असंभवता / विफलता का सिद्धांत (Principle of Impossibility)

असम्भवता का सिद्धांत 

असम्भवता का सिद्धांत (Principle of Impossibility)

विफलता का सिद्धान्त संविदा के पालन की असम्भवता पर आधारित है। इसका अर्थ है कि जब संविदा का पालन परिस्थितियों में अप्रत्याशित परिवर्तन के कारण सम्भव नहीं रह जाता है तो पक्षकारों को संविदा के पालन से इसलिए मुक्त कर दिया जाता है क्योंकि उन्होंने असम्भव कार्य करने का वचन नहीं दिया था।

विफलता के सिद्धान्त का जन्म इंग्लैण्ड में टेलर v. काल्डवेल के मुकदमें से हुआ। इस मुकदमें में दिये गये निर्णय के पहले संविदा के प्रत्येक पक्षकार को अपने दायित्व हर हालत में पूरे करने होते थे भले ही संविदा का पालन असम्भव हो गया हो परन्तु टेलर v. काल्डवेल के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि उपर्युक्त नियम केवल उन्हीं संविदाओं में लागू होगा जो सकारात्मक तथा पूर्ण हैं और ऐसी संविदाओं में लागू नहीं होगा जो अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से किसी शर्त पर आधारित है।

इस वाद में वादी ने प्रतिवादी का संगीत हाल 4 दिन के लिए किराये पर लिया। वह उसमें संगीत का प्रोग्राम करना चाहता था। परन्तु संगीत कार्यक्रम शुरू होने की तिथि के पूर्व ही हाल में आग लग गयी और हाल जलकर राख हो गया। पालन के दायित्व से मुक्त हो गया था।

निर्णीत हुआ कि संविदा का पालन असम्भव हो गया था इसलिए प्रतिवादी संविदा भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 56 में विफलता के सिद्धान्त को अपनाया गया है।

पूर्ववर्ती असम्भवता धारा 56 का पैरा (1)- धारा 56 का पैरा (1) यह उल्लेख करता है कि असम्भव कार्य करने का करार शून्य होता है। उदाहरणार्थ ‘ब’ से ‘अ’ करार करता है कि वह जादू से खजाने का पता लगायेगा। ऐसा करार शून्य है। धारा 56 का दृष्टान्त (क)

पश्चात्वर्ती असम्भवता धारा 56 पैरा (2)- धारा 56 का पैरा (2) विफलता के सिद्धान्त के बारे में बताता है। धारा 56 के पैरा (2) में वर्णित सिद्धान्त के बारे में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं-

  1. ऐसा कार्य करने की संविदा जो संविदा करने के समय सम्भव था,
  2. परन्तु संविदा किये जाने के बाद किसी ऐसी घटना के कारण जिसे वचनदाता नहीं रोक सकता था।
  • असम्भव हो जाता है; या
  • विधि विरुद्ध हो जाता है।

तो ऐसी संविदा तब शून्य हो जाती है जब ऐसा कार्य असम्भव या विधि विरुद्ध हो जाता है। उदाहरणार्थ A और B आपस में विवाह करने की संविदा करते हैं: विवाह के लिए नियत समय से पूर्व A पागल हो जाता है। संविदा शून्य हो जाती है। धारा 56 का दृष्टान्त (ख)

पंजाब उच्च न्यायालय ने पुरुषोत्तम दास . बटाला म्युनिसिपल कमेटी के वाद में इस सिद्धान्त को अपनाया है-वादी ने म्युनिसिपल कमेटी से 5000

रुपये प्रतिवर्ष के किराये पर तांगा स्टैण्ड का ठेका लिया। परन्तु पूरे साल में एक दिन भी किसी तांगे वाले ने तांगा खड़ा नहीं किया। इसलिए वादी कुछ वसूल भी नहीं सका। उसने म्यूनिसिपैलिटी से 5000 रुपये एडवांस लौटाने के लिए निवेदन किया।

‘निर्णीत हुआ कि विफलता का सिद्धान्त लागू होगा क्योंकि तांगा चलाने वालों का स्टैण्ड पर तांगा न खड़ा करना किसी पक्षकार के वश की बात नहीं थी।

