगातार अभ्यास के बाद भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में औसत उपलब्धि प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं।”

मानसमन्दता का वर्गीकरण

(Classification According to their Mental Ability)

बुद्धि-लब्धि के आधार- अमेरिकन एसोसियेशन ऑफ मेण्टल डैकिसिएनी और अमेरिकन साइकेट्री एसोसियेशन दोनों ने मानसमन्दता को बुद्धि-लब्धि के आधार पर वर्गीकृत किया।

  1. न्यून मानसमन्दता-

    इस श्रेणी के लोगों की बुद्धि-लब्धि का स्तर 52 से 68 तक पाया जाता है। लगभग 90 प्रतिशत मन्दितमना इसी श्रेणी में आते हैं। इस श्रेणी में बालकों की मानसिक आयु 8 वर्ष से 11 वर्ष के बालकों के समान होती है। किशोरावस्था में इसमें सामाजिक समायोजन की कमी होती है। इसके बावजूद इनमें स्वनियंत्रण एवं व्यावसायिक दक्षता का निर्वाह करने की क्षमता सामान्य बालकों के आस-पास पायी जाती है। इसमें कल्पना-शक्ति की कमी होती है। इनमें रचनात्मक शक्ति एवं निर्णय लेने की शक्ति भी कम पायी जाती है। इनका सामान्य देखभाल करना होता है।

  2. औसत मानसमन्दता (Moderates Level)-

    इसका बुद्धि लब्धांक 36 से 51 के मध्य पाया जाता है। इन्हें प्रशिक्षण योग्य मानसमन्द कहा जाता है। इनकी मानसिक आयु 4 से 6 वर्ष के बालक के बराबर होती है। इनमें पढ़ने-लिखने एवं क्षमताओं का उपयोग करने की सामान्य क्षमता पायी जाती है। वे अपने हाथ-पैरों को फैलाते या फेंकते हुए चलते हैं। यह साधारण कार्य करते हैं। समय से इनका निदान करने से शीघ्र सुधार हो जाता है।

  3. अति मानसमन्द (Severe Mental Retarded)-

    इनकी बुद्धि-लब्धांक 25 से 35 के मध्य पाया जाता है। इन्हें आश्रित मानन्द कहा जाता है। इनकी संवेदी क्रियाओं में हास दिखाई पड़ता है। अपने स्वास्थ्य के प्रति भी इन्हें चिन्ता नहीं होती। लगभग 30 प्रतिशत लोग इस श्रेणी में आते हैं। अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इन्हें परिवार का सहारा लेना पड़ता है।

  4. अति गम्भीर मानसमन्दता (Profound Level)-

    इनका बुद्धि लब्धांक 20 से कम पाया जाता है। इन्हें प्रत्येक क्षण सहारे की आवश्यकता होती है। यह अपंग न होते हुए भी अपंगो की तरह रहते हैं। यह अपनी दैनिक दिनचर्या के लिए परिवार के लोगों पर निर्भर करते हैं। उनका शारीरिक विकास भी अवरुद्ध एवं पिछड़ा होता है। इनमें समायोजन अति न्यून होता है।

मानस-मन्द बालकों की पहचान

(Identification of Mentally Retarded Children)

मानस-मन्द बालकों की विविध विशेषताएं बुद्धि परीक्षण, उपलब्धि परीक्षणों एवं उनके कार्यों का अवलोकन करके उसकी पहचान की जा सकती हैं। परन्तु उनमें मानसमन्दता की तीव्रता का स्तर कितना है? वह मालूम नहीं होता। मानसमन्दता के स्तर को मालूम करके ही बच्चों का निदान, उपचार एंव शिक्षण सम्भव होता है। मानसमन्द बालकों की पहचान के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जाती हैं-

