प्रत्याशित संविदा भंग (Anticipatory Contract Breach)

प्रत्याशित संविदा भंग (Anticipatory Breach of Contract)

प्रत्याशित संविदा भंग (Anticipatory Breach of Contract)

जब संविदा का एक पक्षकार संविदा का पालन नहीं करता है, जबकि विधि के अन्तर्गत वह उसका पालन करने के लिए बाध्य है तो दूसरा पक्षकार भी उस संविदा के पालन के दायित्व से मुक्त हो जाता है और वह संविदा भंग के कारण होने वाली हानि के लिए संविदा-भंग करने वाला पक्षकार से प्रतिकर वसूल कर सकता है।

संविदा भंग भी संविदा के उन्मोचन का एक ढंग होता है। धारा 39 संविदा भंग से सम्बन्धित है। इस धारा के अनुसार जब संविदा का एक पक्षकार अपनी पूरी प्रतिज्ञा (वचन) का पालन करने से इन्कार कर देता है या अपनी पूरी प्रतिज्ञा (वचन) का पालन करने से इन्कार कर देता है या अपनी पूरी प्रतिज्ञा (वचन) का पालन करने में अपने को निर्योग्य बना देता है तो दूसरा पक्षकार जब तक उसने उसको चालू रखने की शब्दों द्वारा आचरण द्वारा उपमति संज्ञात न कर दी हो, संविदा का अन्त कर सकता है।

वास्तव में संविदा भंग दो प्रकार का होता है-

  • पालन के समय संविदा-भंग या वास्तविक या वर्तमान संविदा भंग:
  • समयपूर्व संविदा-भंग ।
  1. पालन के समय संविदा भंग या वास्तविक या वर्तमान संविदा-भंग –

    जब संविदा का पक्षकार पालन के लिए नियत समय पर पालन न करके भंग करता है तो इसे पालन के समय भंग या वास्तविक या वर्तमान भंग कहते हैं। जब संविदा का एक पक्षकार संविदा का पालन नहीं करता है जबकि विधि के अन्तर्गत वह उसका पालन करने के लिए बाध्य है तो दूसरा पक्षकार भी उस संविदा के पालन के दायित्व से मुक्त हो जाता है और वह संविदा भंग के कारण होने वाली हानि के लिए भंग करने वाले पक्षकार से प्रतिकर वसूल कर सकता है।

इस प्रकार ऐसे संविदा-भंग में जिस समय संविदा का पालन किया जाना चाहिए उस समय उसका पालन न करके भंग किया जाता है।

  1. समय पूर्व संविदा-भंग –

    जब संविदा का कोई पक्षकार संविदा पालन के लिए नियत समय से पूर्व ही संविदा का पूर्णरूपेण पालन करने से इन्कार कर देता है या संविदा का पूर्णरूपेण पालन करने में अपने को निर्योग्य बना लेता है, तो इसे समय से पूर्व संविदा-भंग कहते हैं। उदाहरण के लिए क, ख को 26 जनवरी, 2010 को 180,000 रु. में मारुति कार देने की संविदा करता है परन्तु 5 जनवरी, 2010 को वह वही कार ग को बेच देता है। यहाँ पालन के समय से पूर्व (अर्थात् 26 जनवरी, 2010 से पूर्व) ही संविदा-भंग हो गया है।

जब पालन के समय से पूर्व ही एक पक्षकार संविदा भंग कर देता है या संविदा का पालन करने से इन्कार कर देता है या संविदा का पालन करने में अपने को निर्योग्य बना देता है, तो दूसरा पक्षकार, जब तक उसने उसको चालू रखने की शब्दों द्वारा या आचरण द्वारा उपमति संज्ञात न कर दी हो, संविदा का अन्त कर सकता है और उसके द्वारा भी संविदा का पालन किया जाना आवश्यक नहीं होगा और संविदा के पालन के लिए नियत समय का इन्तजार किये बिना वह तुरन्त क्षतिपूर्ति (प्रतिकर) के लिए वाद चला सकता है।

उदारहण के लिए क, जो एक गायिका है, एक थियेटर के प्रबन्धक ख से अगले दो महीनों के दौरान में प्रत्येक सप्ताह में दो रात उसके थियेटर में गाने की संविदा करती है और ख उसे प्रत्येक रात के गायन के लिए 100 रु. देना तय करता है। छठीं रात को क जानबूझकर थियेटर से अनुपस्थित रहती है। ख संविदा का अन्त करने के लिए स्वतन्त्र है।

परन्तु यदि छठीं रात को क जानबूझकर थियेटर से अनुपस्थित रहती है, परन्तु क की अनुमति से ख सातवीं रात को थियेटर में गाती है तो माना जायेगा कि ख ने संविदा को जारी रखने के लिए अपनी उपमति संज्ञान कर दी है और अब ख संविदा का अन्त नहीं कर सकता है परन्तु छठी रात को गाने में क की असफलता के कारण हुई हानि के लिए वह क से प्रतिकर वसूल करने का हकदार है।

