समाश्रित संविदा (Contingent Contract)

समाश्रित संविदा (Contingent Contract)

समाश्रित संविदा

समाश्रित संविदा का तात्पर्य ऐसी संविदा से है जिसमें किसी ऐसे कार्य को करने या न करने के लिये होता है जो किसी समपर्शिवक घटना के होने या न होने पर आधारित हो।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 31 के अनुसार “समिश्रत संविदा यह संविदा है जो ऐसी संविदा से समथार्श्विक किसी घटना के घटित होने या न होने पर ही किसी किसी बात को करने या न करने के लिए हो जैसे क, ख से संविदा करता है यदि ख का घर जल जाये तो वह ख को 5,000 रु देगा यही समाश्रित संविदा है।

समाश्रित संविदाओं के लक्षण

समाश्रित संविदा साधारण संविदा का ही एक रूप है। अतः इनमें वह सभी आवश्यक लक्षण पाये जाने आवश्यक हैं, जो कि वैध संविदा में पाये जाते है; लेकिन वह साधारण संविदाओं से कुछ अलग हटकर है। अतः इस कारण इसके कुछ अन्य विशेष लक्षण भी बन जाते हैं जो निम्नलिखित प्रकार हैं-

  1. इसमें वचन का निष्पादन किसी भावी घटना के घटित हो जाने अथवा न हो जाने पर आधारित है।
  2. यह भावी घटना संविदा के सांपार्शिवक रहनी चाहिए अर्थात् वह संविदा का अंग नहीं हो बल्कि अलग से हो ।

उदाहरण के लिए ‘क’ ‘ख’ से कहता है कि यदि वह उसके लिए कमीज सीकर तैयार कर देगा, तो वह उसको 12 रुपये देगा। यह कोई समाश्रित संविदा नही हैं यद्यपि ‘क’ का 12 रुपये देने का वचन ‘ख’ द्वारा कमीज तैयार करने पर निर्भर है, परन्तु यहाँ इस संविदा में ‘क’ का वचन किसी सांपाश्विक घटना पर आधारित नहीं है ।

  1. समाश्रित संविदा के लिए यह भी आवश्यक है कि घटना प्रतिज्ञादाता के वश में न हो, यानि कि उसका घटित होना अथवा न होना प्रतिज्ञादाता के हाथ में न हो।

समाश्रित संविदा के नियम

समाश्रित संविदा किसी कार्य को करने अथवा न करने की ऐसी संविदा है जो किसी भावी सांपार्शिवक घटना के घटित होने अथवा न होने पर निर्भर है। इस दृष्टिकोण से समाश्रित संविदा के प्रवर्तित होने के सम्बन्ध में हम उन्हें अग्रलिखित भागों में बाँट सकते हैं-

  1. ऐसी समाश्रित संविदा जो किसी सांपाविक घटना के होने पर आश्रित है (धारा 32)-

    जब कोई समाश्रित सविदा इस प्रकार की है कि उसमें दिया गया वचन किसी सांपार्शिवक भावी घटना के घटित होने पर आधारित है तब ऐसी समाश्रित संविदा उस समय प्रवर्तित करायी जा सकती हैं जबकि ऐसी घटना हो जाती है-परन्तु जब घटना का घटित होना असम्भव होता है तब यह संविदा शून्य हो जाती है।

उदाहरण के लिए- ‘अ’ ‘ब’ को एक निश्चित कीमत पर अपना घोड़ा बेचने की संविदा करता है इस शर्त पर कि ‘स’ जिसे घोड़े को बेचने का प्रस्ताव किया गया है, उसे अस्वीकार कर दे। इस दशा में यह संविदा उस समय तक प्रवर्तित नहीं करायी जा सकती, जब तक कि ‘स’ उसे खरीदने से अस्वीकार न कर दे। लेकिन जब ‘स’ उसे खरीद लेगा तो यह संविदा शून्य बन जायेगी।

  1. ऐसी समाश्रित संविदा जो किसी सांमपाश्विक घटना के न होने पर आश्रित, है (धारा 33) –

    जब समाश्रित संविदा किसी घटना के न होने पर आधारित है तब ऐसी संविदा उस समय प्रवर्तित करायी जा सकती हैं, जबकि उस घटना का होना असम्भव हो जाये लेकिन जब वह घटना घटित हो जाती है, तब ऐसी संविदा शून्य बन जाती है।