  1. बुद्धि परीक्षण द्वारा पहचान-

    बुद्धि परीक्षण में निम्नांकित परीक्षण प्रमुख हैं-

  • स्टेनफोर्ड बिने परीक्षण,
  • संशोधित वैश्लर बुद्धि परीक्षण,
  • सी.एस.भाटिया का निष्पादन बुद्धि परीक्षण माला।
  1. निष्पत्ति परीक्षणों द्वारा पहचान-

    यह परीक्षण निम्नांकित है-

  • सेगुहव कौम बोर्ड परीक्षण।
  • जे. भरतराज का डेवलपमेन्टल स्क्रीनिंग परीक्षण।
  • समाजमितीय तकनीकी द्वारा पहचान।
  • जीवनवृत्त पद्धति द्वारा पहचान।
  • संचयी अभिलेख का अवलोकन।
  • सांवेगिक अस्थिरता एवं निर्बोधात्मकता के लक्षण।
  • अनावधान (Attention deficit) की स्थिति।
  • स्मृति एवं चिन्तन की योग्यता का न होना या न्यून होना।
  • प्रोत्साहन की कमी पायी जाती है।
  • शैक्षिक उपलब्धि अपने वयवर्ग से कम होना।
  • भावाभिव्यक्ति के कौशल का न होना या न्यून होना।

मानस-मन्द बालकों की विशेषताएँ

(Characteristics of Mentally Retarded Children)

मुख्यतः मानसमन्दता की मात्रा के अनुरूप इन बालकों में विभिन्न प्रकार की विशेषताएँ पायी जाती है, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि कोई विशेषता सभी मानसमन्दों में पायी जाये। मानस मन्दता के स्तर और विकृति के अनुरूप निम्नांकित विशेषताएँ पायी जाती हैं-

  1. आंशिक विशेषताएँ-

    मन्दितमना बालक शारीरिक विकास में सामान्य बालकों की भाँति होते हैं, परन्तु मानसिक विकृति की मात्रा अधिक होने पर इनमें शारीरिक दोष स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इनके हाथ एवं पैरों का संचालन असामान्य होता है। जीभ को मुहँ के अन्दर घुमाते रहते हैं अथवा जीभ को गालों में चुभाते हैं। आध्यात्मिक मानसमन्द होने पर इनमें श्रवण दोष, दृष्टि दोष, वाणी दोष स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इनका स्वास्थ्य प्रायः ठीक नहीं रहता। संवेदी गामक विकास धीमा रहता है। भूख, प्यास को व्यक्त नहीं कर पाते। ऐसे बच्चे देर से चलते एवं बोलते हैं।

  1. मानसिक विशेषताएँ-

  • इन बालकों का बुद्धि-लब्धांक सामान्य बालकों से कम (लगभग 70) होता है, अथवा इससे भी न्यून होता है।
  • इनका स्मृति विस्तार एवं ध्यान विस्तार सीमित अथवा कम होता है।
  • सीमित शब्द भण्डार भावाभिव्यक्ति की अयोग्यता, कल्पना-शक्ति एवं चिन्तन का स्तर न्यून एवं सीमित होता है।
  • मानसिक क्रियाओं को देर से एवं धीमी गति से करते हैं।
  • अति मानस-मन्दों में अमूर्त चिन्तन एवं तार्किक क्षमता का सर्वधा अभाव होता है।
  1. शैक्षिक विशेषताएँ-

  • मानस-मन्द बच्चे शैक्षिक दृष्टि से अपने वयवर्ग के बच्चों से 2 या 3 वर्ष पिछड़े होते हैं।
  • इनमें सीखने की गति धीमी होती है। अतः सामान्य बालकों के साथ इन्हें पढ़ाना सम्भव नहीं होता।
  • देर से पढ़ना प्रारम्भ करते हैं। पढ़ना-लिखना एवं साधारण गणित का ज्ञान धीमी गति से प्राप्त करते हैं, यही इनकी शैक्षिक उपलब्धि है।
  • दुरुह एंव जटिल विषयों को सीखने में असमर्थ होते हैं।
  • शब्द भण्डार अत्यन्त सीमित होती है, भाषा का ज्ञान न्यून होता है। अतः भावों को व्यक्त करने में कठिनाई अनुभव करते हैं
  • इनमें अन्य बालकों की अपेक्षा शैक्षिक प्रतिस्पी नहीं होती।
  • यदि मानस मन्दता की मात्रा अधिक हुई, तो शिक्षा ग्रहण करने के योग्य नहीं होता।
  1. व्यक्तिगत विभिन्नताएँ-

