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मानसिक मन्दितों की शिक्षा

मानसिक मन्दितों की शिक्षा

बुद्धि आनुवंशिक अधिक होती है और उस पर बौद्धिक चिन्तन का प्रभाव पड़ता है । इसका आशय यह हुआ कि बुद्धि में बहुत बड़ा परिवर्तन लाना कम ही सम्भव है। अतः मन्द बुद्धि बालकों की शिक्षा में यह सोचना है कि उन्हें प्रतिभाशाली बच्चों के साथ पढ़ाया जाय, न्यायसंगत नहीं है । इस तथ्य के अतिरिक्त एक तथ्य और है- किसी भी समस्या के कारणों को मिटा देने से उस समस्या का समाधान स्वतः ही हो जाता है । इन दोनों तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए मन्द बुद्धि छात्रों की शिक्षा के विभिन्न पहलू होने चाहिए । इसमें हम दोनों ही प्रकार-मन्द बुद्धि छात्रों, जिन्हें शिक्षा दी जा सकती है और जिन्हें शिक्षा नहीं दी जा सकती है—को साथ-साथ लेकर चलेंगे।

मन्द बुद्धि बालक का शिक्षक

  1. दोनों ही प्रकार के मन्द बुद्धि बालक, चाहे उन्हें शिक्षा दी जा सकती है अथवा नहीं; किसी भी बात को बड़ी देर से सीख पाते हैं, अतः शिक्षक को संवेगात्मक दृष्टि से बड़ा स्थिर होना चाहिए।
  2. मन्द बुद्धि बालकों के लिए, चूँकि लिखना-पढ़ना बड़ा कठिन है, अतः लिखना-पढ़ना उनके लिए इतना महत्त्वपूर्ण नहीं जितना जीविकोपार्जन हेतु कुछ कार्य करना सीखना इस दृष्टि से शिक्षक को चाहिए कि-
    • संज्ञानात्मक (Cognitive) दृष्टि से उन बातों का ज्ञान कराये जो उनके जीविकोपार्जन हेतु आवश्यक है; जैसे—काम के बदले दाम कमाना।
    • भावात्मक (Affective) दृष्टि से काम के प्रति लगन और सामाजिक चेतना की सीख देना।
    • क्रियात्मक (Conative) दृष्टि से बालक जिस काम को करने में सक्षम हो, उसे उस कार्य को कराने का प्रशिक्षण देना।
  3. यथार्थतः, यदि मन्द बुद्धि बालकों को शिक्षा भी दी जाय तो वे बहुत आगे नहीं चल पाते । इस दृष्टि से उन्हें उतनी ही शिक्षा दी जाय जितनी वे बौद्धिक दृष्टि से ग्रहण कर सकते हैं।
  4. प्रत्येक बौद्धिक या शारीरिक कार्य उनकी बौद्धिक और शारीरिक क्षमता को ध्यान में रखकर कराया जाए।
  5. मन्द बुद्धि बालकों के लिए ज्ञानेन्द्रियों एवं बौद्धिक शिक्षा के स्थान पर शारीरिक एवं स्नायुओं की शिक्षा अधिक लाभप्रद सिद्ध होती है
  6. यदि कोई मन्द बुद्धि बालक शिक्षक या परामर्शदाता के पास मार्गदर्शन (Guidance) हेतु आये तो उसे समझाया जाये कि उसके लिए आगे पढ़ने की अपेक्षा किसी कला (काष्ठ कला, चित्रकला, कताई-बुनाई आदि) का प्रशिक्षण ग्रहण करना अधिक अच्छा रहेगा । नयी शिक्षा नीति 10 + 2 की शिक्षा का भी यही उद्देश्य है।

मानसिक मन्दितों की शिक्षा के नियम

आलिवर पी. कोलेस्टो (1970) ने मन्दित बालकों की शिक्षा के निम्नलिखित नियम बताये हैं-