परन्तु विफलता का सिद्धान्त वहाँ नहीं लागू होगा जहाँ संविदा पालन की मूलभूत परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ हो अर्थात् संविदा पालन की पूर्ववर्ती शर्त का भंग हुआ हो। इस सम्बन्ध में सचीन्द्र नाथ बनाम गोपाल चन्द का वाद उल्लेखनीय हैं- प्रतिवादी ने वादी का रेस्टोरेन्ट इसलिए सामान्य से अधिक किराये पर लिया क्योंकि उस स्थान पर ब्रिटिश फौज रुकी हुई थी जिससे उसे अधिक लाभ की सम्भावना थी। करार में यह शर्त थी कि जब तक शहर में ब्रिटिश फौज रहेगी तब तक अधिक किराये की शर्त लागू रहेगी। कुछ समय बाद सैनिकों के रेस्टोरेन्ट जाने पर रोक लगा दी गयी। परन्तु सेना शहर में ही मौजूद रही।

निर्णीत हुआ कि विफलता का सिद्धान्त लागू नहीं होगा क्योंकि सेना शहर से हटायी नहीं गयी थी।

असम्भवता के सिद्धान्त के आधार

विफलता का सिद्धान्त निम्नलिखित आधारों पर न्यायालय द्वारा लागू किया जाता है-

  1. संविदा की विषय-

    वस्तु का नष्ट होना-जब संविदा की विषय वस्तु ही नष्ट हो जाती है तो विफलता का सिद्धान्त लागू नहीं होता है क्योंकि संविदा की विषय-वस्तु नष्ट होने के कारण संविदा का पालन सम्भव नहीं रह जाता। संविदा की विषय-वस्तु के नष्ट होने के बारे में टेलर बनाम काल्डवेल का वाद एक उपयुक्त उदाहरण है।

इसी प्रकार का एक अन्य वाद बी.एल.ना. v. ए.वी.एस.वी. अय्यर का वाद है- इस वाद में एक व्यक्ति ने फिल्म चलाने के लिए लाइसेन्स लिया था, परन्तु सिनेमा हाल की पिछली दीवाल घोर बरसात के कारण गिर गयी थी। न्यायालय ने विफलता का सिद्धान्त लागू करते हुए हाल की पुनः मरम्मत न किये जाने तक फिल्म चलाने का लाइसेन्स रद्द कर दिया।

  1. अपेक्षित घटना का घटित न होना-

    विफलता का सिद्धान्त वहाँ भी लागू होगा जहाँ जिस विशेष घटना के लिए संविदा की गयी हो परन्तु वह घटना न घटे। क्रेल . हेनरी का वाद इसका उपयुक्त उदाहरण है- प्रतिवादी ने पालमाल में स्थित प्रतिवादी के कुछ कमरों को 26 और 27 जून के लिए किराये पर लेने का करार किया। इन तारीखों को राज्याभिषेक जुलुस पाल माल से होकर जाने वाला था। परन्तु राजकुमार बीमार हो गया इसलिए राज्याभिषेक रद्द कर दिया गया। वादी ने बकाया किराये की माँग की परन्तु प्रतिवादी ने किराया देने से इन्कार कर दिया।

निर्णीत हुआ कि जुलूस संविदा का आधार था। जुलूस न निकलने के कारण संविदा विफल हो गयी इसलिए वादी बाकी किराया वसूल नहीं सकता था।

  1. पक्षकार की अयोग्यता या मृत्यु –

    जब किसी संविदा का पालन किसी व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करता है और वह व्यक्ति बीमारी या किसी अन्य कारण से संविदा पालन के अयोग्य हो जाता है या मर जाता है तो विफलता का सिद्धान्त लागू होगा।

