शाश्वत व्यादेश (Perpetual Injunction)
न्यायालय के ऐसे व्यादेश जो किसी मामले व्यादेश जो किसी मामले पूर्ण सुनवाई कें पश्चात गुण व दोष के आधार पर दिये गये अंतिम निर्णय एवं डिक्री प्रदान किये जाते और वे आगे के लिये भी प्रभाव होते है उन्हें अधिनियम शापूवत या स्थाई व्यादेश कहते है।
विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 38 के अन्तर्गत शाश्वत व्यादेश के सम्बन्ध में कुछ प्रावधान उपबन्धित किये गये हैं, जिनके अनुसार-
- शाश्वत व्यादेश वादी के पक्ष में वर्तमान आभारों को भंग करने से रोकने के लिए प्रदान किया जा सकता है, चाहे ऐसे आधार अभिव्यक्त रूप में हों या परिलक्षित रूप में या अन्यथा हो;
- जब ऐसे आधार किसी संविदा के फलस्वरूप पैदा हुए हों तो न्यायालय विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 10 से 24 के प्रावधानों के अनुसार दिग्दर्शित होगा।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि निषेधाज्ञा ऐसी संविदाओं के सम्बन्ध में भी प्रदान की जा सकती है, जिनका कि प्रवर्तन विशिष्ट अनुपालन के अनुतोष द्वारा न किया जा सकता हो। यदि न्याय की ऐसी माँग है, तो न्यायालय नकारात्मक अनुबन्धों के अतिलंघन को रोकने के लिए भी हस्तक्षेप कर सकता है।
शाश्वत व्यादेश कब प्रदान किया जा सकता है?
धारा 38 के अनुसार, जब प्रतिवादी वादी के अधिकार का अतिक्रमण करता है; अथवा करने की धमकी देता है या प्रतिवादी वादी की सम्मति के अधिभोग पर अतिलंघन करता है तो न्यायालय निम्नलिखित मामलों में शाश्वत व्यादेश का अनुतोष वादी को प्रदान कर सकता है-
- जब प्रतिवादी वादी की सम्पत्ति का न्यासधारी हो उदाहरण के लिए ‘क’ ‘ख’ का न्यासधारी है तथा वह न्यास-सम्पत्ति के थोड़े से भाग का अविवेकी विक्रय करना चाहता है तो ‘ख’ विक्रय को रोकने के लिए वाद संस्थित कर सकता है, यद्यपि इसमें धन के रूप में क्षतिपूर्ति पर्याप्त अनुतोष होगी।
‘क’ पेशे से वकील है तथा ‘ख’ उसका मुवक्किल है। वाद की पैरवी के दौरान ‘ख’ के कुछ कागजात ‘क’ के कब्जे में आ जाते हैं। ‘क’ ‘ख’ के इन कागजातों को सार्वजनिक करने के लिए या इसकी विषय-वस्तु को किसी अजनबी से सूचित करने की धमकी देता है, तो ‘ख’ ‘क’ को ऐसा करने से रोकने के लिए वाद दायर कर सकता है।
- जहाँ कि हस्तक्षेप द्वारा पहुँचायी गयी या पहुँचायी जाने वाली वास्तविक क्षति को विनिश्चित करने का कोई मापदण्ड न हो। उदाहरणार्थ, ‘क’ सिगरेट पीकर उसका धुँआ ‘ख’ पर फेंकता है ताकि ‘ख’ को शारीरिक आराम में विघ्न पैदा हो, तो इस अपदूषण को रोकने के लिए ‘ख’ क के विरुद्ध वाद दायर कर सकता है।
- जहाँ कि हस्तक्षेप या अतिक्रमण ऐसा है जिसके लिए आर्थिक अनुतोष पर्याप्त नहीं होगा। उदाहरणार्थ, ‘क’ के गाँव के पड़ोसी गाँव के व्यक्ति ‘क’ की भूमि से रास्ता निकलने के अधिकार का दावा करते हैं। उनमें से अनेकों के विरुद्ध वाद दायर करके ‘क’ घोषणात्मक आज्ञप्ति पारित करा लेता है कि उसकी भूमि में होकर कोई रास्ता नहीं है। उसके बाद प्रत्येक ग्रामवासी ‘क’ पर दावा करता है कि उसने रास्ता अवरुद्ध कर दिया है। ‘क’ निषेधाज्ञा हेतु वाद दायर कर सकता है, क्योंकि यदि उसे प्रत्येक वाद में क्षतिपूर्ति दी भी गयी तो वह अपर्याप्त होगी।
- जहाँ यह सम्भावना हो कि वादी के अधिकारों के हस्तक्षेप के लिए आर्थिक क्षतिपूर्ति प्राप्त नहीं की जा सकती है। किसी अकिंचन प्रतिवादी के विरुद्ध निषेधाज्ञा जारी की जा सकती है, क्योंकि अकिंचन से क्षतिपूर्ति प्राप्त नहीं की जा सकती है।
- जहाँ पर न्यायिक कार्यवाहियों की बहुलता को रोकने के लिए निषेधाज्ञा आवश्यक हो ।
शाश्वत व्यादेश कब प्रदान नहीं किया जा सकता है?
विशिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 41 के अनुसार, निम्नलिखित परिस्थितियों में शाश्वत व्यादेश प्राप्त नहीं किया जा सकता है-
- निषेधाज्ञा प्राप्त करने हेतु दायर किसी वाद में वादी को उस वाद की कार्यवाही में भाग लेने से रोकने हेतु निषेधाज्ञा प्रदान नहीं की जा सकती है, जब तक कि रोकना वादों की बहुलता को रोकने के लिए आवश्यक न हो।
किसी निर्णीत ऋणी द्वारा आज्ञप्ति के निष्पादन को रोकने हेतु वाद दायर किया गया जिसका कि आधार एक अनुबन्ध था जिसमें कि निर्णीत ॠणी के भाग में उसे निष्पादित न करने की शर्त थी। इस अनुबन्ध को न्यायालय में प्रमाणित भी नहीं कराया गया निषेधाज्ञा प्रदान नहीं की गयी।
- किसी व्यक्ति को कोई वाद दायर करने, अभियोजित करने या किसी कार्यवाही को किसी ऐसे न्यायालय में संस्थित करने से नहीं रोका जा सकता जोकि उसके अधीन नहीं है, जिसमें कि व्यादेश चाहा गया है।
- किसी व्यक्ति को विधायी निकाय के आवेदन से रोकने हेतु व्यादेश प्रदान नहीं किया जा सकता है।
- किसी व्यक्ति को किसी दाण्डिक कार्यवाही को दायर करने, योजित करने या किसी अन्य कार्यवाही में भाग लेने से नहीं रोका जा सकता है।
- ऐसी संविदा भंग को रोकने के लिए जिसकी कि विशिष्ट अनुपालना करायी जा सकती है।
- अपदूषण के आधार पर किसी ऐसे कार्य को रोकने के लिए जिसके सम्बन्ध में यह प्रवर्तित नहीं युक्तियुक्त रूप से स्पष्ट नहीं है कि यह अपदूषण होगा।
- ऐसी किसी लगातार भंग को रोकने के लिए जिसमें वादी ने अपनी उपमति दी हो।
- जब समतुल्य प्रभावकारी अनुतोष निश्चित रूप से किसी अन्य प्रकार की कार्यवाही में प्राप्त किया जा सकता हो, सिवाय न्यास भंग के।
- जबकि वादी अथवा उसके अभिकर्ता का आचरण ऐसा रहा हो।
महत्वपूर्ण लिंक
- समाश्रित संविदा (Contingent Contract)- लक्षण व नियम
- क्वांण्टम मेरियट का सिद्धांत (Principle of Quantum Meruit)
- संविदा का उन्मोचन (Discharge of Contract)
- प्रत्याशित संविदा भंग (Anticipatory Contract Breach)
- संयुक्त प्रतिज्ञाकर्ता के दायित्व निष्पादन के नियम
- असम्भवता का सिद्धांत (Principle of Impossibility)- आधार, परिणाम
- संविदा की समाप्ति पर अधिनियम के प्रावधान
- संविदा खंडन के उपचार (Remedies for Breach of Contract)
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