व्यादेश या निषेधाज्ञा (Injunction)

व्यादेश या निषेधाज्ञा (Injunction)

किसी कार्य को न करने के लिए किसी पक्ष का विधिक दायित्व है उस कार्य को उसे करने से रोकने, निवारक अनुतोष कहलाता है।

विशिष्ट अनुतोष अधिनियम के अध्याय आठ एवं धारा 36 में निवारण अनुतोष को उपविन्धत किया गया है। उदाहरणार्थ, ‘क’ व्यक्ति ‘ख’ के दरवाजे के सामने कोई दीवार लगा रहा है, तो ‘ख’ द्वारा वाद दायर करने पर न्यायालय ‘ख’ को निवारक अनुतोष प्रदान कर सकता है। निवारक अनुतोष प्राप्त करना किसी पक्ष का अधिकार नहीं होता, बल्कि यह न्यायालय का विवेकाधिकार होता है जिसका कि प्रयोग न्यायालय मामले एवं पक्षों की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए विधि के स्थापित सिद्धान्तों के आधार पर करता है। निवारक अनुतोष के अधीन न्यायालय प्रतिवादी के लिए निषेधाज्ञा अथवा व्यादेश जारी करता है।’

व्यादेश या निषेधाज्ञा का अर्थ

व्यादेश न्यायालय का विशिष्ट आदेश होता है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को कोई गलत धमकी भरा कृत्य करने से या किसी ऐसे गलत कार्य को करते रहने से, जो कि शुरू किया जा चुका है, रोका जाता है।

इंग्लैण्ड के चान्सरी न्यायालयों में व्यादेश का अर्थ प्रति वैधात्मक रिट से लगाया जाता है। जो कि न्यायालय द्वारा प्रतिवादी के विरुद्ध जारी की जाती है जिसके द्वारा प्रतिवादी को किसी ऐसे विधिक कार्य को करने से रोका जाता है जिसका कि करना साम्य एवं अन्तर्विवेक के विरुद्ध होता है।

किसी व्यादेश में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  1. निषेधाज्ञा या व्यादेश जारी किया जाना न्यायालय की एक न्यायिक प्रक्रिया है।
  2. निषेधाज्ञा या व्यादेश का अनुतोष प्राप्त करना वादी का अधिकार नहीं होता है, बल्कि यह न्यायालय का विवेकाधिकार होता है।
  3. निषेधाज्ञा या व्यादेश का लक्ष्य रोक या नियन्त्रण या निवारण होता है।
  4. जिस पर रोक लगायी गयी है या जिसे निवारित किया गया है उस कार्य को गलत होना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि न्यायालय निषेधाज्ञा का अनुतोष वहीं प्रदान करता है जहाँ अन्य किसी सामान्य विधि में कोई उपचार व्यवस्था नहीं होती है तथा न्यायालय यह अनुतोष उस समय भी प्रदान नहीं करेगा जबकि क्षतिपूर्ति के रूप में पर्याप्त अनुतोष उपलब्ध हो ।

व्यादेश के प्रकार

व्यादेश को मुख्य रूप से अग्रलिखित दो वर्गों के अन्तर्गत विभाजित किया जा सकता है- (1) प्रकृति के अनुसार, (2) अवधि के अनुसार।

  1. प्रकृति के अनुसारप्रकृति के अनुसार व्यादेश निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-
  • प्रतिषेधात्मक व्यादेश
  • आज्ञापक व्यादेश।
  1. अवधि के अनुसार
  • अस्थायी व्यादेश,
  • स्थायी अथवा शाश्वत व्यादेश।

इस प्रकार व्यादेश चार प्रकार के हुए जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार है-

  1. प्रतिषेधात्मक व्यादेश

    प्रतिषेधात्मक या निषेधात्मक व्यादेश वह होता है जिसके कि द्वारा प्रतिवादी को ऐसे दुष्कृत्य करने से रोका जाता है जिससे कि वादी के किसी विधिक या साम्यिक अधिकार का अतिलंघन हो रहा हो। उदाहरण के लिये, प्रतिवादी को ऐसी दीवार लगाने के सम्बन्ध में प्रतिषेधात्मक व्यादेश का उपचार प्रदान किया जा सकता है, जिससे कि बादी के प्रकाश के सुखाधिकार में बाधा पहुँच रही हो।

  2. आज्ञापक या समादेशात्मक व्यादेश

    आज्ञापक व्यादेश वे होते हैं, जो किसी प्रतिवादी को गलत कार्य करते रहने से मना करते हैं तथा प्रतिवादी से यह भी अपेक्षा करते हैं कि किसी विशेष किये हुए या किये जाने वाले कृत्य को अब बिना किया हुआ ही रहने दें।

  3. अस्थायी व्यादेश

    अस्थायी व्यादेश वे व्यादेश होते हैं, जो किसी मामले के विचारण के किसी भी प्रक्रम पर जारी किये जा सकते हों। अस्थायी व्यादेश को अन्तरिम व्यादेश भी कहते हैं, क्योंकि ये व्यादेश विशिष्ट समय तक के लिए जारी किये जाते हैं। इस व्यादेश के अधीन सामान्यतया पक्षकारों को ‘यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया जाता है।

  4. स्थायी या शाश्वत व्यादेश

    स्थायी व्यादेश वे आदेश होते हैं जो मामले की पूर्ण सुनवायी के उपरान्त अन्तिम निर्णय एवं आज्ञप्ति द्वारा जारी किये जाते हैं।

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