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दृष्टि बाधित बालक

दृष्टि बाधित बालक

आंशिक रूप से दृष्टि बाधित बालकों के भाग (Types of Partially Sighted Children)

आंशिक रूप से दृष्टि बाधित बालक वह होते हैं, जो कि बड़े अक्षरों को मुद्रित भाषा में या उत्तल दर्पण की सहायता से पढ़ सकते हैं। इनकी दृष्टि क्षमता 20 से 70 तक उत्तम आँख में होती है । यह 20 फीट की दूरी तक देख सकते हैं। इसके अन्तर्गत सामान्य बालक 70 फीट की दूरी तक तो देख सकते हैं। परन्तु बाधित बालकों की दृष्टि सामान्यतः किसी बीमारी आदि के कारण कम हो जाती है।

आंशिक रूप से दृष्टि बाधित बालकों को चार भागों में बाँटा जाता है—

  1. वह बालक जिनकी दृष्टि एक्यूटी (Visual Acuity) 20/70 तथा 20/200 के बीच होती है।
  2. वह बालक जो गम्भीर तथा बढ़ने वाली दृष्टि सम्बन्धी से पीड़ित हैं।
  3. वह बालक जो नेत्र रोगों से पीड़ित हैं या उन रोगों से ग्रस्त हैं जो गम्भार ना रोग होते हैं।
  4. वह बालक जो औसत मस्तिष्क वाले होते हैं तथा चिकित्सकों के हो जाते हैं। यह कम देखने वाले बालकों को दिये जाने वाले सामान के आधार पर ही लाभान्वित ।

अतः आंशिक रूप से बाधित बालकों को मेडिकल परीक्षण के द्वारा पहचाना जा सकता है । इन बालकों की आँखों का भी परीक्षण किया जाना अति आवश्यक होता। है। विद्यालयों में भी स्वास्थ्य सेवा विभागों का यह कर्तव्य है कि वह भी विद्यालयों

दृष्टि बाधित की पहचान (Identification of visually disabled)

गम्भीर रूप से दृष्टि बाधित बालकों को पहचानना अत्यन्त सरल है।यह बालक ब्रेल लिपि के द्वारा पढ़ाये जाते हैं । इनकी दृष्टि क्षमता 2/20 होती है। तथा यह श्रव्य यन्त्रों का भी प्रयोग करते हैं । यह बालक चलने में छड़ी का प्रयोग करते हैं।

यह बालक शैक्षिक कार्य हेतु नेत्रहीन तब समझे जाते हैं जब उनकी दृष्टि एक्यूटी 20/200 होती है । इससे कम होने पर अथवा इसी प्रकार की कोई अन्य असमर्थता होने पर भी बालकों को अन्धों की श्रेणी में डाला जाता है।

कई ऐसे बालक जिनकी दृष्टि बहुत अधिक बाधित होती है तथा वह बालक रंगों का भेद तक नहीं कर पाते हैं। डाक्टर के द्वारा इन बालकों को पहचान कर इन्हें चश्मा लगाया जाता है। इनका समय-समय पर परीक्षण किया जाता है ताकि इनकी आँखों की दशा में जितना सम्भव हो सुधार हो जाये तथा यदि बालकों की आँखें ऑपरेशन द्वारा ठीक करायी जा रही हों तो बालकों के चश्में का भी ध्यान रखना चाहिए। चूँकि अन्धे बालक अपनी दूसरी इन्द्रियों पर निर्भर रहते हैं, अतः इनकी अन्य इन्द्रियों के स्वास्थ्य की परवाह करनी चाहिए।

दृष्टि बाधित बालकों का वर्गीकरण (Classification of Visually Impaired Children)

दृष्टि बाधित बालकों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है-

वर्ग स्तर

उत्तम आँख

क्षतिपूर्ण आँख

बाधिता का प्रतिशत

स्तर द 6/9 से 6/18 6/24 से 6/36 20 %
वर्ग-I 6/18 से 6/36 6/60 से शून्य 40 %
वर्ग-II 6/36 से 6/60 3/60 से शून्य 75 %
वर्ग-III 1 से शून्य दृष्टि क्षेत्र 100 100 %