  • सामान्य मन्दिमना बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं।
  • इनमें ध्यान एकाग्रता, समन्वय और सृजनात्मकता की योग्यता नहीं होती।
  • ऐसे बच्चों में निराशा होती है, आत्मविश्वास एवं सहनशीलता की कमी होती है।
  • (vi) कभी-कभी इनका व्यवहार समस्यात्मक बालकों जैसा होता है।
  1. सामाजिक विशेषताएँ-

  • कक्षा में अपने को एकाकी एवं अलग-अलग पाते हैं।
  • इनमें समायोजन की कमी होती है।
  • किसी सामूहिक आयोजन में इनकी भागीदारी नहीं होती।
  • इन्हें बड़ी आसानी से अनैतिक कार्यों की ओर मोड़ा जा सकता है।
  • इनमें सामाजिक व्यवहार कुशलता नहीं होती है।

मनोवैज्ञानिकों ने मानस-मन्द बालकों की निम्नलिखित विशेषताएं बतायीं-

Cron and Cron के अनुसार-

  • दूसरों को मित्र बनाने की इच्छा।
  • दूसरों के द्वारा स्वयं मित्र बनाये जाने की कम इच्छा।
  • विद्यालय में असफलताओं के कारण निराशा।
  • संवेगात्मक एवं सामाजिक असमायोजन।

Skinner के अनुसार-

  • सीखी गयी बातों को नूतन परिस्थितियों में प्रयोग न कर पाना।
  • व्यक्ति एवं घटनाओं के प्रति ठोस एवं विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ।
  • मान्यताओं के प्रति अटल विश्वास।
  • दूसरों की चिन्ता न करके केवल अपनी चिन्ता करना।
  • किसी बात का निर्णय करने में परिस्थितियों की अवहेलना।
  • कार्य एंव कारण के सम्बन्ध में निरर्थक धारणाएँ जैसे- अपनी बीमारी के लिए थर्मामीटर पर दोषारोपण।

मन्दित बालक और पिछड़ा बालक- बालकों के विकास एवं बुद्धि में अनेक कारणों से बाधा उत्पन्न होती है। उनमें से मन्द बुद्धि होना या पिछड़ा होना प्रमुख है। बालक मन्दितमना तब कहा जाता है, जब उसके बौद्धिक विकास की गति उसकी आयु के अन्य बालकों की अपेक्षा मन्द होती है। मानसमन्दता का सम्बन्ध न्यून बुद्धि से होता है। मानसमन्दता का उपचार पूर्णतः सम्भव नहीं होता।

पिछड़ेपन का सम्बन्ध बालकों की शैक्षिक आयु और शारीरिक आयु से होता है। पिछड़ापन बालकी की उस स्थिति को दर्शाता है, जिसमें बालक की एक या अधिक विषयों में शैक्षिक निष्पत्ति कम होती है।

मानस-मन्द ज्यादातर कमी पर आधारित होती है, जिससे बालक का मानसिक विकास बाधित होता है, परन्तु पिछड़ेपन का सम्बन्ध अर्जित विशेषताओं से होता है। समय पर समुचित उपचार करने पर इसका निराकरण हो सकता है। अतः स्पष्ट है कि एक मन्द बालक केवल मन्द या मन्द और पिछड़ा दोनों हो सकता हैं, जबकि एक पिछड़ा हुआ बालक जन्मजात योग्यता के होते हुए पिछड़ा हुआ कहलाता है।

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