क्वांण्टम मेरियट का सिद्धांत

क्वांण्टम मेरियट का सिद्धांत 

क्वांण्टम मेरियट का सिद्धांत (Principle of Quantum Meruit)

किसी कार्य के लिए दी जाने वाली उचित पारिश्रमिक को क्वाण्टम मेरियट कहा जाता है। क्वाण्टम मेरियट का सिद्धांत यह उपबन्ध करती है कि यदि कोई एक पक्षकार किसी कार्य को करने वचन लेता है लेकिन दूसरा पक्षकार उसे अपना कार्य करने से रोकता है तो ऐसी स्थिति में वह उक्त दूसरे पक्षकार से किये गये कार्य के लिए युक्तियुक्त पारिश्रमिक की माँग कर सकता है। जब एक पक्षकार संविदा का पालन करने से पूर्ण रूप से इन्कार कर देता है या संविदा का पालन करने में अपने को अयोग्य बना लेता है तो दूसरा पक्षकार चाहे तो संवाद भंग के लिए वाद चला सकता है या संविदा को अपखण्डित करके क्वाण्टम मेरियट के आधार पर वास्तव में किये गये कार्य के लिए युक्तियुक्त पारिश्रमिक या प्रतिकर के लिए वाद चला सकता है। अंग्रेजी विधि में विकसित क्वाण्टम का सिद्धान्त भारत में भी लागू किया जा सकता है। (पूरन लाल बनाम स्टेट ऑफ यू.पी.)

क्वाण्टम मेरियट सिद्धांत के आधार पर कई दशाओं में दावा किया जा सकता है। जिनका विवरण अग्रलिखित है-

  1. जब संविदा का एक पक्षकार संविदा-भंग करता है अथवा दूसरे पक्षकार को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने से रोकता है-

    जब संविदा का एक पक्षकार संविदा भंग करता है। अथवा संविदा-पालन करने में अपने को अयोग्य बना लेता है अथवा दूसरे पक्षकार को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने से रोकता है तो दूसरा पक्षकार संविदा को समाप्त मानकर किये कार्य के लिए युक्तियुक्त पारिश्रमिक की माँग कर सकता है। ऐसी दशा में क्वाण्टम मेरियट के आधार पर दावा करने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है।

  • संविदा के एक पक्षकार ने संविदा के अन्तर्गत कुछ कार्य कर दिया है अर्थात् संविदा के एक पक्षकार ने संविदा के कुछ भाग का पालन कर दिया है।
  • संविदा का दूसरा पक्षकार संविदा का पालन करने से पूर्ण रूप से इन्कार कर देता है या संविदा का पालन करने में अपने को अयोग्य बना लेता है या दूसरा पक्षकार पहले पक्षकार को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने से रोकता है।
  • पहला पक्षकार जिसने संविदा के कुछ भाग का पालन किया है, वह दूसरे पक्षकार द्वारा संविदा भंग किये जाने पर संविदा के पालन से अपने को मुक्त करने का निर्णय दिया है अर्थात् संविदा को अपखण्डित करने या समाप्त मानने का निर्णय लेता है और किये गये कार्य के लिए युक्तियुक्त पारिश्रमिक हेतु कार्यवाही करता है।

उदाहरण के लिए क, ख को 30 किलो चीनी देने की संविदा करता है। जब क, ख को 20 किलो चीनी दे देता है तो ख आगे चीनी लेने से इन्कार कर देता है। क, ख से दी गयी 20 किलो चीनी की कीमत वसूल कर सकता है।

  1. संविदा के अन्तर्गत मूल्य अथवा पारिश्रमिक विहित न होने की दशा में-

    क्वाण्टम मेरियट का अनुतोष वहाँ भी अनुज्ञात किया जाता है जहाँ संविदा के अनुसरण में माल की आपूर्ति की जाती है अर्थातृ कार्य किया जाता है और करार के अन्तर्गत मूल्य अथवा पारिश्रमिक नियत नहीं होता है। ऐसी दशा में क्वाण्टम मेरियट के आधार पर युक्तयुक्त मूल्य अथवा युक्तियुक्त पारिश्रमिक दिया जाता है। यह उल्लेखनीय है कि यदि प्रवर्तनीय संविदा विद्यमान है और दिये गये माल या किये गये कार्य के लिए मूल्य या पारिश्रमिक संविदा के अन्तर्गत विहित है तो ऐसी दशा में क्वाण्टम मेरियट के आधार पर नहीं, बल्कि संविदा के अनुसार मूल्य अथवा पारिश्रमिक का भुगतान किया जायेगा।

