(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

अस्थायी व्यादेश या निषेधाज्ञा (Temporary Injunction)

अस्थायी व्यादेश (Temporary Injunction)

विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 के अध्याय VIII के अधीन निवारक अनुतोष प्रदान किये जाने की व्यवस्था की गयी है, निवारक अनुतोष प्राप्त करना किसी वादी का अधिकार नहीं होता है, बल्कि यह एक उपचार होता है जो कि न्यायालय द्वारा प्रदान किया जा सकता है। अर्थात् निवारक अनुतोष न्यायालय का विवेकाधिकार होता है, जोकि विधि के अनुरूप एवं न्यायिक सिद्धान्तों पर आधारित होता है। निवारक अनुतोष न्यायालय निषेधाज्ञाओं के रूप में प्रदान करता है। निषेधाज्ञाओं से तात्पर्य न्यायालय के उन विशिष्ट आदेशों से लगाया जाता है, जोकि न्यायालय किसी मामले के प्रतिवादी के विरुद्ध पारित करता है जिसमें प्रतिवादी को किसी अपकृत्य के करने या करते रहने से रोका जाता है। यह व्यादेश अवधि के अनुसार दो प्रकार के होते हैं-अस्थायी व्यादेश या शाश्वत व्यादेश।

अस्थायी व्यादेश

अस्थायी व्यादेश को अन्तरिम व्यादेश भी कहा जाता है। अस्थायी या अन्तरिम व्यादेश ऐसा व्यादेश है, जो किसी कार्य के प्रारम्भ होने पर एक आन्तरिम प्रार्थना पत्र पर प्रदान किया जाता है, जिसमें मामले के विचारण के दौरान एवं निर्णय होने तक यथास्थिति कायम रखने या यथास्थिति बनाये रखने का आदेश किया जाता है।

इस व्यादेश को प्रदान किये जाने का मुख्य उद्देश्य वादी को शीघ्र से शीघ्र तत्कालीन उपचार प्रदान करना होता है। क्योंकि स्थायी व्यादेश प्रदान करने में एक लम्बा समय लगता है, जोकि मामले की पूर्ण सुनवायी के उपरान्त वाद के गुण व दोष के आधार पर निर्णय देते समय प्रदान किया जाता है। परन्तु

कभी-कभी ऐसी परिस्थिति भी आती है कि वादी इतने लम्बे समय तक इन्तजार नहीं कर पाता है। इसलिए अस्थायी व्यादेश का उपचार प्राप्त करने के लिए उसे व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 नियम 1 व 2 के अधीन एक अन्तरिम प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करना पड़ता है, जिसमें कि उन आधारों को उल्लिखित किया जाता है जिन पर कि वह व्यादेश चाहता है तथा प्रार्थना के रूप में उल्लिखित करता है कि यदि प्रतिवादी को किसी विशिष्ट कार्य करने से तुरन्त नहीं रोका गया तो उसे अपूर्णनीय क्षति होगी। विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 37 के अनुसार, अस्थायी व्यादेश, वाद के किसी भी प्रक्रम पर जारी किये गये ऐसे आदेश होते हैं, जो एक विशिष्ट समय तक या न्यायालय के अग्रिम आदेश तक जारी रहते हैं। अस्थायी व्यादेश का अनुतोष प्रदान करना न्यायालय का विवेकाधिकार है, जोकि वाद के किसी भी प्रक्रम पर वादी द्वारा शपथ-पत्र सहित दिये गये प्रार्थना-पत्र के आधार पर प्रदान किया जा सकता है, परन्तु इस अनुतोष को प्रदान करने से पूर्व न्यायालय कुछ बिन्दुओं पर अपनी सन्तुष्टि चाहता है।

अस्थायी व्यादेश प्रदान किये जाने की आवश्यक शर्तें

अस्थायी व्यादेश का अनुतोष प्रदान करने से पूर्व न्यायालय वादी से कुछ अपेक्षाएँ करता है तथा न्यायालय उन पर विचार करने के उपरान्त ही यह अनुतोष प्रदान करता है। परन्तु यदि वादी उन अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता है और न्यायालय को सन्तुष्ट नहीं कर पाता है, तो न्यायालय यह उपचार प्रदान करने से इन्कार भी कर सकता है। अस्थायी व्यादेश प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है-