समय से पूर्व संविदा भंग के लिए यह आवश्यक है कि संविदा का पूर्णरूपेण पालन करने से इन्कार कर दिया जाय या उसके पूर्णरूपेण पालन करने में अपने को निर्योग्य बना लिया जाय। यदि ऐसा नहीं है तो निर्दोष पक्षकार संविदा को समाप्त नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए रास बिहारी बनाम नृत्य गोपाल के बाद में एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से शक्कर क्रय करने के लिए अलग अलग दो संविदायें कीं। पहली संविदा के अन्तर्गत दी गयी शक्कर को क्रेता ने इन्कार कर दिया और इसलिए विक्रेता ने दोनों संविदाओं को समाप्त कर दिया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि विक्रेता ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकि क्रेता ने अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण रूप से इन्कार नहीं किया था। जब प्रतिज्ञा का पूर्ण रूप से इन्कार नहीं होता है तो धारा 39 लागू नहीं होती है।

इस प्रकार जब एक पक्षकार अपने पूरे वचन का पालन करने से इन्कार कर देता है। या अपने को पालन करने से अयोग्य बना लेता है तो दूसरे पक्षकार को यह विकल्प प्राप्त हो जाता है कि यदि वह चाहे तो संविदा पालन के समय के पूर्व ही संविदा का अन्त कर दे और तुरन्त क्षतिपूर्ति के लिए वाद चलाये अथवा वह संविदा का अन्त न करके उसे चालू रखे और वा पालन के समय का इन्तजार करे और उक्त समय पर संविदा का पालन न किये जाने पर संविदा – पालन न करने के सभी परिणामों के लिए उसे उत्तरदायी ठहराये। यदि निर्दोष पक्षकार संविदा का अन्त नहीं करता है और इसे चालू रखता है और संविदा-पालन के समय का इन्तजार करता है ताकि उस समय पर संविदा पालन न किये जाने की स्थिति में संविदा पालन न करने के परिणामों के लिए दायी ठहरा सके तो इसके निम्नलिखित परिणाम होंगे-

  • जिस पक्षकार ने संविदा-पालन से इन्कार किया है, वह संविदा-पालन का नियत समय आने पर संविदा – पालन करता है और यदि वह संविदा-पालन के नियत समय पर संविदा – पालन की प्रस्थापना करता है तो निर्दोष पक्षकार या दूसरे पक्षकार को उसे स्वीकार करना पड़ेगा।
  • जब संविदा चालू रखी जाती है तो जिस पक्षकार ने पहले संविदा – पालन से इन्कार किया था वह भी निर्दोष पक्षकार की तरह संविदा को असम्भव बनाने वाली घटनाओं का लाभ ले सकता है।
  1. जब संविदा-पालन के लिए नियत समय से पूर्व ही संविदा के पालन का परित्याग कर दिया जाता है और निर्दोष पक्षकार उस परित्याग को स्वीकार करके संविदा का अन्त कर देता है तो संविदा पालन के परित्याग के कारण होने वाली हानि के लिए क्षतिपूर्ति का निर्धारण परित्याग के समय किया जायेगा परन्तु यदि निर्दोष पक्षकार संविदा पालन के परित्याग को स्वीकार नहीं करता है और इस प्रकार संविदा को चालू रखता है तो संविदा पालन न करने के कारण होने वाली क्षति के लिए क्षतिपूर्ति का निर्धारण संविदा पालन के लिए नियत समय पर किया जायेगा।

यदि एक पक्षकार समय से पूर्व संविदा भंग करता है तो दूसरा पक्षकार संविदा का अन्त करके तुरन्त प्रतिकर वसूल कर सकता है परन्तु यदि संविदा के अन्तर्गत उसने कोई लाभ प्राप्त किया है तो उसे उस पक्षकार को वापस करना पड़ेगा जिससे उसने प्राप्त किया है। जिस संविदा का धारा 39 के अन्तर्गत किया जाता है, वह शून्यकरणीय संविदा होती है और इस कारण इसके सम्बन्ध में धारा 64 लागू होती है। धारा 64 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जिसके विकल्प पर कोई संविदा शून्यकरणीय है, संविदा को विखंडित करता है तो दूसरे पक्षकार के लिए संविदा के अपने भाग का पालन करना आवश्यक नहीं है। परन्तु यदि संविदा को विखंडित करने वाला पक्षकार दूसरे पक्षकार से कोई लाभ प्राप्त किया है तो उसे वह लाभ उस व्यक्ति को जिससे प्राप्त किया है वापस करना पड़ेगा।

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