  2. शून्य करार या संविदा की दशा में –

    यदि विधिमान्य संविदा के लिए विहित आवश्यक शर्तों की पूर्ति न होने के कारण प्रवर्तनीय संविदा का निर्माण नहीं होता अर्थात् शून्य संविदा उत्पन्न होती है, तो ऐसी दशा में किये गये कार्य के लिए क्वाण्टम मेरियट के आधार पर, युक्तियुक्त पारिश्रमिक के लिए दावा किया जा सकता है। क्वाण्टम मेरियट अर्थात् युक्तियुक्त पारिश्रमिक अथवा मूल्य प्राप्त करने का अधिकार विधि द्वारा दिया जाता है और इसे प्रदान करने के लिए किसी संविदा की आवश्यकता नहीं होती है। क्वाण्टम मेरियट का उपचार (संविदा उपचार कल्प) है। इस उपचार का आधार संविदा नहीं है। परिणामस्वरूप शून्य करार के अन्तर्गत किये गये कार्य के लिए भी युक्तियुक्त पारिश्रमिक की मांग की जा सकती है।

  3. जब संविदा शून्य हो जाती है-

    जब निर्माण के समय संविदा विधिमान्य एवं प्रवर्तनीय होती है परन्तु बाद में किसी ऐसी घटना के घटित होने के कारण जिसे प्रतिज्ञाकर्ता रोक नहीं सकता था, संविदा का पालन असम्भव हो जाता है अथवा विधि विरुद्ध हो जाता है तो नैराश्य के सिद्धान्त के आधार पर संविदा शून्य हो जाती है और पक्षकार संविदा पालन के दायित्व से मुक्त हो जाते हैं। परन्तु संविदा के विफल या व्यर्थ होने के पूर्व यदि कोई धन दिया गया है तो धन देने वाले पक्षकार इसे वसूल कर सकता है। जब संविदा नैराश्य के आधार पर शून्य हो जाती है तो जिस व्यक्ति ने इसे शून्य होने के पूर्व इसके अन्तर्गत कोई लाभ प्राप्त किया है उसे वह लाभ उस व्यक्ति को जिससे प्राप्त किया है, वापस करना पड़ेगा या उसके लिए प्रतिकर देना पड़ेगा।

  4. संविदा का पालन दोषपूर्ण होने की दशा में-

    यदि संविदा का पालन तो किया गया है परन्तु पालन में कुछ दोष है तो संविदा में विहित धन वसूल किया जा सकता है परन्तु उसमें से वह धन घटा दिया जायेगा जो उस दोष को दूर करने के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए क, ख के भवन की मरम्मत 15,000 रु. के लिए करने की संविदा करता है। वह मरम्मत तो करता है परन्तु वह संविदा के अनुरूप नहीं है बल्कि उसमें कुछ दोष है। दोष दूर करने में 5,000 रु. खर्च होता है। क ‘ 15,000 रु. 5000 रु.) 10,000 रु.ख से वसूल कर सकता है।

क्वाण्टम मेरियट का अधिकार विधि द्वारा दिया जाता है और वास्तव में यह संविदा-कल्प उपचार है। क्वाण्टम मेरियट का अनुतोष (उपचार) संविदा भंग के लिए प्रतिकर के अनुतोष से भिन्न है। संविदा भंग के लिए प्रतिकर देने में प्रयोजन यह होता है कि पीड़ित पक्षकार को उस स्थिति में रखा जाय जिसमें वह उस समय होता जबकि संविदा का पालन किया गया होता, जबकि क्वाण्टम मेरियट का प्रयोजन होता है पीड़ित पक्षकार को संविदा के अन्तर्गत किये गये कार्य के लिए युक्तियुक्त पारिश्रमिक या मुआवजा देकर उस स्थिति में रखना जिसमें वह उस समय होता जबकि संविदा न की गयी होती। क्वाण्टम मेरियट का अधिकार संविदा से उत्पन्न नहीं होता है। यह विधि द्वारा दिया गया है। संविदा-भंग के लिए प्रतिकर का अधिकार संविदा-भंग किये जाने पर उत्पन्न होता है। अर्थात् संविदा-भंग के लिए प्रतिकर का दावा करने हेतु विधिमान्य संविदा होनी चाहिए और उसका भंग किया जाना चाहिए। क्वाण्टम मेरियट का दावा करने के लिए संविदा का होना और उसका भंग किया जाना आवश्यक नहीं है।

संविदा अधिनियम की धारा 70 के अन्तर्गत क्वाण्टम मेरियट का नियम सन्निहित है। धारा 70 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति विधिपूर्वक किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई कार्य करता है या उसे कोई वस्तु प्रदान करता है और उसका आशय ऐसा कार्य निःशुल्क (आनुग्रहिकतः) करने अथवा ऐसी वस्तु निःशुल्क प्रदान करने का नहीं रहा है और दूसरा व्यक्ति उस कार्य या वस्तु का लाभ उठाता है तो लाभ उठाने वाला व्यक्ति उसे वापस देने के लिए अथवा उसके लिए प्रतिकर देने के लिए बाध्य होगा।

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