  1. वाद का संस्थापित किया जाना

    वादी को सर्वप्रथम न्यायालय के समक्ष प्रथम दृष्टया अपना मामला संस्थापित करना पड़ता है कि यदि मामले में निषेधाज्ञा प्रदान नहीं की गयी, तो वादी को अपूर्णनीय क्षति होगी। इसके लिए वादी को अपने विधिक स्वत्व को दर्शित करने की आवश्यकता नहीं होती है। उसे केवल यह प्रदर्शित करना होता है कि मामले में जाँच के लिए एक सारवान प्रश्न वर्तमान है एवं जब तक उसका अन्तिम निर्णय नहीं हो जाता तब तक मामले में यथास्थिति बनाये रखे जाने का आदेश दिया जाना आवश्यक है। वादी का अन्तरिम प्रार्थना पत्र उसके शपथ-पत्र द्वारा समर्थित होना चाहिए।

  2. अधिकारों पर अतिक्रमण होना

    वादी को अपने मामले में अस्थायी व्यादेश प्राप्त करने के लिए यह भी बताना होगा कि प्रतिवादी द्वारा किये जाने जा रहें या किये जाने वाले कार्य से उसके अधिकारों में बाधा पहुँचेगी। यदि वादी को कोई विधिक अधिकार प्रश्नगत या विवादित नहीं है, तो वादी को इस योग्य होना चाहिए कि वह यह बताये कि प्रतिवादी के जिस कार्य की शिकायत की गयी हैं वह वास्तव में वादी के अधिकारों का अतिग्रहण है या भविष्य में अतिक्रमण होने की सम्भावना है।

  3. गम्भीर क्षति का होना

    अस्थायी व्यादेश की प्राप्ति के लिए वादी को यह भी सिद्ध करना होगा कि यदि निषेधाज्ञा प्रदान नहीं की गयी, तो वादी को ऐसी अपार या गम्भीर क्षति होने की सम्भावना है, जिसकी कि पूर्ति नहीं की जा सकती है तथा कोई अन्य ऐसा उपचार वादी को प्राप्त नहीं हो सकता जिससे कि वह स्वयं का संरक्षण कर सके तथा होने वाली क्षति के परिणामों से स्वयं को बचा सके।

  4. सुविधा का सन्तुलन

    अस्थायी व्यादेश के लिए वादी को यह भी सिद्ध करना होगा कि सुविधा का सन्तुलन अस्थायी व्यादेश प्रदान करने के पक्ष में है। इसके लिए वादी को न्यायालय को सन्तुष्ट करना होगा कि यदि व्यादेश वादी के पक्ष में प्रदान नहीं किया गया तो उसको ऐसी रिष्टि या असुविधा पहुँचेगी, जोकि प्रतिवादी को पहुँचने वाली रिष्टि या असुविधा की अपेक्षा काफी अधिक होगी।

  5. साम्या के सिद्धान्त

    चूँकि निषेधाज्ञा का उपचार साम्यिक विधि के अधीन दिये जाने वाले अनुतोष हैं, इसलिए इसे प्राप्त करने के लिए वादी को यह सिद्ध करना होगा कि वह साम्य चाहता है तथा उसने साम्य का ही व्यवहार किया है तथा वह साम्य की शरण में स्वच्छ हाथों से आया है। इसका तात्पर्य यह है कि वादी शुद्ध अन्त:करण से आया है तथा न्यायालय से की याचना करता है।

यदि वादी न्यायालय को उपरोक्त तथ्यों से सन्तुष्ट कर देता है, तो न्यायालय इन पर विचार करते हुए पक्षों के आचरण एवं पक्षों के आधिपत्य आदि बिन्दुओं पर विचार करते हुए अपने विवेकानुसार आदेश पारित करेगा। यदि न्यायालय की धारणा अस्थायी व्यादेश प्रदान न करने की बनती है, तो न्यायालय आदेश में उन कारणों को अभिलिखित करेगा। इन कारणों में वादी की उदासीनता, लापरवाही, उपमति अथवा अधित्याग हो सकता है। यदि न्यायालय अस्थायी आदेश का उपचार प्रदान करता है, तो उसमें उन शर्तों को भी अधिलिखित किया जायेगा जिनके कि अधीन अस्थायी व्यादेश प्रदान किया गया है।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए,  अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हम से संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है,  तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment

error: Content is protected !!