संविदा खंडन के उपचार

संविदा खंडन के उपचार

संविदा खंडन के उपचार

अब दो पक्षकार एक दूसरे को वचन देते है तो संविदा का निर्माण होता है और जब दोनो पक्षकार अपने वचन का पालन कर चुके होते है तो संविदा पूर्ण हो जाती है। लेकिन एक संविदा का एक पक्षकार तो अपने वचन का पालन करने के लिए तत्पर और उत्सुक है, परन्तु दूसरा पक्षकार अपने वचन का पालन करने की अवहेलना करता है या पालन नहीं करता है या अपने वचन का पालन करने से इन्कार करता है, तो संविदा उस पक्षकार की ओर से खण्डित हुई मानी जाती है और वह पक्षकार संविदा खण्डन के लिए दोषी मानी जाती है। एक पक्षकार द्वारा संविदा का इस प्रकार खण्डन कर देने से दूसरा पक्षकार पीड़ित पक्षकार कहलाता है। इस पीड़ित पक्षकार को संविदा खण्डन करने वाले पक्षकार के विरुद्ध कुछ उपचार प्राप्त होते हैं, जिनका वर्णन संविदा अधिनियम की धाराओं 73 से 75 तक में किया गया है।

  1. उचित क्षतिपूर्ति

    क्वेण्टम मेरिट का अर्थ होता है, “किसी व्यक्ति को उतना धन देना, जितना उसने कमा लिया है।” अत: जब संविदा का एक पक्षकार उस संविदा के अधीन कुछ धन अर्जित कर चुका है या कुछ धन प्राप्त करने का अधिकारी हो चुका है, तो वह दूसरे पक्षकार से जो कि संविदा के खण्डन के लिए दोषी है, उस धन को प्राप्त करने का अधिकारी है। यह नियम इस सिद्धान्त पर आधारित हैं कि किसी व्यक्ति की उतनी क्षतिपूर्ति होनी चाहिए जिसके लिए वह सत्य रूप से अधिकारी है।

उदाहरण- ‘क’, ‘ख’ के कहने पर उसके लिए मेज बनाने का वचन देता है। ‘क’ के द्वारा मेज बनाने का कार्य प्रारम्भ करने के कुछ समय पश्चात् ‘ख’ संविदा का खण्डन कर देता है। ‘क’, ‘ख’ से ऐसे खण्डन के कारण उचित पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकारी है; और ‘ख’, ‘क’ को जितना उसने मेज शुरू करने में परिश्रम किया है, के लिए पारिश्रमिक देने के लिए बाध्य है।

  1. हर्जाना प्राप्त करने का अधिकार

    संविदा का खण्डन होने से पीड़ित पक्षकार को जो हानि पहुँची हो, वह उसे संविदा का खण्डन करने वाले पक्षकार से प्राप्त करने का अधिकारी है और स प्रकार वह संविदा खण्डन के लिए दोषी पक्षकार से अपने उपचार हेतु हर्जाने की माँग कर सकता है। पीड़ित पक्षकार को हर्जाना कितनी मात्रा में दिया जायेगा, इसके लिए कुछ विशेष प्रकार के सिद्धान्त निर्मित हैं।

  2. निषेध आज्ञा की माँग

    जब संविदा का एक पक्षकार किसी अमुक कार्य को नहीं करने की प्रतिज्ञा करता है और बाद में कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है। इनसे उस पक्षकार के द्वारा अपनी प्रतिज्ञा को भंग करने की सम्भावना बन जाती है, तो दूसरे पक्षकार को यह अधिकार होता है कि वह उसे ऐसी प्रतिज्ञा के भंग करने से रोक सके। अतः ऐसा पक्षकार न्यायालय में इसके लिए प्रार्थना कर सकता है और न्यायालय आवश्यक समझते हुए ऐसा आदेश पारित कर देता है, जिससे वह पक्षकार पूर्णतया अपनी प्रतिज्ञा को भंग करने से रोक दिया जाता है।

उदाहरण- ‘क’ जो एक गायिका है, नाटक के प्रबन्धक ‘ख’ से अगले दो महीनों तक प्रत्येक सप्ताह में दो रात को नाटक में गाने के लिए नहीं आती है। इस आधार पर नाटक का स्वामी उसे अपने नाटक में गाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। केवल उस रात को गाना नहीं गाने के परिणामस्वरूप अपनी हुई हानि के लिए उससे हर्जाने की माँग कर सकता है, लेकिन वह अपने थियेटर के अतिरिक्त अन्य किसी के थियेटर पर उसे गाने से रोकने के लिए न्यायालय से उसके विरुद्ध निषेधाज्ञा पारित नहीं करा सकता है।

  1. विशेष ढंग से पालन

    संविदा खण्डन की दशा में पीड़ित पक्षकार को संविदा करने वाले पक्षकार से विशिष्ट रूप से वचन का निष्पादन प्राप्त करने का भी अधिकार होता है। विशिष्ट अनुतोष अधिनियम के विशिष्ट रूप से वचन के पालन का अभिप्राय वचन का उसी ढंग अथवा रीति में पालन करना है, जो ढंग अथवा रीति पक्षकारों के द्वारा संविदा करते समय निश्चित की गयी थी। लेकिन इसके सम्बन्ध में यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि पीड़ित पक्षकार को विशिष्ट पालन का अधिकार केवल उसी दशा में होगा जबकि हर्जाना उसके लिए पूर्ण उपचार न हो।

  2. निष्पादन से मुक्ति

    जब संविदा का एक पक्षकार उसे पूरा करने में असमर्थ रहता है अर्थात् उसका खण्डन करता है तो दूसरा पक्षकार (अर्थात् पीड़ित पक्षकार) संविदा को समाप्त हुआ मान सकता है। ऐसी अवस्था में पीड़ित पक्षकार अपने भाग के निष्पादन के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

  3. घोषणार्थ वाद का अधिकार

    पीड़ित पक्षकार इस बात की घोषणा के लिए कि वह संविदा से अब बाध्य नहीं है, वाद प्रस्तुत कर सकता है। ऐसा करने से पीड़ित पक्षकार संविदा सम्बन्धी अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

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