दृष्टि बाधित बालकों के लक्षण

दृष्टि बाधित बालकों के लक्षण निम्नलिखित होते हैं-

  1. यह बालक अक्सर सिरदर्द की शिकायत करते हैं।
  2. यह बार-बार आँखों को मलते हैं।
  3. आँखों से लगातार पानी बहता रहता है।
  4. जब यह वस्तुओं को दूर से देखते हैं, तो इनके शरीर में तनाव रहता है।
  5. कभी-कभी इनकी आँखें लाल हो जाती हैं।
  6. इनकी आँखों का आकार अन्य बालकों से भिन्न होता है।
  7. प्रकाश के प्रति यह बालक अत्यधिक संवेदनशीलन रहते हैं।
  8. कभी-कभी इनकी आँखों में टेढ़ापन तथा भंगापन भी हो सकता है।

अत: इन बालकों में यह सारे लक्षण होते हैं।

दृष्टि बाधितों की मानसिक योग्यता (Mental Ability of Visually Impaired)

दृष्टि बाधित बालक वह होते हैं, जो कि अपनी आँखों से ठीक प्रकार से नहीं देख पाते हैं। यह बाधित बालक मानसिक योग्यता की दृष्टि से सामान्य बालकों से कम नहीं होते हैं। शोध तथा अनुसन्धान कार्यों से यह पता चला है कि यदि इन्हें समुचित शिक्षा दी जाये या शिक्षा का अवसर मिल सके तब इनकी बुद्धि-लब्धि अचानक बढ़ जाती है।

यह बालक किसी वस्तु की दूरी को नहीं समझ पाते हैं। क्योंकि वे दूरी को देख नहीं सकते हैं। अत: इनकी दूरी का प्रत्यय विकसित नहीं हो पाता है।

दृष्टि बाधित बालकों में प्रत्ययों का विकास स्पर्श अनुभव से होता है। इन्हें दो अलग-अलग प्रकार से स्पर्श अनुभव होते हैं। प्रथम विश्लेषण स्पर्श अनुभव तथा द्वितीय संश्लेषण स्पर्श अनुभव से होता है।

दृष्टि बाधित बालकों में एकाग्रता का विकास अधिक होता है। देखने से एकाग्रता प्रभावित होती है तथा सुनने का कौशल उत्तम होता है इसके फलस्वरूप ज्ञानात्मक विकास में स्थानापन्न की कई समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं।

दृष्टि बाधितों में भाषा का विकास

दृष्टि बाधित बाराक भाषा दोषी नहीं होते हैं। यह ठीक प्रकार से सुन तथा बोल सकते हैं। सुनना तथा बोलना भी भाषा के प्रमुख कौशल होते हैं। मुख्य  रूप से भाषा को ही सम्प्रेषण का माध्यम माना जाता है। परन्तु अन्धे बालकों का सीखने का तरीका अन्य बालकों से पूर्णतः भिन्न होता है। क्योंकि सामान्य बालक देखकर सीखते हैं तथा दृष्टि बाधित बालक इस प्रकार के अनुभवों से वंचित रहते हैं। यह सिर्फ शब्दों से ही अपने विचारों को व्यक्त कर पाते हैं न कि इन्द्रियों के माध्यम से। दृष्टि बाधित बालक सुनकर ही शब्दों का चयन करते हैं, क्योंकि इनकी दृष्टि इन्द्रिय क्रियाशील नहीं होती है। सम्पूर्ण जानकारी व ज्ञान श्रवण इन्द्रियों पर भी आधारित होता है। किसी वस्तु का सही प्रत्यक्षीकरण इन्हें नहीं हो पाता है। तथ्यों को भाषा द्वारा ही प्रकट किया जाता है। उसे रंगों का कोई भी बोध नहीं होता है। इनकी शाब्दिक अभिव्यक्ति आन्तरिक नहीं होती है तथा इनके अनुभव भी पूर्ण नहीं होते हैं। उनका प्रत्यक्षीकरण सुनने तथा स्पर्श तक ही सीमित रहता है।

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