  2. वैधानिक परिवर्तन –

    विफलता का सिद्धान्त वहाँ भी लागू होता है जहाँ विधि में परिवर्तन या सरकारी हस्तक्षेप के कारण संविदा का पालन सम्भव नहीं रह जाता। इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत बोथलिंग एजेन्सी v. परिस्वामी नाडर का वाद प्रमुख है- प्रतिवादी, जिसके पास काफी पाउडर बनाने के लिए कच्चा माल आयात करने का लाइसेन्स था। उसने वादी से आयातित काफी पाउडर बेचने की संविदा की। परन्तु सरकार ने ऐसा माल बेचने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। निर्णीत हुआ कि प्रविवादी संविदा भंग के लिए दायी नहीं था क्योंकि विधिक हस्तक्षेप के कारण संविदा का पालन असम्भव हो गया था।

परन्तु वहाँ विफलता का सिद्धान्त लागू नहीं होगा जहाँ सरकारी या विधिक हस्तक्षेप अस्थायी हो। उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत सत्यव्रत घोष v. मगनीराम का वाद प्रमुख उदाहरण है- प्रतिवादी क० जो कलकत्ते में एक बड़े भू-खण्ड की मालिक थी उसने प्लाटिंग करके लोगों को प्लाट बेचना शुरू किया। सड़कें, नालियों आदि बनाने का दायित्व कम्पनी ने स्वयं लिया। भू-खण्ड का अधिकांश भाग सरकार द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में सैनिक कार्यों के लिए अस्थायी रूप से ले लिया गया।

कम्पनी ने सरकारी हस्तक्षेप के आधार पर संविदा समाप्त करना चाहा।

निर्णीत हुआ कि संविदा का पालन असम्भव नहीं हुआ था भले ही सरकार के अस्थायी आदेश के कारण संविदा के पालन में विलम्ब हो गया था।

युद्ध द्वारा हस्तक्षेप

विफलता का सिद्धान्तं तब भी लागू होता है जब युद्ध के कारण संविदा का पालन असम्भव हो जाता है। धारा 56 का दृष्टान्त (घ) इसका प्रमुख उदाहरण है-

‘क’ संविदा करता है कि वह एक विदेशी बन्दरगाह पर ‘ख’ के लिए स्थोरा भरेगा। तत्पश्चात् ‘क’ की सरकार उस देश के विरुद्ध जिसमें वह बन्दरगाह स्थित है, युद्ध की घोषणा करती है। संविदा तब शून्य हो जाती है जब युद्ध घोषित किया जाता है।

असम्भवता के सिद्धान्त का परिणाम

इसके निम्नलिखित परिणाम होते हैं-

  1. संविदा शून्य हो जाती है और पक्षकार संविदा पालन के दायित्व से मुक्त हो जाते हैं।
  2. अपालन से हुई हानि के लिए प्रतिकर धारा 56 (3)।

धारा 56 का पैरा (3) यह उपबन्ध करता है कि वचनदाता तब वचनग्रहीता को प्रतिकर देगा, जब उसने कोई ऐसा वचन दिया हो जिसके असम्भव या विधि विरुद्ध होने के बारे में-

  • वचनग्रहीता नहीं जानता था परन्तु
  • वचनदाता या तो जानता था; या
  • युक्तियुक्त, तत्परता से जान सकता था।

उदाहरणार्थ ‘क’ जो पहले से ही विवाहित है और ‘ख’ से विवाह करने की संविदा करता है जबकि बहुपत्नी विधि द्वारा वर्जित है। ‘क’ वचन के अपालन से हुई हानि के लिए ‘ख’ को प्रतिकर देगा धारा 56 का दृष्टान्त (ग) ।

  1. अग्रिम धन की वापसी (धारा 65) – जब संविदा विफल हो जाती है तो वह पक्षकार जिसने ऐसी संविदा के अन्तर्गत कोई अग्रिम धन प्राप्त किया है, दूसरे पक्षकार को जिससे उसने ऐसा अग्रिम धन प्राप्त किया था लौटाना होगा। उदाहरणार्थ ‘ख’ के यह वचन देने के प्रतिफल स्वरूप कि वह ‘क’ की पुत्री ‘ग’ से विवाह कर लेगा। ‘ख’ को ‘क’ 1000 रुपये देता है। वचन के समय ‘ग’ मर चुकी है। करार शून्य है किन्तु ‘ख’ को वे 1000 रुपये ‘क’ को लौटाने होंगे। धारा 65 का दृष्टान्त (क)

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