  1. अधिगम कार्य जटिल नहीं होने चाहिए । नवीन अधिगम में कम-से-कम तत्वों का होना आवश्यक होता है तथा इनमें से अधिकांश तत्व पहचाने हुए होने चाहिए।
  2. बालक रुचिपूर्ण तरीकों से सीखे इसके लिए अधिगम कार्य छोटा रखें।
  3. सीखने में कई सोपानों का प्रयोग किया जाता है । यह सोपान छोटे-छोटे होने चाहिए ताकि बालक त्रुटि न कर सकें।
  4. बालकों की रुचि तथा अभिप्रेरणा को बनाये रखने के लिए उनसे अनेक प्रयास करवाने चाहिए।
  5. बालकों को व्यवसायिक कार्यों हेतु प्रेरित करना चाहिए । बालकों को किसी भी अनुत्पादक कार्य में अपने को लगाकर आंशिक या पूर्ण रूप से आत्मनिर्वाह करने की कुशलता प्राप्त कर ले ।
  6. बालकों में सामाजिक कुशलता का विकास करें ताकि उनमें अपने साथियों के साथ मिल-जुल कर कार्य करने की भावना का विकास हो।

अतः मन्दित बालकों की शिक्षा में विशिष्ट पाठ्यक्रम, विशिष्ट अनुदेशन, विशिष्ट अध्ययन सामग्री तथा व्यवस्था का होना अति आवश्यक है।

मानसिक मन्दितों की शिक्षा में शिक्षकों की भूमिका (Role of Teacher)

मानसिक मन्दित बालकों की शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षक भली भाँति प्रशिक्षित हों तथा इन शिक्षकों में कुछ ऐसी विशेषताएँ भी होनी चाहिए, जो कि निम्नलिखित हैं-

  1. बालकों के विषय में जानकारी देना (Knowledge about its Children)- मानसिक मन्दिन बालकों की अनेक समस्याएँ होती हैं। एक सफल व प्रशिक्षित शिक्षक वही होता है, जो इन सभी समस्याओं को समझकर उसका समाधान निकाल सके। शिक्षकों को छात्र के विकास की पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिए; जैसे- छात्र कहाँ से आया है, उसका परिवार कैसा है । परिवार की आर्थिक स्थितिbकैसी है आदि ताकि छात्रों की समस्याओं का निदान भली प्रकार से किया जा सके।
  2. शिक्षकों का सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार (Sympathetic Attitudes of Teachers)- शिक्षकों का व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण होना अति आवश्यक होता है, ताकि वह छात्रों के साथ प्यार व स्नेहपूर्वक व्यवहार करके छात्रों को अच्छी तरह समझा सके।
  3. संवेगात्मक स्थिरता प्रदान करे (To Create Emotional Stability)- मन्दबुद्धि बालकों में संवेगात्मक स्थिरता न के बराबर होती है । यह थोड़ी-थोड़ी देर बाद रोने लगते हैं । व्ह भय से घबराते हैं । कभी-कभी यह संवेगात्मक स्थिरता भी उत्पन्न करते हैं। जिससे वह विद्यालय तथा समाज के साथ भी सामंजस्य रख सकें।
  4. दृश्यश्रव्य सामग्री का प्रयोग (Uses of Audio-Visual Aids)- मन्दबुद्धि बालकों के अध्यापन के समय आवश्कतानुसार दृश्य-श्रव्य सामग्री तथा पाठ्य सहायक सामग्री (Teaching Aids) का प्रयोग करना चाहिए । इसके अन्तर्गत करके सीखने का तथा अवलोकन एवं प्रायोगिक विधियों से पाठन करना लाभकारी है।
  5. अध्यापकों का आकर्षक व्यक्तित्व (Attractive Personality of Teacher)- मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जो किसी भी प्रकार के मानसिक दबाव से मुक्त हो, वही अच्छा शिक्षक कहला सकता है । यह शिक्षक मन्दबुद्धि बालकों को भली प्रकार से पढ़ा सकते हैं । अतः इनका व्यवहार प्रेमपूर्वक होना चाहिए तथा शिक्षकों का व्यक्तित्व भी इतना आकर्षक हो कि वह बालकों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें।
  6. बालकों को सम्मान देने वाले शिक्षक (Teacher should Respect the Children)- शिक्षक का व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि वह बालकों को प्यार तथा सम्मान देने वाले होने चाहिए।
  7. समूह कार्यों द्वारा शिक्षा (Education with Group Work)- शिक्षक के द्वारा समूह कार्य में शिक्षा दी जानी चाहिए। यह समूह कार्य वाद-विवाद आदि के रूप में भी हो सकते हैं । क्योंकि यह बालक खेल-खेल में शिक्षा सरल तरीकों से प्राप्त कर लेते हैं।

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