उदाहरण के लिए- ‘अ’ ‘ब’ को 500 रुपये इस शर्त पर देने को सहमत होता है कि कोई अमुक हवाई जहाज हवाई अड्डे पर न लौटे। ऐसी स्थिति में जब हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त होकर नष्ट हो जाता है, तब ही यह संविदा प्रवर्तित करायी जा सकती है। परन्तु यदि हवाई जहाज वापस हवाई अड्डे पर लौट आये तब यह संविदा शून्य बन जाएगी।

यदि समाश्रित संविदा किसी ऐसी घटना पर आधारित है, जो कि उस समय असम्भव हो जायेगी जबकि कोई व्यक्ति अनिश्चित समय पर कोई कार्य करे। जब ऐसा व्यक्ति कोई कार्य करता है जिससे यह असम्भव हो जाता है कि वह सुनिश्चित समय में वैसा ही कार्य करेगा।

उदाहरण के लिए- ‘अ’ ‘ब’ को इस शर्त पर 1,000 रुपये देने के लिए सहमत होता है कि वह ‘स’ से शादी करे। ‘स’ ‘द’ से शादी कर लेती है। ऐसी दशा में ‘ब’ और ‘स’ की शादी असम्भव हो जाती है। यद्यपि यह उस दशा में सम्भव है, जबकि ‘द’ की मृत्यु हो जाये और फिर ‘स’ ‘ब’ से शादी कर ले। (धारा 34)

  1. ऐसी समाश्रित संविदा जो किसी सांमपार्रिवक घटना के निश्चित समय में होने पर आश्रित है (धारा 34) –

    ऐसी समाश्रित संविदा जो किसी भावी घटना के निश्चित समय में घटित होने पर आधारित हैं उस समय प्रवर्तित करायी जा सकती है जबकि घटना का होना उस निश्चित समय में हो जाये, परन्तु जब घटना उस निश्चित समय में नहीं होती हैं तब ऐसी संविदा शून्य हो जाती है।

उदाहरण के लिए- ‘अ’ ‘ब’ को 500 रुपये देने के लिए इस शर्त पर सहमत होता है कि कोई अमुक रेलगाड़ी आठ बजे तक प्लेटफार्म पर आ जाये। तब यदि वह रेलगाड़ी आठ बजे तक प्लेटफार्म पर आ जाती है, तब ऐसी संविदा प्रवर्तित करायी जा सकती हैं और यदि वह रेलगाड़ी आठ बजे तक प्लेटफार्म पर नहीं आती है, तब यह संविदा शून्य बन जाती है।

  1. ऐसी समाश्रित संविदा जो किसी सांपाविक घटना के निश्चित समय में न होने पर आश्रित है (धारा 35) –

    जब कोई समाश्रित संविदा इस प्रकार की है कि उसमें दिया गया वचन किसी सांपाश्विक भावी घटना के निश्चित समय में न होने पर आधारित है, तब ऐसी संविदा उस समय प्रवर्तित करायी जा सकती है जबकि ऐसी घटना उस निश्चित समय में नहीं हुई हो-परन्तु जब घटना उस निश्चित समय में हो जाती है तब संविदा शून्य बन जाती है।

उदाहरण के लिए- ‘अ’ ‘ब’ को 500 रुपये देने के लिए इस शर्त पर सहमत होता है कि कोई अमुक रेलगाड़ी आठ बजे जब प्लेटफार्म पर न आये। इस दशा में यह संविदा उस समय प्रवर्तित करायी जा सकती है, जबकि वह रेलगाड़ी आठ बजे तक प्लेटफार्म पर न आये। परन्तु जब वह रेलगाड़ी आठ बजे तक प्लेटफार्म पर आ जाती है, तब ऐसी संविदा शून्य बन जाती है।

  1. ऐसी समाश्रित संविदा जो किसी असम्भव घटना पर आश्रित है (धारा 36) –

    ऐसी समाश्रित संविदा जो किसी असम्भव घटना पर आधारित है, शून्य होती है अर्थात् किसी भी दशा में प्रवर्तित नहीं कराये जा सकते।

उदाहरण के लिए- ‘अ’ ‘ब’ से 1,000 रुपये देने का करार करता है, यदि ‘ब’ उसके लिए आसमान से एक तारा तोड़कर ला दे। यहाँ आसमान से तारा तोड़ने की घटना असम्भव है। अतः संविदा शून्य है। इसी प्रकार असम्भव घटनाएँ और भी हो सकती हैं।

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